यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

जब तक डॉ. रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल की जोड़ी बनी रहेगी तब तक सरकार भी बनी रहेगी

सर्वगुण संपन्न बृजमोहन अग्रवाल भारतीय जनता पार्टी के ऐसे नेता हैं जिन
पर पार्टी गर्व कर सकती है। राज्योत्सव का जिस तरह से पूरी सफलता से
उन्होंने संचालन किया, उससे सरकार की आम जनता के बीच छवि और निखरी ही है।
7 दिनों तक जैसे हर व्यक्ति को साइंस कॉलेज के मैदान जाने के लिए बृजमोहन
अग्रवाल ने सम्मोहित कर रखा था, वह उनकी सोच और जनता की नब्ज पर पकड़ का
ही परिणाम था। राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता अरुण जेटली ने जिस तरह से
उनकी पीठ थपथपायी उसके पूरी तरह पात्र हैं बृजमोहन अग्रवाल। उनकी
लोकप्रियता और योग्यता से जलने वालों की भी कमी नहीं है और डॉ. रमन सिंह
से उनके मनभेद कराने की भी कम कोशिश नहीं की गयी लेकिन वक्त की तुला ने
तो सिद्ध किया कि डॉ. रमन सिंह के लिए बृजमोहन अग्रवाल मजबूरी नहीं जरुरी
है। डॉ. रमन सिंह के बाद प्रदेश में भाजपा का कोई सबसे लोकप्रिय नेता है
तो वह बृजमोहन अग्रवाल ही हैं।

भटगांव सहित कितने ही उपचुनाव की बागडोर डॉ. रमन सिंह ने बृजमोहन  को
सौंपी और हर बार सफल होकर बृजमोहन अग्रवाल ने बता दिया कि उनकी योग्यता
को कोई चुनौती नहीं दे सकता। भटगांव चुनाव के समय तो यहां तक कहा गया कि
इस बार बृजमोहन अग्रवाल की जीत का रिकार्ड टूट जाएगा लेकिन जब चुनाव
परिणाम आया तब पता चला कि बृजमोहन अग्रवाल ने अपने पिछले रिकार्डों को ही
ध्वस्त कर दिया है। किसी भी उपचुनाव को जीतने के लिए कांग्रेस ने इतनी
मशक्कत नहीं की थी जितना भटगांव चुनाव जीतने के लिए की। प्रदेश प्रभारी
ने विधायकों को धमकी भी दी थी कि चुनाव प्रचार में कोताही की गयी तो अगली
बार टिकट के लाले पड़ जाएंगे। अजीत जोगी तो इतने उत्साह में थे कि
उन्होंने भटगांव चुनाव प्रचार की सभा में यहां तक कह दिया कि भटगांव
कांग्रेस के जीतते ही सरकार भसक जाएगी। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से एक
सवर्ण प्रत्याशी को 34 हजार से अधिक मतों से जितवाने में बृजमोहन अग्रवाल
सफल हो गए।

धनेन्द्र साहू, रविन्द्र चौबे और टी.एस. सिंहदेव तो लिखित में आश्वासन
देकर यू.एस. सिंहदेव की टिकट लेकर आए थे कि वे कांग्रेस प्रत्याशी को
चुनाव जितवाकर ही रहेंगे। धनेन्द्र साहू प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं,
रविन्द्र चौबे प्रतिपक्ष के नेता और टी.एस. सिंहदेव अंबिकापुर के विधायक।
खुदा न खास्ता यदि धनेन्द्र साहू अध्यक्ष रह गए, रविन्द्र चौबे प्रतिपक्ष
के नेता और विधानसभा का आम चुनाव हुआ, कांग्रेस का बहुमत आ गया तो इन्हीं
में से कोई मुख्यमंत्री भी बन सकता है। पद की दृष्टि से आज ये कांग्रेस
के बड़े नेता हैं। पूरे चुनाव के दौरान इन्होंने अथक प्रयास किया लेकिन
परिणाम तो वही आया जो बृजमोहन अग्रवाल चाहते थे। वैसे तो मुख्यमंत्री
सहित सभी भाजपाई नेताओं ने भटगांव चुनाव जीतने के लिए अपना योगदान दिया
लेकिन रायपुर से जाकर भटगांव में चुनाव संचालित करना और जीत के अगले
पिछले सभी रिकार्डों को ध्वस्त करना बृजमोहन अग्रवाल की उपलब्धि ही माना
जाएगा।

