यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रेरणा से स्वामी भरतदासाचार्य रायपुर में दूसरी बार लक्ष्मीनारायण महायज्ञ संपन्न करा रहे

वृंदावनवासी स्वामी भरतदासाचार्य छत्तीसगढ़ के लिए कोई अंजाने संत नहीं
हैं। रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव में वे लक्ष्मी नारायण यज्ञ पहले
भी करा चुके हैं। इसलिए उनके शिष्यों और श्रद्घालुओं की अच्छी  खासी
संख्या  इस क्षेत्र में है। श्रद्घालुओं के इसी प्रेम श्रद्घा के कारण
भरतदासाचार्य फिर से लक्ष्मीनारायण यज्ञ रायपुर के चौबे कालोनी में
संपन्न करा रहे हैं। 13 नवंबर से प्रारंभ 21 नवंबर तक होगा और यह उनका 97
वां यज्ञ है। अभी  तक कोई भी संत या गृहस्थ इतने यज्ञ संपन्न नहीं करा
सका है और स्वामी जी का संकल्प 108 यज्ञ संपन्न कराने का हे। विगत 37
वर्षों से स्वामी जी देश के कोने कोने में यज्ञ करवा रहे हैं। रायपुर को
ही यह गौरव उन्होंने दिया है कि यहां दूसरी बार यज्ञ हो रहा है।
छत्तीसगढ़ की धरा वैसे भी तपोभूमि रही है। कितने ही ऋषि मुनियों का यहां
आश्रम रहा है तो भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का भी छत्तीसगढ़ ननिहाल
रहा है। भगवान राम के वन गमन का मार्ग भी छत्तीसगढ़ से ही गुजरता है।
राम और कृष्ण दोनों भगवान लक्ष्मी नारायण के ही अवतार माने जाते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले यह क्षेत्र पिछड़ा आर्थिक मामले में माना
जाता था लेकिन धार्मिक मामले में यह क्षेत्र सदा से ही संपन्न रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद तो भगवान लक्ष्मीनारायण की कृपा इस क्षेत्र
पर बरस रही है। पूरे देश में छत्तीसगढ़ ही ऐसा क्षेत्र है जहां सरकार
अपने गरीबों के लिए 2 रू. किलो और 1 रू. किलो में चांवल 35 किलो प्रति
परिवार प्रतिमाह दे रही है। जिससे राज्य में कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए।
बिना ईश्वर कृपा के यह संभव नहीं। क्योंकि ईश्वर की कृपा से ही अच्छा
राजा मिलता है और जनता खुशहाल होती है। भगवान लक्ष्मीनारायण ने स्वामी
भरतदासाचार्य को प्रेरणा दी तभी तो वे छत्तीसगढ़ में लक्ष्मीनारायण यज्ञ
करवाने के लिए आए। एक ऐसे क्षेत्र में जहां पहले उनका आगमन नहीं हुआ था,
वहां आकर एक बड़े यज्ञ की व्यवस्था सफलता पूर्वक कर लेना और श्रद्घालुओं
को यज्ञ के लिए प्रेरित कर लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है।

क्योंकि ऐसे धार्मिक कृत्य अक्सर आयोजकों के आमंत्रण पर ही संत लोग
संपन्न कराते हैं लेकिन भरतदासाचार्य ऐसे संत हैं जो बिना किसी आमंत्रण
के अपनी अंतप्रेरणा  से रायपुर आए और उन्हें काशीप्रसाद पुंगलिया और
दीनानाथ शर्मा जैसे व्यक्ति मिल गए। फिर तो कारवां बढ़ता गया और लोग
जुड़ते गए। अपना काम धंधा छोड़कर भक्त ऐसे जुड़े कि तन मन धन से लोग यज्ञ
में सम्मिलित होने के लिए जुडऩे लगे। देश के विभिन्न हिस्सों में स्वामी
भरतदासाचार्य ऐसे ही प्रगट होते रहे और सफलता पूर्वक यज्ञ संपादित करते
रहे। सारा काम ऐसे होता गया जैसे सब कुछ पूर्व निर्धारित था और कर्ता
कहीं और बैठकर सबको निर्देशित और प्रेरित कर रहा था। आज के इस व्यस्त युग
में जब व्यक्ति अपने परिवार के लिए ही पूरा समय नहीं निकाल पाता तब लोग
यज्ञ के लिए डेढ़ दो माह का समय निकाल ले तो इसे प्रभु प्रेरणा ही कहा जा
सकता है।

