भारतीयों के लिए दो ही दिन सबसे मत्वपूर्ण हैं। पहला 15 अगस्त, 1947 । इस दिन देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ। दूसरा 26 जनवरी, 1950 । इस दिन संविधान लागू हुआ। इस संविधान ने ही भारत की जनता को अपना स्वयं का मालिक बना दिया। संविधान ने भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार दिया और अपनी मनपसंद सरकार चुनने का अवसर। हर 5 वर्ष में चुनाव की बाध्यता है। जिसका सीधा अर्थ होता है कि सरकार को हर 5 वर्ष में जनता से पुन: शासन करने के लिए जनादेश लेना पड़ता है। जिसका सीधा और स्पष्टï अर्थ होता है कि सरकार की पूरी तरह से जवाबदारी जनता के प्रति है । विगत 60 वर्षों में जनता भी यह बात अच्छी तरह समझ गयी है कि वह चाहे तो सरकार को बना और हटा सकती है। यह अधिकार संविधान ने भारतीय नागरिकों को दिया और उच्चतम न्यायालय का फैसला भी है कि कोई भी सरकार संविधान में परिवर्तन करते समय मूल अधिकारों से छेड़छाड़ नहीं कर सकती।
संविधान की सर्वोच्चता ने भारतीयों को असल में स्वतंत्रता का भान कराया और लडऩे का सरकार से भी अधिकार दिया। सरकार के गलत कृत्यों के लिए उसे न्यायालय के कठघरे में खड़ा करने का अधिकार भी सभी नागरिकों को मिला हुआ है। संविधान और कानून से परे सरकार की कोई सत्ता नहीं हैं। सरकारें संविधान के विपरीत कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं रखती। यदि जनहित में संविधान संशोधन की जरुरत है तो संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए और देश के आधे से अधिक राज्यों का समर्थन। आज की स्थिति में तो यह संभव ही नहीं दिखायी देता। जनता ने तो केंद्र सरकार के लिए किसी भी एक दल को बहुमत देने से ही इंकार कर दिया है और वर्षों से देश में अल्पमत या गठबंधन की सरकार चल रही है। राज्यों में भी अलग-अलग दलों की सरकार है।
स्वतंत्र भारत में भी दो तिहाई बहुमत के बल पर संविधान का दुरुपयोग कर तानाशाह बनने की कोशिश की गई लेकिन जल्द ही समझ में आ गया कि यह सब भारत में संभव नहीं है। अब तो जनता इतनी जागरुक है कि काम के आधार पर भी सरकारों के चयन का काम करती है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र माना जाता है और तमाम तरह की विभिन्नताओं के बावजूद देश की एकजुटता को देखकर वे लोग भी आश्चर्यचकित हैं जो सोचते थे कि स्वतंत्र होने के बाद भारत टूट-टूट कर बिखर जाएगा। पिछले 60 वर्षों में इसके लिए कम प्रयास भी नहीं किए गए। विदेशी ताकतों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी लेकिन भारत की एकता को तोडऩे में सफल नहीं हुए तो उसका सबसे बड़ा कारण हमारा संविधान है। जो समानता से सबके अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम है। बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कम नहीं कर सकते। भेदभाव की कोई गुंजाईश ही संविधान ने नहीं छोड़ी है।
राजनैतिक दल भले ही धर्म निरपेक्षता और साम्प्रदायिकता का हव्वा खड़ा करने की कोशिश करें लेकिन आम आदमी अच्छी तरह से जानता है यह सब सिर्फ वोट की राजनीति का अंग है। वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश के सिवाय कुछ नहीं है। कानून के दायरे के बाहर कोई नहीं है। यह सब राजनीतिज्ञों के कारण नहीं बल्कि संविधान के कारण है। 26 जनवरी इसलिए भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस दिन देश की राजधानी और राज्यों की राजधानी में बड़े रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और सलामी लेने की जिम्मेदारी राष्टपति और राज्यपालों की है। ये दोनों पद संवैधानिक रुप से दलगत राजनीति से अलग माने जाते हैं। सरकार केंद्र में एवं राज्यों में किसी की भी हो वह कहलाती राष्टपति और राज्यपालों की सरकार हैं। इसी से देश मजबूत होता है क्योंकि राष्टï्रीय एकता और मजबूत होती है। निरंकुशता पर पाबंदी लगती है। जनता के अधिकारों को सुरक्षा मिलती है। यह सब 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के कारण है तो स्वाभाविक रुप से यह दिन राष्ट्र के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 25.01.2011
