यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 28 अगस्त 2010

देश की वर्तमान स्थिति में गृहमंत्री चिदंबरम को सोच समझकर शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए

केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम को सोच समझकर शब्दों का उपयोग करना
चाहिए। भगवा आतंकवाद जैसे शब्द का उपयोग कर वे क्या हासिल कर लेंगे? दो
चार लोगों को पकड़ लेने का यह अर्थ नहीं होता कि भगवा आतंकवाद का प्रतीक
बन गया है। जब कुछ मुसलमानों के आतंकी होने के कारण इस देश ने इस्लामिक
आतंकवाद को स्वीकार नहीं किया और माना कि आतंकवाद का संबंध किसी धर्म से
नहीं है तब कुछ हिंदुओं के आतंकवाद के मामले में सम्मिलित होने से यह
कैसे माना जा सकता है कि भगवा आतंकवाद का प्रतीक है? चंद सिरफिरे लोग भले
ही वे किसी भी धर्म के अनुयायी हों, आतंकवाद की तरफ आकर्षित होते हैं तो
इसे धर्म से जोडऩा न केवल खतरनाक परंपरा होगी बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष
स्वरूप के साथ भी अन्याय होगा। भारत में लाखों की संख्या में भगवाधारी
साधु संन्यासी हैं। भगवा रंग राष्ट्रीय झंडे में भी स्थित है। बहुसंख्यक
आबादी के लिए भगवा रंग आस्था का भी प्रतीक है।

भगवा रंग वास्तव में आतंकवाद का प्रतीक होता तो इस देश का इतिहास कुछ और
होता। भारत में ऋषि मुनियों की लंबी परंपरा और इतिहास है। जब राक्षस धर्म
कर्म के मामले में अवरोध खड़ा करते थे तब ये ऋषि मुनि राजाओं से बचाव की
उम्मीद करते थे। भारत की पौराणिक कथाओं में इनकी गाथाएं ही गाथाएं है।
हिन्दू  आतंकवादी होता या धर्म के मामले में सहिष्णु न होकर कट्टर होता
तो क्या यह देश धर्मनिरेपक्ष होता? 2-4 सौ लोग बैठकर संविधान तो बना सकते
हैं लेकिन जनता की इच्छा के विरूद्घ उसे मनवाना क्या संभव है? हिंदुओं ने
ही माना कि इस देश को धर्मनिरपेक्ष रहना चाहिए। हिन्दुओ  पर विश्वास कर
ही मुसलमान भाई पाकिस्तान नहीं गए। धर्म के आधार पर ही तो पाकिस्तान बना
था। मुसलमानों को अलग देश चाहिए, इसीलिए तो पाकिस्तान बना था। तब भारत को
धर्मनिरपेक्ष रहने की क्या जरूरत थी? फिर भी भारत ने धर्मनिरपेक्षता को
स्वीकार किया। बहुसंख्यक हिंदुओं ने धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार नहीं किया
होता तो क्या भारत धर्मनिरपेक्ष रह सकता था?

आज केंद्र में कांग्रेस की सरकार है। गठबंधन की सरकार है। गठबंधन का आधार
ही धर्मनिरपेक्षता है। मंत्रिमंडल में अधिकांश हिंदू ही हैं। यहां तक कि
विपक्ष  की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा भी धर्मनिरपेक्ष है। काश्मीर से
काश्मीरी पंडितों को भगाया गया। अब सिखों से कहा जा रहा है कि इस्लाम
स्वीकार करो या भाग जाओ। हिंदू कट्टर होता तो इस स्थिति को स्वीकार
करता? फारूख अब्दुल्ला कह रहे हैं संसद में कि काश्मीरियों ने भारत के
साथ रहने का निर्णय किया। काश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के पास है, उसे
वापस प्राप्त करने की कोई बात ही नहीं करता। यह भारतीय सोच है। भारत का
मुसलमान निर्णय करता है कि आतंकवाद का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। यह
भारतीय मानसिकता है। अहिंसा का सिद्घांत दुनिया को देने वाला भारत
आतंकवादी नहीं हो सकता तो भगवा आतंकवाद जैसी कोई चीज भी नहीं हो सकती।
आतंकवादी किसी का सगा नहीं हो सकता। मनोवैज्ञानिकों से पूछें तो आतंकवादी
मनोरोगी हैं। उसका उपचार होना चाहिए। किसी भी इंसान की हत्या करने से
किसी को खुशी मिले तो वह सामान्य इंसान नहीं है। मनुष्य की हत्या से बड़ा
तो कोई पाप नहीं होता, कोई अपराध नहीं होता। करूणा, सहिष्णुता, अहिंसा की
शिक्षा देने वाला भारत मनोरोगी नहीं हो सकता। चंद लोग हो सकते हैं। जिनका
दिमाग बीमार हो। वे वह काम करें जो सामान्य व्यक्ति करना तो दूर की बात
है, करने के विषय में सोच भी नहीं सकता तो उस पर भगवा आतंकवाद चस्पा नहीं
किया जा सकता। 4 भगवाधारी यदि हिंसक गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं
तो इसका अर्थ यह नहीं है कि एक करोड़ भगवाधारियों का अपमान किया जाए।
देश में 80 लाख से लेकर 1 करोड़ हिंदू साधु संन्यासी हैं जो भगवा धारण
करते हैं।

