मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दे दी है। मतलब साफ है कि इसी सत्र में विधेयक को
मंजूरी दिलाने का सरकार इरादा रखती है। परमाणु दायित्व विधेयक पर सरकारी
प्रस्ताव का समर्थन भाजपा ने करने का इरादा व्यक्त किया है। भाजपा के
इरादे पर यादवों सहित वाममोर्चे ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस के साथ
भाजपा ने सौदा किया है। सीबीआई नरेंद्र मोदी को सोहाराबुद्दीन मामले में
नहीं फंसाएगी। एक समाचार पत्र में समाचार भी प्रकाशित हुआ है कि सीबीआई
ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दिया। यह वैसा ही आरोप है जैसा आरोप महंगाई
के मामले में यादवों ने सरकार के विरूद्घ मतदान कर दिया। तब भाजपा ने
आरोप लगाया था कि सीबीआई के दबाव में इन लोगों ने सरकार की खिलाफत नहीं
की। जबकि सदन के बाहर महंगाई के विरूद्घ ये समवेत स्वर में खिलाफत कर रहे
थे।
कितना सच है या कितना झूठ यह तो सरकार में बैठे लोग ही जानें लेकिन आरोप
प्रत्यारोप ने सीबीआई की छवि को खराब ही किया है। उत्तरप्रदेश की एक सभा
में कांग्रेस के दिग्विजयसिंह ने मायावती को धमकाने के लिए सीबीआई का नाम
लिया था। यह तब की घटना है जब उत्तरप्रदेश की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
रीता बहुगुणा को मायावती ने जेल में डाल दिया था। दिग्विजय सिंह ने तो
स्पष्ट कहा था कि मायावती को नहीं भूलना चाहिए कि उनके पास सीबीआई है।
सत्ता में बैठे लोग सत्ता की ताकत का गलत उपयोग करते रहे हैं। इसके लिए
उदाहरण और आरोपों की कमी नहीं है लेकिन आजकल जिस तरह का उपयोग या
दुरूपयोग की बात नित्य सामने आती है, यह स्थिति स्वस्थ लोकतंत्र के लिए
अच्छी बात नहीं है। हमाम में तो सभी नंगे होते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप
से नग्रता प्रदर्शित होने लगे तो इसे अच्छी स्थिति नहीं कहा जा सकता।
संसद तक में समर्थन स्वार्थ के आधार पर होने लगे तो फिर वह जगह कौन सी
बचती है, जहां से आदमी न्याय की उम्मीद करे।
उच्चतम न्यायालय कहता है कि अनाज को सड़ाने से अच्छा है कि गरीबों को
मुफत बांट दिया जाए तो कृषि मंत्री शरद पवार इससे सहमत नहीं हैं। वे तो
स्पष्ट कहते हैं कि ऐसा संभव नहीं। जब सरकार उच्चतम न्यायालय की ही सलाह
को मानने के लिए तैयार नहीं तो फिर किसकी बात मानेगी। उचित अनुचित के
फैसले के लिए अंतिम स्थान तो उच्चतम न्यायालय ही है। आज जो सरकार,
प्रजातंत्र, संविधान पर जनता का विश्वास है तो उसका कारण न्यायालय ही है।
उम्मीद की आखिरी किरण न्यायालय की बात भी जब सरकार मानने से इंकार कर
देगी तो फिर आदमी किससे उम्मीद करेगा। जनता ने तो सरकार चलाने के लिए
पूर्ण बहुमत किसी को नहीं दिया। चुने गए लोगों ने अपना बहुमत बना लिया और
शासन कर रहे हैं। संवैधानिक रूप से यह गलत नहीं है लेकिन सबको खुश रखना
बहुमत को कायम रखने के लिए सरकार को कई गैरवाजिब समझौता करने के लिए भी
बाध्य करता है।
साम, दाम, दंड, भेद सभी का उपयोग करती तो सरकार दिखायी पड़ती है। राज्य
में अपनी सरकार को सुरक्षित रखना है तो केंद्र में सहयोग करो। लेनदेन के
लिए पूरे अवसर सुलभ हैं। परमाणु दायित्व विधेयक में ही केंद्र सरकार ने
कुछ बातें भाजपा की मान ली तो वह सरकार के विधेयक को समर्थन देने के लिए
तैयार है। बदले में नरेंद्र मोदी को सीबीआई क्लीन चिट दे तो क्या चाहिए?
