यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 13 नवंबर 2010

बराक ओबामा की भारत यात्रा से मनमोहन सिंह की योग्यता ही साबित हुई है

अपनी पहली भारत यात्रा में ही बराक ओबामा भारतीयों के हृदय में स्थान
बनाने में सफल हो गए। उनसे जो कुछ भारतीय सुनना चाहते थे, वह सब वे संसद
के अपने 36 मिनट के भाषण में कह गए। मेरी याददाश्त में तो वे पहले ऐसे
विदेशी हुक्मरान हैं जिन्होंने जय हिंद का उदघोष किया। सुनने वालों का
हृदय गदगद हो गया। अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने
स्पष्ट कहा कि वे अमेरिका के राष्टपति के रुप में यहां खड़े हैं तो
उसका कारण महात्मा गांधी हैं। आज दुनिया को शांति और अहिंसा की सबसे
ज्यादा जरुरत है और गांधीजी के विचारों के बिना यह संभव नहीं। भारत को
दुनिया की महाशक्ति बताने से न तो उन्होंने परहेज किया और न ही पाकिस्तान
को आतंकवाद के विरुद्ध चेतावनी देने में। आतंकवादी अड्डों को खत्म करने
के विषय में तो उनके विचार एकदम स्पष्ट थे। 21 वीं सदी में भारत और
अमेरिका मिलकर विश्वशांति के लिए सहयोग करें, यह कामना उन्होंने प्रगट
की। राष्टपति बनने के बाद किसी भी देश से सबसे ज्यादा समय उन्होंने
भारत में बिताया और अपने शानदार स्वागत के लिए हिंदी में 'बहुत धन्यवाद'
कहा।

बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने अपने हाव भाव, व्यवहार से कहीं
से भी यह लगने नहीं दिया कि वे कोई विशिष्ट व्यक्ति हैं बल्कि एकदम
सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार कर सहजता से लोगों के हृदय में स्थान बना
लिया। इसे सुक्ष्मदर्शी बुद्धिजीवी भले ही उनका अभिनय करार दें लेकिन आम
आदमी के लिए तो एक अच्छे अभिनेता का अभिनय, अभिनय न होकर सत्य होता है और
निश्चित रुप से बराक ओबामा ने अमेरिका के लोगों के दिल को जीत कर
राष्टपति की गद्दी पर बैठने का हक प्राप्त किया, यह सिर्फ अभिनय के
कारण ही तो नहीं हो सकता। धारा प्रवाह लोग जो सुनना चाहें, उनकी ही तरह
बोलना बराक ओबामा की योग्यता का ही परिचायक है। गरीब, दलितों के लिए उनके
उदगार और भावनाएं भारतीयों के लिए खास मायने रखती हैं। उन्होंने स्पष्ट
कहा कि 30 लाख भारतीय मूल के राष्ट्रभक्त अमेरिकी भारत के प्रति आशा
जगाते हैं।

