आती है लेकिन धर्मनिरपेक्षता की आड़ में भ्रष्टïचार कोई विचारणीय विषय
नहीं है, कांग्रेस की नजर में, यह समझ में आने वाली बात नहीं है। संघ को
आतंकवादी संगठन बनाना भी राजनैतिक जरूरत है, यह बात भी समझ में आती है।
क्योंकि संघ और भाजपा का डर बता कर ही तो अल्पसंख्यकों के वोट को अपनी
तरफ किया जा सकता है। कुछ संघ के लोगों का नाम आतंकवादी गतिविधियों में
क्या आया कि पूरा संघ और उसके संगठन ही आतंकवादी हो गए। भगवा आतंकवाद का
तमगा भी लगा दिया गया लेकिन राष्टविरोधी वक्तव्य देने वालों पर
कार्यवाही करने का माद्दा कांग्रेस नहीं दिखा रही है। अरूंधति राय और
गिलानी के वक्तव्य राष्ट्र भक्तों को मर्मांतक चोट पहुंचाएं लेकिन उसकी
आंच भी कांग्रेस महसूस न करे तो शायद यही धर्मनिरपेक्षता का तकाजा है।
कांग्रेस समर्थित मुख्यमंत्री कहे कि काश्मीर का भारत में विलय नहीं हुआ
और पाकिस्तान से वार्ता करना चाहिए तो इससे कांग्रेस को कोई फर्क नहीं
पड़ता। संसद पर हमला करने वाले को सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा सुनाए तो
उसकी माफी की अपील पर निर्णय न कर कांग्रेस शायद धर्मनिरपेक्ष को ही
पोषित कर रही है। टेलीकाम घोटाले के बावजूद धर्मनिरपेक्ष सरकार गठबंधन
का धर्म निभा रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस
अध्यक्ष मौत का सौदागर बताती हैं तो जनता उनके कथन को स्वीकार नहीं करती
और नरेंद्र मोदी को ही अपना नेता और सरकार चलाने का अधिकार देती है।
गरीबों की 3 रू. किलो में अनाज देने का वादा कर सरकार बनाने वाली
कांग्रेस अपने वादे पर खरा साबित होकर नहीं दिखाती।
कांग्रेस की सोच है कि देश को खतरा किसी से है तो सांप्रदायिकता से और
सांप्रदायिक शक्तियों के हाथ में सत्ता चली गयी तो देश का धार्मिक ताना
बाना बिगड़ जाएगा। स्वतंत्रता के बाद ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को
महात्मा गांधी की हत्या में उलझाने का प्रयास किया गया। उस पर प्रतिबंध
भी लगाया गया लेकिन 2 वर्ष बाद ही प्रतिबंध हटा भी लिया गया। संघ के
स्वयं सेवकों की तारीफ तो स्वयं महात्मा गांधी ने भी किया था। चीन युद्घ
के समय उसकी सेवाओं के लिए तारीफ जवाहरलाल नेहरू ने भी किया। 26 जनवरी की
राष्ट्रीय परेड तक में संघ के स्वयं सेवक शिरकत कर चुके हैं। संस्था कोई
भी हो, उसमें हर तरह के लोग सम्मिलित हो जाते हैं। किसी व्यक्ति के कृत्य
से ही पूरी संस्था का आंकलन नहीं किया जा सकता। फौज में भी भ्रष्ट्राचार
की शिकायतें मिलती रहती हैं तो क्या कोई मान लेता है कि हमारी फौज
भ्रष्ट हो गयी है? कोई नहीं मानता बल्कि देश में राजनेताओं से ज्यादा
गर्व लोगों को भारतीय सेना पर है। ज्यादा विश्वास भारतीय सेना पर है।
यह देश धर्मनिरपेक्ष है तो कोई सिर्फ कांग्रेस के कारण ही धर्मनिरपेक्ष
नहीं है बल्कि भारतीय नागरिकों की समझ के कारण धर्मनिरपेक्ष है।
बहुसंख्यक हिंदुओं की सोच के कारण धर्मनिरपेक्ष है। जिस दिन हिंदू इस देश
का सांप्रदायिक हो गया, उस दिन देश को सांप्रदायिक होने से कौन रोक सकता
है? इस देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए कोई श्रेय का अधिकारी है तो वह
हिंदू है। जिसकी सोच में संकीर्णता नहीं है। वसुधैव कुटुम्बकम का नारा भी
इस देश के हिंदुओं की ही देन है। दुनिया भर में हिंदू जहां भी गया, एक
शांतिप्रिय नागरिक ही माना गया। जो देश स्वतंत्रता के लिए भी हिंसा का
समर्थक नहीं रहा, बल्कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसा के बल पर
स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी वह पंचशील को मानने वाला तो है लेकिन युद्घखोर
नहीं है। देश के किसी भी हिस्से में अपने संख्या बल के आधार पर
बहुसंख्यकों ने अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय नहीं किया। न ही काश्मीर की
तरह काश्मीरी पंडितों को बाध्य किया। न ही धर्मांतरण में हिंदुओं की कोई
