यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

श्रीनगर में झंडा फहराने से देश की सत्ता हाथ में नहीं आने वाली

26 जनवरी को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की योजना पर भारतीय जनता युवा मोर्चा ने अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी है। भारतीय जनता युवा मोर्चा भारतीय जनता पार्टी की ही युवा शाखा है। इसके पहले जब मुरली मनोहर जोशी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे तब उन्होंने भी लाल चौक पर तिरंगा फहराया था लेकिन इससे हासिल क्या हुआ? काश्मीर के कुछ लोगों और चंद गिने चुने भारतीयों के सिवाय सभी भारतीयों की स्पष्टï सोच है कि काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । 26 जनवरी को जम्मू काश्मीर के मुख्यमंत्री उमर फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर में तिरंगा निश्चित रूप से फहराएंगे और फोर्स की सलामी लेंगे। जहां तक शासकीय आयोजन का प्रश्र है तो देश भर में जिस तरह से सरकारें 26 जनवरी गणतंत्र दिवस मनाती हैं, उसी तरह से जम्मू काश्मीर में भी मनाया जाएगा ।
यह तो सर्वविदित है कि अपने निहित स्वार्थों के लिए अलगाववादी काश्मीर में हमेशा अशांति फैलाने के लिए प्रयासरत रहते हैं और उन्हें इस संबंध में पड़ोसी मुल्क से भी सहयोग और समर्थन मिलता है। काश्मीर में लंबी अशांति और हिंसा के बाद फिलहाल शांति है। सशस्त्र बलों पर पत्थर फेंकने वाले अब पुलिस में भर्ती हो रहे हैं। बेरोजगार युवकों को नौकरी या काम धंधे से लगाया जा सका तो अलगाववादियों को समर्थन मिलना कम हो जाएगा। काश्मीर में जरूरत इस बात की है कि लोग आतंकवादियों और अलगाववादियों के बहकावे में आने के बदले सुख शांति से रहें और हिंसा से परहेज करें। श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराकर भारतीय जनता युवा मोर्चा अपने अहम की तो संतुष्टिï कर सकता है लेकिन झंडा फहराना समस्या का समाधान नहीं है बल्कि इससे अलगाववादियों को लोगों को भड़काने का एक अवसर ही मिलेगा ।
यह सही है कि काश्मीर में पाकिस्तानी झंडा फहराया, लहराया जाता रहा है। पाकिस्तानी आतंकवादी भी सशस्त्र बलों की गोलियों का निशाना बनते रहे हैं लेकिन अपने तमाम प्रयत्नों के बावजूद काश्मीर को भारत से अलग करने में सफल नहीं हुए। यहां तक कि जम्मू काश्मीर में चुनाव भी होते हैं और विधानसभा और लोकसभा के लिए प्रतिनिधि भी चुने जाते हैं। पूरी की पूरी काश्मीरी जनता भारत से अलग होने के पक्ष में रहती तो चुनाव में मतदान ही नहीं होते। 50 प्रतिशत से अधिक लोग मतदान में आतंकवादियों एवं अलगाववादियों की धमकी के बावजूद भाग लेते हैं। भारतीय जनता पार्टी देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है। 6 वर्ष तक वह सत्ता पर भी काबिज रह चुकी है। काश्मीर से भगाए गए काश्मीरी पंडितों को भाजपा की सरकार ही वापस बसा नहीं सकी बल्कि आज जो जम्मू काश्मीर के मुख्यमंत्री हैं, वे भी भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
काश्मीर एक अति नाजुक संवेदनशील मामला है। भारतीय जनता पार्टी भले ही विपक्ष में हो लेकिन उसकी जिम्मेदारी सरकारी दल से कम नहीं है। राष्टï्रभक्ति प्रदर्शित करने का यह तरीका कितना उचित है? मुरली मनोहर जोशी के झंडा फहराने से ही जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो भारतीय जनता युवा मोर्चा के झंडा फहराने से क्या हासिल हो जाएगा? हालांकि वर्तमान स्थिति ऐसी नहीं दिखायी पड़ती कि सरकार श्रीनगर तक झंडा फहराने के लिए भाजयुमो कार्यकर्ताताओं को पहुंचने देगी। कोई भी जिम्मेदार सरकार ऐसा नहीं करने दे सकती। सरकार यदि सुविधा देती है कि आओ और झंडा फहरा लो तो झंडा तो अवश्य भाजयुमो फहरा लेगा लेकिन इसके लिए सरकार को अनहोनी न हो, इसके लिए कफर्यू लगाना पड़ेगा। इसका परिणाम क्या होगा ? अलगाववादी तत्वों को और लोगों को उकसाने के लिए खाद पानी मिल जाएगा ।