किसी भी दृष्टि से देखें तो भगवान लक्ष्मीनारायण की पूरी कृपा स्वामी
भरतदासाचार्य पर दिखायी देती है। कहावत भी है कि हिम्मते मर्दा तो मददे
खुदा। स्वामी भरतदासाचार्य ने अपने संकल्प के साथ अपने को प्रभु
लक्ष्मीनारायण को समर्पित किया तो प्रभु ने भी अपना वरदहस्त उनके ऊपर
रखा। शिष्यों, भक्तों ने लक्ष्मीनारायण की कृपा का रसास्वादन भी किया।
कितनों के ही बिगड़े काम बन गए तो कितने ही स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्त
हो गए। कितनों की ही गोद हरी हो गयी तो कितने ही कृपा से धन्य धन्य हो
गए। ऐसा नहीं कि लोगों ने अड़ंगा लगाने, व्यवधान डालने की कोशिश नहीं की
लेकिन बिना किसी प्रयास के ही प्रभु कृपा से ही व्यवधान आए और चलते बने।
विध्नकर्ता ही महाराज जी के श्री चरणों में दंडवत हो गए।

भरतदासाचार्य धर्म और कर्मकांड के ज्ञाता हैं। वृन्दावन में उनका आश्रम है
और उन्होंने वहां एक अतिथि शाला भी बनायी है जिसका उद्घाटन करने के लिए
छत्तीसगढ़ के यशस्वी मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह स्वयं वृंदावन गए। महाराज
जी की अपनी गौशाला भी है। पूरे देश से स्वामी जी के शिष्य और भक्त जहां
भी यज्ञ होता है, सम्मिलित होने के लिए अवश्य आते हैं। स्वामी जी वृंदावन
में होते हैं तो भक्त वृंदावन उनके दर्शनों के लिए जाना अपना सौभाग्य
समझते हैं। स्वामी जी ने दक्षिण भारत के हैदराबाद, बेंगलुरू और चेन्नई
में यज्ञ संपादित किया है तो आसाम में भी यज्ञ संपन्न हो चुका है। 108
यज्ञ कराने का संकल्प अब मात्र 11 यज्ञ की प्रतीक्षा में है। वर्ष भर में
महाराज जी अधिक से अधिक तीन यज्ञ ही संपन्न कराते हैं। यज्ञ प्रारंभ होने
के पहले महाराज जी एक डेढ़ माह तक जहां यज्ञ होना है, वहां मंत्र जाप कर
प्रभु का आह्वान करते हैं। सहज सरल स्वामी जी तप तपस्या के मामले में अति
संकल्पवान हैं। इसलिए यज्ञ के पूर्व किए गए उनके पाठ क्षेत्र को आसुरी
शक्तियों से तो मुक्त करते ही हैं, अच्छी आत्माओं को  भी आमंत्रित करते
हैं।

यज्ञ प्रारंभ हो चुका है और श्रद्घालु पूरी तरह से भक्तिमय हो रहे हैं।
अवसर है, लोग लाभ उठा सकते हैं। प्रभु जब साक्षात यज्ञस्थल पर उपस्थित
हों तब भी सबके भाग्य में तो नहीं होता कि वे जा सकें लेकिन फिर हवाएं
संदेश देने का काम तो करती हैं। छत्तीसगढ़ धन धान्य से परिपूर्ण हैं तो
उसका कारण ये यज्ञ भी है। आखिर तो बिना प्रभु के इशारे के पत्ता भी नहीं
हिलता। धार्मिक मान्यताएं तो यही कहती हैं। यज्ञ के साथ स्वामी
भरतदासाचार्य की ओजस्वी वाणी में अमृतपान कराने की भी शक्ति है। महायज्ञ
के साथ श्रीमद भागवत कथा ज्ञानयज्ञ और कृष्ण महायज्ञ रासलीला का आयोजन
यज्ञ स्थल पर किया गया है। धार्मिक रसास्वादन का यह अद्वितीय अवसर है। यह
सोचकर घर बैठने का अवसर नहीं है कि फिर कभी महाराज जी यज्ञ कराएंगे तो
सम्मिलित हो जाएंगे। दूसरी बार के बाद तीसरी बार यज्ञ होना संभव नहीं
दिखायी देता। इस बार जो चूक गए, वे सदा के लिए ही न चूक जाएं। जब भगवान
स्वयं चलकर आए हैं तो इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है।

- विष्णु सिन्हा
16-11-2010


सोमवार, 15 नवंबर 2010

इस्तीफा दे देने मात्र से ही कोई दोष मुक्त हो जाता है, क्या ?

