यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

कानून के रक्षक को ही जब जिंदा जला दिया गया तब यह नौकरशाहों के लिए सोच विचार का विषय है

अभी तक तो बहुओं को मिट्टïी का तेल डालकर जलाने की व्यथा कथा सामने आती थी लेकिन अब अपराधियों और खासकर आर्थिक अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे कानून के रक्षक को ही मिट्टïी का तेल डालकर जलाने लगे। किसी भी जिंदा आदमी पर मिट्टïी का तेल डालकर जलाना क्रूरता की पराकाष्ठïा है। ऐसा काम कोई जानवर नहीं करता लेकिन इंसान तो करता है। आज इंसान को किसी जानवर से इतना खतरा नहीं है जितना इंसान से है। आम आदमी की बात तो जाने दीजिए, उसकी आज भी क्या बिसात है लेकिन कानून की रक्षा करने वाले एक एडिशनल कलेक्टर यशवंत सोनवणे को ही जब जिंदा जला दिया जाता है तो फिर सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है कि जब रक्षक ही सुरक्षित नहीं तो कौन सुरक्षित होगा?
समाज में बेईमानी, भ्रष्टïाचार इतना बढ़ रहा है कि ईमानदार की जान तो जोखिम में है, ही । उसे किसी का इकलौता सहारा है तो वह कानून का है। कानून का रक्षक ही सुरक्षित नहीं है तो फिर भगवान भरोसे हो गया, एक ईमानदार इंसान। यशवंत सोनवणे का कसूर क्या था ? यही कि वे एक ईमानदार अधिकारी थे और अपराधियों को पकडऩा चाहते थे। अपराधियों को कानून के रक्षक का यह हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं हुआ। अपराधियों का दुस्साहस इतना बढ़ा हुआ था कि दिन दहाड़े यशवंत सोनवणे के पी. ए.  एवं ड्रायवर के सामने ही यशवंत सोनवणे पर मिट्टïी का तेल डालकर आग लगा दिया। यशवंत सोनवणे ने जलते जलते भी अपराधी को पकड़ लिया ओर खबर यह है कि सोनवणे तो शहीद हो गए लेकिन अपराधी भी अस्पताल में 60 प्रतिशत जलकर जीवन और मौत के बीच झूल रहा है। अपराधियों के साथियों को भी पुलिस ने गिरफतार कर लिया है ।
यह आज सभी के लिए सोच का विषय होना चाहिए कि ऐसी घटना क्यों घटित हुई ? बढ़ती अर्थ पिपासा ही  इसकी जड़ तो नहीं है। क्योंकि अपराध और भ्रष्टïाचार का सबसे बड़ा कारण अर्थ पिपासा ही है। राजनैतिक पार्टियां और सरकारें एक ही बात करती है, आर्थिक विकास। कैसे आदमी की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो ? जब एक ही मंत्र बार बार दोहराया जाए तो वह अपना असर भी दिखाता है। एक अंधी विकास की दौड़ में इंसान को उलझा दिया गया है और जब लोग देखते हैं कि अपराध से सुगमता से धन प्राप्त किया जा सकता है और प्राप्त धन से कानून के रक्षकों की जेब गर्म कर अपराध से बचा भी जा सकता है तो प्राप्त किया धन हौसला अफजाई का ही काम करता है। जेब में धन हो और जेल में भी कुछ दिन रहना पड़े तो जेल में भी सब तरह की सुविधा उपलब्ध हो जाती है। इससे जेल जाने का भय भी समाप्त हो जाता है। कानून में सजा का प्रावधान जिस उद्देश्य से किया गया है, वही बेमतलब साबित होता है। रिश्वत लेना आज एक आम बात हो गयी है। बिना किसी हिचक के रिश्वत मांगी जाती है और रिश्वत अपना स्वार्थ सिद्घ करने के लिए दी भी जाती है। सरकारी एजेंसियां जहां भी जिस भी अधिकारी के यहां छापा मारती है, उसी के यहां करोड़ों का अघोषित धन मिलता है। जो निश्चित रूप से प्राप्त वेतन से कई गुना अधिक होता है। जांच की जवाबदारी जिनकी है वे ही कहां दूध के धुले हुए हैं। वे भी सपड़ में आते हैं तो करोड़पति ही पाए जाते हैं। राजनेता, नौकरशाह, व्यापारी इनके बीच काले धन की गटर गंगा इस तीव्रता से बहती है जो राष्टï्र की कुल आय के समतुल्य है। विदेशी बैंकों में देश का काला धन कोई आम आदमी ने तो जमा नहीं कराया है। नाम भले ही सामने न आए और सरकार संधि के बहाने उच्चतम न्यायालय को भी बताने के लिए तैयार न हो लेकिन असलियत तो एकदम साफ है। फौज तक तो भ्रष्टाचार से बच नहीं सका। न्यायालयों पर भी संदेह के बादल उमड़ते रहते हैं।