कई पुलिस वाले जघन्य अपराध करते पकड़े जाते हैं तो क्या सभी पुलिस वालों
को अपराधी कहा जा सकता है? वास्तव में ऐसा हो  जाए तो फिर कानून व्यवस्था
शेष ही नहीं रहेगा। अभी एक पूर्व मुख्यमंत्री को सार्वजनिक वितरण प्रणाली
के मामले में गिरफतार किया गया है। कितने ही राजनीतिज्ञों पर आपराधिक
मामले चल रहे हैं। वे जमानत पर छूटकर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हो
जाते हैं तो क्या मान लिया जाए कि सारे राजनीतिज्ञ अपराधी है? फौज के ही
कुछ लोग भ्रष्टाचार  के मामले में पकड़े जाते हैं तो क्या मान लिया जाए
कि पूरी फौज भ्रष्ट हो गयी है? नौकरशाहों के पास से करोड़ों रूपये जांच
एजेंसियों ने पकड़ा है तो क्या मान लिया जाए कि सभी नौकरशाह भ्रष्ट हैं?
कल एलएलएम की परीक्षा देते 3 जज पकड़े गए। वे नकल मार रहे थे तो क्या मान
लिया जाए कि सभी जज नकल मार कर पास होते हैं?

उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। आदमी व्यक्तिगत रूप से अपराधी हो सकता है
लेकिन पूरा समाज उसके पदचिन्हों पर नहीं चलता। अच्छाई और बुराई के बीच
जंग तो आदिकाल से चली आ रही है। फिर भी यह ऐतिहासिक तथ्य है कि अंतत.
अच्छाई ही जीतती है। अच्छे और बुरों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो
अच्छे लोग ही समाज के हर वर्ग में अधिक हैं। यह सच है कि भ्रष्टïचार और
अन्य अपराधों की संख्या में वृद्घि हुई है लेकिन इसका कारण अनुपातिक रूप
से बढ़ती आबादी भी तो है। जब आबादी बढ़ रही है तो स्वस्थ और बीमार लोग भी
तो बढ़ेगे। इसीलिए अस्पताल और चिकित्सा सुविधा भी बढ़ रही हैं। जेल और
पुलिस थाने भी तो बढ़ रहे हैं। नक्सल आतंकवाद सीमा पार आतंकवाद से अधिक
खतरनाक सिद्घ हो रहा है?
इनसे निपटने के लिए पी. चिदंबरम की सक्रियता सराहनीय है। लोगों को उम्मीद
है कि चिदंबरम इस समस्या से मुक्त कराने में सफल होंगे। आतंकवादी घटनाओं
में एकदम से कमी आयी है, चिदंबरम के गृहमंत्री बनने के बाद। जिस समय देश
को एक अच्छे गृहमंत्री की जरूरत थी, उस समय अच्छा गृहमंत्री मिला। वे
पहले गृहमंत्री हैं जिन्होंने इस्तीफा  देने की पेशकश की तो विपक्ष ने
भी उनसे अनुरोध किया कि वे इस्तीफा न दें। सीधा और साफ मतलब है कि देश को
उनसे बड़ी उम्मीद है। ऐसे में उन्हें शब्दों के चयन में सतर्कता बरतनी
चाहिए। राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद का भी फैसला आने वाला है।
उत्तरप्रदेश सरकार ने कानून व्यवस्था कायम रखने के लिए दो सौ कंपनियों की
मांग  की है। विषय अत्यंत संवेदनशील है। स्वाभाविक है, ऐसे में जिन्हें
देश में शांति पसंद नहीं है वे अशांति फैलाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
स्थिति  नियंत्रण में रहे इसमें चिदंबरम की अहम भूमिका है। राजनैतिक लाभ
के लिए बयानबाजी करने वाले मौके को चूकना नहीं चाहेंगे तब केंद्र सरकार
के प्रतिनिधि के रूप में चिदंबरम को तो और संभलकर शब्दों का इस्तेमाल
करना चाहिए।

विष्णु सिन्हा
27-08-2010