हिस्सा कफर्यू के साये में है तो देखते ही गोली मारने के आदेश भी दे दिए
गए हैं। सड़कों पर सशस्त्र बल के जवान गश्त लगा रहे हैं। स्वाभाविक है कि
घर में रहकर अपनी दैनंदिन की आवश्यकता की पूर्ति हर किसी के लिए तो संभव
नहीं है। फिर कफर्यू के साये में आखिर कितने दिन तक लोगों को घर से
निकलने से रोका जा सकता है। उमर अब्दुल्ला की सरकार पूरी तरह से असफल
सिद्घ हो रही है। सरकार बातचीत कर शांति का कोई रास्ता तलाश करना चाहती
है तो लोग बातचीत के लिए ही तैयार नहीं हैं। पुलिस की गोलियों से अभी तक
5 लोगों के मारे जाने की खबर है। उमर अब्दुल्ला के राजनैतिक विरोधियों
के लिए तो यह अवसर की तरह है। आम नागरिक राजनैतिक दलों एवं पाकिस्तान के
बीच मोहरा बना हुआ है। मनमोहन सिंह की सरकार से काश्मीर संभल नहीं रहा
है। वे तो इतना भी नहीं कर रहे हैं कि विधानसभा को स्थगित कर राष्टपति
शासन लगाकर घाटी को अपने नियंत्रण में ले लें। क्योंकि राज्य सरकार के बस
में नहीं है, समस्या से निपटना।
अलगाववादी पाकिस्तान के समर्थक पाकिस्तान से प्राप्त धन के सहारे काश्मीर
को अशांत क्षेत्र में बदलने में सफल हो गए हैं। जब सशस्त्र बलों पर पत्थर
फेंकने के लिए युवाओं को धन मिल रहा हो आतंकवादियों के द्वारा और सब कुछ
केंद्र सरकार की जानकारी में है तब केंद्र सरकार सिर्फ पाकिस्तान से
चर्चा करने और अपमान सहने के और तो कुछ करती दिखायी नहीं पड़ती।
सहिष्णुता, करूणा, दरियादिली का अर्थ मूर्खता या कायरता नहीं होता। जब
भारत के लोग ही अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तान का मन भारत के प्रति
साफ नहीं है तब सरकार किस मुगालते में हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री तक
भारत आकर आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहरा गए। अमेरिका में पकड़े
गये आतंकवादी हेडली ने भी सब कुछ साफ तो कर दिया कि मुंबई हमले में
आईएसआई का हाथ था। अमेरिकी फौज के ही दस्तावेज कहते हैं कि काबुल में
भारतीय दूतावास पर आईएसआई ने हमला करवाया था। भारत पाकिस्तान के बीच
कारगिल युद्घ के बाद युद्घ विराम हुआ लेकिन पाकिस्तान की तरफ से
आतंकवादियों के भारत प्रवेश के लिए रास्ता साफ करने के लिए गोली बारी अभी
भी की जाती है।
आज काश्मीर की स्थिति फिर से इतनी खराब हो चुकी है कि रेल कर्मचारी डरकर
भाग रहे हैं। पेट्रोलियम पदार्थों को लेकर काश्मीर जाने वाले टैंकर चालक
श्रीनगर जाने से इंकार कर रहे हैं। पहले भी जब ट्रक वालों ने काश्मीर
जाने से इंकार किया था तब काश्मीर के एक राजनैतिक दल ने पाकिस्तान के
कब्जे वाले काश्मीर की तरफ मार्च करने का आव्हान किया था। अमरनाथ की
यात्रा पर गए लोग श्रीनगर में कफर्यू के कारण होटलों में फंस गए हैं।
शांति व्यवस्था के नाम पर और काश्मीरियों का दिल जीतने के लिए फौज को
काश्मीर से हटाया गया। चर्चा तो इस बात की भी है कि फौज को जो
विशेषाधिकार कानून बनाकर दिया गया है, उसे भी वापस ले लिया जाए। जिसके
तहत कहीं भी जांच, गिरफतारी का जो अधिकार फौज के पास है, वह समाप्त किया
जाए। ऐसी सोच को कोई भी उचित नहीं बता सकता।
जरूरत तो इस बात की है अर्धसैनिक बलों के बदले काश्मीर की व्यवस्था फौज
को सौंप दी जाए और राष्टपति शासन लगा दिया जाए। केंद्र सरकार किस तरह
से चंद लोगों के कारण पूरी काश्मीर घाटी में रहने वालों को परेशान होता
देख सकती है। बहुत पुरानी बात नहीं है जब काश्मीर में शांति थी और देश
दुनिया से पर्यटक श्रीनगर और काश्मीर पहुंचते थे। काश्मीरियों की रोजी