करूणानिधि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डी. एम. के. के अध्यक्ष कह रहे
थे कि राजा को मंत्रिमंडल छोडऩे के लिए बाध्य किया गया तो उनके शेष
मंत्री भी इस्तीफा दे देंगे। मतलब साफ था कि सरकार से समर्थन वापस ले
लेंगे। उनकी प्रतिद्वंदी जयललिता ने जब कहा कि राजा को मंत्रिमंडल से
बाहर किया जाए। सरकार बचाने के लिए वे अपने 9 सांसदों का समर्थन देंगी तो
सारी हेकड़ी करूणानिधि की निकल गयी। अपनी कही बात से पलटते हुए उन्होंने
राजा को इस्तीफा देने का निर्देश दे दिया। विपक्ष लोकसभा में राजा को
मंत्रिमंडल से हटाने की मांग पर अड़ा हुआ था और संसद  की कार्यवाही चल
नहीं रही थी। प्रधानमंत्री इस विषय में आज संसद में वक्तव्य भी देने वाले
है। 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में आरोप है कि सरकार को 1 लाख 76 हजार
करोड़ रूपये का नुकसान पहुंचाया गया। कल ही पूर्व सचिव संचार ने भी
वक्तव्य देकर दोषारोपण राजा पर ही किया था। ऐसे में मनमोहन सिंह के पास
इसके सिवाय कोई विकल्प नहीं था कि वे राजा को इस्तीफा न देने पर बर्खास्त
कर दें।

तमिलनाडु में विधानसभा के चुनाव निकट हैं और उम्मीद की जा रही है कि इस
बार जयललिता करूणानिधि की सरकार को अपदस्थ करने में सफल होंगी। ऐसी
स्थिति में केंद्र की सरकार से समर्थन  वापस लेकर करूणानिधि को सिवाय
नुकसान के और कुछ नहीं होने वाला था। सिर्फ राजा को बचाने के लिए 6
मंत्रियों की कुर्बानी कोई अक्लमंदी भरा फैसला नहीं था बल्कि सरकार में
बने रहने से तो राजा को बचाने का भी रास्ता निकला जा सकता है लेकिन जब
सरकार से ही बाहर हो गए तो केंद्र सरकार को कोई जरूरत नहीं थी कि वह राजा
को बचाने का कोई प्रयास करे। विधानसभा चुनाव में  भी कांग्रेस के साथ
गठबंधन करने से जो वोटों का लाभ मिलता है, वह भी हाथ से निकल जाता।
बुजुर्ग करूणानिधि राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं और जब दबाव काम आता
नहीं दिखा तो राजा के इस्तीफे में ही अपनी भलाई समझी।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक ईमानदार व्यक्ति हैं। किसी तरह के
भ्रष्टïचार से उनका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। वास्तव में उनकी
चलती तो वे बिना एक मिनट की देरी किए राजा को बर्खास्त कर देते।
अंतर्राष्ट्रीय  मंचों में उनकी प्रतिष्ठï ऐसी है कि दुनिया की सबसे
बड़ी ताकत अमेरिका के राष्ट्रपति  बराक ओबामा दुनिया भर में जहां जाते
हैं, वहीं मनमोहन सिंह की तारीफ करते हैं। यह कोई मनमोहन सिंह की छोटी
उपलब्धि नहीं है। दुनिया के किसी भी मंच में आज मनमोहन सिंह को बड़े
ध्यान से सुना जाता है। दरअसल भारत की बढ़ती समृद्घि के लिए दुनिया किसी
को श्रेय देती है, वह मनमोहन सिंह ही हैं। भले ही वे राजनैतिक व्यक्ति न
हों लेकिन नरसिंहराव के वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने नरसिंहराव का
पूर्ण विश्वास अर्जित किया तो सोनिया गांधी का विश्वास जीतने में इतने
सफल रहे कि सोनिया गांधी ने अपने बदले उन्हें ही प्रधानमंत्री पद के लिए
उपयुक्त समझा। राजनैतिक रूप से यह सही है कि मनमोहन सिंह को जिस समय भी
सोनिया गांधी चाहें प्रधानमंत्री के पद से हटा सकती हैं। इतनी शक्ति और
क्षमता सोनिया गांधी के सिवाय किसी के पास नहीं है लेकिन आज जो राजनैतिक
परिस्थितियां हैं, राष्ट्रीय  और अंतर्राष्ट्रीय  उसमें मनमोहन सिंह को
हटाना आसान काम नहीं है।

उनका विकल्प कोई नहीं है। स्वयं सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी उनका
विकल्प नहीं हैं। यह अर्थप्रधान युग है। दुनिया भर में चर्चा सिर्फ
आर्थिक विकास की ही होती है और एक अर्थशास्त्री के रूप में भारत को
अंतर्राष्ट्रीय  मंच पर उचित स्थान दिलाने में मनमोहन सिंह की भूमिका
किसी से भी कम नहीं है बल्कि यह कहें कि उनकी ही भूमिका है तो
अतिश्योक्ति नहीं होगी। विश्व मंदी में विकास दर को बनाए रखकर उन्होंने
विश्व को चौंकाया है। चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर विदेशी मुद्रा से
अपना खजाना भर रहा है तो बिना अवमूल्यन के ही मनमोहन सिंह भारत का खजाना
भर रहे हैं। अमेरिका और भारत की बढ़ती मित्रता ने चीन को भी चौंकन्ना कर
दिया है और उसे समझ में भी आ रहा है कि भारत से निपटना आसान नहीं है।
सबसे बड़ी बात तो यही है कि अमेरिकी अर्थ व्यवस्था को मजबूती के लिए आज
भारत और मनमोहन सिंह की जरूरत है।

