यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 14 नवंबर 2010

सुदर्शन के कुंठाग्रस्त बयान ने संघ को खेद प्रगट करने के लिए बाध्य किया

राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के. सी. सुदर्शन का सोनिया
 गांधी के विषय में दिया बयान मर्यादा की सभी सीमाओं का उल्लंघन कर गया
है। कहां संघ के स्वयं सेवक एवं पदाधिकारी भगवा आतंकवाद जैसी उपमा के
विरोध में राष्ट्रव्यापी  धरना दे रहे थे और उसी धरने में सुदर्शन ने जो
कुछ सोनिया गांधी के विषय में कहा, उससे संघ का कार्यक्रम तो एक तरफ रह
गया, संघ की ही थू थू हो रही है। हालांकि सुदर्शन आज राष्ट्रीय 
स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक नहीं हैं लेकिन ऐसा व्यक्ति कभी संघ का
सरसंघचालक था, इससे संघ क्या कोई भी इंकार नहीं कर सकता। संघ के सबसे
बड़े पद बैठने के लिए जब सुदर्शन का चयन किया गया था, तब उनके गुणों को
लोगों ने अच्छी तरह से जांचा परखा होगा और योग्य समझे जाने पर ही पद पर
प्रतिष्ठित किया होगा। इसलिए सुदर्शन के बयान को कोई भी कम करके नहीं आंक
सकता।

सुदर्शन के बयान ने संघ को कठघरे में खड़ा कर दिया है। पूरे देश में
कांग्रेसियों ने सड़क पर उतरकर कड़ा विरोध प्रदर्शित किया है। इसके पहले
विश्व हिन्दू परिषद के प्रवीण तोगडिय़ा ने भी सोनिया के लिए अभद्र भाषा का
प्रयोग किया था। सुदर्शन तो कह गए कि सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी और
राजीव गांधी की हत्या करवायी। सुदर्शन इसके लिए किसी तरह का प्रमाण तो दे
नहीं सके। जब केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार थी तब सुदर्शन ही संघ के
मुखिया थे। उस समय वे चाहते तो सोनिया गांधी के संबंध में कोई प्रमाण
उनके पास था तो उसे प्रगट कर  सकते थे बल्कि भाजपा गठबंधन सरकार के समय
भी सुदर्शन सरकार के लिए सही व्यक्ति नहीं थे। सरकार उनकी बातों को
तवज्जो नहीं देती थी। उनकी अनियंत्रित सोच और अपनी सोच की अभिव्यक्ति ने
ही संघ को सरसंघचालक पद से उन्हें हटाने के लिए बाध्य किया। नहीं तो क्या
कारण था जो उन्हें पद से हटाया गया? संघ के इतिहास में राजेंद्रसिंह
रज्जू भैया ही ऐसे सरसंघचालक हुए जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से पद
छोड़ा। बाकी सभी सरसंघचालक आजीवन अपने पद पर बने रहे।
के. सी. सुदर्शन तो पूरी तरह से शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और फिर भी
उन्हें पद त्याग करना पड़ा तो उसका कारण उनका विवादास्पद होना ही रहा। आज
सोनिया गांधी के विषय में दिए गए उनके वक्तव्य से संघ सहमत नहीं है। संघ
ने असहमति के साथ खेद भी अपनी तरफ से प्रगट कर दिया है। भाजपा भी सुदर्शन
के वक्तव्य से असहमति प्रगट कर रही है। सुदर्शन के दिए वक्तव्य के लिए
उनके विरूद्घ न्यायालय में भी वाद दायर किए जा रहे हैं। कांग्रेसी मांग
भी कर रहे हैं कि सुदर्शन माफी मांगें और अपना कथन वापस ले लेकिन सुदर्शन
ने अभी तक खेद अपने कथन के विषय में प्रगट नहीं किया है। सोनिया गांधी को
इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या का दोषी ही सुदर्शन ने नहीं बताया
बल्कि उनके जन्म पर भी प्रश्रचिन्ह खड़ा करने की कोशिश की।