आखिर खेल तो धन का ही है। एक तरफ इफरात धन चंद लोगों के पास जा रहा है। इतना धन है कि फूहड़ प्रदर्शन भी होता है। इसकी कीमत आम आदमी महंगाई के नाम पर चुकाता है। हर तरह का सट्टïा बाजार गर्म है। ऐसे में अर्थ कमाने की सोच को कैसे बदला जा सकता है ? मेहनत मशक्कत से तो जीवन भर कमाने के बाद रहने के लिए एक मकान ही आदमी बना ले तो बड़ी बात होती है लेकिन अपराध का रास्ता सारी सुख सुविधा मुहैया करा देता है। कल ही रायपुर मेें एक चंदन तस्कर की हत्या कर दी गई। उसकी पुलिस को तलाश थी लेकिन वह शान से रह रहा था। मतलब कानून की पकड़ से बाहर था। हरियाणा, दिल्ली से आकर वह अंतर्राष्टï्रीय तस्करी कर रहा था। कहा जा रहा है कि उसका एक भाई सुपारी किलर है और मरते मरते चंदन तस्कर अपनी हत्या में उसी का नाम ले गया है।
कभी कहा जाता था कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं लेकिन उसके विपरीत अब तो यह कहा जा सकता है कि अपराधियों के हाथ बहुत लंबे  होते हैं। कानून के नेटवर्क से बड़ा नेटवर्क तो अपराधियों का है। न्यायालय किसी को सजा सुना देता है तो उसके विरूद्घ भी आवाज उठने लगती है। कसाब जैसे अपराधी को भी लंबी कानूनी प्रक्रिया एक तरह से संरक्षण ही देती है। उच्चतम न्यायालय सजा फांसी की सुना भी दे तो राष्टï्रपति से क्षमा प्रार्थना कर अपराधी लंबा जीवन जीता है। ऐसे में ईमानदार लोगों के लिए संरक्षण कहां है ? भले ही 7 अपराधी छूट जाएं लेकिन एक निरपराध को सजा नहीं होना चाहिए जैसा आदर्श वाक्य ईमानदारों को कम और अपराधियों को ज्यादा संरक्षण देता है।
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी ईमानदारी जिंदा है तो उसके लिए ईमानदार लोग ही जिम्मेदार हैं। यशवंत सोनवणे तो शहीद हो गए लेकिन उन अपराधियों को जिन्होंने घृणित कृत्य किया, सजा दिलाना क्या आसान काम है ? न्यायालय तो साक्ष्य के आधार पर चलता है। यशवंत सोनवणे का पीए और ड्रायवर ही क्या गवाही दे पाएंगे? आज महाराष्टï्र के शासकीय अधिकारियों ने हड़ताल की घोषणा की है। आज हड़ताल से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि अधिकारी कसम खाएं कि वे न तो गलत करेंगे और न गलत काम होता देखेंगे। आज देश के नौकरशाह इस बात के लिए कृतसंकल्पित हो जाएं कि वे अपने कर्तव्य का निर्वहन ईमानदारी से करेंगे। बिना किसी भय लालच के करेंगे तो वे देश में बहुत कुछ बदल सकते हैं। क्या वे ऐसा करेंगे ? उत्तर उन्हें ही देना है लेकिन उनके अंदर आत्मा जैसी कोई चीज है तो वे उसी से पूछें कि देश को जिस तरफ  ले जाया जा रहा है, उसके लिए वे भी कितने जिम्मेदार हैं ? अपराधियों का हौसला इसी तरह से बढ़ता रहा तो रहना सभी को इसी देश में है। वे कैसा भारत चाहते हैं? जहां उनके बाल बच्चे और परिवार रह सकें। यशवंत सोनवणे को सही श्रद्घांजलि तो यही होगी कि उनके रास्ते पर चलें।
- विष्णु सिन्हा
27-1-2011