1955 में जब रूस और अमेरिका दोनों तैयार थे कि  भारत को राष्ट्रसंघ  के
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दी जाए तब जवाहरलाल नेहरू गुट
निरपेक्षता का झंडा ऊंचा उठाए हुए थे और अपने मित्र चीन को स्थायी
सदस्यता  देने की वकालत कर रहे थे। चीन तो स्थायी सदस्य सुरक्षा परिषद का
बन गया लेकिन भारत पिछड़ गया। पहली बार अमेरिका ने भी स्थायी सदस्यता की
वकालत की है। रूस, फ्रांस और इंग्लैंड तो पहले से ही तैयार हैं। अमेरिका
के बाद अब चीन का नंबर हैं। इंतजार किया जा रहा है कि चीन क्या रूख
अपनाता है? लेकिन पाकिस्तान की हालत तो अमेरिका के समर्थन के बाद देखने
लायक हो गयी है। कभी पाकिस्तान के मित्र रहे अमेरिका का भारत के प्रति
मित्रता का जो भाव दिखायी दे रहा है, यह मनमोहन सिंह की ही कूटनीति की जय
है।

अंतराष्ट्रीय  मामलों में जिस तरह की छूट मनमोहन सिंह को है, वैसी ही छूट
राजनैतिक मामलों में भी राष्ट्रीय  स्तर पर मिले तो एक राजा क्या,
भ्रष्टïचार का कोई आरोपी उनके मंत्रिमंडल में नहीं दिखायी पड़ेगा। राजा
ने तो वह काम किया है जो वास्तव में मनमोहन सिंह को नुकसान पहुंचाने वाला
काम है। 176 लाख करोड़ सरकार के खजाने में आते तो देश के आर्थिक विकास को
और गति मिलती। 120 करोड़ नागरिकों के मुल्क में इसका प्रति व्यक्ति हिसाब
किया जाए तो प्रति व्यक्ति लगभग चौदह सौ छैसठ रूपये आता है। 1 लाख 76
हजार करोड़ रूपये का आर्थिक नुकसान सरकारी खजाने को पहुंचाने वाले
व्यक्ति से सिर्फ इस्तीफा ले लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि जांच कर उसे
जेल की सलाखों में पहुंचाने की जरूरत है। सिर्फ उसे ही क्यों ? यह कोई एक
पक्षीय मामला तो है, नहीं। राजा के भ्रष्टïचार का जिन लोगों ने लाभ
उठाया, वे भी समान रूप से अपराधी हैं। उनकी जगह भी जेल ही हो सकती है।
यह सबसे अच्छा मौका है। मनमोहन सिंह को उदाहरण पेश करना चाहिए। वे
अर्थशास्त्री हैं और अच्छी तरह से समझते हैं कि राजा के इस कृत्य ने देश
को कितना नुकसान पहुंचाया है। 3 रू. किलो में केंद्र सरकार अनाज गरीबों
को देने के लिए वादा कर सत्ता में आयी है। 1 लाख 76 हजार करोड़ रूपये को
सही जगह लगाया जाता तो गरीबों का पेट भरा जा सकता था। इसके ब्याज से ही
सरकारी खजाने के घाटे की पूर्ति की जा सकती थी। अमीरी कैसे बढ़े और उसका
फल अंतिम व्यक्ति तक कैसे पहुंचे, इस सोच की ही हत्या भ्रष्टïचार करता
है। जो ऐसे लोगों का संरक्षक बनता है वह भी कम दोषी नहीं है। भले ही
सरकार चलाने की कितनी भी उसकी जरूरत हो। गेंद मनमोहन सिंह के पाले में
है और उन्हें ही निर्णय करना है कि इस्तीफा देने मात्र से कोई दोष मुक्त
हो जाता है, क्या?

