यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

250 शराब दुकानों को बंद करना ही अंतिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए

कुल 1054 शराब दुकानें छत्तीसगढ़ में हैं और इसमें से 250 दुकानें 1 अप्रैल से बंद करने का इरादा सरकार ने व्यक्त किया है। कहा जा रहा है कि इससे 100 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होगी लेकिन शेष दुकानों में बढ़ी बिक्री से यह घाटा पूरा हो जाएगा। जानकर अच्छा लगता है कि डॉ. रमन सिंह की सरकार शराब को हतोत्साहित करना चाहती है। क्योंकि शराब को मनुष्य के लिए किसी भी दृष्टि से उपयोगी नहीं माना जाता। कभी कभार ऐसे समाचार भी मिलते हैं कि निश्चित मात्रा में शराब के सेवन से स्वास्थ्य को लाभ होता है लेकिन व्यवहारिक पहलू तो यही है कि शराब व्यक्ति सहित उसके परिवार की बर्बादी का ही कारण बनती है। मध्यप्रदेश के समय में ही निर्णय हुआ था कि जिस क्षेत्र की महिलाएं शराब दुकानें बंद करने की मांग करेंगी, वहां शराब दुकान बंद कर दी जाएगी, लेकिन अधिकांश मामलों में यह संभव नहीं हुआ।
प्रदेश में शराब बंदी नहीं है। कभी मध्यप्रदेश में शराब बंदी थी। जब तक महात्मा गांधी का प्रभाव कांग्रेस पर संपूर्ण था तब तक कांग्रेस सरकारें शराब बंदी पर कायम रही लेकिन सरकारों की बढ़ती आर्थिक आवश्यकताओं ने शराब बंदी समाप्त कर दी। स्व. द्वारका प्रसाद मिश्र जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने शराब बंदी पूरी तरह से समाप्त कर दी। इसके बाद किसी भी सरकार ने मध्यप्रदेश में शराब बंद करने की कोशिश नहीं की। शराब से मिलने वाले राजस्व और शराब ठेकेदारों से मिलने वाली सौगातों ने शराब बंदी की सोच को ही समाप्त कर दिया। शराब का जितना वैध कारोबार होता है, उसके सामानान्तर ही अïवैध कारोबार भी होता है। दरअसल धन की लालसा अच्छे बुरे का भेद मिटा देती है। चुनाव आयोग कितना भी आदर्श आचार संहिता लगाए लेकिन चुनावों में शराब का छक कर प्रयोग होता है। कोई बिरला बिना शराब बांटे चुनाव जीत जाता हो तो जीत जाता हो। नहीं तो शराब  बांटे बिना जीत की उम्मीद नहीं की जा सकती।
छत्तीसगढ़ सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना 1 रु. और 2 रु. में 35 किलो चांवल की भी आलोचना इस बात को लेकर की जाती है कि बढ़ती संपन्नता का दुरुपयोग शराबखोरी के लिए किया जाता है। सरकार की नीयत तो साफ है। वह चाहती है कि कोई भी भूखा न रहे लेकिन इसका भी दुरुपयोग कुछ लोग करें तो सर्वहित की योजना को सरकार बंद तो नहीं कर सकती। छत्तीसगढ़ के आम आदमी की संपन्नता बढ़े, इसके लिए सरकारी प्रयासों की सराहना की जाती हैं लेकिन बढ़ती संपन्नता के दुरुपयोग को रोकना भी तो सरकार का ही काम है और प्रथम चरण में सरकार 250 शराब दुकानें बंद करने का इरादा रखती है तो उसकी तारीफ ही की जाएगी। यह बात सरकार भी अच्छी तरह से समझती है कि जिन क्षेत्रों में शराब दुकानें बंद की जाएगी, वहां अवैध व्यापारी अवैध शराब बेचने में हिचकेंगे नहीं। सिर्फ दुकानें बंद करने से ही उद्देश्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। जब तक कि शासकीय मशीनरी कृतसंकल्पित नहीं होगी, अवैध कारोबार को रोकने के लिए। यह कटु सत्य है कि वैध कारोबार की तुलना में अवैध कारोबार शासकीय मशीनरी की जेब ज्यादा गर्म करेगा। इस पर रुकावट की व्यवस्था नहीं की गई तो शराब दुकान बंद कर सरकार जो उद्देश्य प्राप्त करना चाहती है, उसमें सफल नहीं होगी।