यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 30 अगस्त 2010

आर्थिक मंदी से देश को बचाने की जो अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता मनमोहन सिंह को मिली, उसका कारण भाजपा की राज्य सरकारें हैं

पिछले दिनों योजना आयोग के उपाध्यक्ष, प्रमुख अर्थशास्त्री और
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परम विश्वसनीय मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर
अंडे और टमाटर फेंके गए। कोलकाता में वहां के छात्रों ने यह किया। कहा जा
रहा है कि ये वामपंथी छात्र संगठन के छात्र थे। मोंटेक सिंह अहलूवालिया
तो केंद्र सरकार के प्रतीक हैं। फेंके गए अंडे, टमाटर उन तक नहीं पहुंच
पाए लेकिन प्रतीक के रूप में उनका विरोध तो हुआ। कारण विकास के नाम पर
महंगाई। जीडीपी कम न हो इसलिए महंगाई रोकने का कोई प्रयत्न नहीं। मनमोहन
सिंह हों या  वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत
घटाने के लिए तैयार नहीं। क्योंकि इससे जीडीपी पर असर पड़ता है। यही कारण
है कि मनमोहन सिंह की लोकप्रियता घटती जा रही है। केंद्र सरकार महंगाई से
देश की जनता को निजात नहीं दिला पा रही है। पूरी तरह से जनता को बाजार और
बाजार को नियंत्रित करने वालों के रहमोकरम के हवाले कर दिया गया है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी छत्तीसगढ़ की जीडीपी देश भर
में सबसे ज्यादा होने को गरीबों के हित में नहीं देखते। वे कहते हैं कि
इससे चंद लोगों को लाभ हुआ है लेकिन झंगलू मंगलू को लाभ नहीं हुआ। उन्हें
यह बात मनमोहन सिंह को समझाना चाहिए। अपने केंद्रीय नेताओं को समझाना
चाहिए। जो जीडीपी के चक्कर में पूरे देश को महंगाई की त्रासदी भोगने के
लिए बाध्य कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अनाज को सडऩे के लिए
छोडऩे के बदले गरीबों को मुफत बांट देना चाहिए तो कृषि मंत्री शरद पवार
कहते हैं कि यह संभव नहीं। अजीत जोगी उन्हें क्यों नहीं समझाते कि मुफत
बांटने से झंगलू मंगलू को लाभ होगा। उन्हें वे समझा भी नहीं सकते।
क्योंकि उनकी  वहां सुनने वाला कोई नहीं। वैसे  यहां भी उनकी सुनता कौन
है? समाचार पत्रों को विज्ञप्ति जारी कर अपने विचार अवश्य प्रगट कर सकते
हैं लेकिन विचारों की सत्यता जब किसी को हजम न हो तो क्या करें?
डा. रमन सिंह की सरकार उपलब्धियों पर उपलब्धियां हासिल करते रहे तो पुन:
सरकार बनाने का अवसर कांग्रेस को मिलेगा नहीं और अवसर नहीं मिलेगा तो
मुख्यमंत्री बनने का भी अवसर अजीत जोगी को मिलने वाला नहीं है।
कांग्रेसियों की सबसे बड़ी तकलीफ तो यही है कि केंद्र से आकर मंत्री डा.
रमन सिंह और उनकी सरकार की तारीफ के पुल बांधते हैं। ये लोग आलाकमान को
शिकायत भी करते हैं तो कोई सुनवायी नहीं होती। फिर असलियत को नकारा भी तो
नहीं जा सकता। केंद्रीय सांख्यकीय विभाग की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़,
गुजरात और उत्तराखंड के पास सबसे ज्यादा जीडीपी है। विश्व मंदी के समय भी
मंदी का असर भारत पर सबसे कम पड़ा तो इसके लिए दुनिया भर के हुक्मरान
मनमोहन सिंह की  तारीफ के पुल बांधते हैं। अमेरिकी राष्टपति कहते हैं
कि जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो उन्हें दुनिया भर में बड़े ध्यान से सुना
जाता है। कारण यह जीडीपी ही है। दुनिया आश्चर्य से देखती है कि भारत पर
आर्थिक मंदी का प्रभाव क्यों नहीं पड़ा? तो उन्हें समझ में आता है कि
चूंकि भारत का प्रधानमंत्री एक अर्थशास्त्री है, इसलिए उसने भारत को मंदी
से बचा लिया।

