यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

किरणमयी स्वयं चाहती हैं कि उनका कार्यकाल असफल साबित हो तो कुछ भी कहना बेकार है

संकीर्णता मानसिकता से किसी का भी भला नहीं होने वाला है। सुनील सोनी के रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनने पर समाचार पत्र में विज्ञापन में महापौर किरणमयी नायक का चित्र छप गया तो इससे कोई भूचाल नहीं आ गया लेकिन किरणमयी को कांग्रेस संगठन नोटिस देकर पूछ रहा है कि विज्ञापन में उनकी सहमति से उनका चित्र छापा गया, क्या? जैसे चित्र छपने से कांग्रेस की इज्जत खराब हो गयी। कोई भी व्यक्ति किसी भी पद को सुशोभित करता है तो लोकाचार में सभी उसे शुभकामनाएं देते हैं, बधाई देते हैं। सुनील सोनी को ही कितने ही कांग्रेसी नेताओं ने दूरभाष पर बधाई और शुभकामनाएं दी। यदि चित्र छप जाने से अनुशासनहीनता होती है तो शुभकामनाएं देने से नहीं होती, क्या? कितने ही कांग्रेसी है जो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की आपसी चर्चा में तारीफ करते हैं। सार्वजनिक रुप से तारीफ करने से डरते हैं। क्योंकि डर है कि अनुशासन का डंडा उनके विरुद्ध इस्तेमाल हो सकता है।
कांग्रेसी ही कहने से नहीं हिचकते कि कांग्रेसी नेताओं की आपसी प्रतिद्वंदिता डॉ. रमन सिंह के सिर पर जीत का सेहरा तीसरी बार भी बांध सकता है। जब केंद्र से आए मंत्री डॉ. रमन सिंह की तारीफ करते हैं तो कांग्रेसियों के चेहरे देखने लायक हो जाते हैं। कांग्रेसियों को संकीर्णता का त्याग करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि रायपुर शहर की जनता ने जब महापौर के रुप में एक कांग्रेसी का चयन किया है तो रायपुर की जनता का हित कैसे पूरा किया जाए? रायपुर की जनता के हित को पूरा करने में यदि महापौर सफल नहीं हुई तो फिर रायपुर में कांग्रेस का भविष्य ही क्या होगा? रायपुर के विकास के लिए शासकीय स्तर पर नगर निगम और रायपुर विकास प्राधिकरण दो संस्थाएं हैं। जब किरणमयी नायक महापौर चुनी गयी थी और उनका शपथ ग्रहण समारोह हुआ था तब पूर्व महापौर सुनील सोनी ने खुले मंच से उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी थी। भाजपा के मंत्री ने भी दी थी। शुभकामनाएं और बधाई देने में भाजपा के लोगों ने संकीर्णता प्रदर्शित नहीं की थी।
कोई कांग्रेस के साथ है तो कोई भाजपा के साथ लेकिन हैं तो सभी रायपुरवासी। सोच का विषय यह होना चाहिए कि कैसे मिल जुलकर रायपुरवासियों का भला किया जाए। यह सबको अच्छी तरह से पता है कि नगर निगम अपने आर्थिक संसाधनों से रायपुर शहर के वासियों की आकांक्षा पर खरा साबित नहीं हो सकता। उसे राज्य सरकार के सहयोग की जरुरत है तो उसे राज्य सरकार से संबंध बनाना ही पड़ेगा। केंद्र में कांग्रेस की सरकार है और छत्तीसगढ़ में भाजपा की लेकिन राज्य के हित में केंद्रीय मंंत्रियों से मिलने के डॉ. रमन सिंह और उनके मंत्री जाते हैं। क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि राजनैतिक विचारधारा भले ही अलग हो लेकिन नागरिकों का हित सर्वोपरि है। कांग्रेसी तो यही आरोप लगाते रहते हैं कि केंद्र की योजना को राज्य सरकार अपने नाम से प्रसारित करती है। राज्य सरकार तो फिर भी उतनी केंद्र सरकार पर आश्रित नहीं है जितना आश्रित नगर निगम राज्य सरकार पर है। राज्य सरकार संकीर्णता दिखाए तो नगर निगम तो कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है।
