यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

चरणदास महंत को केंद्र सरकार में मंत्री बना कर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का उत्थान किया जा सकता है

छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों में मुकद्दर का सिकंदर कोई है तो वह चरणदास
महंत हैं। वे मुकद्दर के सिकंदर न होते तो लोकसभा का चुनाव उनका जीतना
संभव नहीं था। वे अकेले लोकसभा के कांग्रेस प्रत्याशी रहे जिनका मुकद्दर
इतना सिकंदर था कि कांग्रेसियों की उन्हें हराने की कोशिश नाकाम सिद्द
हुई। चरणदास महंत जिस कांग्रेसी नेता को फूटी आंख नहीं सुहाते, उसने अपनी
तरफ से कुछ उठा नहीं रखा था, महंत को हराने के लिए लेकिन भाग्य के धनी
चरणदास महंत चुनाव जीत गए। जब वे जीत गए और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार
बनी तो उम्मीद की जा रही थी किउन्हें मंत्री पद अवश्य मिलेगा लेकिन नहीं
मिला। पिछली बार भी कांग्रेस का एक ही प्रत्याशी चुनाव में विजयी हुआ था
और उसका 5 वर्षीय कार्यकाल भी मंत्रीपद की अभिलाषा में ही व्यतीत हो गया
था। चुनाव के पूर्व जिस तरह से चरणदास महंत को प्रदेश अध्यक्ष पद से
हटाने में उनके विरोधी सफल हो गए थे और कार्यकारी अध्यक्ष बना कर उन्हें
पदावनत कर अपमानित करने का प्रयास किया गया था, उसे भी शिरोधार्य कर
चरणदास महंत ने अनुशासित कांग्रेसी होने का प्रमाण दिया था। उसके बाद
उम्मीद की जाती थी कि चरणदास महंत को केंद्र सरकार में मंत्रीपद अवश्य
मिलेगा लेकिन यह अभी तक संभव नहीं हुआ।

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ ही छत्तीसगढ़ के इकलौते कांग्रेस लोकसभा
सदस्य चरणदास महंत संसद और संसद के बाहर हमेशा सक्रियता का ही प्रदर्शन
करते हैं। उनकी निष्ठï, आस्था, श्रद्धा, समर्पण, गांधी परिवार के प्रति
अद्वितीय है। उन्हें सांसदों के वेतनभत्ते बढ़ाने वाली समिति का अध्यक्ष
भी बनाया गया और उन्होंने अपना काम भी निपटा दिया। कहा जा रहा है कि उनकी
सिफारिशें यदि सरकार ने मान ली तो सांसद निहाल हो जाएंगे। 80 हजार रुपये
प्रतिमाह सचिव को मिलता है तो चरणदास महंत ने 80 हजार एक रुपया सांसदों
का वेतन सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। कल हुई मंत्रिपरिषद की बैठक के
पहले तो सभी को अंदाज था कि मंत्रिपरिषद आज निर्णय ले ही लेगी लेकिन
मंत्रिपरिषद में कुछ मंत्रियों के विरोध के कारण मामला टल गया। महंगाई,
किसान आंदोलन और कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए खर्च की गई रकम में भ्रष्टाचार
जैसे ज्वलंत मुद्दों के होते हुए सरकार को सांसदों का वेतन भत्ता बढ़ाना
उचित नहीं लगा। बढ़ेगा अवश्य लेकिन जब समय सही होगा।

इस समय सांसदों के वेतन वृद्धि से निश्चित रुप से अधिकांश सांसद प्रसन्न
होते। जनता भले ही थू-थू करती। फिर भी कहा जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव
जैसे नेता संसद में वेतन वृद्धि के मुद्दे को टालने के लिए सरकार की
खिंचाई करना चाहते हैं। उनका तर्क है कि बहुत से सांसद गरीब हैं और वेतन
वृद्धि के बिना वे अपने क्षेत्र की पर्याप्त सेवा नहीं कर पा रहे है।
नौकरशाहों से कम वेतन मिलने के कारण उनकी स्थिति सम्मानजनक भी नहीं हैं।
जो ज्यादा वेतन चाहते हैं उनके अपने तर्क हैं। जहां तक सिफारिश की बात थी
तो चरणदास महंत ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यह बात दूसरी है
कि माक्र्सवादी सांसद वृंदा करात ने स्वयं अपना वेतन वृद्धि करने को उचित
नहीं ठहराया है। लगता है अभी सरकार में कुछ लाज शर्म बाकी हैं। नहीं तो
वेतन वद्धि तो तय ही दिखायी दे रही थी। 