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस स्थिति से बचने की अपील की है। झंडा फहराकर अहम को भले ही संतुष्टिï मिले लेकिन इससे काश्मीरी जनता के मन में स्थान नहीं बनाया जा सकता। यह किसी क्षेत्र को जीतकर झंडा फहराने वाली बात नहीं है। करना है तो ऐसा कुछ करें जिससे काश्मीरी जनता के हृदय में भारत के प्रति पे्रम बढ़े और वह स्वयं अलगाववादियों को खदेडऩे के लिए तत्पर हों। काश्मीर की जनता स्वयं घर घर में तिरंगा फहराने के लिए सहर्ष तैयार हो। उसे लगे कि 26 जनवरी और 15 अगस्त उसके अपने राष्टï्रीय त्यौहार हैं। इसके लिए बहुत श्रम, सेवा और सहिष्णुता की जरूरत है । पूरे देश से युवकों को इक_ïा कर श्रीनगर कूच करने से यह नहीं होगा। इससे यह जरूर होगा कि पूरे देश को बताया जाए कि हम कितने बड़े राष्टï्र भक्त हैं। श्रीनगर में झंडा फहराने का दम रखते हैं।
देश में राजग सरकार आने के पहले भाजपा कहती थी कि पाकिस्तान के कब्जे वाले काश्मीर को भी वापस प्राप्त किया जाएगा। वह तो हुआ नहीं। लोगों को उम्मीद तो थी कि कांग्रेस तो काश्मीर पाकिस्तान से वापस प्राप्त कर नहीं सकी। भाजपा शायद प्राप्त कर लें लेकिन भाजपा ने तो सरकार गठबंधन की बनाने के लिए अपने तीन बड़े जनता से किए वायदों को ही एक तरफ रख दिया था। इसीलिए दोबारा सत्ता में भाजपा लौट नहीं सकी। देश इस समय महंगाई और भ्रष्टïाचार से पीडि़त है। केंद्र सरकार राज्य सरकार पर दोषारोपण करती है और बाकी सभी केंद्र सरकार पर। केंद्र सरकार अपने मंत्रियों के साथ बैठक कर महंगाई कम करने के उपाय ढूंढ़ती है तो उसे कोई उपाय ढूंढ़े नहीं मिलता। सरकार बड़ी या महंगाई किसी से पूछें तो कोई भी आसानी से कह सकता है, महंगाई। क्योंकि जिस पर सरकार नियंत्रण न कर सके वही तो सरकार से बड़ी होगी। जिस असल मुद्दे पर जनता को राहत पहुंचाने के लिए भाजपा जैसी पार्टी को काम करना चाहिए, उसका युवा वर्ग श्रीनगर में तिरंगा फहराने को सबसे अहम काम मान रहा है। जिसे भ्रष्टïाचार के विरूद्घ संघर्ष करना चाहिए, वह श्रीनगर में झंडा फहरा कर क्या हासिल कर लेगा ? विदेशों में जमा काला धन वापस प्राप्त करने के लिए जिसे जनजागृति पैदा करना चाहिए, वह झंडा फहराने को अहम मुद्दा मान रहा है।
इस तरह से ध्यान भटकाने की राजनीति से देश के लोगों का भला नहीं होने वाला है। यह युवा शक्ति का सदुपयोग भी नहीं है। जनता का ध्यान भटकाकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास तो हो सकता है लेकिन भाजपा पर जिस तरह का लोगों का विश्वास रहा है, वह भी टूट गया तो इससे बड़ा नुकसान और कुछ नहीं होगा। सेाच के धनी नेताओं का तो वैसे भी अकाल दिखायी देता है। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को ही समझ में नहीं आता कि महंगाई से कैसे निपटा जाए। राष्टï्र के समक्ष चुनौतियों की कमी नहीं है। जनता की हताशा निराशा कोई अच्छा संदेश भी नहीं देती। भाजपा के नेताओं को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि सत्ता प्राप्त करना ही पार्टी का एकमात्र उद्देश्य तो नहीं हो गया है। उसका सबसे अलग दिखने वाली पार्टी का चेहरा बदल तो नहीं गया है। जनता को विकल्प मिल गया तो वह क्या करेगी, यह सोच कर देख लें। श्रीनगर में झंडा फहराने से ही देश की सत्ता हाथ नहीं आने वाली।
-विष्णु सिन्हा
दिनांक : 22.01.2011
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