- विष्णु सिन्हा
13-11-2010
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रविवार, 14 नवंबर 2010

सुदर्शन के कुंठाग्रस्त बयान ने संघ को खेद प्रगट करने के लिए बाध्य किया

राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के. सी. सुदर्शन का सोनिया
 गांधी के विषय में दिया बयान मर्यादा की सभी सीमाओं का उल्लंघन कर गया
है। कहां संघ के स्वयं सेवक एवं पदाधिकारी भगवा आतंकवाद जैसी उपमा के
विरोध में राष्ट्रव्यापी  धरना दे रहे थे और उसी धरने में सुदर्शन ने जो
कुछ सोनिया गांधी के विषय में कहा, उससे संघ का कार्यक्रम तो एक तरफ रह
गया, संघ की ही थू थू हो रही है। हालांकि सुदर्शन आज राष्ट्रीय 
स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक नहीं हैं लेकिन ऐसा व्यक्ति कभी संघ का
सरसंघचालक था, इससे संघ क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। संघ के सबसे
बड़े पद बैठने के लिए जब सुदर्शन का चयन किया गया था, तब उनके गुणों को
लोगों ने अच्छी तरह से जांचा परखा होगा और योग्य समझे जाने पर ही पद पर
प्रतिष्ठित किया होगा। इसलिए सुदर्शन के बयान को कोई भी कम करके नहीं आंक
सकता।

सुदर्शन के बयान ने संघ को कठघरे में खड़ा कर दिया है। पूरे देश में
कांग्रेसियों ने सड़क पर उतरकर कड़ा विरोध प्रदर्शित किया है। इसके पहले
विश्व हिन्दू परिषद के प्रवीण तोगडिय़ा ने भी सोनिया के लिए अभद्र भाषा का
प्रयोग किया था। सुदर्शन तो कह गए कि सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी और
राजीव गांधी की हत्या करवायी। सुदर्शन इसके लिए किसी तरह का प्रमाण तो दे
नहीं सके। जब केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार थी तब सुदर्शन ही संघ के
मुखिया थे। उस समय वे चाहते तो सोनिया गांधी के संबंध में कोई प्रमाण
उनके पास था तो उसे प्रगट कर  सकते थे बल्कि भाजपा गठबंधन सरकार के समय
भी सुदर्शन सरकार के लिए सही व्यक्ति नहीं थे। सरकार उनकी बातों को
तवज्जो नहीं देती थी। उनकी अनियंत्रित सोच और अपनी सोच की अभिव्यक्ति ने
ही संघ को सरसंघचालक पद से उन्हें हटाने के लिए बाध्य किया। नहीं तो क्या
कारण था जो उन्हें पद से हटाया गया? संघ के इतिहास में राजेंद्रसिंह
रज्जू भैया ही ऐसे सरसंघचालक हुए जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से पद
छोड़ा। बाकी सभी सरसंघचालक आजीवन अपने पद पर बने रहे।
के. सी. सुदर्शन तो पूरी तरह से शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और फिर भी
उन्हें पद त्याग करना पड़ा तो उसका कारण उनका विवादास्पद होना ही रहा। आज
सोनिया गांधी के विषय में दिए गए उनके वक्तव्य से संघ सहमत नहीं है। संघ
ने असहमति के साथ खेद भी अपनी तरफ से प्रगट कर दिया है। भाजपा भी सुदर्शन
के वक्तव्य से असहमति प्रगट कर रही है। सुदर्शन के दिए वक्तव्य के लिए
उनके विरूद्घ न्यायालय में भी वाद दायर किए जा रहे हैं। कांग्रेसी मांग
भी कर रहे हैं कि सुदर्शन माफी मांगें और अपना कथन वापस ले लेकिन सुदर्शन
ने अभी तक खेद अपने कथन के विषय में प्रगट नहीं किया है। सोनिया गांधी को
इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या का दोषी ही सुदर्शन ने नहीं बताया
बल्कि उनके जन्म पर भी प्रश्रचिन्ह खड़ा करने की कोशिश की।

