हैं। रायपुर, बिलासपुर और राजनांदगांव में वे लक्ष्मी नारायण यज्ञ पहले
भी करा चुके हैं। इसलिए उनके शिष्यों और श्रद्घालुओं की अच्छी खासी
संख्या इस क्षेत्र में है। श्रद्घालुओं के इसी प्रेम श्रद्घा के कारण
भरतदासाचार्य फिर से लक्ष्मीनारायण यज्ञ रायपुर के चौबे कालोनी में
संपन्न करा रहे हैं। 13 नवंबर से प्रारंभ 21 नवंबर तक होगा और यह उनका 97
वां यज्ञ है। अभी तक कोई भी संत या गृहस्थ इतने यज्ञ संपन्न नहीं करा
सका है और स्वामी जी का संकल्प 108 यज्ञ संपन्न कराने का हे। विगत 37
वर्षों से स्वामी जी देश के कोने कोने में यज्ञ करवा रहे हैं। रायपुर को
ही यह गौरव उन्होंने दिया है कि यहां दूसरी बार यज्ञ हो रहा है।
छत्तीसगढ़ की धरा वैसे भी तपोभूमि रही है। कितने ही ऋषि मुनियों का यहां
आश्रम रहा है तो भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का भी छत्तीसगढ़ ननिहाल
रहा है। भगवान राम के वन गमन का मार्ग भी छत्तीसगढ़ से ही गुजरता है।
राम और कृष्ण दोनों भगवान लक्ष्मी नारायण के ही अवतार माने जाते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले यह क्षेत्र पिछड़ा आर्थिक मामले में माना
जाता था लेकिन धार्मिक मामले में यह क्षेत्र सदा से ही संपन्न रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद तो भगवान लक्ष्मीनारायण की कृपा इस क्षेत्र
पर बरस रही है। पूरे देश में छत्तीसगढ़ ही ऐसा क्षेत्र है जहां सरकार
अपने गरीबों के लिए 2 रू. किलो और 1 रू. किलो में चांवल 35 किलो प्रति
परिवार प्रतिमाह दे रही है। जिससे राज्य में कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए।
बिना ईश्वर कृपा के यह संभव नहीं। क्योंकि ईश्वर की कृपा से ही अच्छा
राजा मिलता है और जनता खुशहाल होती है। भगवान लक्ष्मीनारायण ने स्वामी
भरतदासाचार्य को प्रेरणा दी तभी तो वे छत्तीसगढ़ में लक्ष्मीनारायण यज्ञ
करवाने के लिए आए। एक ऐसे क्षेत्र में जहां पहले उनका आगमन नहीं हुआ था,
वहां आकर एक बड़े यज्ञ की व्यवस्था सफलता पूर्वक कर लेना और श्रद्घालुओं
को यज्ञ के लिए प्रेरित कर लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है।
क्योंकि ऐसे धार्मिक कृत्य अक्सर आयोजकों के आमंत्रण पर ही संत लोग
संपन्न कराते हैं लेकिन भरतदासाचार्य ऐसे संत हैं जो बिना किसी आमंत्रण
के अपनी अंतप्रेरणा से रायपुर आए और उन्हें काशीप्रसाद पुंगलिया और
दीनानाथ शर्मा जैसे व्यक्ति मिल गए। फिर तो कारवां बढ़ता गया और लोग
जुड़ते गए। अपना काम धंधा छोड़कर भक्त ऐसे जुड़े कि तन मन धन से लोग यज्ञ
में सम्मिलित होने के लिए जुडऩे लगे। देश के विभिन्न हिस्सों में स्वामी
भरतदासाचार्य ऐसे ही प्रगट होते रहे और सफलता पूर्वक यज्ञ संपादित करते
रहे। सारा काम ऐसे होता गया जैसे सब कुछ पूर्व निर्धारित था और कर्ता
कहीं और बैठकर सबको निर्देशित और प्रेरित कर रहा था। आज के इस व्यस्त युग
में जब व्यक्ति अपने परिवार के लिए ही पूरा समय नहीं निकाल पाता तब लोग
यज्ञ के लिए डेढ़ दो माह का समय निकाल ले तो इसे प्रभु प्रेरणा ही कहा जा
सकता है।