सोनिया गांधी आज भारत की सबसे शक्तिशाली महिला ही नहीं हैं बल्कि
सम्मानित महिला भी हैं। प्रधानमंत्री का पद मिले तश्तरी में सजाकर और कोई
उस पर बैठने के लिए तैयार न हो, ऐसी नेता हैं, सोनिया गांधी। उनके हाव
भाव व्यवहार सभी में भारतीय संस्कृति की ही झलक मिलती है। राजीव गांधी की
विधवा की भूमिका भी उन्होंने बड़े सम्मानजनक तरीके से निभायी है।  सोनिया
स्वयं सत्ता की भूखी होती तो राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंहराव को
प्रधानमंत्री बनाने के बदले स्वयं प्रधानमंत्री बन सकती थी। कांग्रेसियों
ने कम मिन्नतें उनसे नहीं की थी। सीताराम केसरी जैसे वरिष्ठ नेता ने तो
उनके पैरों पर अपनी टोपी ही उतारकर रख दी थी कि वे कांग्रेस अध्यक्ष की
गद्दी संभालें। प्रधानमंत्री का पद संभालें लेकिन सोनिया गांधी इसके लिए
तैयार नहीं हुई। यह सब ऐसे तथ्य हैं जिसे सभी अच्छी तरह से जानते हैं।
नरसिंहराव कांग्रेस को संभाल लेते और कांग्रेस की अलोकप्रियता नहीं बढ़ती
तो सोनिया गांधी शायद राजनीति में पैर रखना भी पसंद नहीं करती। उन्होंने
तो राजीव गांधी को भी रोकने का प्रयास कम नहीं किया था लेकिन विधि का
विधान। वह जो चाहता है, वह होकर रहता है। कांग्रेस की डूबती नैया को पार
लगाने की जिम्मेदारी आखिर सोनिया गांधी को ही संभालनी पड़ी। उनका विदेशी
मूल का होना भाजपा को ही नहीं खटकता रहा बल्कि कुछ कांग्रेसी  भी इससे
सहमत थे लेकिन देश के लोगों ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को
स्वीकार किया। कांग्रेस बहुमत और दो तिहाई बहुमत की सरकार तो कई बार चला
चुकी थी लेकिन सफलता पूर्वक उसने गठबंधन की सरकार भी चलाकर दिखा दी। पहली
बार से अधिक सांसद दूसरी बार जितवाकर दिखा दिया कि सोनिया गांधी पतन के
कगार पर खड़ी कांग्रेस में नवजीवन फूंकना भी जानती है।

भाजपा के लिए संघ हमेशा से सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। आज भी भाजपा के
संगठन मंत्री संघ प्रशिक्षित स्वयं सेवक ही होते हैं। भाजपा की गठबंधन
सरकार को पुन. सत्तारूढ़ करने में संघ सफल नहीं हुआ। उसका  बड़ा कारण संघ
प्रमुख सुदर्शन और भाजपा के संबंध भी रहे। यह भी एक कारण रहा जिसके कारण
सुदर्शन को अपना पद छोडऩा पड़ा। रज्जू भैया ने भी पद छोड़ा लेकिन वे किसी
कुंठा के शिकार नहीं हुए। सुदर्शन का सोनिया गांधी के विषय में दिया बयान
तो पूरी तरह से कुंठाग्रस्त दिखायी पड़ता है। अनर्गल प्रलाप कर वे चर्चित
तो हो गए हैं लेकिन कुचर्चित व्यक्ति संस्था को लाभ तो पहुंचाते नहीं,
नुकसान अवश्य पहुंचाते हैं और सुदर्शन ने यही किया है।

द्रोपदी का चीरहरण कर कौरव नष्ट हो गए थे। सीता का हरण करने के कारण
रावण का कुल नष्ट हो गया था। सोनिया गांधी पर लांछन लगाकर भारतीय
संस्कृति और मर्यादा के अपने को सबसे बड़ा समर्थक बताने वाले सुदर्शन
उम्र के इस पड़ाव पर शांतिपूर्वक विचार करें कि वे क्या कह गए ? किसी भी
महिला पर झूठा लांछन लगाना भारतीय संस्कृति नहीं है। ऐसी गंदी बातें जबान
से निकालकर वे किसी का क्या अपना भी भला नहीं कर रहे हैं। सुदर्शन में
जरा सी भी सज्जनता शेष है तो उन्हें तुरंत माफी मांग लेना चाहिए। वे
बुजुर्ग हैं। लोग उन्हें माफ कर देंगे। सोनिया गांधी, राहुल गांधी,
प्रियंका गांधी में तो राजीव गांधी के हत्यारे तक को माफ करने की क्षमता
है। सुदर्शन सोनिया के समक्ष लगते कहां हैं? केशव बलिराम हेडगेवार,
गोलवलकर 'गुरूजी' जैसे लोग संघ प्रमुख की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। देवरस
और रज्जू भैया जैसे लोगों ने संघ का गौरव बढ़ाया। सुदर्शन पद से उतरकर सब
कुछ नष्ट कर देना चाहते हैं। यह उनके ही सोच का विषय है कि जिस संघ ने
उन्हें अपना प्रमुख बनाया, आज वह उनके विचारों से न तो सहमत हैं और न ही
उनके साथ खड़ा होना चाहता है बल्कि वह सुदर्शन के कथन के लिए खेद प्रगट
करने के लिए बाध्य हुआ है। सुदर्शन को जिस संस्था ने सम्मानित किया, उसे
असम्मानित स्थिति में खड़ा करने का कोई अधिकार उन्हें नहीं है।

- विष्णु सिन्हा
13-11-2010