शेष दुनिया को यह तो मालूम नहीं कि महंगाई ने भारतीयों पर क्या कहर ढाया
है। जीडीपी के आंकड़े का प्रमुख कारण वे राज्य सरकारें हैं जो कांग्रेस
के अधीन नहीं हैं बल्कि प्रतिपक्ष की पार्टी भाजपा के पास है। भाजपा के
मुख्यमंत्रियों की उपलब्धि का लाभ कांग्रेस के प्रधानमंत्री को हो रहा
है। नरेंद्र मोदी पर कितना भी सांप्रदायिकता का आरोप लगाया जाए लेकिन असल
में जब तक गुजरात की जनता उनके साथ है तब तक उनके मुख्यमंत्री बने रहने
में प्रजातांत्रिक ढंग से तो कोई रूकावट नहीं है। भले ही उन्हें अमेरिका
वीजा देने से इंकार करे। नीतीश कुमार जैसा बिहार का मुख्यमंत्री उनके साथ
विज्ञापन में स्वयं को सम्मिलित करने का विरोध करे। फिर भी लोकप्रियता के
मामले में देश भर में उनका नंबर राष्टरीय नेताओं के बीच चौथा है। पहला
नंबर राहुल गांधी, दूसरा नंबर अटलबिहारी वाजपेयी का, तीसरा नंबर सोनिया
गांधी का तो चौथा नंबर नरेंद्र मोदी का। देश के किसी भी राज्य का कोई भी
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसी लोकप्रियता और स्वीकृति राष्ट्रिय  स्तर
पर नहीं रखता।

सांप्रदायिकता के भंवरजाल में उलझाकर भाजपा को अछूत बनाने का कम प्रयास
नहीं किया गया। उसके रामजन्म भूमि आंदोलन में सम्मिलित होने का
दुष्प्रचार कम नहीं किया गया। नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के बड़े बड़े
नेताओं को राजनीति के विस्तृत फलक से हटाने के लिए न्याय और कानून का भी
सहारा लिया गया है। भगवा आतंकवाद के नाम पर बदनाम करने की कम कोशिशें
नहीं की गयी। इंडिया साइनिंग के नाम पर राजग सरकार की आलोचना करने वाले
भूल रहे हैं कि भाजपा के ही निष्क्रिय नेता अटलबिहारी वाजपेयी आज भी जनता
में कितने लोकप्रिय हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री कांग्रेस के
मुख्यमंत्रियों से योग्य साबित हुए हैं। इसीलिए जनता ने उन्हें दोबारा,
तिबारा चुना। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कोंग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने
कांग्रेस का ऐसा कबाड़ा किया कि दो दो चुनाव हो गए, सत्ता में लौटने की
बाट ही जोह रहे हैं, कांग्रेसी। तीसरी बार भी अवसर न मिले तो कोई आश्चर्य
की बात नहीं है।

कोंग्रेस में राष्ट्रिय  स्तर पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी ही सर्वाधिक
लोकप्रिय और स्वीकार्य नेता हैं। अपनी छवि साफ सुथरी बनाए रखने के लिए
सत्ता से जो दूरी इन दोनों ने बना रखी है, वही इनकी लोकप्रियता का कारण
है। सत्ता पर सीधे न होने से आरोप के लिए जिम्मेदार मनमोहन सिंह हैं,
राहुल और सोनिया नहीं। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनना स्वीकार किया
होता तो बात बदल जाती। राहुल भी सत्ता संभालने के लिए मानसिक रूप से कहां
तैयार दिखायी देते हैं। वे चाहते हैं कि पार्टी को पूर्ण बहुमत मिले तब
वे प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालें। जबकि इंदिरा गांधी ने लाल बहादुर
शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में प्रवेश किया
था। फिर शास्त्री जी की असामयिक मृत्यु के बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनाया
गया था। राहुल गांधी मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के लिए
तैयार नहीं हैं। आज कांग्रेस  में इन दोनों मां बेटे के सिवाय कोई अन्य
नहीं है जो पार्टी की कमान की दावेदारी कर सके।

जबकि भाजपा ने अपने एक अंजान से कार्यकर्ता नितिन गडकरी को पार्टी का
राष्ट्रिय  अध्यक्ष बना दिया। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बिना किसी विरोध
के स्वीकार भी कर लिया। बिना किसी विरोध के सत्ता परिवर्तन हो गया। भाजपा
में एक निरंतरता दिखायी देती है। टीम वर्क दिखायी पड़ता है। छत्तीसगढ़
में ही भटगांव उपचुनाव की तैयारी भाजपा ने प्रारंभ कर दी लेकिन कांग्रेस
में अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। सोनिया गांधी को पुन: राष्ट्रीय 
अध्यक्ष चुने जाने की तैयारी में कांग्रेसी व्यस्त हैं। नामांकन पत्र में
किसी तरह से समर्थक या प्रस्तावक बन जाएं, इसी के जुगाड़ में लोग लगे हुए
हैं। जिससे सोनिया गांधी तक यह संदेश पहुंच सके कि कौन कितना बड़ा समर्थक
है, उनका। फर्क दोनों पार्टियों का स्पष्ट दिखायी देता है।

