यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

यदि सरकार ने न्यायालय में झूठा हलफनामा दायर किया है तो यह गिरावट की पराकाष्ठï है

सरकार ने हलफनामा दायर कर उच्चतम न्यायालय को बताया कि उसे भ्रष्टïाचार के मामले में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पी.जे. थामस के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होने की जानकारी नहीं थी। जनता से झूठ बोलना, झूठे वायदे करना तो सरकारों के लिए एक आम बात है। स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नरसिंहराव की सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए संसद में कहा था कि चुनाव में वायदा करना अलग बात है और उसे पूरा करना अलग। मानसिकता तो स्पष्टï है। अभी बहुत दिन नहीं हुए जब लोकसभा के  चुनाव में कांग्रेस ने वायदा किया था कि वह गरीबों को 3 रू. किलो अनाज देगी लेकिन डेढ़ वर्ष से अधिक हो गया, सरकार अपना वायदा पूरा करती नहीं दिखायी पड़ती। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसके लिए दबाव भी बनाया लेकिन सरकार ने दबाव को स्वीकार नहीं किया। मोटे तौर पर यह आम बात है। मनमोहन सिंह की सरकार ही ऐसा करती है, ऐसा नहीं है। अधिकांश सरकारों की फितरत इसी तरह की है।
लेकिन केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय में झूठा हलफनामा भी दाखिल कर सकती है, यह बात तो किसी को भी स्वीकार नहीं होगी। लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कहती हैं कि सरकार सफेद झूठ बोल रही है। सीबीसी की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और प्रतिपक्ष की नेता को मिलाकर तीन सदस्यीय समिति होती है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के साथ सुषमा स्वराज भी समिति की सदस्य थी। तीन सदस्यीय पैनल में से थामस के नाम का विरोध सुषमा स्वराज ने किया था। कारण उन पर चार्जशीट ही थी। यह तो स्पष्टï है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री थामस को सतर्कता आयुक्त बनाना चाहते थे। इसलिए सर्वसम्मति से न होकर उनका नाम बहुमत के आधार पर तय किया गया। जिसका यह भी स्पष्टï अर्थ होता है कि समिति की बैठक औपचारिकता थी। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री ने पहले से ही तय किया हुआ था कि थामस को सतर्कता आयुक्त नियुक्त करना है। तब थामस की चार्जशीट की जानकारी बैठक में क्यों रखी जाती? गृह विभाग को यह जानकारी न हो, इस बात पर तो कोई विश्वास नहीं कर सकता।
इसके साथ 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के समय थामस दूरसंचार मंत्रालय में सचिव थे। विपक्ष संसद की कार्यवाही पूरे एक सत्र भर नहीं चलने देता कि 2जी स्पेक्ट्रम की जांच के लिए संयुक्त संसदीय दल बनाया जाए। सरकार भी अड़ी हुई है कि वह जेपीसी नहीं बनाएगी। यदि आप ईमानदार हैं और आपकी सरकार ने कुछ गलत नहीं किया है तो जेपीसी जांच से परहेज क्यों ? शक संदेह के लिए सरकार ही कारण बन रही है। जब कोई कुछ छुपाना चाहता है तब ही वह किसी भी तरह की जांच से घबराता है। आज मनमोहन सिंह की सरकार की स्थिति भी वैसी ही हो गयी है जैसी कभी विभिन्न आरोपों में घिरी नरसिंहराव सरकार की हो गयी थी और कभी बोफोर्स के कारण राजीव गांधी की हो गयी थी। बोफोर्स का जिन्न अभी भी चिराग के अंदर जाने के लिए तैयार नहीं है। आयकर विभाग ने उसे फिर से अपने फैसले से जिंदा कर दिया है।
काश्मीर के श्रीनगर के लाल चौक पर 26 जनवरी को झंडा फहराने के कार्यक्रम ने भाजपा को फिर से जिंदा कर दिया है। भले ही ये निखालिस राजनीति हो लेकिन राष्टï्र प्रेमियों के मन पर कांग्रेस की छवि खराब ही हुई है। कांग्रेस हिंदू उग्रवाद के नाम पर जिस तरह से संघ और भाजपा की छवि खराब करना चाहती थी और इससे अपनी छवि निखारना चाहती थी, वह भी अब संभव नहीं दिखायी देता। कोर्ट के आदेश पर जिस तरह से मस्जिद हटायी गयी और मुसलमानों के विरोध के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मस्जिद पुन: बनवाने का आश्वासन दिया, उससे कांग्रेस ने मुसलमानों का दिल जीतने का भले ही प्रयास किया लेकिन चौक चौराहों से जिस तरह से हिंदू मंदिर हटाए जा रहे हैं, उससे संदेश स्पष्टï है। यह उच्चतम न्यायालय के आदेश से हो रहा है और छुटपुट विरोध के सिवाय हिंदू मंदिर हटाने में प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं आ रही है। हिंदुओं में यदि उग्रवाद होता तो क्या यह संभव था?
