यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 30 अगस्त 2010

आर्थिक मंदी से देश को बचाने की जो अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता मनमोहन सिंह को मिली, उसका कारण भाजपा की राज्य सरकारें हैं

पिछले दिनों योजना आयोग के उपाध्यक्ष, प्रमुख अर्थशास्त्री और
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परम विश्वसनीय मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर
अंडे और टमाटर फेंके गए। कोलकाता में वहां के छात्रों ने यह किया। कहा जा
रहा है कि ये वामपंथी छात्र संगठन के छात्र थे। मोंटेक सिंह अहलूवालिया
तो केंद्र सरकार के प्रतीक हैं। फेंके गए अंडे, टमाटर उन तक नहीं पहुंच
पाए लेकिन प्रतीक के रूप में उनका विरोध तो हुआ। कारण विकास के नाम पर
महंगाई। जीडीपी कम न हो इसलिए महंगाई रोकने का कोई प्रयत्न नहीं। मनमोहन
सिंह हों या  वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत
घटाने के लिए तैयार नहीं। क्योंकि इससे जीडीपी पर असर पड़ता है। यही कारण
है कि मनमोहन सिंह की लोकप्रियता घटती जा रही है। केंद्र सरकार महंगाई से
देश की जनता को निजात नहीं दिला पा रही है। पूरी तरह से जनता को बाजार और
बाजार को नियंत्रित करने वालों के रहमोकरम के हवाले कर दिया गया है।
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी छत्तीसगढ़ की जीडीपी देश भर
में सबसे ज्यादा होने को गरीबों के हित में नहीं देखते। वे कहते हैं कि
इससे चंद लोगों को लाभ हुआ है लेकिन झंगलू मंगलू को लाभ नहीं हुआ। उन्हें
यह बात मनमोहन सिंह को समझाना चाहिए। अपने केंद्रीय नेताओं को समझाना
चाहिए। जो जीडीपी के चक्कर में पूरे देश को महंगाई की त्रासदी भोगने के
लिए बाध्य कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अनाज को सडऩे के लिए
छोडऩे के बदले गरीबों को मुफत बांट देना चाहिए तो कृषि मंत्री शरद पवार
कहते हैं कि यह संभव नहीं। अजीत जोगी उन्हें क्यों नहीं समझाते कि मुफत
बांटने से झंगलू मंगलू को लाभ होगा। उन्हें वे समझा भी नहीं सकते।
क्योंकि उनकी  वहां सुनने वाला कोई नहीं। वैसे  यहां भी उनकी सुनता कौन
है? समाचार पत्रों को विज्ञप्ति जारी कर अपने विचार अवश्य प्रगट कर सकते
हैं लेकिन विचारों की सत्यता जब किसी को हजम न हो तो क्या करें?
डा. रमन सिंह की सरकार उपलब्धियों पर उपलब्धियां हासिल करते रहे तो पुन:
सरकार बनाने का अवसर कांग्रेस को मिलेगा नहीं और अवसर नहीं मिलेगा तो
मुख्यमंत्री बनने का भी अवसर अजीत जोगी को मिलने वाला नहीं है।
कांग्रेसियों की सबसे बड़ी तकलीफ तो यही है कि केंद्र से आकर मंत्री डा.
रमन सिंह और उनकी सरकार की तारीफ के पुल बांधते हैं। ये लोग आलाकमान को
शिकायत भी करते हैं तो कोई सुनवायी नहीं होती। फिर असलियत को नकारा भी तो
नहीं जा सकता। केंद्रीय सांख्यकीय विभाग की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़,
गुजरात और उत्तराखंड के पास सबसे ज्यादा जीडीपी है। विश्व मंदी के समय भी
मंदी का असर भारत पर सबसे कम पड़ा तो इसके लिए दुनिया भर के हुक्मरान
मनमोहन सिंह की  तारीफ के पुल बांधते हैं। अमेरिकी राष्टपति कहते हैं
कि जब मनमोहन सिंह बोलते हैं तो उन्हें दुनिया भर में बड़े ध्यान से सुना
जाता है। कारण यह जीडीपी ही है। दुनिया आश्चर्य से देखती है कि भारत पर
आर्थिक मंदी का प्रभाव क्यों नहीं पड़ा? तो उन्हें समझ में आता है कि
चूंकि भारत का प्रधानमंत्री एक अर्थशास्त्री है, इसलिए उसने भारत को मंदी
से बचा लिया।

