आज इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 26 वर्ष पूर्व उनके निवास
स्थान पर उनके ही सुरक्षा गार्डों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी। इंदिरा
गांधी कांग्रेस की ही नहीं, इस देश के गरीब, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक
सभी के लिए किसी रहनुमा से कम नहीं थीं। बंगलादेश युद्ध में सफलता
प्राप्त करने पर तो इंदिरा गांधी को अटल बिहारी बाजपेयी ने दुर्गा की
उपमा दी थी। दुनिया भर में भारत के स्वाभिमान की प्रतीक थी, इंदिरा
गांधी। उन्हें न तो राजे रजवाड़ों के प्रीविपर्स समाप्त करने में कोई
हिचक हुई और न ही 14 बैंकों के राष्टरीयकरण में। गरीबों के हित में 21
सूत्रीय कार्यक्रम लागू करने में भी इंदिरा गांधी को किसी की अनुमति की
जरुरत नहीं थी। उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष बरुआ ने जब इंदिरा इज इंडिया
कहा था तो कइयों को यह चापलूसी की इंतहा लगी थी लेकिन आज इतिहास के पन्ने
को पलटते हैं तो लगता है कि बरुआ की बात में दम था। भारत में
प्रधानमंत्री तो बहुत से लोग हुए और बहुतों ने देश के लिए अच्छे ही काम
किए लेकिन इंदिरा गांधी बेमिसाल थी और जैसा सख्त शासन प्रशासन उन्होंने
चलाया, वैसा ही कांग्रेस को भी चलाया।
आज के कांग्रेस की गुटबाजी को देखें और इंदिरा गांधी के समय की गुटबाजी
को तो जमीन आसमान का अंतर नजर आता हैं। कांग्रेस में गुटबाजी तब भी थी
लेकिन ऐसी स्थिति नहीं थी कि जिस डाल पर कांग्रेसी बैठें उसी डाल को
काटें। इंदिरा गांधी और संजय गांधी का समय, फिर इंदिरा गांधी और राजीव
गांधी का समय और अब है समय सोनिया गांधी और राहुल गांधी का। परिस्थितियों
में बहुत अंतर है। इंदिरा गांधी के समय जनता ने कांग्रेस को दो तिहाई
बहुमत का समर्थन दिया। इंदिरा गांधी की हत्या से जनमानस ऐसा दुखी हुआ कि
उसने राजीव गांधी को चार सौ से अधिक सीटों पर जीत दिलायी। इंदिरा गांधी
राजनीति की केंद्र बिंदु थी। इंदिरा जी स्वयं कहती थी कि मैं कहती हूं कि
गरीबी हटाओ तो विपक्ष का नारा है, इंदिरा हटाओ। इंदिरा गांधी को भारतीयों
ने सिर आंखों पर बिठाया और अंधा समर्थन दिया तो आपातकाल के लिए उन्हें
माफ करने के बदले सत्ता से नीचे उतार दिया। स्वयं इंदिरा गांधी लोकसभा
का चुनाव हार गयी थी।
लेकिन उसके बाद जब पुन: चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी को पुन: सत्ता की
आसंदी में दो तिहाई बहुमत के साथ बिठाने में जनता को हिचक महसूस नहीं
हुई। बंगलादेश युद्ध के समय तो पाकिस्तान के समर्थन में अमेरिका ने अपना
सातवां बेड़ा ही भेज दिया था लेकिन इंदिरा गांधी को भयभीत करने में
अमेरिका सफल नहीं हुआ था। पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण करने के लिए
इंदिरा गांधी ने बाध्य कर दिया था। दिग्गज कांग्रेसियों ने ही इंदिरा
गांधी के साथ कम दुव्र्यवहार नहीं किया। उन्हें पार्टी तक से निष्कासित
किया गया लेकिन उन्होंने इंदिरा कांग्रेस बना कर जनता के समर्थन से
पुराने कांग्रेसी दिग्गजों को ऐसा धूल चटाया कि दूसरा उदाहरण राजनीति में
नहीं मिलता। लोग तो व्यंग्य में कहते थे कि कांग्रेस में एक ही पुरुष है
और वह इंदिरा गांधी है। इंदिरा गांधी का पूरा राजनैतिक जीवन झंझावातों से
भरा हुआ था। बुद्धिजीवियों के मान से तो वे एकदम तानाशाह थी लेकिन जनता
की नजरों में सबसे बड़ी हितैषी। कांग्रेस का वह भी जमाना था जब कांग्रेसी
नारा लगाते थे कि न जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर, इंदिरा जी की बात
पर।
आज कांग्रेस का जो सिस्टम है, वह इंदिरा गांधी का ही बनाया हुआ है। नीचे
से ऊपर तक पार्टी एक ही प्रस्ताव पारित करती थी कि इंदिरा गांधी जिसे
