यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

केंद्रीय मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ की उपेक्षा जनता के मन में कांग्रेस के प्रति निराशा ही पैदा करती है

भारत सरकार में छत्तीसगढ़ के लिए कोई स्थान नहीं है। यह बात कल मंत्रिमंडल के विस्तार और फेरबदल ने सिद्ध कर दी। न तो सोनिया गांधी ने ही किसी छत्तीसगढ़ी को सरकार में लेने की जरुरत समझी और न ही मनमोहन सिंह ने। इस बार तो छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों को बहुत उम्मीद थी कि चरणदास महंत को कम से कम राज्यमंत्री के रुप में केंद्रीय मंत्रिमंडल में अवश्य लिया जाएगा लेकिन इसकी जरुरत ही नहीं समझी गयी। छत्तीसगढ़ के कुछ कांग्रेसी भले ही इससे खुश हों कि चरणदास महंत का कद नहीं बढ़ा और उनके लिए अभी कांग्रेस की राजनीति में स्थान शेष है लेकिन आम कांग्रेसी कार्यकर्ता इस उपेक्षा से निराश ही हुआ है। चरणदास के साथ ही एक आशा की किरण मोहसिना किदवई भी थी। उम्मीद की जा रही थी कि अल्पसंख्यक, महिला और उत्तरप्रदेश की नेत्री होने के कारण उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान मिल सकता है और इस तरह से अल्पसंख्यक, महिला छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश सबको संतुष्टï किया जा सकता है लेकिन इसकी भी जरुरत नहीं समझ गई।
हालांकि मंत्रिमंडल में विस्तार और फेरबदल के पीछे जो बड़ा कारण सामने दिखायी देता है, वह उत्तरप्रदेश का 2012 में होने वाला विधानसभा चुनाव भी है। प्रकाश जायसवाल और सलमान खुर्शीद को राज्यमंत्री से केबिनेट मंत्री बनाया गया तो पुराने समाजवादी पार्टी के नेता बेनी प्रसाद वर्मा को राज्यमंत्री बना कर सरकार में सम्मिलित किया गया। कहा जा रहा है कि बेनी प्रसाद वर्मा राज्यमंत्री बनने से खुश नहीं हैं। क्योंकि पहले संयुक्त मोर्चा की सरकार में केबिनेट मंत्री रह चुके हैं लेकिन उनको मंत्री बनाने के पीछे की स्पष्टï सोच तो एकदम साफ है। वे कुर्मी जाति के हैं और पुराने मुलायम सिंह यादव के सहयोगी होने के कारण चुनाव में कांग्रेस के लिए लाभप्रद हो सकते हैं। जतिन प्रसाद पहले ही ब्राह्मïण मंत्री हैं। इस तरह से उत्तरप्रदेश में सभी को संतुष्टï करने की कोशिश की गई है। पंजाब से अश्विनी कुमार और केरल से वेणुगोपाल को मंत्री बना कर पंजाब और केरल में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी की गई है।
छत्तीसगढ़ की इस तरह से कोई उपयोगिता सोनिया, राहुल गांधी की नजर में नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा को मंत्री बनाया जा सकता था जिन पर सोनिया गांधी का पूरा विश्वास है। वे कोषाध्यक्ष हैं और यह ऐसी जिम्मेदारी है जिसके लिए हर किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। छत्तीसगढ़ तो इसी से संतोष महसूस कर सकता है तो कर ले कि उसके वरिष्ठ नेता पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। बाकी तो छत्तीसगढ़ की कांग्रेस के लिए आलाकमान के पास न समय है और न ज्यादा सोच विचार करने की जरुरत। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ के नेताओं ने पार्टी की जो दुर्दशा की है। आपसी गुटबाजी को लेकर उसी का परिणाम है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।
छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी नेता रोज गिनाते रहते हैं कि केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को इतना धन दिया और केंद्र की योजना को राज्य सरकार अपने नाम से चला रही है। इससे जनता में कांग्रेस की कोई छवि बनती है, ऐसा दिखायी नहीं पड़ता। कुछ प्रमुख नगर निगमों पर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव अवश्य जीत गए है लेकिन विकास के मामले में उनका कार्यकाल कैसा जा रहा है, यह जनता से ज्यादा अच्छी तरह से कौन जानता है? प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का अधिकार सोनिया गांधी को सौंपा गया है लेकिन उनके पास फुरसत ही नहीं है कि वे प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करें। कांग्रेस अध्यक्ष बदले भी जाते हैं तो कार्यकारिणी नहीं बनायी जाती। कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद अध्यक्ष और कार्यकारिणी अस्तित्व बनाए रखती है। हर चुनाव में जीत के बड़े-बड़े दावे कांग्रेस करती है और चुनाव परिणाम मुंह चिढ़ाते हैं।
छत्तीसगढ़ के मतदाता लोकसभा के लिए 11 में से 1 सदस्य कांग्रेस का चुनते हैं तो उसे भी तव्वजो देने की जरुरत नहीं समझी जाती। मनमोहन सिंह की सरकार बने 7 वर्ष होने जा रहे हैं लेकिन एक अदद मंत्री का पद भी छत्तीसगढ़ को उपलब्ध नहीं हुआ। निश्चित रुप से चरणदास महंत को मंत्री बनाया जाता तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की रगों  में नई ऊर्जा का संचार होता। सब तरह से योग्य है, चरणदास महंत। मध्यप्रदेश में गृहमंत्री तक रह चुके हैं। कई कांग्रेसियों की मान्यता तो यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष ही छत्तीसगढ़ का चरणदास महंत को रहने दिया जाता तो कांग्रेस का यह हाल नहीं होता लेकिन अध्यक्ष को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और चरणदास महंत अपमान के घूंट को भी पी गए। इससे बड़ी वफादारी और क्या चाहिए, कांग्रेस आलाकमान को।
राज्यसभा के लिए छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए दो ही सीटें है और उस पर छत्तीसगढ़ का हक मार कर उत्तरप्रदेश की मोहसिना किदवई को एक सीट दे दी गई। यही उपयोगिता है, छत्तीसगढ़ की, कांग्रेस के लिए। किसी छत्तीसगढ़ी को भी तो उत्तरप्रदेश से राज्यसभा में भेज कर दिखाइए। यह विचारणीय ही नहीं है, कांग्रेस के लिए। छत्तीसगढ़ तो सदा से उपेक्षित रहा और आज भी उपेक्षित है। कहा जा रहा है कि बजट सत्र के बाद मंत्रिमंडल का बड़ा विस्तार और फेरबदल होगा। मतलब उम्मीद पर दुनिया कायम है तो छत्तीसगढ़ भी उम्मीद करे कि भविष्य में उसे केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिलेगा। इस तरह का लालीपॉप छत्तीसगढ़ के लिए कोई नया नहीं है। इसीलिए तो लोग कहते हैं, अभी से कि डॉ. रमन सिंह तीसरा विधानसभा चुनाव भी जीत लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। केंद्र की कांग्रेस सरकार नक्सलियों से लडऩे के लिए फोर्स भी छत्तीसगढ़ सरकार को देती है तो उसके बदले 800 करोड़ रुपए का बिल थमाती है। एनएमडीसी की खदानें छत्तीसगढ़ में हैं तो उसका मुख्यालय आंध्रप्रदेश के हैद्राबाद में है। कोयला, लोहा जैसी खनिज संपदा का निर्णय भी केंद्र सरकार के पास है। रायल्टी बढ़ाने की मांग अनसुनी है।
कांग्रेस को छत्तीसगढ़ के लोगों के दिल में स्थान बनाना है तो उसे परायापन छोडऩा चाहिए। चरणदास महंत को मंत्री बनाकर वह ऐसा कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जहां मंत्रिमंडल में 68 मंत्री हो वहां 28 राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ का ही कोई मंत्री नहीं है। यदि लोग कांग्रेस की उपेक्षा को परायापन समझने लगें तो किसे दोष देंगे? भ्रष्टाचार और महंगाई से पीडि़त जनता के लिए मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार कोई आशा तो जगाता नहीं। उल्टे भेदभाव निराशा ही पैदा करता है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 20.01.2011
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