किसी भी दृष्टि से देखें तो भगवान लक्ष्मीनारायण की पूरी कृपा स्वामी
भरतदासाचार्य पर दिखायी देती है। कहावत भी है कि हिम्मते मर्दा तो मददे
खुदा। स्वामी भरतदासाचार्य ने अपने संकल्प के साथ अपने को प्रभु
लक्ष्मीनारायण को समर्पित किया तो प्रभु ने भी अपना वरदहस्त उनके ऊपर
रखा। शिष्यों, भक्तों ने लक्ष्मीनारायण की कृपा का रसास्वादन भी किया।
कितनों के ही बिगड़े काम बन गए तो कितने ही स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्त
हो गए। कितनों की ही गोद हरी हो गयी तो कितने ही कृपा से धन्य धन्य हो
गए। ऐसा नहीं कि लोगों ने अड़ंगा लगाने, व्यवधान डालने की कोशिश नहीं की
लेकिन बिना किसी प्रयास के ही प्रभु कृपा से ही व्यवधान आए और चलते बने।
विध्नकर्ता ही महाराज जी के श्री चरणों में दंडवत हो गए।
भरतदासाचार्य धर्म और कर्मकांड के ज्ञाता हैं। वृन्दावन में उनका आश्रम है
और उन्होंने वहां एक अतिथि शाला भी बनायी है जिसका उद्घाटन करने के लिए
छत्तीसगढ़ के यशस्वी मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह स्वयं वृंदावन गए। महाराज
जी की अपनी गौशाला भी है। पूरे देश से स्वामी जी के शिष्य और भक्त जहां
भी यज्ञ होता है, सम्मिलित होने के लिए अवश्य आते हैं। स्वामी जी वृंदावन
में होते हैं तो भक्त वृंदावन उनके दर्शनों के लिए जाना अपना सौभाग्य
समझते हैं। स्वामी जी ने दक्षिण भारत के हैदराबाद, बेंगलुरू और चेन्नई
में यज्ञ संपादित किया है तो आसाम में भी यज्ञ संपन्न हो चुका है। 108
यज्ञ कराने का संकल्प अब मात्र 11 यज्ञ की प्रतीक्षा में है। वर्ष भर में
महाराज जी अधिक से अधिक तीन यज्ञ ही संपन्न कराते हैं। यज्ञ प्रारंभ होने
के पहले महाराज जी एक डेढ़ माह तक जहां यज्ञ होना है, वहां मंत्र जाप कर
प्रभु का आह्वान करते हैं। सहज सरल स्वामी जी तप तपस्या के मामले में अति
संकल्पवान हैं। इसलिए यज्ञ के पूर्व किए गए उनके पाठ क्षेत्र को आसुरी
शक्तियों से तो मुक्त करते ही हैं, अच्छी आत्माओं को भी आमंत्रित करते
हैं।
यज्ञ प्रारंभ हो चुका है और श्रद्घालु पूरी तरह से भक्तिमय हो रहे हैं।
अवसर है, लोग लाभ उठा सकते हैं। प्रभु जब साक्षात यज्ञस्थल पर उपस्थित
हों तब भी सबके भाग्य में तो नहीं होता कि वे जा सकें लेकिन फिर हवाएं
संदेश देने का काम तो करती हैं। छत्तीसगढ़ धन धान्य से परिपूर्ण हैं तो
उसका कारण ये यज्ञ भी है। आखिर तो बिना प्रभु के इशारे के पत्ता भी नहीं
हिलता। धार्मिक मान्यताएं तो यही कहती हैं। यज्ञ के साथ स्वामी
भरतदासाचार्य की ओजस्वी वाणी में अमृतपान कराने की भी शक्ति है। महायज्ञ
के साथ श्रीमद भागवत कथा ज्ञानयज्ञ और कृष्ण महायज्ञ रासलीला का आयोजन
यज्ञ स्थल पर किया गया है। धार्मिक रसास्वादन का यह अद्वितीय अवसर है। यह
सोचकर घर बैठने का अवसर नहीं है कि फिर कभी महाराज जी यज्ञ कराएंगे तो
सम्मिलित हो जाएंगे। दूसरी बार के बाद तीसरी बार यज्ञ होना संभव नहीं
दिखायी देता। इस बार जो चूक गए, वे सदा के लिए ही न चूक जाएं। जब भगवान
स्वयं चलकर आए हैं तो इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है।
- विष्णु सिन्हा
16-11-2010