सोनिया गांधी आज भारत की सबसे शक्तिशाली महिला ही नहीं हैं बल्कि
सम्मानित महिला भी हैं। प्रधानमंत्री का पद मिले तश्तरी में सजाकर और कोई
उस पर बैठने के लिए तैयार न हो, ऐसी नेता हैं, सोनिया गांधी। उनके हाव
भाव व्यवहार सभी में भारतीय संस्कृति की ही झलक मिलती है। राजीव गांधी की
विधवा की भूमिका भी उन्होंने बड़े सम्मानजनक तरीके से निभायी है।  सोनिया
स्वयं सत्ता की भूखी होती तो राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंहराव को
प्रधानमंत्री बनाने के बदले स्वयं प्रधानमंत्री बन सकती थी। कांग्रेसियों
ने कम मिन्नतें उनसे नहीं की थी। सीताराम केसरी जैसे वरिष्ठ नेता ने तो
उनके पैरों पर अपनी टोपी ही उतारकर रख दी थी कि वे कांग्रेस अध्यक्ष की
गद्दी संभालें। प्रधानमंत्री का पद संभालें लेकिन सोनिया गांधी इसके लिए
तैयार नहीं हुई। यह सब ऐसे तथ्य हैं जिसे सभी अच्छी तरह से जानते हैं।
नरसिंहराव कांग्रेस को संभाल लेते और कांग्रेस की अलोकप्रियता नहीं बढ़ती
तो सोनिया गांधी शायद राजनीति में पैर रखना भी पसंद नहीं करती। उन्होंने
तो राजीव गांधी को भी रोकने का प्रयास कम नहीं किया था लेकिन विधि का
विधान। वह जो चाहता है, वह होकर रहता है। कांग्रेस की डूबती नैया को पार
लगाने की जिम्मेदारी आखिर सोनिया गांधी को ही संभालनी पड़ी। उनका विदेशी
मूल का होना भाजपा को ही नहीं खटकता रहा बल्कि कुछ कांग्रेसी  भी इससे
सहमत थे लेकिन देश के लोगों ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को
स्वीकार किया। कांग्रेस बहुमत और दो तिहाई बहुमत की सरकार तो कई बार चला
चुकी थी लेकिन सफलता पूर्वक उसने गठबंधन की सरकार भी चलाकर दिखा दी। पहली
बार से अधिक सांसद दूसरी बार जितवाकर दिखा दिया कि सोनिया गांधी पतन के
कगार पर खड़ी कांग्रेस में नवजीवन फूंकना भी जानती है।

भाजपा के लिए संघ हमेशा से सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। आज भी भाजपा के
संगठन मंत्री संघ प्रशिक्षित स्वयं सेवक ही होते हैं। भाजपा की गठबंधन
सरकार को पुन. सत्तारूढ़ करने में संघ सफल नहीं हुआ। उसका  बड़ा कारण संघ
प्रमुख सुदर्शन और भाजपा के संबंध भी रहे। यह भी एक कारण रहा जिसके कारण
सुदर्शन को अपना पद छोडऩा पड़ा। रज्जू भैया ने भी पद छोड़ा लेकिन वे किसी
कुंठा के शिकार नहीं हुए। सुदर्शन का सोनिया गांधी के विषय में दिया बयान
तो पूरी तरह से कुंठाग्रस्त दिखायी पड़ता है। अनर्गल प्रलाप कर वे चर्चित
तो हो गए हैं लेकिन कुचर्चित व्यक्ति संस्था को लाभ तो पहुंचाते नहीं,
नुकसान अवश्य पहुंचाते हैं और सुदर्शन ने यही किया है।

द्रोपदी का चीरहरण कर कौरव नष्ट हो गए थे। सीता का हरण करने के कारण
रावण का कुल नष्ट हो गया था। सोनिया गांधी पर लांछन लगाकर भारतीय
संस्कृति और मर्यादा के अपने को सबसे बड़ा समर्थक बताने वाले सुदर्शन
उम्र के इस पड़ाव पर शांतिपूर्वक विचार करें कि वे क्या कह गए ? किसी भी
महिला पर झूठा लांछन लगाना भारतीय संस्कृति नहीं है। ऐसी गंदी बातें जबान
से निकालकर वे किसी का क्या अपना भी भला नहीं कर रहे हैं। सुदर्शन में
जरा सी भी सज्जनता शेष है तो उन्हें तुरंत माफी मांग लेना चाहिए। वे
बुजुर्ग हैं। लोग उन्हें माफ कर देंगे। सोनिया गांधी, राहुल गांधी,
प्रियंका गांधी में तो राजीव गांधी के हत्यारे तक को माफ करने की क्षमता
है। सुदर्शन सोनिया के समक्ष लगते कहां हैं? केशव बलिराम हेडगेवार,
गोलवलकर 'गुरूजी' जैसे लोग संघ प्रमुख की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। देवरस
और रज्जू भैया जैसे लोगों ने संघ का गौरव बढ़ाया। सुदर्शन पद से उतरकर सब
कुछ नष्ट कर देना चाहते हैं। यह उनके ही सोच का विषय है कि जिस संघ ने
उन्हें अपना प्रमुख बनाया, आज वह उनके विचारों से न तो सहमत हैं और न ही
उनके साथ खड़ा होना चाहता है बल्कि वह सुदर्शन के कथन के लिए खेद प्रगट
करने के लिए बाध्य हुआ है। सुदर्शन को जिस संस्था ने सम्मानित किया, उसे
असम्मानित स्थिति में खड़ा करने का कोई अधिकार उन्हें नहीं है।

- विष्णु सिन्हा
13-11-2010


शनिवार, 13 नवंबर 2010

ईमानदार व्यक्ति को रायपुर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाकर कमल विहार को अमलीजामा पहनाना आसान होगा