- विष्णु सिन्हा
30-08-2010

रविवार, 29 अगस्त 2010

चीन का पाकिस्तान के कब्जे वाले काश्मीर पर बढ़ता कब्जा भारत के लिए ठीक नहीं

सत्ता पर बने रहना ही जिनका उद्देश्य हो उन्हें भले ही अपमान, अपमान न
दिखायी देता हो लेकिन भारतीय नागरिकों को भी अपमान समझ में नहीं आता है,
ऐसी सोच लेकर पाकिस्तान अपमान करने में पीछे नहीं है। पाकिस्तान के
हुक्मरानों का कहना है कि यूएनओ के द्वारा भारत मदद करेगा तो वह उसे
स्वीकार करेगा। जबकि भारत की भावना स्पष्टï है। पाकिस्तान की 1 करोड़ से
अधिक आबादी बाढ़ की चपेट में है और आशियाना विहीन हो किसी को नहीं रखना
चाहिए। वर्षा और बाढ़ से पीडि़त पाकिस्तान की जनता को मदद पहुंचाने की
भारत की कोशिश को भी सीधे सीधे न की  गयी है। भारत ने पाकिस्तान को सिर्फ
पड़ोसी ही नहीं माना बल्कि भाई ही माना। भाई को तकलीफ में देखकर भारत ने
मदद के लिए हाथ बढ़ाया तो उसे भी झटक दिया गया। इससे उसकी नीयत की चुगली
होती है। अपने निर्माण से लेकर आज तक पाकिस्तान ने भारत को दुश्मन की ही
नजर से देखा है। इसके लिए उदाहरणों की कमी नहीं है। फिर भी हर बार भारत
ने दोस्ती का ही हाथ बढ़ाया। हासिल क्या हुआ, यह भी सबको अच्छी तरह से
पता है।

यही हाल चीन का है। स्वतंत्र होने के बाद भारत ने हिन्दी चीनी भाई भाई का
ही नारा लगाया। भारत की भलमनसाहत का परिणाम यह निकला कि चीन ने भारत पर
हमला कर हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। अभी भी अरूणाचल
जैसे कई क्षेत्रों पर अपने होने का दावा वह करता ही रहता है। तिब्बत को
वह निगल ही चुका है। दलाई लामा वर्षों से शरणार्थी बनकर भारत में रह रहे
हैं। पाकिस्तान के साथ उसकी पक्की दोस्ती है। फिर हो भी क्यों नहीं? जो
अपने कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र को तश्तरी में सजाकर चीन को भेंट करता
हो, वह अच्छा तो लगेगा ही। अब काश्मीर के उस हिस्से पर चीन की नजर है जो
पाकिस्तान के कब्जे में है। पाकिस्तान से वैसे भी वह हिस्सा संभल नहीं
रहा है। न्यूयार्क टाइम्स की खबर है कि चीन के 11 हजार सैनिक उस क्षेत्र
में हैं। चीन बांध बनवा रहा है, सुरंग बनवा रहा है, सैनिकों के स्थायी
निवास की व्यवस्था कर रहा है। सड़कें बना रहा है, हवाई अड्डï बना रहा
है। चीन पाकिस्तान से परमाणु संधि करने वाला है। भारत की उत्तरी सीमा पर
चीन की फौजी गतिविधियां तीव्र हैं।

जम्मू काश्मीर के लोगों को वीजा वह गैर भारतीय मान कर देता है तो जम्मू
काश्मीर के सर्वोच्च फौजी अफसर को चीन आने के लिए वीजा नहीं देता लेकिन
अपने फौजियों को भारत में प्रशिक्षित कराना चाहता है। दरअसल यह भी उसकी
चालाकी है। वह असल में जानना चाहता है कि भारतीय फौज को प्रशिक्षण किस
तरह मिलता है। जिससे वह अपने सैनिकों को लडऩे के लिए तैयार कर सके।
मीडिया के द्वारा सारी जानकारी भारतीयों को मिलती है लेकिन भारत सरकार
अभी भी चीन और पाकिस्तान से सदभावना की उम्मीद करती है। माओवादियों ने
काठमांडू से तिरूपति तक लालगलीचा बिछा रखा है। बिना हिचक प्रधानमंत्री और
उनके मंत्री माओवादियों को अपना बताते हैं। बार  बार के अनुभव से कभी तो
आदमी सीखता है लेकिन हमने शायद कसम खा रखी है कि हम नहीं सीखेंगे। कुछ
दिन पहले देश के लिए जिन्हें खतरा बता रहे थे उन्हें ही अब अपना बताकर
समस्या का हल निकालना चाहते हैं।