वह तो अदालत की अवमानना का प्रश्र नही होता तो न्यायाधीश के आदेशों पर
भी आरोप लगाया जा सकता है। राम जेठमलानी ने उच्चतम न्यायालय में कह ही
दिया है कि रिटायर्ड होने के एक दिन पहले न्यायाधीश ने सोहराबुद्दीन
मामले की जांच सीबीआई को सौंपकर उचित नहीं किया। जबकि रिटायर्ड होने पर
सरकार ने उन्हें पुन: सरकारी पद से नवाजा। साफ मतलब है कि न्यायाधीश ने
पद के लालच में गलत आदेश दिया और इस तरह से सीबीआई को नरेंद्र मोदी को
कठघरे में खड़े करने का अवसर दिया। जिसका अर्थ होता है कि केंद्र सरकार
ने राजनैतिक उपयोगिता के लिए न्यायालय का दुरूपयोग किया। अब इसमें कितना
सच है या कितना झूठ यह अलग बात है लेकिन जनता को तो संदेश मिल ही गया कि
विश्वसनीय कोई नहीं है। ऐसी स्थिति निर्मित करना राजनीति के लिए भले ही
फायदेमंद हो लेकिन विश्वास के लिए तो नुकसानदेय है।
जनता तो यह भी जानती है कि सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। बाहर
बाहर जो झगड़ा जनता के हित के नाम पर दिखायी देता है, वह जनता को ही
बेवकूफ बनाने का तरीका है। जो जनता को अच्छी तरह से मूर्ख बना सकता है,
वह सत्ता का हकदार हो जाता है। अब तो देश में कोई भी ऐसी राजनैतिक पार्टी
शायद ही हो जिसने किसी न किसी रूप में सत्ता का स्वाद न चखा हो। सभी की
सत्ता से जनता अच्छी तरह से परिचित है। जनता को भी चुनाव अच्छे बुरे में
नहीं, कम बुरे या ज्यादा बुरे में करना पड़ता है। उसकी स्थिति तो ऐसी है
कि उसके हित के नाम पर छुरी मुर्गी पर गिरे या मुर्गी छुरी पर नुकसान
मुर्गी का ही होना है। जनता महंगाई से पीडि़त है। यह सर्वविदित सत्य है
लेकिन सरकार अनाज को सड़ते तो देख सकती है लेकिन उच्चतम न्यायालय के
सुझाव पर कि मुफत बांट दो अमल करने को तैयार नहीं है। नेता जनता की तकलीफ
महंगाई पर घडिय़ाली आंसू बहा सकते हैं लेकिन उन्हें भी चिंता अपनी है। वे
लोकसभा की कार्यवाही अपने हंगामे से रोक सकते हैं कि उनका वेतन बढ़ाया
जाए। जो संसद में चुप बैठे हैं, वे भी सहमत है कि सरकार वेतन बढ़ाए।
सरकार भी ढोंग करती है कि वह वेतन वृद्घि के पक्ष में नहीं है लेकिन फिर
वह वेतन वृद्घि के लिए तैयार हो जाती है। 16 हजार से बढ़कर वेतन 80 हजार
रूपये तो नहीं हो रहा है लेकिन 50 हजार रूपये करने के लिए सरकार तैयार
है। मतलब वर्तमान वेतन का तीन गुणा। जनप्रतिनिधियों का वेतन बढ़ गया।
नौकरशाहों का वेतन बढ़ गया। न्यायाधीशों का वेतन बढ़ गया। अब उनके अवकाश
प्राप्त करने की आयु भी बढ़ाने का सरकार इरादा रखती है। कुल जमा आबादी का
ये कितने प्रतिशत है। इनके लिए तो महंगाई वरदान बनकर आयी लेकिन आम जनता
की आय वृद्घि के विषय में जनता स्वयं ही सोचें। स्वयं ही प्रयास करे। उसे
महंगाई से स्वयं ही निपटना है। महंगाई के विरूद्घ प्रदर्शन कर नेताओं ने
अपने कर्तव्य की इतिश्री तो कर ली।
सरकार की प्राथमिकता है कि कामनवेल्थ गेम्स अच्छी तरह से हो जाएं।
क्योंकि ये राष्ट्र की प्रतिष्ठï का प्रश्र है। इसके लिए 11 उच्च पदस्थ
नौकरशाहों को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। दुनिया को दिखाना है कि हम किसी
से कम नहीं हैं। भ्रष्टïचार है। सारी दुनिया देख रही है कि भ्रष्टïचार
की भारत में क्या स्थिति है? राष्टमंडल खेलों की व्यवस्था तक में
भ्रष्टïचार का समुद्र बह रहा है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सोनिया
गांधी कह रही हैं कि भ्रष्टïचारियों को बख्शा नहीं जाएगा लेकिन
राष्टमंडल खेलों के संपन्न होने के बाद। बाद में क्या होता है, यह
सबको पता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दुनिया के नजर में श्रेष्ठ
हुक्मरान हैं लेकिन भारतीयों की नजर में पत्रिकाओं के आंकलन कहते हैं कि
देश में मनमोहन सिंह की लोकप्रियता सबसे नीचे हैं, लेकिन विश्व में सबसे
ऊपर। अब जयपाल रेड्डी रक्षा मंत्री से कह रहे हैं कि फौज राष्ट्रमंडल
खेलों मे बिना कुछ लिए सहयोग करे। आगे आगे देखिए, होता है क्या?
- विष्णु सिन्हा
20-8-2010