हैं। हर समय उनके पास वह बटन होता है जिसे दबाने से दुनिया में
त्राहि-त्राहि मच सकती है और उसे दबाने के लिए किसी से इजाजत लेने की भी
उन्हें जरुरत नहीं है। वह अमेरिका जिसके सामने हमारे हुक्मरान कभी अनाज
के लिए कटोरा लेकर खड़े रहते थे कि हमारी भूख मिटाओ। उसी अमेरिका का
राष्टपति आज हमारे पास आया है कि हमारी मदद करो। इसी को वक्त का बदलना
कहते हैं। मुंबई में जो व्यापारिक समझौते हुए उससे राष्टपति बराक
ओबामा के चेहरे पर प्रसन्नता दिखायी दी। क्योंकि अब इन समझौतों के कारण
अमेरिका में 50 हजार से अधिक बेरोजगारों को नौकरी मिल जाएगी। आर्थिक मंदी
से जूझते अमेरिका को आज इसकी सबसे ज्यादा जरुरत है। भारत में अमेरिका का
आयात बढ़े। महात्मा गांधी के प्रशंसक बराक ओबामा ने यह कहने में हिचक
महसूस नहीं की कि महात्मा गांधी भारत के ही नहीं, दुनिया के महानायक हैं।
किसी के भी हृदय में प्रवेश करने के लिए उसके बच्चे सबसे अच्छा माध्यम
होते हैं। किसी के भी सामने उसके बच्चों को प्रसन्न करें तो उसके माता
पिता प्रसन्न ही होते हैं। इस मर्म को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित
जवाहर लाल नेहरु ने अच्छी तरह से समझा था और भारतीय बच्चों के लिए वे
चाचा नेहरु थे। वर्षों भारतीयों में उनकी लोकप्रियता का यह भी प्रमुख
कारण रहा। बराक ओबामा भी इस राज को अच्छी तरह से समझते हैं। इसलिए मुंबई
में बच्चों के साथ नृत्य करने में बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा
को कोई हिचक महसूस नहीं हुई। टीवी के माध्यम से अधिकांश भारतीयों ने
दोनों पति पत्नी को बच्चों के साथ कोली नृत्य में थिरकते देखा। इसके साथ
ही दिल्ली में हुमायूं के मकबरे पर मकबरे की देखरेख करने वाले मजदूरों के
बच्चों के साथ जो हृदय स्पर्शी व्यवहार दोनों ने किया, वह दृश्य भी
संवेदनशीलता का संदेश दे गया। बच्चों के सामने घुटने टेक कर बराक ओबामा
का बैठना उनकी विनम्रता का परिचायक तो था ही, इंसानियत का भी परिचायक था।
दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति जिसके रोएं-रोएं से अहंकार ही झलकना
चाहिए था, उसकी विनम्रता मन को मोहने वाली लगी। कहां तो छोटा सा पद पा कर
ही लोग इतने अहंकारी हो जाते हैं कि किसी को कुछ समझते नहीं। झुकने की
बात तो सोच भी नहीं सकते। वहीं जिस सहजता से मिट्टी पर ही घुटने टेक कर
ओबामा बैठ गए यह भारतीय पदाधिकारियों के लिए सीखने की बात है। सबसे बड़ी
बात तो यही थी कि बराक और मिशेल की भाव भंगिमाओं से कहीं से भी बनावट की
झलक नहीं मिल रही थी। सरल, सहज, सामान्य हावभाव, भंगिमाएं उनकी विनम्रता
का ही बोध करा रही थी। आलोचक कुछ भी कहें लेकिन अपनी मुस्कान से ही बराक
ने भारतीयों का दिल जीत लिया है। जिस प्रेम से बराक ओबामा ने भारत के
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हवाई अड्डे पर गले से लगाया, उससे तो
मनमोहन सिंह ही धन्य-धन्य हो गए। यह उनके चेहरे से ही दिखायी दे रहा था।
शीत युद्ध के समय अमेरिका और रुस दुनिया की दो बड़ी शक्तियां थी। उस समय
भारत की दोस्ती रुस के साथ थी। स्वाभाविक रुप से इसका दूसरा पक्ष पाकिस्तान अमेरिका
की दोस्ती के रुप में था। रुस के विश्व शक्ति न रहने के बाद अब दुनिया के
हालात बदले हैं। अमेरिका के समानान्तर अब चीन एक शक्ति के रुप में उभर
रहा है। भविष्य का आंकलन करने वाले कह रहे हैं कि अमेरिका के बराबर चीन
जल्द ही खड़ा हो जाएगा। आर्थिक मंदी से वैसे भी अमेरिका तकलीफ में है।
इसके विपरीत भारत और चीन फल फूल रहे हैं। अमेरिका अफगानिस्तान में फंसा