किरणमयी को 1 वर्ष से अधिक समय हो गया, महापौर बने। नगर निगम में विवाद के सिवाय हो क्या रहा है? राज्य सरकार से आर्थिक असहयोग का रोना रोया जा रहा है। भाजपा पार्षद मंत्री से मिलकर सहयोग की मांग करते हैं तो मंत्री जी सहयोग के लिए तुरंत तैयार हो जाते हैं। प्रत्येक वार्ड के लिए रकम दी जाती है। कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सरकार पर दोषारोपण करने से ही शहर की समस्याएं हल नहीं होने वाली हैं। सभापति सामान्य सभा के लिए बार-बार महापौर को लिखते है लेकिन 5 माह से सामान्य सभा ही नहीं होती। भाजपा पार्षद आयुक्त के पास जाकर शिकायत करते हैं। नगर निगम में त्रिकोणात्मक सत्ता काम करती है। एक तरफ महापौर हैं तो दूसरी तरफ सभापति और तीसरी तरफ आयुक्त के अधीन कर्मचारियों की फौज। सबको मालूम हैं कि आयुक्त के पास सीधे चले जाओ तो सही काम हो जाता है। महापौर से कहो तो काम नहीं होता।
बड़ी विचित्र स्थिति है। महापौर को कानून कायदों के साथ व्यवहारिक होने की जरुरत हैं लेकिन वो भी क्या करें? कांग्रेस संगठन उनके महापौर बनने के बाद उन्हें नोटिस ही देता रहता है। अपने ही टांग खींचने से पीछे नहीं तो वे कितने मुकाम पर संघर्ष करें। महापौर महिला हैं, वकील हैं, सब कुछ समझती है। उन्हें भी आभास नहीं होगा कि महापौर बनने के बाद उन्हें नगर विकास के लिए इतना संघर्ष करना पड़ेगा लेकिन वे संघर्ष कर रही है। दरअसल उन्हें संघर्ष के बदले समन्वय की तरफ अपनी राजनीति को मोडऩा चाहिए। वे पढ़ी लिखी हैं तो उन्हें अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। सभापति को बाबू कहना, मात्र पार्षद बताना शोभनीय शब्दावली नहीं है। सभापति पार्षदों के बहुमत से चुना जाता है और जिस तरह से विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष की स्थिति होती है, सम्मान की दृष्टि से, उसी तरह से नगर निगम के सभापति की भी होती है।
रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद को महापौर से छोटा बताना भी कोई अच्छी बात नहीं है। आदमी पद से छोटा बड़ा नहीं होता वह अपनी सोच और चरित्र से छोटा बड़ा होता है। सुनील सोनी रायपुर नगर निगम के 6 वर्ष तक महापौर रहे। 43 हजार सीटों  से रायपुर की जनता ने उन्हें महापौर बनाया था। वे किरणमयी नायक से वरिष्ठ हैं। सभापति संजय श्रीवास्तव भी वरिष्ठï पार्षद हैं। महापौर सोच समझकर शब्दों का प्रयोग करेंगी तो अपना और अपने पद का गौरव बढाएंगी। रायपुर शहर के नागरिकों ने उन्हें महापौर चुनकर उन पर विश्वास व्यक्त किया है।
उस विश्वास पर खरा उतरता रायपुर के नागरिक देखना चाहते हैं। हर बात पर कानून की धमकी महापौर जैसे पद पर बैठी महिला के मुंह से शोभा नहीं देता। इसलिए लोग कहते हैं कि काला कोट उतारकर किरणमयी राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार करें। बड़ा अवसर मिला है। 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर कोई यह नहीं पूछेगा कि उनकी समस्याओं का निपटारा क्यों नहीं हुआ? तब जनता फैसला सुनाएगी। फैसला अपने पक्ष में चाहती हैं तो व्यवहार में परिवर्तन करें। व्यवहारिक बनें। विनम्र बनें। तभी भविष्य में जनता से समर्थन की उम्मीद करें। कोई नहीं चाहता। सिवाय चंद राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के कि किरणमयी का कार्यकाल असफल साबित हो लेकिन किरणमयी भी वास्तव में ऐसा चाहती हैं, क्या?
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 30.01.2011
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