रायपुर विकास प्राधिकरण की कमल विहार योजना का विरोध जिस तरह से किया जा
रहा है, उससे सरकार के सामने धर्मसंकट की ही स्थिति है। जहां तक समाचार
पत्रों और कांग्रेस के विरोध का प्रश्र है तो सरकार एक बार इनके विरोध की
परवाह भी नहीं करती लेकिन जब भाजपा से भी विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं
तो विचारणीय सरकार के लिए तो हो ही गया है कि वह इस योजना को आगे बढ़ाए
या यहीं पर रोक दे। मंत्रिपरिषद  में बृजमोहन अग्रवाल के स्वर से सांसद
रमेश बैस, विधायक देवजी पटेल भी स्वर मिला रहे हैं। पार्टी अनुशासन की
आड़ में स्वर भले ही मुखरित न हो रहे हों लेकिन असहमतों की पार्टी में भी
कमी नहीं है। जनप्रतिनिधियों की सहमति की बात मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह
ने भी कही है। दरअसल इसी की सबसे ज्यादा जरूरत है। योजना पूरी तरह से
पारदर्शी हो और जिनकी जमीन ली जा रही है, उन्हें पूरी तरह से संतुष्ट
करने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

राजनीति का तो स्वभाव है, गर्म तवे पर रोटी सेंकने का। यह नहीं भूलना
चाहिए कि प्रजातंत्र में जनता की इच्छा ही सर्वोपरि होती है और किसी को
भी जनता की इच्छा पर अपनी इच्छा लादने का अधिकार नहीं है। कानूनन अधिकार
भले ही सरकार के पास हो लेकिन उसका उपयोग व्यक्तिगत किसी के हित साधन के
बदले भुक्तभोगी जनता के हित में होना चाहिए। इसलिए योजना को सफल बनाना है
तो भू-स्वामियों की इच्छा पर सबसे पहले ध्यान दिया जाना चाहिए। संबंधित
पक्ष संतुष्ट हो तो फिर किसी को भी विरोध करने का कोई अधिकार नहीं। जैसा
कहा जा रहा है कि भूस्वामी 40 प्रतिशत अपनी भूमि के बदले चाहते हैं और
प्राधिकरण 35 प्रतिशत देना चाहता है तो भूस्वामी की बात मानी जानी चाहिए।
क्योंकि पूर्व की देवेन्द्र नगर और शैलेन्द्र नगर योजना में भी 40
प्रतिशत तक भूमि दी गयी है लेकिन इसके साथ ही विकास शुल्क भी लिया गया
है। हालांकि यह पूरी तरह से नाजायज है लेकिन लोगों ने मजबूरी में विकास
प्राधिकरण के साथ समझौता किया। अपनी 60 प्रतिशत भूमि तो प्राधिकरण को दी
ही विकास शुल्क भी दिया। इतना ही नहीं हुआ। सबसे बड़ा अन्याय तो यह हुआ
कि भूस्वामी प्राधिकरण का पट्टïधारी हो गया।

भूमाफिया शब्द किसी गाली से कम नहीं है लेकिन कोई भूमाफिया भी ऐसा करने
में सक्षम नहीं है कि भूस्वामी को पट्टïदार लीजधारी बना दे। जिसका अर्थ
वास्तव में यह होता है कि जमीन का मालिकाना हक प्राधिकरण का है। पहले जो
भूस्वामी था, वह अब किरायेदार एक तरह से बन गया है। इतना ही नहीं हुआ
बल्कि अब पुराना भूस्वामी वर्तमान में पट्टïदार अपनी जमीन बेचना चाहे तो
उसे प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ता है। अनापत्ति प्रमाण
पत्र मुफत में नहीं मिलता। इसके लिए जितने में जमीन बेची जा रही है, उसका
10 प्रतिशत प्राधिकरण को देना पड़ता है। मालिक को गुलाम बनाने का यह नियम
कानून प्रजातंत्र के लिए किसी कलंक से कम है, क्या? प्रजातंत्र में सरकार
इतनी बड़ी शोषक भी  हो सकती है, इसका यह एक उदाहरण है।
यह सही है कि कानून कांग्रेस शासनकाल की देन है। डा. रमन सिंह ने यह
कानून नहीं बनाया लेकिन लागू तो उनके शासनकाल में भी यही कानून है।
मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह और राजेश मूणत ने पहल की थी और मंत्रिपरिषद ने
निर्णय भी लिया था कि भूभाटक समाप्त किया जाएगा लेकिन अभी तक लालफीताशाही
भूभाटक समाप्त करने का कानून नहीं बना सकी है। विकास प्राधिकरण कालोनी
विकसित कर नगर निगम को सौंप देता है। तब नगर निगम संपत्ति का जल मल कर
लेना प्रारंभ करता है और विकास प्राधिकरण भूभाटक वसूल ही करता रहता है।
कहने को विकास प्राधिकरण की कालोनी में रहने वाले अपने को मकान मालिक
कहते हैं लेकिन वास्तव में वे कितने मकान मालिक हैं। इसी कारण लोग अपनी
जमीन किसी भूमाफिया को तो बेचना पसंद करते हैं लेकिन विकास प्राधिकरण को
देना नहीं।

