भाजपा के नए प्रदेश प्रभारी जगत प्रकाश नड्डï अपना एक दिवसीय रायपुर
दौरा कर चले गए। असंतुष्टों को स्पष्ट चेतावनी भी दे गए कि पार्टी फोरम
से बाहर असंतोष व्यक्त किया तो खैर नहीं। जो भी करना है पार्टी के
पदाधिकारियों से कहें, बाहर किसी अन्य से नहीं। जो लोग उम्मीद कर रहे थे
कि पार्टी के सबसे बड़े असंतुष्ट नेता अपना असंतोष व्यक्त करेंगे,
उन्हें समझ में तो आ गया कि असंतोष की अभिव्यक्ति करना खतरे से खाली नहीं
है। नड्डï ने डा. रमन सिंह की सरकार की ऐसी तारीफ की मीडिया के समक्ष कि
समझने वाले समझ गए कि प्रदेश प्रभारी का रूख किस तरफ है बल्कि वे स्पष्ट
संदेश दे गए कि भाजपा सरकार की हैट्रिक की तैयारी अभी से प्रारंभ कर दी
जाए। मतलब साफ है कि बेकार की बातों में उलझने के बदले अगला चुनाव जिसमें
अभी पर्याप्त समय है, करीब 3 वर्ष से अधिक उसकी तैयारियां प्रारंभ कर दी
जाए।
जो लोग समझते हैं कि राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटने के
बाद डा. रमन सिंह की पकड़ आलाकमान पर कमजोर हुई है और असंतोष प्रदर्शित
कर अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है, उन्हें नड्डï के रूख से समझ में तो
आ जाना चाहिए कि डा. रमन सिंह की स्थिति आज भी आलाकमान की दृष्टि में
अच्छी है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज डा. रमन सिंह की
लोकसभा में तारीफ करती हैं। उनके गरीबों को 2 रू. किलो चांवल देने की
सुव्यवस्थित तरीके की तारीफ होती है। इसकी तारीफ केंद्र सरकार भी करती है
और माना जा रहा है कि डा. रमन सिंह की सार्वजनिक वितरण प्रणाली देश में
सबसे श्रेष्ठ है। गरीबों को अनाज हर हाल में 7 तारीख को दे दिया जाता
है। नक्सल समस्या के प्रति केंद्र सरकार को जागरूक करने का काम भी डा.
रमन सिंह ने किया और आज परिणाम यह है कि समस्या की गंभीरता से
प्रधानमंत्री तक सहमत हैं। आज कितने ही बड़े नक्सली नेता जेल में हैं तो
कितने ही मारे गए हैं।
अंग्रेजीदां साहित्यकार और पत्रकारों की बात जानें दें। क्योंकि उनकी सोच
का आधार ही आधारहीन है तो नक्सली आंदोलन की वास्तविकता से देश को परिचित
कराने का श्रेय भी डा. रमन सिंह को है। आजाद की मौत के बाद बदला लेने की
बात करने वाले नक्सली आज 6 माह के लिए सीज फायर के लिए तैयार होने की बात
कह रहे हैं। कह रहे हैं कि जेल में बंद नक्सली ही शांति वार्ता में भाग
लेंगे। जेल में बंद नक्सलियों को सरकारें छोड़े। वे पूरे देश के लिए
नीतियों पर चर्चा करना चाहते हैं। मतलब साफ है कि रस्सी जल गयी है लेकिन
बल अभी नहीं गया है। कल ही झारखंड में एक और बड़ा 10 लाख का इनामी नेता
पुलिस की पकड़ में आया है जो आंध्रप्रदेश से है। गणपति और किशन जी जैसे
नेता एक बार पुलिस के हत्थे चढ़े तो नक्सल समस्या को बिखरने में समय नही
लगेगा।
दरअसल यह सोच सही नहीं है कि गरीबी के कारण नक्सलियों का प्रभाव बढ़ा है।
लोकसभा में ही विभिन्न पार्टियों के नेताओं के द्वारा गरीबों के दिए
आंकड़े कहते हैं कि 50 प्रतिशत आबादी गरीब है। ऐसी स्थिति नक्सली विस्तार
का कारण होती तो देश की आधी आबादी को नक्सली हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा
है, तो नहीं। छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के करीब 50 मजदूर मजदूरी
के लिए लेह जाते हैं। जिसमें से कुछ लोगों के बादल फटने से मृत्यु का
समाचार है। ये लोग सड़क बनाने के लिए मजदूरी करने गए हैं। गरीबी ही
इन्हें भरण पोषण के लिए मजदूरी करने इतने दूर ले गयी। कहां छत्तीसगढ़ और
कहां लद्दाख का लेह क्षेत्र। किसी भी तरह की समानता नहीं है। ये चाहते तो