आदर्शवाद का अर्थ अव्यवहारिक होना नहीं होता। पाकिस्तान तो अमेरिका तक को
धोखा दे रहा है। पूरी सहायता अमेरिका से आतंकवाद, अफगानिस्तान के नाम पर
वसूल रहा है और यह किसी से भी छुपा हुआ  नहीं है कि पाकिस्तान ही सबसे
बड़ा आतंकवाद का पोषक देश है। जिस देश के राष्टपति को अपने देश की
जनता की चिंता नहीं। बाढग़्रस्त लोगों के बीच होने के बदले जो सैर सपाटे
में लगा हो, उससे किसी भी तरह की उम्मीद रखना फिजूल है। अमेरिका तो
अलकायदा और लादेन के चक्कर में ऐसा उलझा है कि सब कुछ जानते समझते हुए भी
वह पाकिस्तान के भरण पोषण का इंतजाम करता है। करोड़ों डालर की मदद के साथ
युद्घ के संसाधन देकर वह आतंकवादियों के संरक्षक को ही बढ़ावा दे रहा है।
पाकिस्तान से तो काश्मीर का वह हिस्सा जो उसके कब्जे में है, 63 वर्षों
में हम वापस प्राप्त नहीं कर सके। इसका मुख्य कारण इच्छाशक्ति की कमी है।
इसके विपरीत आज दशकों से हमारे काश्मीर पर पाकिस्तान आतंकवादियों को भेज
रहा है और करीब 1 लाख लोग मौत का शिकार हो चुके हैं। अब जब पाकिस्तान
अपने कब्जे वाले काश्मीर पर चीन का कब्जा करवा रहा है, तब चीन से काश्मीर
को वापस प्राप्त करना क्या मुमकिन होगा?

तिब्बत के लिए तो हमने मान ही लिया कि वह चीन का है। हमारी हजारों वर्ग
किलोमीटर भूमि हिमालय की वापस प्राप्त करने की हमारी कोई तैयारी नहीं है।
हम तो इसी में राजी हैं कि चीन आगे न बढ़े लेकिन क्या वह मानने वाला है।
पाकिस्तान को काश्मीर पर कब्जा रखना कठिन लग रहा है, महंगा लग रहा है।
इसलिए वह चीन को सौंप रहा है। काश्मीरी भारत के पक्ष में हो जाएं, इससे
बेहतर तो उसके लिए यही है कि चीन उस पर कब्जा कर ले। देर सबेर भारतीय
काश्मीर पर भी अपना दावा करने के लिए चीन स्वतंत्र हो जाएगा। तिब्बत में
अभी भी तिब्बत की स्वतंत्रता का आंदोलन चलता है लेकिन वहां चीनियों को
बसाकर और आंदोलन को कू्ररता से दबाकर चीन शासन कर रहा है। चीन भारत के
साथ ऐसा कर रहा है, ऐसा नहीं है बल्कि वह अपने हर पड़ोसी के साथ यही कर
रहा है। बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान हर जगह तो उसकी घुसपैठ है।
यहीं क्यों भारत में भी उसकी घुसपैठ है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के कोरबा
में जो हादसा हुआ उसके लिए भी तो चीनी ही जिम्मेदार थे। उन्हीं के पास
निर्माण का ठेका था।

आज चीन अमेरिका के बाद दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत है। भारतीय बाजार
पर कब्जे की उसकी इच्छा भी सर्वविदित है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और
सबसे बड़ी फौज भी उसके पास है। उसने तो अभी मिसाइलें भी भारत की तरफ तान
रखी है। तब कहीं भारत सरकार ने सीमा पर मिसाइल तैनात करने की आवश्यकता
महसूस की। आज की युद्घ प्रणाली में जो पहला हमला करेगा, वह दूसरे को साफ
करने की ताकत भी रखता है। आक्रामक फितरत न होने के कारण भारत घाटे में न
रहे। अभी भले ही कहा जा रहा है कि खाड़ी तक जल्दी पहुंचने की नीयत से चीन
यह कर रहा है लेकिन दूरदृष्टि से देखा जाए तो एक पंथ कई काज चीन के हो
रहे हैं। अमेरिका के अपने निहित स्वार्थ हैं और उसके भरोसे तो सब कुछ की
उम्मीद नहीं की जा सकती।

भारत के हुक्मरान सारी परिस्थितियों से अच्छी तरह से परिचित हैं। युद्घ
से बचने की कोशिश अच्छी रणनीति नहीं है। देशों की आपसी दोस्ती दुश्मनी
ताकत और स्वार्थ पर निर्भर करती है। मात्र भलमानसाहत पर नहीं। कभी रूस से
दोस्ती निश्चित रूप से भारत के लिए फायदेमंद थी जब दो ध्रुवीय विश्व में
रूस एक धु्रव था लेकिन अब वह बात रही नहीं। चीन उसका स्थान लेने के लिए
अपना पूरा प्रयास कर रहा है। भारत भी दुनिया की नजरों में उभरती ताकत है।
यदि भारत को विभिन्न समस्याओं में उलझाकर न रखा गया तो भारत सबको पीछे
छोड़ सकता है। यह भी सभी अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए आंतरिक ही नहीं
बाहरी अवरोधों से भी निपटने के लिए चौतरफा तैयारी की जरूरत है। विश्वास
किसी अन्य पर नहीं स्वयं पर करने की जरूरत है।