कमल विहार योजना में ही सरकार ने भूमि की बिक्री पर प्रतिबंध नही  लगाया
है। कितने ही सीधे सादे लोग जो प्राधिकरण के झंझट में नहीं पडऩा चाहते
अपनी जमीन बेच रहे हैं या बेच चुके हैं और चतुर चालाक लोग भारी लाभ की
आकांक्षा में तुरत फुरत खरीद रहे हैं। 40-50 लाख रूपये एकड़ की दर से
लेकर 1 करोड़ रूपये तक में। मतलब 100  से 200 रूपये फुट में। क्योंकि कल
कमल विहार बनेगा और कब 35 प्रतिशत भूमि मिलेगी और उसके लिए कितना चक्कर
विकास प्राधिकरण का लगाना पड़ेगा, यह सब भविष्य में असुरक्षित दिखायी
देता है। पूर्व में प्राधिकरण का अनुभव लोगों के लिए अच्छा नहीं रहा है।
वर्तमान में राजेश मूणत मंत्री, अमित कटारिया जैसे ईमानदार लोग भले ही
विकास प्राधिकरण का संचालन कर रहे हों लेकिन प्राधिकरण के प्रति विश्वास
का अभाव, भुक्तभोगियों के अनुभव डराने वाले हैं।

हालांकि यह पुराने अनुभव डा. रमन सिंह की सरकार के समय के नहीं हैं। डा.
रमन सिंह की सरकार के समय तो पुराने मामलों को भी निपटाया गया है और
लोगों को राहत दी गयी है। सरकार और जनता दोनों के हित में यही है कि पहले
वह भूस्वामियों का विश्वास अर्जित करे। बिना भूस्वामियों का विश्वास जीते
योजना बनायी और चलायी जा सकती है लेकिन उसका लाभ जो सरकार की छवि बनाने
के लिए होना चाहिए, वह तो नहीं होगा। आज जो यह बात कही जा रही है कि
योजना से 100 करोड़ का लाभ होगा और उसे भूस्वामियों को बांटा जाएगा। यह
बात पहले भी तो कही जा सकती थी और हितग्राहियों को पहले ही बताया जा सकता
था कि 35 प्रतिशत भूमि के साथ 100 करोड़  में हिस्सा मिलेगा। इसे और
स्पष्ट करना चाहिए। वास्तव में प्रति वर्गफुट के हिसाब से किसे कितना
मिलेगा। पारदर्शिता होनी चाहिए। प्राधिकरण का कोई गुप्त एजेंडा नहीं है
और योजना पूरी तरह से भूस्वामियों के हित में है।

यह बात पूरी मेहनत से भूस्वामियों को समझायी जा सके तो कोई इतना मूर्ख
नहीं है जो अपना हित भी न समझ सके लेकिन इसके लिए बड़े धैर्य की जरूरत
है। जब प्राधिकरण बिना लाभ हानि के येजना को क्रियान्वित करना चाहता है
तो यह बात पहले ही बतायी जानी चाहिए थी। अब बताने से तो ऐसा लगता है जैसे
दबाव में यह सब कहा जा रहा है। 40 प्रतिशत विनिमय में भूमि की मांग
पुरानी है। अब मान रहे हैं, पहले ही मान लेते तो विरोध इतना मुखर नहीं
होता। सरकार यदि प्राधिकरण की इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए
कृतसंकल्पित है तो उसे भूस्वामियों की सुनना चाहिए। योजना में निगरानी के
लिए भूस्वामियों के प्रतिनिधियों को भी सम्मिलित करना चाहिए। निरंतर
सुनवायी हो तो रास्ता नहीं निकलेगा, ऐसा नहीं है लेकिन धैर्य और विनम्रता
पूर्वक ही योजना को अमलीजामा पहनाना सरकार और भूस्वामियों दोनों के हित
में है। इसके लिए जरूरी है कि विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष कोई जनता का
आदमी बने और सबसे जरूरी जो बात है, वह यह है कि उसकी छवि ईमानदार और पाक
साफ हो। ऐसा नहीं है कि पार्टी के पास ईमानदार व्यक्ति नहीं है लेकिन पता
नहीं क्यों नियुक्ति को टाला जा रहा है?

- विष्णु सिन्हा
11-11-2010