शेष दुनिया को यह तो मालूम नहीं कि महंगाई ने भारतीयों पर क्या कहर ढाया
है। जीडीपी के आंकड़े का प्रमुख कारण वे राज्य सरकारें हैं जो कांग्रेस
के अधीन नहीं हैं बल्कि प्रतिपक्ष की पार्टी भाजपा के पास है। भाजपा के
मुख्यमंत्रियों की उपलब्धि का लाभ कांग्रेस के प्रधानमंत्री को हो रहा
है। नरेंद्र मोदी पर कितना भी सांप्रदायिकता का आरोप लगाया जाए लेकिन असल
में जब तक गुजरात की जनता उनके साथ है तब तक उनके मुख्यमंत्री बने रहने
में प्रजातांत्रिक ढंग से तो कोई रूकावट नहीं है। भले ही उन्हें अमेरिका
वीजा देने से इंकार करे। नीतीश कुमार जैसा बिहार का मुख्यमंत्री उनके साथ
विज्ञापन में स्वयं को सम्मिलित करने का विरोध करे। फिर भी लोकप्रियता के
मामले में देश भर में उनका नंबर राष्टरीय नेताओं के बीच चौथा है। पहला
नंबर राहुल गांधी, दूसरा नंबर अटलबिहारी वाजपेयी का, तीसरा नंबर सोनिया
गांधी का तो चौथा नंबर नरेंद्र मोदी का। देश के किसी भी राज्य का कोई भी
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसी लोकप्रियता और स्वीकृति राष्ट्रिय  स्तर
पर नहीं रखता।

सांप्रदायिकता के भंवरजाल में उलझाकर भाजपा को अछूत बनाने का कम प्रयास
नहीं किया गया। उसके रामजन्म भूमि आंदोलन में सम्मिलित होने का
दुष्प्रचार कम नहीं किया गया। नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के बड़े बड़े
नेताओं को राजनीति के विस्तृत फलक से हटाने के लिए न्याय और कानून का भी
सहारा लिया गया है। भगवा आतंकवाद के नाम पर बदनाम करने की कम कोशिशें
नहीं की गयी। इंडिया साइनिंग के नाम पर राजग सरकार की आलोचना करने वाले
भूल रहे हैं कि भाजपा के ही निष्क्रिय नेता अटलबिहारी वाजपेयी आज भी जनता
में कितने लोकप्रिय हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री कांग्रेस के
मुख्यमंत्रियों से योग्य साबित हुए हैं। इसीलिए जनता ने उन्हें दोबारा,
तिबारा चुना। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कोंग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने
कांग्रेस का ऐसा कबाड़ा किया कि दो दो चुनाव हो गए, सत्ता में लौटने की
बाट ही जोह रहे हैं, कांग्रेसी। तीसरी बार भी अवसर न मिले तो कोई आश्चर्य
की बात नहीं है।

कोंग्रेस में राष्ट्रिय  स्तर पर राहुल गांधी और सोनिया गांधी ही सर्वाधिक
लोकप्रिय और स्वीकार्य नेता हैं। अपनी छवि साफ सुथरी बनाए रखने के लिए
सत्ता से जो दूरी इन दोनों ने बना रखी है, वही इनकी लोकप्रियता का कारण
है। सत्ता पर सीधे न होने से आरोप के लिए जिम्मेदार मनमोहन सिंह हैं,
राहुल और सोनिया नहीं। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनना स्वीकार किया
होता तो बात बदल जाती। राहुल भी सत्ता संभालने के लिए मानसिक रूप से कहां
तैयार दिखायी देते हैं। वे चाहते हैं कि पार्टी को पूर्ण बहुमत मिले तब
वे प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालें। जबकि इंदिरा गांधी ने लाल बहादुर
शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में प्रवेश किया
था। फिर शास्त्री जी की असामयिक मृत्यु के बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनाया
गया था। राहुल गांधी मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के लिए
तैयार नहीं हैं। आज कांग्रेस  में इन दोनों मां बेटे के सिवाय कोई अन्य
नहीं है जो पार्टी की कमान की दावेदारी कर सके।

जबकि भाजपा ने अपने एक अंजान से कार्यकर्ता नितिन गडकरी को पार्टी का
राष्ट्रिय  अध्यक्ष बना दिया। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बिना किसी विरोध
के स्वीकार भी कर लिया। बिना किसी विरोध के सत्ता परिवर्तन हो गया। भाजपा
में एक निरंतरता दिखायी देती है। टीम वर्क दिखायी पड़ता है। छत्तीसगढ़
में ही भटगांव उपचुनाव की तैयारी भाजपा ने प्रारंभ कर दी लेकिन कांग्रेस
में अभी कोई सुगबुगाहट नहीं है। सोनिया गांधी को पुन: राष्ट्रीय 
अध्यक्ष चुने जाने की तैयारी में कांग्रेसी व्यस्त हैं। नामांकन पत्र में
किसी तरह से समर्थक या प्रस्तावक बन जाएं, इसी के जुगाड़ में लोग लगे हुए
हैं। जिससे सोनिया गांधी तक यह संदेश पहुंच सके कि कौन कितना बड़ा समर्थक
है, उनका। फर्क दोनों पार्टियों का स्पष्ट दिखायी देता है।

- विष्णु सिन्हा
30-08-2010