-विष्णु सिन्हा
29-08-2010


शनिवार, 28 अगस्त 2010

देश की वर्तमान स्थिति में गृहमंत्री चिदंबरम को सोच समझकर शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए

केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम को सोच समझकर शब्दों का उपयोग करना
चाहिए। भगवा आतंकवाद जैसे शब्द का उपयोग कर वे क्या हासिल कर लेंगे? दो
चार लोगों को पकड़ लेने का यह अर्थ नहीं होता कि भगवा आतंकवाद का प्रतीक
बन गया है। जब कुछ मुसलमानों के आतंकी होने के कारण इस देश ने इस्लामिक
आतंकवाद को स्वीकार नहीं किया और माना कि आतंकवाद का संबंध किसी धर्म से
नहीं है तब कुछ हिंदुओं के आतंकवाद के मामले में सम्मिलित होने से यह
कैसे माना जा सकता है कि भगवा आतंकवाद का प्रतीक है? चंद सिरफिरे लोग भले
ही वे किसी भी धर्म के अनुयायी हों, आतंकवाद की तरफ आकर्षित होते हैं तो
इसे धर्म से जोडऩा न केवल खतरनाक परंपरा होगी बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष
स्वरूप के साथ भी अन्याय होगा। भारत में लाखों की संख्या में भगवाधारी
साधु संन्यासी हैं। भगवा रंग राष्ट्रीय झंडे में भी स्थित है। बहुसंख्यक
आबादी के लिए भगवा रंग आस्था का भी प्रतीक है।

भगवा रंग वास्तव में आतंकवाद का प्रतीक होता तो इस देश का इतिहास कुछ और
होता। भारत में ऋषि मुनियों की लंबी परंपरा और इतिहास है। जब राक्षस धर्म
कर्म के मामले में अवरोध खड़ा करते थे तब ये ऋषि मुनि राजाओं से बचाव की
उम्मीद करते थे। भारत की पौराणिक कथाओं में इनकी गाथाएं ही गाथाएं है।
हिन्दू  आतंकवादी होता या धर्म के मामले में सहिष्णु न होकर कट्टर होता
तो क्या यह देश धर्मनिरेपक्ष होता? 2-4 सौ लोग बैठकर संविधान तो बना सकते
हैं लेकिन जनता की इच्छा के विरूद्घ उसे मनवाना क्या संभव है? हिंदुओं ने
ही माना कि इस देश को धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए। हिन्दुओ  पर विश्वास कर
ही मुसलमान भाई पाकिस्तान नहीं गए। धर्म के आधार पर ही तो पाकिस्तान बना
था। मुसलमानों को अलग देश चाहिए, इसीलिए तो पाकिस्तान बना था। तब भारत को
धर्मनिरपेक्ष रहने की क्या जरूरत थी? फिर भी भारत ने धर्मनिरपेक्षता को
स्वीकार किया। बहुसंख्यक हिंदुओं ने धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार नहीं किया
होता तो क्या भारत धर्मनिरपेक्ष रह सकता था?

आज केंद्र में कांग्रेस की सरकार है। गठबंधन की सरकार है। गठबंधन का आधार
ही धर्मनिरपेक्षता है। मंत्रिमंडल में अधिकांश हिंदू ही हैं। यहां तक कि
विपक्ष  की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा भी धर्मनिरपेक्ष है। काश्मीर से
काश्मीरी पंडितों को भगाया गया। अब सिखों से कहा जा रहा है कि इस्लाम
स्वीकार करो या भाग जाओ। हिंदू कट्टर होता तो इस स्थिति को स्वीकार
करता? फारूख अब्दुल्ला कह रहे हैं संसद में कि काश्मीरियों ने भारत के
साथ रहने का निर्णय किया। काश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के पास है, उसे
वापस प्राप्त करने की कोई बात ही नहीं करता। यह भारतीय सोच है। भारत का
मुसलमान निर्णय करता है कि आतंकवाद का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। यह
भारतीय मानसिकता है। अहिंसा का सिद्घांत दुनिया को देने वाला भारत
आतंकवादी नहीं हो सकता तो भगवा आतंकवाद जैसी कोई चीज भी नहीं हो सकती।
आतंकवादी किसी का सगा नहीं हो सकता। मनोवैज्ञानिकों से पूछें तो आतंकवादी
मनोरोगी हैं। उसका उपचार होना चाहिए। किसी भी इंसान की हत्या करने से
किसी को खुशी मिले तो वह सामान्य इंसान नहीं है। मनुष्य की हत्या से बड़ा
तो कोई पाप नहीं होता, कोई अपराध नहीं होता। करूणा, सहिष्णुता, अहिंसा की
शिक्षा देने वाला भारत मनोरोगी नहीं हो सकता। चंद लोग हो सकते हैं। जिनका
दिमाग बीमार हो। वे वह काम करें जो सामान्य व्यक्ति करना तो दूर की बात
है, करने के विषय में सोच भी नहीं सकता तो उस पर भगवा आतंकवाद चस्पा नहीं
किया जा सकता। 4 भगवाधारी यदि हिंसक गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं
तो इसका अर्थ यह नहीं है कि एक करोड़ भगवाधारियों का अपमान किया जाए।
देश में 80 लाख से लेकर 1 करोड़ हिंदू साधु संन्यासी हैं जो भगवा धारण
करते हैं।