हुआ है और जुलाई तक उसके अफगानिस्तान से बाहर निकलने की उम्मीद है। अभी
अमेरिका को पाकिस्तान की ज्यादा जरुरत है। इसलिए वह दिल खोलकर उसकी मदद
करने के लिए भी बाध्य है। ऐसे में भारत अमेरिका से दोस्ती की शर्त के रुप
में पाकिस्तान पर अमेरिका का दबाव देखना चाहता है तो यह भारत की मांग कुछ
ज्यादा है। अमेरिका यह भी जानता है कि पाकिस्तान की चीन से दोस्ती भी है
और चीन हर तरह से पाकिस्तान की मदद कर रहा है। पाकिस्तान को परमाणु शक्ति
संपन्न बनाने में भी चीन का हाथ है।
अमेरिका ने जब भारत के साथ परमाणु समझौता किया तब पाकिस्तान ने भी
अमेरिका से इसकी मांग की थी लेकिन अमेरिका ने इंकार कर टका सा जवाब दे
दिया था। व्यापार की दृष्टि से देखें, दोस्ती की दृष्टि से देखें तो
अमेरिका ने पाकिस्तान के बदले भारत को तव्वजो दी। यह ठीक है कि इसमें
अमेरिका का हित निहित था लेकिन अंतर्राष्टरीय राजनीति में अपना हित
देखना तो सभी का कर्तव्य है। भारत की यात्रा पर आए बराक ओबामा को भारत के
साथ पाकिस्तान आने के लिए भी पाकिस्तान ने कम जोर नहीं लगाया लेकिन बराक
ओबामा ने इंकार कर दिया और कहा कि अगले वर्ष वे पाकिस्तान आएंगे। साफ है
कि पाकिस्तान की तुलना में भारत को बराक ओबामा ने ज्यादा तव्वजो दी।
भविष्य की दृष्टि से देखें तो यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है भारत की। बराक
ओबामा जब सेंट जेवियर स्कूल के बच्चों को कहते हैं कि एक स्थिर पाकिस्तान
भारत के लिए फायदेमंद हैं तो वे गलत क्या कहते हैं?
यह सही है कि यूरोप के देश अब अपने यहां किसी तरह का युद्ध नहीं चाहते
लेकिन एशिया में युद्ध के हालात जिस तरह से बनते हैं, उसमें हथियारों के
लिए एशिया बड़ी मंडी दिखायी देता है। भारत ही सबसे बड़ा खरीददार दिखायी
देता है। भारत खरीदने भी जा रहा है तो भारत के तरफ झुकाव भी स्वाभाविक
है। चीन की बढ़ती ताकत भारत के लिए खतरे से खाली नहीं है। भारत की प्रगति
से चीन को भी खतरा दिखायी देता है। तब चीन का मित्र अमेरिका बने या भारत
का तो लक्षण यही दिखायी देता है कि भारत का मित्र अमेरिका बने। अभी तो
दोस्ती का प्रारंभ हो रहा है और जिस तरह से भारत आर्थिक विकास कर रहा है,
यूरोप के देशों की नजर भारत पर है। प्रजातांत्रिक देश होने के कारण वैसे
भी भारत प्रजातांत्रिक देशों के ज्यादा समीप है। ओबामा ने स्वयं कहा है
कि भारत बढ़ती हुई ताकत नहीं है बल्कि भारत एक महाशक्ति है। हम स्वयं
नहीं मानते इस बात को लेकिन यह जरुर जानते हैं कि विकास का रथ इसी तरह से
सरपट भागता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब भारत वास्तव में महाशक्ति होगा।
दुनिया में यह बात चीन और पाकिस्तान को रास नहीं आने वाली है। हालांकि
किसी को रास आए या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन ये दोनों जिस तरह
से तनाव बढ़ाने का काम करते हैं, उसके पीछे कारण भी यही है कि बढ़ते भारत
को रोका जाए। आज अमेरिका को भारत की जरुरत महसूस हो रही है तो यह भारत के
लिए शुभ संदेश है। बराक ओबामा की यात्रा से यह संदेश तो उन लोगों को मिल
ही गया कि भारत और अमेरिका की बढ़ती दोस्ती उनके इरादों को असफल करने में
सक्षम है। वैसे भी भारतीय मूल के अमेरिकियों का प्रभाव अमेरिका में बढ़
रहा है। भारतीय मूल की एक अमेरिकी महिला एक राज्य की गवर्नर ही चुनी गयी
है। भारतीयों ने अमेरिका पर अच्छा प्रभाव डाला है। इस सबका असर भविष्य
में और स्पष्ट दिखायी देगा।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 08.10.2010
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