यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

400 पद के लिए 7 लाख उम्मीदवार प्रश्र चिन्ह तो लगता हैं आर्थिक विकास और सरकार की नीतियों पर

भारत तिब्बत सीमा सुरक्षा बल के लिए 400 जवानों की आवश्यकता है। इसके लिए विज्ञापन दिए जाने के बाद उत्तरप्रदेश के एक शहर में 7 लाख युवक इकट्ठा  होते हैं। 400  पद और 7 लाख उम्मीदवार। इसी से समझ में आता है कि बेरोजगारी की क्या स्थिति है? भारत दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्ति बनकर उभर रहा है। यहां तक कि अमेरिका भी भारत और चीन की बढ़ती आर्थिक ताकत से खौफजदा है लेकिन ऐसी आर्थिक समृद्धि से बेरोजगारी तो समाप्त नहीं हो रही है। नौकरी की दृष्टि से देखें तो सिपाही का पद कोई बहुत आकर्षण का पद तो है, नहीं। आज जब युवा इंजीनियर लाखों रुपए के वेतन पर काम कर रहे हैं। एमबीए पास युवकों को लाखों में वेतन मिल रहा है। दुनिया भर में भारतीयों को रोजगार मिल रहा है और इससे घबराहट भी है कि कहीं भारतीय युवक युवतियां दुनिया के इस वर्ग आयु के लोगों के लिए खतरा बन सकते हैं तब भी अमीरी और गरीबी का अनुपात कहां बदल रहा है?
मिश्र की राजधानी काहिरा में 10 लाख लोग इकट्ठा होकर अपने राष्टपति होस्नी मुबारक के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं। ये लोग चाहते हैं कि राष्टपति, पद से इस्तीफा दे दें। फौज भी राष्ट्रपति के बदले जनता के साथ दिखायी दे रही है। पुलिस तमाम प्रयासों के बावजूद लोगों को खदेडऩे में सफल नहीं हो रही है। लोगों की जान जा रही है, घायल हो रहे हैं लेकिन राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए कृतसंकल्पित दिखायी दे रहे हैं। राष्टï्रपति कह रहे हैं कि सितबंर तक उन्हें अपने पद पर रहने दिया जाए और वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन जनता आज उन्हें मोहलत देने के लिए तैयार नहीं है। जनता की हताशा, निराशा की पराकाष्ठा सत्तारुढ़ के लिए खतरे की घंटी ही साबित होती है। मिश्र की अशांति दुनिया को परेशान कर रही है। क्योंकि तेल के दाम बढ़ रहे हैं और इससे सभी की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी है।
भारत की भी स्थिति इस मामले में कठिन है। अभी ही पेट्रोल एवं डीजल के भाव सरकार की दृष्टि से भले ही कम हों और पड़ोसी मुल्कों का उदाहरण देकर वह महंगा तेल खरीदने के लिए जनता को बाध्य करे लेकिन जनता को तो लग रहा है कि उसका गला दबाया जा रहा है। महंगाई से त्रस्त जनता भ्रष्टाचार का यह खेल देख रही है। पूर्व दूरसंचार मंत्री की सीबीआई के द्वारा गिरफ्तारी, महाराष्टï्र के पूर्व मुख्यमंत्री का नाम एफआईआर में आना, कर्नाटक के मुख्यमंत्री का अपने पुत्र और परिवारजनों को कीमती जमीन कौडिय़ों के भाव आबंटित करना, ऐसे उदाहरण हैं कि हमाम में सभी नंगे दिखायी देते हैं। अब तो लोग इंतजार कर रहे हैं कि राष्टï्रमंडल खेलों के भ्रष्टïाचार के खलनायकों की गिरफ्तारी कब होगी? कोई भी समाचार पत्र उठाइए, कोई भी न्यूज चैनल देखिए, अपराध और भ्रष्टïाचार की कथाओं से रंगा हुआ ही पाएंगे। अब तो अपराधियों का ही मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि वे अधिकारियों को जिंदा जलाने लगे हैं। बल्लियों से पुलिस अधिकारियों की मार-मार कर हत्या कर रहे हैं। मिलावट का काम करने वाले तो पत्थर मारकर अधिकारियों, कर्मचारियों की गाड़ी के कांच ही नहीं, सर भी फोडऩे लगे हैं।