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संविधान की सर्वोच्चता ने भारतीयों को असल में स्वतंत्रता का भान कराया और लडऩे का सरकार से भी अधिकार दिया। सरकार के गलत कृत्यों के लिए उसे न्यायालय के कठघरे में खड़ा करने का अधिकार भी सभी नागरिकों को मिला हुआ है। संविधान और कानून से परे सरकार की कोई सत्ता नहीं हैं। सरकारें संविधान के विपरीत कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं रखती। यदि जनहित में संविधान संशोधन की जरुरत है तो संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन चाहिए और देश के आधे से अधिक राज्यों का समर्थन। आज की स्थिति में तो यह संभव ही नहीं दिखायी देता। जनता ने तो केंद्र सरकार के लिए किसी भी एक दल को बहुमत देने से ही इंकार कर दिया है और वर्षों से देश में अल्पमत या गठबंधन की सरकार चल रही है। राज्यों में भी अलग-अलग दलों की सरकार है।
स्वतंत्र भारत में भी दो तिहाई बहुमत के बल पर संविधान का दुरुपयोग कर तानाशाह बनने की कोशिश की गई लेकिन जल्द ही समझ में आ गया कि यह सब भारत में संभव नहीं है। अब तो जनता इतनी जागरुक है कि काम के आधार पर भी सरकारों के चयन का काम करती है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र माना जाता है और तमाम तरह की विभिन्नताओं के बावजूद देश की एकजुटता को देखकर वे लोग भी आश्चर्यचकित हैं जो सोचते थे कि स्वतंत्र होने के बाद भारत टूट-टूट कर बिखर जाएगा। पिछले 60 वर्षों में इसके लिए कम प्रयास भी नहीं किए गए। विदेशी ताकतों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी लेकिन भारत की एकता को तोडऩे में सफल नहीं हुए तो उसका सबसे बड़ा कारण हमारा संविधान है। जो समानता से सबके अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम है। बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कम नहीं कर सकते। भेदभाव की कोई गुंजाईश ही संविधान ने नहीं छोड़ी है।
राजनैतिक दल भले ही धर्म निरपेक्षता और साम्प्रदायिकता का हव्वा खड़ा करने की कोशिश करें लेकिन आम आदमी अच्छी तरह से जानता है यह सब सिर्फ वोट की राजनीति का अंग है। वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश के सिवाय कुछ नहीं है। कानून के दायरे के बाहर कोई नहीं है। यह सब राजनीतिज्ञों के कारण नहीं बल्कि संविधान के कारण है। 26 जनवरी इसलिए भारत का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस दिन देश की राजधानी और राज्यों की राजधानी में बड़े रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और सलामी लेने की जिम्मेदारी राष्टपति और राज्यपालों की है। ये दोनों पद संवैधानिक रुप से दलगत राजनीति से अलग माने जाते हैं। सरकार केंद्र में एवं राज्यों में किसी की भी हो वह कहलाती राष्टपति और राज्यपालों की सरकार हैं। इसी से देश मजबूत होता है क्योंकि राष्टï्रीय एकता और मजबूत होती है। निरंकुशता पर पाबंदी लगती है। जनता के अधिकारों को सुरक्षा मिलती है। यह सब 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के कारण है तो स्वाभाविक रुप से यह दिन राष्ट्र के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 25.01.2011
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