कई पुलिस वाले जघन्य अपराध करते पकड़े जाते हैं तो क्या सभी पुलिस वालों
को अपराधी कहा जा सकता है? वास्तव में ऐसा हो  जाए तो फिर कानून व्यवस्था
शेष ही नहीं रहेगा। अभी एक पूर्व मुख्यमंत्री को सार्वजनिक वितरण प्रणाली
के मामले में गिरफतार किया गया है। कितने ही राजनीतिज्ञों पर आपराधिक
मामले चल रहे हैं। वे जमानत पर छूटकर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हो
जाते हैं तो क्या मान लिया जाए कि सारे राजनीतिज्ञ अपराधी है? फौज के ही
कुछ लोग भ्रष्टाचार  के मामले में पकड़े जाते हैं तो क्या मान लिया जाए
कि पूरी फौज भ्रष्ट हो गयी है? नौकरशाहों के पास से करोड़ों रूपये जांच
एजेंसियों ने पकड़ा है तो क्या मान लिया जाए कि सभी नौकरशाह भ्रष्ट हैं?
कल एलएलएम की परीक्षा देते 3 जज पकड़े गए। वे नकल मार रहे थे तो क्या मान
लिया जाए कि सभी जज नकल मार कर पास होते हैं?

उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। आदमी व्यक्तिगत रूप से अपराधी हो सकता है
लेकिन पूरा समाज उसके पदचिन्हों पर नहीं चलता। अच्छाई और बुराई के बीच
जंग तो आदिकाल से चली आ रही है। फिर भी यह ऐतिहासिक तथ्य है कि अंतत.
अच्छाई ही जीतती है। अच्छे और बुरों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो
अच्छे लोग ही समाज के हर वर्ग में अधिक हैं। यह सच है कि भ्रष्टïचार और
अन्य अपराधों की संख्या में वृद्घि हुई है लेकिन इसका कारण अनुपातिक रूप
से बढ़ती आबादी भी तो है। जब आबादी बढ़ रही है तो स्वस्थ और बीमार लोग भी
तो बढ़ेगे। इसीलिए अस्पताल और चिकित्सा सुविधा भी बढ़ रही हैं। जेल और
पुलिस थाने भी तो बढ़ रहे हैं। नक्सल आतंकवाद सीमा पार आतंकवाद से अधिक
खतरनाक सिद्घ हो रहा है?
इनसे निपटने के लिए पी. चिदंबरम की सक्रियता सराहनीय है। लोगों को उम्मीद
है कि चिदंबरम इस समस्या से मुक्त कराने में सफल होंगे। आतंकवादी घटनाओं
में एकदम से कमी आयी है, चिदंबरम के गृहमंत्री बनने के बाद। जिस समय देश
को एक अच्छे गृहमंत्री की जरूरत थी, उस समय अच्छा गृहमंत्री मिला। वे
पहले गृहमंत्री हैं जिन्होंने इस्तीफा  देने की पेशकश की तो विपक्ष ने
भी उनसे अनुरोध किया कि वे इस्तीफा न दें। सीधा और साफ मतलब है कि देश को
उनसे बड़ी उम्मीद है। ऐसे में उन्हें शब्दों के चयन में सतर्कता बरतनी
चाहिए। राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद का भी फैसला आने वाला है।
उत्तरप्रदेश सरकार ने कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए दो सौ कंपनियों की
मांग  की है। विषय अत्यंत संवेदनशील है। स्वाभाविक है, ऐसे में जिन्हें
देश में शांति पसंद नहीं है वे अशांति फैलाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
स्थिति  नियंत्रण में रहे इसमें चिदंबरम की अहम भूमिका है। राजनैतिक लाभ
के लिए बयानबाजी करने वाले मौके को चूकना नहीं चाहेंगे तब केंद्र सरकार
के प्रतिनिधि के रूप में चिदंबरम को तो और संभलकर शब्दों का इस्तेमाल
करना चाहिए।

विष्णु सिन्हा
27-08-2010

देश का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने के लिए डा. रमनसिंह को साधुवाद न देना कृपणता होगी