समाज जिस तरफ बढ़ रहा है, उससे यह तो स्पष्ट दिखायी देता है कि हुक्मरानों की सोच में खामियां है। एक तरफ आर्थिक विकास ने धन के पहाड़ खड़े कर दिए हैं तो दूसरी तरफ दो वक्त की रोटी भी भारी पड़ रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य हर मामले में दो तरह का भारत है। अमीर का अलग और गरीब का अलग। एक तरफ पब्लिक स्कूल की महंगी पढ़ाई जो सक्षम और संपन्न लोगों की संतानों का कैरियर निश्चित करती है तो दूसरी तरफ शासकीय स्कूल। जहां पढ़कर नौकरी प्राप्त करना हर किसी के बस की बात नहीं। स्वास्थ्य का भी यही हाल है। एक तरफ फाईव स्टार चिकित्सालय हैं जहां अमीरों का उपचार होता है तो दूसरी तरफ शासकीय अस्पताल। जहां भगवान ही मरीज का मालिक होता है। कृषि भूमि कम होती जा रही है। आवास और उद्योग उस पर काबिज हो रहे हैं तो पारिवारिक बंटवारे के कारण बंटते-बंटते जमीन भरण पोषण के लिए पर्याप्त नहीं। सिवाय बेचकर आगे दूसरा काम करने की बाध्यता के और कोई अवसर तो बचता नहीं।
आबादी के मामले में हम गौरवान्वित हैं कि वह दिन दूर नहीं जब हमारी जनसंख्या चीन से भी ज्यादा होंगी लेकिन इसका परिणाम क्या होगा? कृषि भूमि का व्यक्ति के आधार पर और कम होना। आवास के लिए और ज्यादा जगह की जरुरत होगी। अभी ही कहा जा रहा है कि विश्व की आर्थिक मंदी की चपेट में आने से भारत बच गया तो उसका प्रमुख कारण हमारी कृषि आधारित आर्थिक व्यवस्था है। चूंकि खाने के लिए भरपूर खाद्यान्न हम उत्पन्न कर लेते हैं और भोजन ही मिल जाए तो बुहत से दुखों को हम भूला देते हैं लेकिन बढ़ती जनसंख्या को कृषि संभाल नहीं सकती। वैसे भी यंत्रीकरण बढऩे से अब कृषि में भी श्रम की पहले की तुलना में कम आवश्यकता होती है। तब जनसंख्या के रुप में जो मानवीय श्रम सरप्लस निर्मित हो रहा है, उसका क्या करेंगे? आज 400 सिपाहियों के पद के लिए 7 लाख लोग उम्मीदवार हो जाते हैं तो आने वाले कल में यह संख्या 70 लाख भी पहुंच सकती है।
7 लाख लोग जब किसी शहर में धमक जाते हैं तो पूरी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। 7 लाख लोगों को ठहराना, खिलाना-पिलाना कम से कम मध्यम श्रेणी के शहर के बस की बात तो होती नहीं। फिर आक्रोश भड़कता है और उसके परिणाम भी सामने आते हैं। लूटमार, आगजनी जैसी घटनाएं भी हो जाती है। प्रशासन चाहने लगता है कि ये किसी तरह से शहर छोड़कर अपने घर वापस जाएं लेकिन 7 लाख लोगों की वापसी के लिए आवागमन के साधन ही पर्याप्त नहीं होते। तब ट्रेन की छतों पर, ट्रेन के इंजन पर ये भीड़ चढ़ जाती है। प्रशासन इन्हें उतारता नहीं बल्कि टुकुर-टुकुर देखता है। नियम कायदों की धज्जियां उड़ती है और ट्रेन रवाना कर दी जाती है। दुष्परिणामों की चिंता किए बिना सोच यही होती है कि अपनी बला तो टले। दुष्परिणम होता है। ट्रेन के ऊपर सवार युवक एक ब्रिज से टकराकर गिरने लगते हैं और घायल होने के साथ कितने ही अपनी जान गंवा देते हैं।
एक दिन समाचार पत्र में समाचार छपता है और फिर बात आई गई समाप्त हो जाता है लेकिन जिसका पुत्र मारा जाता है, वही समझता है, पीड़ा को। भविष्य के लिए खतरे के चिन्ह तो दिखायी दे रहे हैं। आर्थिक विकास जरुरी है तो उसके दूरगामी परिणामों का अध्ययन भी जरुरी है। आर्थिक विकास समाज में खाई बनने का काम न करे। महात्मा गांधी के ही अनुसार अंतिम व्यक्ति को उसका लाभ मिलना चाहिए। हर वर्ष खबरें आती हैं कि करोड़ों नौकरियां बढ़ रही है लेकिन इसके बावजूद करोड़ों के लिए कोई नौकरी नहीं होती। 400 पदों के लिए इक_ïा 7 लाख लोग तो उदाहरण हैं ही कि उनके पास नौकरी नहीं है। ये भी युवक हैं। इनके समतुल्य युवतियां भी तो हैं। समानाधिकार की बात है तो उनके लिए भी नौकरियां चाहिए। पूरे देश में बेरोजगारों की संख्या इसी तरह से बढ़ती गयी और निश्चित रुप से बढ़ेगी तो ये बेरोजगार पूरे शासकीय तंत्र को हिलाने की क्षमता रखते हैं। काम नहीं होगा तो अपराध आकर्षित करेगा। परिणाम अच्छा तो नहीं दिखायी देता।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 03.02.2011
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