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मामले में स्वयं डॉ. रमन सिंह ने रुचि लेकर जिस तरह की व्यवस्था की और आज पूरा देश छत्तीसगढ़ की वितरण प्रणाली से प्रभावित होकर अपने राज्य में छत्तीसगढ़ की व्यवस्था को लागू करने के लिए तैयार है। ठीक उसी तरह से अवैध शराब बिक्री को निरुत्साहित करने की जरुरत है। 1 रु. और 2 रु. किलो चांवल की योजना यदि व्यवस्था सुचारु नहीं होती तो असफल सिद्ध हो जाती। असफल होती तो सरकार को आज जो लोकप्रियता हासिल है, वह अलोकप्रियता में बदल जाती। तब ऐसा जनसमर्थन नहीं मिलता जो अभी तक मिल रहा है। इसलिए अच्छी नीति बनाना अलग बात है और उसे लागू करना अलग। यह नहीं कहा जा सकता कि राशन माफिया का तंत्र पूरी तरह से समाप्त हो चुका है लेकिन राशन माफिया कमजोर तो पड़ा है। बोगस राशन कार्ड आज भी पकड़े जाते हैं लेकिन हितग्राहियों को राशन नहीं मिलता, यह तो नहीं कहा जा सकता।
राजस्व के मान से भले ही 15 प्रतिशत शराब दुकानें बंद की जा रही हैं लेकिन दुकानों की संख्या के आधार पर तो एक चौथाई दुकानें बंद की जा रही है। इसकी सफलता पर ही भविष्य में शराब बंदी की योजना लागू हो सकती है । सरकार जितना धन सस्ते दर पर अनाज देने में खर्च कर रही है, उसके आसपास ही सरकार की शराब से आय है। एक जनहितकारी सरकार शराब राजस्व के लोभ को छोड़ सकती है। यदि इससे छत्तीसगढ़वासियों का उद्धार होता है। सरकार पूर्ण शराब बंदी चुनाव से पूर्व लागू करने में सफल हो गयी तो प्रदेश की आधी जनसंख्या महिलाओं की उसे सहज ही सहानुभूति मिल सकती है। यह छोटा काम नहीं है बल्कि बड़े से बड़ा काम है। यह तो एक उदाहरण होगा कि महात्मा गांधी के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकने वालों ने शराब दुकानें खुलवायी  और भाजपा ने दुकानें बंद करवायी। शराब का विरोध धर्मों ने सिर्फ आर्थिक नुकसान के कारण नहीं किया बल्कि शराब के कारण जो बेहोशी व्यक्ति पर तारी होती है, उसके कारण किया। नशे में धूत्त व्यक्ति को अच्छे बुरे का बोध नहीं होता। इस कारण हर तरह की बुराइयों का जन्म होता है। सबसे पीड़ाजनक स्थिति शराब के कारण महिलाओं को होती है। क्योंकि अंतत: पुरुष के कृत्यों का भुगतान तो महिला को ही करना पड़ता है।
समाचार है कि मंत्रिमंडल की बैठक में शराब के अवैध कारोबार को लेकर कुछ मंत्रियों ने चिंता प्रगट की। स्वाभाविक है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि को नित्य अपने मतदाताओं के संबंध में जानकारी  मिलती है। महिलाएं तो सिसक-सिसक कर अपना दुख प्रगट करती है। डॉ. रमन सिंह और अमर अग्रवाल कृतसंकल्पित हों तो पूरे प्रदेश में भी शराब बंदी की जा सकती है। डॉ. रमन सिंह को तो वैसे भी प्रदेश की जनता की कीमत पर राजस्व की चिंता होती नहीं। यह उन्होंने विभिन्न योजनाओं से सिद्ध किया है। राज्य का सकल उत्पाद बढ़ रहा है। राजस्व बढ़ रहा है। 3 हजार करोड़ का वार्षिक बजट 30 हजार करोड़ पहुंच रहा है। तब शराब की 8-9 सौ करोड़ की आय की विशेष आवश्यकता तो सरकार को होना नहीं चाहिए। पूर्णत: शराबबंदी की भविष्य में सरकार की सोच नहीं है तो 250 दुकानों को बंद करने से कुछ होगा, नहीं। सिर्फ अवैध शराब विक्रेताओं को लाभ पहुंचाने के। कदम आगे बढ़ाया है तो मंजिल तक पहुंचाने का माद्दा भी होना चाहिए। डॉ. रमन सिंह और अमर अग्रवाल में यह माद्दा नहीं है, यह सोचने का तो कोई कारण नहीं। दोनों को कदम आगे बढ़ाने के लिए साधुवाद।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 29.01.2011
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