कांग्रेस की छवि खराब हो रही है और भाजपा की छवि निखर रही है। उच्चतम न्यायालय में यह कहकर कि सतर्कता आयुक्त को हटाया जा सकता है, सरकार ने अपनी कमजोरी भी प्रगट कर दी है। सरकार जब उच्चतम न्यायालय में झूठ का सहारा लेकर बचने की कोशिश कर रही है और सुषमा स्वराज हलफनामा दायर कर उच्चतम न्यायालय में सत्य को प्रगट करने का इरादा रखती है तो इससे बड़ी शर्मिंदगी की बात सरकार के लिए और क्या हो सकती है? बजट सत्र भी आ रहा है। फिर सरकार और विपक्ष आमने सामने होगा। विपक्ष सरकार से इस्तीफा भी मांग सकता है। अविश्वास का प्रस्ताव भी ला सकता है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले से बड़ा मामला तो उच्चतम न्यायालय में दिया गया झूठा हलफनामा भी बन सकता है। सतर्कता आयुक्त की कुर्सी पर जब एक दागी व्यक्ति को सरकार बहुमत के आधार पर बिठाती है तो वह जनता को स्पष्टï संदेश अपने चरित्र के विषय में देती है।
जहां तक मनमोहन सिंह का प्रश्र है तो उनकी ईमानदारी पर कोई संदेह व्यक्त नहीं कर रहा लेकिन उनकी नाक के नीचे जो भ्रष्टïाचार और गलत नियुक्ति हुई, उसकी नैतिक जिम्मेदारी से वे भले ही इंकार करें लेकिन उन्हें राष्टï्र को बताना चाहिए कि गठबंधन की मजबूरी भ्रष्टïाचार को देखकर अनदेखा करने के लिए उन्हें बाध्य करती थी तो सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति में ऐसा किसका दबाव था जो सब कुछ जान बूझकर उन्होंने किया।  क्योंकि सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति मनमोहन सिंह  से अप्रत्यक्ष रूप से नहीं प्रत्यक्ष रूप से संबंधित मामला है। राहुल गांधी महंगाई को गठबंधन की मजबूरी बता सकते हैं लेकिन सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति भी गठबंधन की मजबूरी है, क्या? थामस की नियुक्ति के लिए दो लोग जिम्मेदार हैं। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के रूप में और गृहमंत्री के रूप में पी. चिदंबरम।
ये दोनों कांग्रेसी हैं। तीसरी सदस्य सुषमा स्वराज ने तो असहमति प्रगट की थी। इसलिए सीधे सीधे यह कांग्रेस का ही निर्णय है। अब कहा जा रहा है, उच्चतम न्यायालय से कि थामस को हटाया जा सकता है। एक बार मान भी लिया जाए कि थामस की चार्जशीट के मामले में मनमोहन सिंह को जानकारी नहीं थी लेकिन आज हटाने की बात करने के पहले ही उन्हें क्यों नहीं हटा दिया गया? कोई उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर होने के बाद ही सरकार को तो मालूम नहीं पड़ा कि थामस दागी है। जब सुषमा स्वराज ने जानकारी दी तभी जांच कर लेना चाहिए था। नहीं किया गया तो दाल में काला ही काला तो स्पष्टï दिखायी देता है। सतर्कता आयुक्त की कुर्सी की महत्ता सेे मनमोहन सिंह परिचित नहीं, ऐसा तो मानने का कोई कारण नहीं। यदि गलत उद्देश्य से नियुक्ति नहीं की गयी तो सफेद झूठ बोलने की क्या जरूरत है? यह तो सिर्फ अब अपनी चमड़ी बचाने का ही तरीका दिखायी देता है लेकिन क्या इससे झूठ सच हो जाएगा?
- विष्णु सिन्हा
28-01-2011