डॉ. रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल के बीच लगाई बुझाई करने वालों की तो एक
नहीं चली और आज ये दोनों जनता की दृष्टि में नायक बने हुए हैं। डॉ. रमन
सिंह जैसा विवेकवान व्यक्ति नहीं होता तो आज भाजपा की भी हालत कांग्रेस
जैसी हो गयी होती। बृजमोहन अग्रवाल ने भी अपनी तरफ से ऐसा कोई अवसर नहीं
दिया कि विघ्न संतोषी सफल हो जाएं। रायपुर नगर निगम का चुनाव भी भाजपा
भाजपाइयों के कारण हारी। इस कटु सत्य को जानकर भी डॉ. रमन सिंह ने गरलपान
किया लेकिन सभापति के चुनाव की जिम्मेदारी बृजमोहन अग्रवाल को ही सौंपी।
नगर निगम में कांग्रेस के पास पदों की कमी नहीं थी और निर्दलीय पार्षदों
का झुकाव भी कांग्रेस की तरफ था। किसी भी स्थिति में किसी को उम्मीद नहीं
थी कि भाजपा अपना सभापति बनवा लेगी लेकिन बृजमोहन अग्रवाल की रणनीति के
सामने कांग्रेस को जोर का झटका लगा और भाजपा के संजय श्रीवास्तव सभापति
का चुनाव जीत गए। कांग्रेसी पार्षदों तक का समर्थन भाजपा प्रत्याशी को
मिला।

रायपुर विधानसभा के अजेय विधायक बृजमोहन अग्रवाल हैं। कांग्रेस ने कितने
ही बड़े धन्ना सेठों को उनके खिलाफ मैदान में उतारा लेकिन कोई भी उन्हें
हराने में सफल नहीं हुआ बल्कि हर बार जीत का आंकड़ा उनका बढ़ता ही गया।
भाजपा के लिए बृजमोहन अग्रवाल भी एक धरोहर से कम नहीं है। वे चमत्कारिक
नेता हैं। इसमें अब तो किसी को भी शक संदेह नहीं रह गया है। वे भाजपा के
ऐसे नेता हैं जिन्हें मुसलमानों का भी अच्छा खासा समर्थन मिलता है। रात
को 2-3 बजे तक अपने निवास स्थान पर वे आम जनता से रुबरु होते है। ऊर्जा
का अक्षत श्रोत उनके पास कहां से आता है, इसकी खोज करने वाले अभी तक तो
सफल नहीं हुए। हर किसी के, बिना इस बात की परवाह किए कि कौन छोटा है और
कौन बड़ा, दुख सुख में सम्मिलित होना बृजमोहन अग्रवाल के लिए आम बात है।
24 घंटे में पूरे छत्तीसगढ़ को नाप देना हो तो बृजमोहन अग्रवाल के लिए
कोई कठिन काम नहीं है। जहां तक नौकरशाही से काम लेने की बात है तो इस कला
के भी मर्मज्ञ हैं बृजमोहन अग्रवाल। मानवीय कमजोरियां भी हैं। किसी को
रोता बिलखता देखकर मोम की तरह पिघल जाते हैं तो अन्याय होने पर कठोर भी
हो जाते हैं।

कितने ही छात्र राजनीति से राजनीति में आए लोग कुछ समय सफल भी हुए लेकिन
कुछ थोड़े से नाम हैं जिन्होंने सफलता को कायम रखा। प्रतिपक्ष के नेता
रविन्द्र चौबे और कांग्रेस के विधायक मोहम्मद अकबर भी छात्र राजनीति की
ही देन हैं लेकिन राजनीति में वह भी भाजपा की राजनीति में जिस मकाम पर
बृजमोहन अग्रवाल विद्यमान हैं, वैसा तो दूसरा कोई नजर नहीं आता। उनके
दरवाजे हर किसी के लिए खुले हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनके दर से
शायद ही कोई निराश लौटता है। अपनी तरफ से भरसक प्रयास करना लोगों की
समस्या हल करने का उनके स्वभाव में हैं। यही कारण है कि कांग्रेसी भी
उनके दरवाजे में बेखटके प्रवेश करते हैं। राजनीति के सरोवर में उन्होंने
यह कहकर पत्थर उछाला कि भटगांव चुनाव में कांग्रेसी मित्रों ने भी मदद की
तो कांग्रेस में भूचाल आ गया। अजीत जोगी ने तो यहां तक कह दिया कि नीचे
से ऊपर तक कांग्रेसी बिक गए हैं।

कुछ निहित स्वार्थियों ने तो बृजमोहन अग्रवाल के विरुद्ध मीडिया का भी
दुरुपयोग किया लेकिन न तो बृजमोहन अग्रवाल की लोकप्रियता में कमी आयी और
न ही जनता ने मीडिया के दुष्प्रचार को स्वीकार किया। विधानसभा चुनाव के
समय उनकी चरित्र हत्या करने के लिए नाना प्रकार के उपाय किए गए। मीडिया
में प्रकाशित सामग्रियों की फोटो प्रतियां बांटी गयी। मतदाता को वोट के
लिए धन देने का आरोप लगाया गया लेकिन विरोधियों की एक नहीं चली। बृजमोहन
अग्रवाल 25 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीतने में सफल हो गए। राजिम कुंभ,
राज्योत्सव जैसे कार्यक्रम बृजमोहन अग्रवाल की प्रतिष्ठा में और चार चाद
लगाते हैं। डॉ. रमन सिंह के लिए वे धरोहर की तरह हैं। इसलिए तो डॉ. रमन
सिंह ने सरकार के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा उन्हीं के विभागों को दे रखा
है। ये जोड़ी जब तक बनी रहेगी तब तक भाजपा की सत्ता भी छत्तीसगढ़ में बनी
रहेगी।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 02.11.2010
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