रूचि है। किसी का धर्म परिवर्तन कर उसे हिंदू बनाना, यह लक्ष्य तो कभी भी
हिंदुओं का नहीं रहा।
हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, लूटा गया। इसके उदाहरणों की कमी नहीं है।
इतिहास में हिंदुओं को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया गया
लेकिन फिर भी आज भारतवर्ष में हिंदुओं की जड़ें गहरी हैं और वह बहुसंख्यक
है तो यह हिंदू धर्म अपनी खुबियों का ही परिणाम है। राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ हिंदुओं को संगठित, संस्कारित करने का प्रयास करता है तो इसे
सांप्रदायिकता नहीं कहा जा सकता। उच्च न्यायालय ने जब राम जन्मभूमि बनाम
बाबरी मस्जिद पर फैसला दिया तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सबसे पहले कहा
कि इसे जीत हार की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। असल में राम
जन्मभूमि पर हिंदुओं की आस्था पर निर्णायक भूमिका न्यायालय ने अदा की।
स्वाभाविक रूप से हिंदुओं के लिए खुशी का समय था लेकिन अपने मुसलमान
भाइयों के मन पर किसी तरह की चोट न लगे, इसलिए अपनी खुशी का प्रदर्शन
करने से भी हिंदुओं ने परहेज किया। इससे ही हिंदू मानसिकता को समझा जा
सकता है।
चंद लोग हिंदुओं को भड़काने की कोशिश अवश्य करते हैं लेकिन हिंदू किसी के
बहकावे में आ जाते हैं, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ को गरियाने का जो खेल खेलती है, उससे संघ को नुकसान नहीं
होता बल्कि फायदा ही होता है। आज भाजपा का ही प्रभाव देश के बड़े हिस्से
में है। राज्यों में भाजपा की सरकार भी सफलता पूर्वक चल रही है। विकास दर
की दृष्टि से भाजपा के ही तीन राज्य देश में प्रथम, द्वितीय और तृतीय
स्थान पर है। इससे स्वाभाविक रूप से भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर भी
फायदा हो रहा है। दो चार लोगों का नाम आतंकवादी घटना से जुड़ जानेके कारण
यदि संस्था को बदनाम किया गया तो ऐसा न हो कि नुकसान के बदले उस संस्था
को लाभ ही हो।
भ्रष्टïचार, महंगाई, नक्सलवाद आज देश के सामने बड़े मुद्दे हैं। राजीव
गांधी ने जिस तरह से सत्ता के दलालों के विषय में कोड़े मारने का वक्तव्य
मुंबई के राष्ट्रीय अधिवेशन में दिया था, वह हुंकार कांग्रेस में दिखायी
नहीं दे रही है। सरकारी एजेंसियां जहां भी छापे मारती है वहीं करोड़ों
रूपये निकलते हैं। भ्रष्टïचार का दलदल बढ़ता ही जा रहा है और उस संबंध
में कांग्रेस अधिवेशन में चुप्पी अखरने वाली है। राहुल गांधी ने कहा है
कि भारत में दो भारत हैं। एक अमीर भारत और एक गरीब भारत। यह कोई ऐसी बात
नहीं है जिसकी जानकारी लोगों को नहीं है। राहुल गांधी को शायद अभी उनके
दौरों के कारण जानकारी हुई होगी या फिर चुनावी खेल ने उन्हें समझाया है
कि सत्ता की आसंदी बिना गरीबों के वोट के हासिल नहीं की जा सकती। संविधान
प्रदत्त यही तो ऐसा अधिकार है जो नागरिकों को मिला हुआ है और किसी को भी
सत्ता की आसंदी तक पहुंचाने या आसंदी से उतार लेने का हक प्रदान करता है।
पूर्व में गरीबी हटाओ के नाम पर ही कांग्रेस वर्षों सत्ता का सुख भोगती
रही। गरीबी आज भी विद्यमान है तो गरीब भी विद्यमान है। कहा तो यह जाता है
कि आर्थिक उदारीकरण के कारण अमीरी बढ़ी है तो गरीबी भी कम नहीं हुई है।
आज भी देश की 50 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 20 रूपये प्रतिदिन में गुजारा
करने के लिए बाध्य है तो विदेशी बैंकों में भारतीयों का इतना काला धन जमा
है कि उसका समान रूप से वितरण ही कर दिया जाए तो देश में कोई गरीब ढूंढऩे
से भी नहीं मिलेगा। बाबा रामदेव इसी को लेकर तो भारत स्वाभिमान का आंदोलन
चला रहे हैं। इसलिए भारत में भगवा आतंकवाद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
आतंकवादी जैसी बातों के बदले भ्रष्टïचार पर लगाम लगाना जरूरी है और यह
बात ही सिरे से गायब है। कब तक संघ को सांप्रदायिक बताकर सत्ता सुख
प्राप्त करते रहेंगे।
- विष्णु सिन्हा
03-11-2010