छत्तीसगढ़ ने बहुत ऊंची छलांग लगायी है। पूरे देश में सबसे अधिक घरेलू
उत्पाद दर अर्थात जीडीपी छत्तीसगढ़ के पास है। नक्सल समस्या से ग्रस्त
छत्तीसगढ़ ने विकास के मामले में जो कमाल किया है, उसके श्रेय के हकदार
निश्चित रूप से मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह हैं। सर्वाधिक पिछड़े और गरीब
राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ में यह चमत्कार दिखा है तो उसका कारण डा.
रमन सिंह का सुशासन तो है ही, इसके साथ ही उनकी सोच और परिकल्पना भी
बेमिसाल  है। नहीं तो बहुत पुरानी बात नहीं है जब कांग्रेस के पूर्व
मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपनी केंद्र सरकार से मांग कर रहे थे कि छत्तीसगढ़
में राष्टपति शासन लगाया जाए। नक्सल समस्या को इतना बढ़ा चढ़ाकर उछाला
गया, जैसे प्रदेश का शासन सही व्यक्ति के हाथ में नहीं है। कहा जाता है
कि विकास के अभाव ने नक्सल समस्या को जन्म दिया। विकास विरोधी नक्सली, जो
बच्चों के स्कूल भवनों को तोड़कर बच्चों को पढ़ाई लिखाई न हो इस इंतजाम
में लगे रहे, उनको भी प्रदेश की घरेलू उत्पाद दर ने करारा जवाब दिया है।
डा. रमनसिंह चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ के बच्चे पढ़े लिखें और वह सब कुछ
प्राप्त करें जो इस देश में किसी को भी हासिल है लेकिन नक्सलियों की सोच
है कि उनके प्रभावित क्षेत्र के बच्चे पढ़ लिख गए तो वे पुलिस में भर्ती
हो जाएंगे और नक्सलियों का जीना हराम कर देंगे। नक्सली नाबालिग बच्चों को
अपनी फौज में भर्ती कर रहे हैं। इसके बावजूद भी डा. रमन सिंह कृतसंकल्पित
हैं कि वे नक्सलियों की नहीं चलने देंगे। नक्सल प्रभावित क्षेत्र के
बच्चे पढ़े इसके लिए उन्होंने हर तरह की सुविधा उपलब्ध करायी है।
क्योंकि शिक्षा ही वह माध्यम है जो नक्सलियों के जाल से क्षेत्र को मुक्त
करा सकती है। नक्सल समस्या का काला चश्मा पहनकर जो लोग छत्तीसगढ़ की
कल्पना करते हैं, उनके लिए सर्वाधिक जीडीपी छत्तीसगढ़ में होना आंख खोलने
वाला है लेकिन  शर्त यही है कि वे आंख खोलकर  देखना चाहते हैं या नहीं।
उनमें ईमानदारी हो और वे ईमानदारी से देखना चाहें तो उन्हें समझ में आ
जाएगा कि विकास की दुश्मन सरकार नहीं वरन नक्सली है।

सर्वाधिक जीडीपी का आंकड़ा कोई छत्तीसगढ़ सरकार का दिया हुआ नहीं है
बल्कि केंद्र सरकार के सांख्यकीय विभाग का है। उस केंद्र सरकार के
सांख्यकीय विभाग का है जो कांग्रेस के अधीन है। गठबंधन की केंद्र सरकार
का मुख्य आधार धर्म निरपेक्षता है और गठबंधन की एकता के पीछे तर्क यही है
कि कहीं भाजपा केंद्रीय सत्ता पर काबिज न हो जाए। राज्यवार आंकड़े जो
जीडीपी के सांख्यकीय विभाग ने दिए हैं उनमें छत्तीसगढ़ प्रथम है तो
द्वितीय गुजरात है और तीसरे नंबर पर उत्तराखंड है। कितने आश्चर्य की बात
है कि ये तीनों राज्य भाजपा शासित हैं। इसका तो सीधा मतलब है कि भाजपा की
सरकारें कांग्रेस सहित अन्य दलों की सरकार से अच्छा काम कर रही है। विकास
के मान से इन तीनों राज्यों की जीडीपी राष्ट्रीय जीडीपी से भी ज्यादा है।
एक तरह से राष्ट्रिय  जीडीपी की ऊंचाई का श्रेय भी इन तीनों राज्यों को
जाता है।