कभी अमेरिकी राष्टपति जॉन एफ केनेडी और भारत के प्रधानमंत्री पंडित
जवाहर लाल नेहरु की दोस्ती भी विश्व राजनीति में चर्चित रही है तो
भारतीयों के लिए भी बड़ी अहमियत रखती थी। भारत में जगह-जगह इनके चित्र,
यहां तक कि घरों में भी दिखायी देते थे। फिर वक्त बदला और अमेरिका और
भारत के बीच वैसे संबंध नहीं रहे। अब लगता है कि वह युग पुन: लौट रहा है।
उस समय तो ताजा-ताजा स्वतंत्र हुआ भारत एक निर्धन देश था जिसका वर्षों से
शोषण विभिन्न शक्तियां कर रही थी। अपनी 36 करोड़ जनता का ही उदर पोषण
करने में भारत समर्थ नहीं था। यह अमेरिका ही था जो पीएल 480 के तहत हमें
गेहूं देता था तो पेट की भूख मिटायी जाती थी। आज 120 करोड़ भारतीय हैं और
भारत सक्षम है अपने देशवासियों का पेट भरने में। इतना ही नहीं भारत
विभिन्न खाद्यान्न सामग्री निर्यात भी करता है।वक्त बदला है। विश्व मंदी की चपेट में अमेरिका है। सैकड़ों बैंकों पर ताला लग गया है। गिरती आर्थिक व्यवस्था के समय बराक ओबामा को अमेरिकियों
ने अपना राष्टपति चुना है। मनमोहन सिंह आज भारत के प्रधानमंत्री हैं
और भारत फल फूल रहा है लेकिन 1992 में जब वित्त मंत्री के रुप में मनमोहन
सिंह ने सरकार में प्रवेश किया था तब भारत की आर्थिक स्थिति संकट में थी।
उनकी पूर्ववर्ती चंद्रशेखर सरकार ने सोना गिरवी रखकर देश का काम चलाया
था। नरसिंह राव सरकार के वित्त मंत्री की हैसियत से मनमोहन सिंह ने
उदारीकरण के नए युग में भारत को प्रवेश कराया था। 1992 में कोई सोच भी
नहीं सकता था कि आर्थिक रुप से जर्जर भारत मात्र 18 वर्ष में ही दुनिया
को अर्थशास्त्र की शिक्षा दीक्षा दे रहा होगा। अमेरिका जैसी महाशक्ति का
राष्टपति भारत आकर भारत को महाशक्ति घोषित कर रहा होगा। भारतीय
कंपनियां अमेरिका में निवेश करें, इसकी पुरजोर कोशिश करने के लिए अमेरिकी
राष्ट्रपति तीन दिन तक भारत में रुकेगा। अमेरिका की बेरोजगारी दूर करने
के लिए भारतीय निवेश से 50 हजार से अधिक नौकरियां अमेरिका में बढ़ेंगी,
यह घोषणा करने में बराक ओबामा को गर्व की अनुभूति  होगी।
कितनी जल्दी सब कुछ बदल गया। आज भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनियों को
अधिग्रहित कर रही हैं। भारतीय इंजीनियर, डॉक्टर भारत के लिए ही जरुरी
नहीं दुनिया के लिए जरुरी हो गए हैं। 80 हजार नौकरियां बैंक ही भारत में
देने के लिए तैयार बैठे हैं। बराक ओबामा ने कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा
मध्यम वर्ग आज भारत में ही है। गरीबी है, गरीब हैं, इससे कोई इंकार नहीं
कर रहा है लेकिन समृद्धि भी तो बढ़ी है। भारत चंद्रमा में अपना चंद्रयान
भेज सकता है, सफलतापूर्वक यह भी संभव नहीं था लेकिन संभव हुआ। आज अमेरिका
में 30 प्रतिशत चिकित्सक भारतीय हैं तो नासा में भी भारत की भागीदारी
अच्छी खासी है। कल ही इंग्लैंड ने निवेश आमंत्रित करने के लिए भारी
सुविधाएं देने की घोषणा की है। दुनिया के धनपतियों में भारतीय धनपतियों
की भी अच्छी खासी संख्या है। अमेरिका के राष्टपति कहते हैं कि जब भारत
के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं, दुनिया बड़े ध्यान से सुनती है।
विश्व मंदी में प्रजातांत्रिक भारत में जहां सब कुछ खुला हुआ है 9-10
प्रतिशत विकास दर बहुत मायने रखती है। यह विकास दर दस बीस वर्षों तक कायम
रही तो निश्चित रुप से भारत दुनिया का सबसे धनी राष्ट्र  बन जाएगा और
विश्व की आर्थिक व्यवस्था को नियंत्रित करने की क्षमता उसके पास होगी।
कभी भविष्य वक्ता 2010 में भारत के विश्व शक्ति बनने की भविष्यवाणी करते
थे तो हंसी के पात्र लगते थे। समस्याओं से ग्रस्त भारत, निर्धन भारत
विश्व शक्ति बन जाएगा, यह किसी कपोल कल्पना से कम नहीं लगता था लेकिन आज
तो तथ्य हैं। भारत के महाशक्ति होने की घोषणा अमेरिका का राष्टपति कर
रहा है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं लेकिन असल में तो यह मनमोहन सिंह की
ही देन है। उनकी ही आर्थिक नीतियों का परिणाम है। अमेरिका के राष्टपति
बराक ओबामा, मनमोहन सिंह से आर्थिक सलाह र्भी लेते  हों तो कोई आश्चर्य की
बात नहीं। बराक ओबामा की भारत यात्रा से मनमोहन सिंह का कद जो
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा है  है, वह भारत  में भी और ऊंचा हो गया है।
भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति के लिए कोई एक व्यक्ति श्रेय का हकदार है
तो वे निश्चित रुप से डॉ. मनमोहन सिंह ही है। हमेशा लो प्रोफाइल में रहने
वाले मनमोहन सिंह ने सभी दिग्गज राजनीतिज्ञों को बौना साबित कर दिया है।
अब कांग्रेसियों की ही नजर में मनमोहन सिंह खटकने लगें तो कोई आश्चर्य की
बात नहीं लेकिन वक्त अपना करतब दिखाता है और जिससे जो काम लेना चाहता है,
उसे चुनता भी वही है। पता नहीं सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को
प्रधानमंत्री के रुप में क्या सोच कर चुना था लेकिन एक बात तो स्पष्ट है
कि स्वयं सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री न बन कर मनमोहन सिंह को
प्रधानमंत्री बना कर देश का हित किया। दूसरे शब्दों में कहें तो यह प्रभु
की ही देन है। क्योंकि देश का भाग्यविधाता तो वही है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 09.10.2010
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