चाहें उसे पदारुढ़ करें। आज भी कांग्रेसी एक वाक्य का यही प्रस्ताव पारित
करते हैं कि सोनिया गांधी जिसे चाहें, उसे पदारुढ़ करें। इंदिरा गांधी और
सोनिया गांधी की कांग्रेस का सबसे बड़ा फर्क तो यही है कि जहां इंदिरा
गांधी को जनता का दो तिहाई समर्थन मिला, वहीं सोनिया गांधी की कांग्रेस
को अभी तक बहुमत भी केंद्र में प्राप्त नहीं हो सका। इंदिरा गांधी ने
अपनी सरकार चलायी तो सोनिया गांधी गठबंधन की सरकार चला रही हैं लेकिन इस
विषय में यह तथ्य भी स्मरणीय है कि इंदिरा गांधी को जैसी कांग्रेस मिली
थी, उसकी तुलना में सोनिया गांधी को विपक्ष में बैठी कांग्रेस मिली। जो
सोनिया गांधी के रहमोकरम की इल्तजा कर रही थी।
इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी
राजनीति में आने के लिए इच्छुक नहीं थी। उनके भारतीय मूल के न होने का
विरोध सिर्फ विपक्ष ही नहीं कर रहा था बल्कि कांग्रेस का एक तबका भी
विरोध कर रहा था लेकिन वक्त ने कांग्रेस के हित में सोनिया गांधी को
राजनीति में आने के लिए बाध्य किया। अपने पति के परिवार की राजनैतिक
पार्टी की दुर्दशा उनसे नहीं देखी गयी। उन्हें अच्छी तरह से समझ में आ
गया कि उन्होंने हिचक नहीं छोड़ी तो कांग्रेस भूतकाल की पार्टी हो जाएगी।
आखिर उन्होंने विपरीत परिस्थितियों मे अपनी सास रुपी मां इंदिरा गांधी को
संघर्ष करते देखा था। कांग्रेस के हित में इंदिरा गांधी ने अपमान के कम
कड़वे घूंट नहीं पीये थे। जब सत्ता की आसंदी इंदिरा गांधी से जनता ने छीन
ली थी तब अच्छे-अच्छे हितैषी साथ छोड़कर चलते ही नहीं बने थे, मंचों से
गालियां तक उगल रहे थे। कितने ही जांच आयोग बिठाए गए थे। जेल तक में बंद
किया गया था लेकिन इंदिरा गांधी ने हिम्मत नहीं हारी।जनता को भी समझने
में देरी नहीं लगी कि इंदिरा गांधी के बिना उनका क्या हाल हो गया?
आज सोनिया गांधी और राहुल गांधी को कांग्रेस के लिए संघर्ष करते देखकर
इंदिरा गांधी की आत्मा को शांति मिलती होगी। प्रधानमंत्री बनने का
सुअवसर मिलने के बावजूद सोनिया गांधी ने जिस तरह से संयम बरता और
कांग्रेस को जिसका लाभ निश्चित रुप से मिला, उससे कांग्रेस की संभावना
बढ़ी। लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 200 से ऊपर है और राहुल
गांधी जिस तरह से आम आदमी से जुडऩे और उसकी तकलीफों से साक्षात्कार करने
की कोशिश कर रहे हैं, उससे जिन राज्यों में कांग्रेस मृतप्राय हो गयी थी,
वहां भी उसकी संभावना तो बढ़ रही है। पुत्र से ज्यादा प्रेम नाती पोते से
होता है। जवाहर लाल नेहरु का भी अपने नातियों राजीव संजय से कम नहीं था।
उसी तरह से इंदिरा गांधी का प्रेम भी राहुल प्रियंका से कम नहीं था।
कांग्रेस के लिए अपने पोते को दिन रात संघर्ष करते देखकर दादी के चेहरे
पर मुस्कान खिल ही जाती होगी।
इंदिरा गांधी की आत्मा को तब तक पूरी तरह से शांति नहीं मिल सकती जब तक
वे यह नहीं देख लेती कि कांग्रेस वहीं आकर खड़ी हो गयी है, जहां उन्होंने
अपने जीते जी छोड़ा था। आज कांग्रेसी पूरे देश में श्रद्धांजलि दे रहे
है। असली, श्रद्धांजलि तो तभी होगी, जब कांग्रेस एकजुट होकर कांग्रेस को
वही मकाम जनता के दिल में दिलवाएं, जहां इंदिरा गांधी के समय था। 26 वर्ष
हो गए, इंदिरा गांधी को नश्वर छोड़े हुए। कांग्रेस फिर वास्तव में लौटे
अपने उसी पथ पर और नारा लगाए कि जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर
सोनिया जी की बात पर। एक स्वर से आवाज ही न निकले सिर्फ बल्कि जनता को भी
लगे कि कांग्रेस इंदिरा गांधी के समय की फिर से हो गयी है तभी कांग्रेस
और देश का कल्याण है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 31.10.2010
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