उसका कारण भी स्पष्ट है। इन राज्यों के भाजपा शासक जमीन से जुड़े लोग
हैं। जबकि केंद्र सरकार का मुखिया सारे संसार में प्रसिद्घ अर्थशास्त्री
है लेकिन जमीन से जुड़े लोगों को हकीकत की जैसी जानकारी होती है, वैसी
जानकारी सिर्फ शास्त्रों के अध्ययन से तो प्राप्त नहीं की जा सकती। विकास
के लिए आवश्यक बिजली के मामले में छत्तीसगढ़ आत्मनिर्भर है। आत्मनिर्भर
ही नहीं है बल्कि सरप्लस बिजली है। छत्तीसगढ़ तो दूसरे प्रदेशों के घरों
में भी उजाला करने का काम करता है। छत्तीसगढ़ से रोजी रोटी कमाने के लिए
लोग भले ही लेह काश्मीर तक जाते हों लेकिन छत्तीसगढ़ ही ऐसा प्रांत है जो
अपने गरीब नागरिकों को 1 रू. व 2 रू. में चांवल देता है। मतलब साफ है कि
भूख के कारण लोग कमाने बाहर नहीं जाते। काम धंधों की भी कमी नहीं है।
शिकायत तो यहां तक है कि मजदूर नहीं मिलते। ठेकेदारों को दूसरे प्रदेशों
से मजदूर लाना पड़ता है। संपन्नता तो बढ़ी है। इसका यही उदाहरण काफी है
कि औसत आय तिगुनी हो गयी है। सबसे अच्छी सार्वजनिक वितरण प्रणाली
छत्तीसगढ़ में ही है। पुस्तकें बच्चों को मुफत में मिलती है। लड़कियों को
सरकार सायकल देती है। मजदूर न मिलने का एक कारण यह भी है कि बहुतों को
मजदूरी की जरूरत ही नहीं रह गयी है। डा. रमनसिंह ने तो इतना काम किया है
कि छत्तीसगढ़ में यह सब हो सकता है, इसकी 10 वर्ष पूर्व कल्पना भी नहीं
किसी ने की।

और 5 वर्ष निकल जाने दीजिए, छत्तीसगढ़ जब अपनी 15 वीं वर्षगांठ मनाएगा तब
तक नया रायपुर राजधानी का रूप ले लेगा। नक्सली पलायन के लिए मजबूर हो
जाएंगे। फिर गरीबी रेखा के नीचे छत्तीसगढ़ में कोई न मिले तो पूरे देश के
लिए आश्चर्य की बात होगी। यह कुछ लोगों और खासकर सत्ता आकांक्षियों को
भले ही असंभव लगे लेकिन डा. रमन सिंह के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। फिर
जिन्हें बाहर जाकर कमाने खाने का शौक हो वे भले ही  जाएं। नहीं तो
आवश्यकता तो इसकी नहीं रहेगी। कल ही स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने
अंबिकापुर में राज्य के 5 वें मेडिकल कालेज ही घोषणा की है। 2 वर्ष के
अंदर इसके प्रारंभ होने की बात कही है। जब राजग की सरकार थी तब सुषमा
स्वराज ने रायपुर में एम्स खोलने के लिए शिलान्यास किया था और 3 वर्ष में
इसके प्रारंभ होने की बात थी लेकिन दिल्ली में कांग्रेस की सरकार आए 6
वर्ष से अधिक समय हो गया, ढांचा ही खड़ा हो रहा है। केंद्र में कांग्रेस
के बदले भाजपा की सरकार होती तो छत्तीसगढ़ कहीं से कहीं  पहुंच गया होता।
खाद्यान्न के कोटे में कटौती, बिजली के कोटे में कटौती जैसी कितनी ही
कोशिशें केंद्र सरकार ने किया और छत्तीसगढ़ को पीछे ढकेलने की राजनीति की
लेकिन उसके बावजूद आज छत्तीसगढ़, गुजरात और उत्तराखंड की जीडीपी दर देश
में सबसे अधिक है तो यह भाजपा की सोच और कर्मठता का ही प्रतीक है। विपरीत
परिस्थितियों में भी अच्छे से अच्छा काम करना भाजपा के मुख्यमंत्री जानते
हैं, इसके लिए प्रमाण की जरूरत तो नहीं होना चाहिए। क्योंकि केंद्र सरकार
के आंकड़े ही इसका खुलासा करते हैं।

कृषि उत्पादन, विद्युत उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन सभी क्षेत्रों में तो
छत्तीसगढ़ ने रिकार्ड बनाया। कृषि उत्पादन करीब करीब दोगुना हो गया है और
उचित मूल्य पर सरकार धान खरीद रही है। बारह सौ मेगावाट बिजली से
छत्तीसगढ़ का काम चलता था जो आज बढ़कर 26 सौ मेगावाट हो गया है। विद्युत
खपत दोगुना से ज्यादा हो गया। इस बात की निशानी है कि घर घर गांव गांव ही
बिजली नहीं पहुंची बल्कि उद्योगों का आकार प्रकार भी बदला। सिंचाई
सुविधाओं, सड़क सुविधाओं का भी पर्याप्त विकास हुआ। दस वर्ष पुराना
रायपुर से आज के रायपुर की शक्ल ही बदल गयी है और निरंतर शक्ल बदल रही
है। छत्तीसगढ़ के लोगों को सब कुछ बदला बदला लग रहा है। डा. रमनसिंह के
द्वारा छत्तीसगढ़ विकास की जो कथा लिखी गई है, वह पढऩे से नहीं देखने से
ताल्लुक रखती है। डा. रमन सिंह और उनके सहयोगियों को इसके लिए साधुवाद न
दिया जाए तो यह कृपणता होगी।

-विष्णु सिन्हा
28-08-2010