पास में ही बस्तर है। जाकर नक्सली बन जाते। रोटी रोजी का जुगाड़ हो जाता
लेकिन हर किसी को गरीबी हथियार उठाने के लिए बाध्य नहीं करती।
भारतीय मानसिकता अलग प्रकार की है। इस देश में दरिद्र नारायण का दर्शन
है। आम आदमी गलत ढंग से धन कमाने को उचित नहीं समझता। यह बात दूसरी है कि
अब यह दर्शन कमजोर पड़ा है और धन कमाने के लिए नैतिक मूल्यों को दरकिनार
करने में भी लोगों को ज्यादा तकलीफ नहीं होती। फिर भी किसी की हत्या कर
धन कमाने की मानसिकता अंधी दौड़ नहीं बनी है। कुछ चतुर लोगों ने अपना
उल्लू सीधा करने के लिए तरह तरह के नीति सिद्घांत गढ़ लिए हैं और लोगों
की कमजोरी को अपनी ताकत बनाकर दुरूपयोग कर रहे हैं। माक्र्सवाद हो या
माओवाद भारतीय नजरिया नहीं है। धर्मपरायण जनता को पाप पुण्य का बोध है और
किसी भी धर्म को मानने वाले हों, धर्मभीरू हैं। कितनी ही जातियों में
बंटी देश की जनता अभी भी पुराने नियम कायदों को मानती है। किसी भी
निर्दोष की अकारण हत्या की तो कोई सोच ही नहींहै। नक्सली भी जिन नागरिकों
एवं सशस्त्र बल के जवानों की हत्या करते हैं, वे कोई गरीबी के कारण नहीं
है। इसी से समझ में आता है कि इन हत्याओं के पीछे विकास की कोई कहानी
नहीं है बल्कि सत्ता प्राप्ति और धन प्राप्त करने की लालसा है।
डा. रमन सिंह ने समस्या की नब्ज पहचानी है। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि
नक्सलियों का असल उद्देश्य क्या है। वे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का
विकास चाहते हैं लेकिन विकास करने दें तब न। विकास की राह का सबसे बड़ा
अड़ंगा नक्सली ही है। जो लोग सोचते हैं कि विकास हो जाएगा तो नक्सल
समस्या समाप्त हो जाएगी, वे ठीक सोचते हैं लेकिन यह बात नक्सली भी समझते
हैं और इसी कारण वे विकास होने नहीं देना चाहते। सड़कें उखाड़ देना, पुल
उड़ा देना, पंचायत भवन, स्कूल उड़ा देने का अर्थ होता है कि विकास की
सुविधा आदिवासियों तक न पहुंचे।
एक बार इन क्षेत्रों से नक्सलियों को खदेड़ दिया गया तो विकास को पहुंचने
में वक्त नहीं लगेगा। बड़े उद्योगों के विरोध के पीछे भी यही भावना है।
एक बार बड़े उद्योग लगे तो रोजी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और सुख से रहता
कौन आदमी नृशंस हत्याओं के लिए तैयार होगा? छत्तीसगढ़ को जैसे
मुख्यमंत्री की वास्तव में जरूरत थी, वैसा ही मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ ने
डा. रमन सिंह को चुना है। विकास और खुशहाली की जो नई कहानी छतीसगढ़ में
लिखी जा रही है, यह बहुत समय नहीं हुआ जब अकल्पनीय थी। जब सही काम करने
वाले के काम का जवाब विपक्ष के पास नहीं होता तब वह चरित्र हत्या पर
उतारू होता है। यही डा. रमन सिंह की नक्सलियों के साथ मिली भगत कहकर किया
जा रहा है लेकिन बात इतनी अविश्वनीय है कि किसी के भी गले के नीचे नहीं
उतरती और आरोप स्वयं धराशायी हो जाता हैं। छत्तीसगढ़ जैसे अति पिछड़े
क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने वाले और समस्याओं से जूझने की क्षमता
रखने वाले मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की जितनी भी तारीफ की जाए कम है।
प्रदेश प्रभारी नड्डï ने पार्टी कार्यकर्ताओं को हैट्रिक की तैयारी के
लिए कहा है लेकिन हैट्रिक क्या डा. रमन सिंह आजीवन छत्तीसगढ़ के
मुख्यमंत्री रहे तो आश्चर्य की बात नहीं। जिसके हृदय में गरीबों की भूख
के प्रति संवेदना है, वह व्यक्ति दिलों पर राज करना जानता है और किसी भी
तरह की राजनीति उसका तोड़ नहीं हो सकती। डा. रमन सिंह की सरकार तो भाजपा
के लिए एक उपलब्धि की तरह है।
- विष्णु सिन्हा
9-7-२०१०