चरणदास महंत के हाथ में सीधे वेतन वृद्धि का मामला होता तो निश्चित रुप
से वेतन वृद्धि हो जाती। सरकार तो सिर्फ 16 हजार को 50 हजार करने की ही
मंशा रखती है लेकिन चरणदास महंत तो 80 हजार 1 रुपया ही कर देते। निश्चित
रुप से चरणदास महंत ने सांसदों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ायी है।
छत्तीसगढ़ के सभी सांसदों से ज्यादा प्रश्र उन्होंने लोकसभा में पूछा
हैं। लोकसभा में उनकी पहचान नहीं थी लेकिन एक बार लालू यादव को उन्होंने
लोकसभा में अपना परिचय दिया था कि वे पीएचडी हैं। पूजा-पाठ करने वाले
महंतों की तरह के वे महंत नहीं हैं। संसद में या संसद के बाहर भाजपा पर
आरोप लगाने के मामले वे किसी से उन्नीस नहीं हैं। कांग्रेस सरकार में
मंत्री बनने के लिए जो योग्यता किसी में होना चाहिए, वह सब उनमें है। वे
मध्यप्रदेश सरकार में गृहमंत्री भी रह चुके हैं। अभी भी कांग्रेसी हलकों
में तो चर्चा यही है कि वे मंत्री पद का मोह त्यागें तो प्रदेश अध्यक्ष
का पद उन्हें तश्तरी में सजा कर दिया जा सकता है।

लेकिन चरणदास महंत जो एक बार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, अच्छी तरह से
जानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष का पद कांटों भरे ताज से कम नहीं हैं।
गुटबाजों से पार पाना कठिन काम है। पार्टी के भले के लिए कदम आगे बढ़ाओ
तो बढ़ती लोकप्रियता कांग्रेसियों को ही खलने लगती है। प्रदेश सरकार के
विरुद्ध आंदोलन तक में तो गुटबाजी टांग पकड़ कर खींचने में पीछे नहीं
रहती। नेताओं के घर-घर जाकर हाथ पैर जोडऩा पड़ता है। पार्टी का भला तो
होता नहीं, अपना बुरा अवश्य हो जाता है। फिर पार्टी कार्यकर्ता अध्यक्ष
से ज्यादा तवज्जों मंत्री को देते हैं। आलाकमान उन्हें मंत्री बनाने के
लिए तैयार हो जाए तो वे छत्तीसगढ़ का और छत्तीसगढ़ में पार्टी का ज्यादा
भला कर सकते हैं। जिस विभाग के मंत्री होंगे,उस विभाग की कोई न कोई योजना
लाने में सफल होंगे। कार्यकर्ताओं का भी जुड़ाव उनसे होगा। वे संगठन को
भी सहयोग करने की स्थिति में रहेंगे। इसलिए वे मंत्री बनने के लिए ज्यादा
उत्सुक हैं। आलाकमान आदेश ही देगा कि पार्टी अध्यक्ष चरणदास महंत को बनना
है तो बात अलग है। क्योंकि आलाकमान के आदेश की अवहेलना करना उनका स्वभाव
नहीं है। जो व्यक्ति पदावनत होने को भी सहर्ष स्वीकार कर ले, वह आलाकमान
के आदेश निर्देशों से बंधा व्यक्ति ही हो सकता है। आलाकमान चरणदास महंत
के विचारों से सहमत हुआ तो वह उन्हें अध्यक्ष बनाने के बदले मंत्री बनाना
ही उचित समझेगा।

जब आपातकाल के बाद चुनाव हार जाने पर इंदिरा गांधी को कांग्रेस से
निष्कासित कर दिया गया था और उन्होंने अपनी इंदिरा कांग्रेस बना ली थी तब
सबसे पहले मध्यप्रदेश से उनका समर्थन और साथ देने वाले सख्स स्व.
बिसाहूदास महंत ही थे। जब हार के बाद इंदिरा गांधी से किनारा करने वालों
की कमी नहीं थी तब बिसाहूदास महंत इंदिरा गांधी के साथ खड़े थे। चरणदास
महंत इन्हीं बिसाहूदास महंत के सुपुत्र है। इसलिए जहां तक पारिवारिक
वफादारी का भी प्रश्र है, चरणदास महंत का परिवार नेहरु गांधी परिवार का
वफादार रहा है। यह बात दूसरी है कि आज इस तरह की वफादारी की कितनी पूछ
परख है, आलाकमान की नजरों में। है तो छत्तीसगढ़ के इकलौते कांग्रेसी
लोकसभा सदस्य को मंत्री बनाने में ज्यादा सोच विचार की जरुरत नहीं है।
छत्तीसगढ़ और कांग्रेस का भला तो होगा ही, युवा पीढ़ी का भी भरोसा
कांग्रेस के प्रति बढ़ेगा। जिसकी आज कांग्रेस को ज्यादा जरुरत है।
गुटबाजी के भंवर जाल में फंसा कर महत्वाकांक्षी बड़े नेताओं ने कांग्रेस
की जो दुर्दशा कर रखी है, उससे निजात दिलाने का भी यही सर्वोत्तम तरीका
है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 17.08.2010
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