रोटी का जुगाड़ भी आसानी से हो रहा था। आज तो सब कुछ चौपट दिखायी दे रहा
है। कफर्यू के कारण बहुतेरों के घर में चूल्हे पर खाना भी न पक रहा हो तो
कोई आश्चर्य की बात नहीं। चंद लोगों के दबाव में होने वाले उत्पात के
कारण बहुसंख्यक निर्दोष नागरिकों का जीना मुश्किल हो रहा है तो उनकी भी
चिंता करने की जरूरत है। उन लोगों को पहचानने की और गिरफतार करने की
जरूरत है जो काश्मीर में अशांति फैलाने का कारण बन रहे हैं।
पाकिस्तान जैसा छोटा सा मुल्क भारत जैसे विशाल मुल्क को परेशान कर सकता
है तो यह भारतीय हुक्मरानों की ही सोच का विषय है कि ऐसा क्यों कर हो
रहा है? यह स्थिति हमारी कमजोरी का प्रतीक है या ताकत का। मुंबई हमले के
बाद मनमोहन सिंह ने कहा कि जब मुंबई हमले के जिम्मेदार लोगों को
पाकिस्तान सजा नहीं देता तब तक उससे कोई बात नहीं की जाएगी लेकिन वक्त
गुजरा और बातचीत प्रारंभ हो गयी। ऐसी बातचीत जिससे कोई हल तो निकलना
नहीं है और पाकिस्तान की गतिविधियां भारत में अशांति फैलाने की बढ़ती ही
जा रही है। पाकिस्तान के परमाणु शक्ति संपन्न होने का भय कब तक हम खाते
रहेंगे। पाकिस्तान पूरी तरह से दादागिरी दिखा रहा है और हम उससे शांति की
उम्मीद करते हैं। ऐसा नहीं है कि दुनिया के अन्य देश पाकिस्तान की हरकतों
से परिचित नहीं है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भारत में ही आकर पाकिस्तान
की असलियत बयान कर गए। अमेरिका को हर बात की अच्छी तरह से जानकारी है।
फिर भी वह संसाधनों से, धन से उसकी मदद करने में पीछे नहीं है।
अब तो यह भी कहा जा रहा है कि ओबामा की जो नवंबर में भारत यात्रा होने
वाली है तब तक काश्मीर के मामले को पाकिस्तान गरमाए रखना चाहता है। वह
अमेरिका को समझाना चाहता है कि काश्मीरी भारत के साथ नहीं रहना चाहते।
भारत काश्मीर को संभाल नहीं पा रहा है। जब काश्मीरी जनता ही भारत के साथ
रहना नहीं चाहती तो पाकिस्तान क्या कर सकता है? जब काश्मीर से काश्मीरी
पंडितों को पलायन के लिए बाध्य किया गया तब ही मंशा स्पष्ट हो गयी थी कि
भविष्य की योजना आतंकवादियों की क्या है? और आतंकवादी कौन थे? पाकिस्तान
से भेजे गए। अमरनाथ में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन आबंटन का जब विरोध
हुआ तब भी सब कुछ स्प्ष्ट था। उस समय तो काश्मीर में गुलाम नबी आजाद
मुख्यमंत्री थे। कांगे्रस के मुख्यमंत्री थे। काश्मीरियों को शांत करने
के लिए आबंटन रद्द कर दिया गया।
न तो महंगाई के मामले में केंद्र सरकार कुछ कर पा रही है और न ही काश्मीर
समस्या के निपटारे के लिए। पाकिस्तान से भारत 4 बार युद्घ कर चुका। हर
बार पाकिस्तान को ही हार का मुख देखना पड़ा। कारण भी स्पष्ट था। भारत
के पास सशक्त नेतृत्व था। लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, अटलबिहारी
वाजपेयी जैसा नेतृत्व था लेकिन वर्तमान नेतृत्व में वह बात नजर नहीं आती।
काश्मीर में अशांति है, ही। पंजाब में भी आतंकवादी पकड़े जाते हैं। ये भी
पाकिस्तान से ही आते हैं। देश के अंदर नक्सल समस्या है। स्थानीयता की आड़
में रोटी सेंकने वालों की कमी नहीं। आज भारत को शक्तिशाली नेतृत्व की
जरूरत है। अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ तो अमेरिका ने ओबामा के पीछे
अपनी ताकत लगा दी। इराक, अफगान में वह लडऩे आ गया। अपने देश की सुरक्षा
व्यवस्था सशक्त की। आतंकवाद की दूसरी घटना नहीं होने दी। हम अपने घर को
ही नहीं संभाल पा रहे हैं। और कुछ नहीं तो अमेरिका से ही सीखें।
-विष्णु सिन्हा
4-7-2010
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