केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर पी जे थामस की नियुक्त केंद्र सरकार के लिए गले में फंसी हड्डी बन गयी है। न तो सरकार उसे निगल ही पा रही है और न ही उगल । केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा है कि थामस के पामोलीन मामले में दागी होने की उसे जानकारी नहीं थी। प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया और उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर सरकार के झूठ से पर्दा उठाने की मंशा जाहिर की। लेकिन अब सुषमा स्वराज को ऐसा करने की जरुरत नहीं है। क्योंकि स्वयं गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने पत्रकारवार्ता में स्वीकार कर लिया है कि थामस के दागी होने की जानकारी थी और बैठक में यह बात श्रीमती स्वराज ने उठाया था। ईमानदार प्रधानमंत्री की इच्छा से थामस की नियुक्ति सुषमा स्वराज के विरोध के बावजूद की गई। इसके बाद कोई मांग करे न करे मनमोहन सिंह को अपने गृहमंत्री की स्वीकारोक्ति के बाद नैतिक दृष्टि से भी, संवैधानिक दृष्टि से भी अपना पद त्याग देना चाहिए।
लेकिन ऐसा कोई इरादा अभी तक तो मनमोहन सिंह ने व्यक्त नहीं किया है। इसके बदले वे चाहते हैं कि थामस इस्तीफा दे दें और मामला समाप्त हो जाए लेकिन थामस इस्तीफा देने के मूड में दिखायी नहीं देते। उन्होंने तो स्पष्ट रुप से कह भी दिया है कि वे इस्तीफा देने वाले नहीं है। जिस पद की उपयोगिता ही तमाम तरह के असंवैधानिक, अवैध कार्यों को पकडऩे और सजा दिलाने की है। जो सीबीआई जैसी संस्थाओंं में सर्वोच्च पद पर नियुक्ति का अधिकार रखता है। जब वही पाक साफ नहीं होगा तो कैसे उम्मीद की जाए कि वह ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करेगा। सीबीआई पर यदा कदा राजनैतिक दबाव में काम करने के आरोप लगते रहते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में ही सरकार जेपीसी की नियुक्ति के बदले उच्चतम न्यायालय के मार्गदर्शन में सीबीआई से जांच कराने की बात कहती रही है। इससे आम आदमी यही निष्कर्ष निकाल सकता है कि सीबीआई की जांच सरकार के लिए रक्षा कवच का काम करेगा। शायद इसी उद्देश्य से एक दागी व्यक्ति को सतर्कता आयुक्त बनाया गया।
सरकार छोटी से छोटी नौकरी भी देती है तो नियुक्ति के पूर्व पुलिस वेरिफिकेशन कराती है। थामस पर तो पहले से ही मुकदमा न्यायालय में विचाराधीन है। तब प्रथम दृष्टि में तो उनका नाम नियुक्ति के लिए बनाए पैनल में नहीं होना चाहिए था। इससे मनमोहन सिंह की नीयत की चुगली होती है। वे भले ही ईमानदार हों लेकिन जब वे इस बात का ध्यान नहीं रखते कि सतर्कता आयुक्त की कुर्सी पर एक ईमानदार व्यक्ति को ही बिठाना चाहिए तब वे स्वयं इस बात की चुगली करते हैं कि ईमानदार व्यक्ति उनकी पसंद का व्यक्ति नहीं है। यदि ऐसा वे किसी के दबाव में करते हैं तो भी वे स्वयं दोषमुक्त कैसे कहे जा सकते हैं? प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह भी ईमानदारी से न कर दबाव में करता है तो सबसे पहले तो यह उसी के सोच का विषय है कि प्रधानमंत्री पद के शपथ में उन्होंने जो बात कही, उसका पालन ही वे नहीं कर रहे हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
संवैधानिक रुप से राज्यसभा के सदस्य के रुप में वे सोनिया गांधी की इच्छा से देश के प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन वास्तव में क्या वे देश की जनता के द्वारा चुने हुए व्यक्ति हैं? उन्हें लोकसभा की कार्यवाही में प्रधानमंत्री के रुप में भाग लेने का तो हक है लेकिन किसी लोकसभा के मतदान में मत देने का अधिकार नहीं हैं। लोकसभा में संसदीय दल के नेता प्रणव मुखर्जी हैं। सोनिया और राहुल गांधी लोकसभा के सदस्य हैं। मतलब ये जनता के प्रतिनिधि है लेकिन मनमोहन सिंह तो असम से राज्यसभा के सदस्य हैं। साफ है कि राज्यसभा की सदस्यता भी उन्हें सोनिया गांधी की कृपा से ही मिली है। प्रधानमंत्री का पद भी उन्हें सोनिया गांधी की दया से मिला है। इसीलिए तो वे मंत्रिमंडल में भी फेरबदल अपनी इच्छा से नहीं कर सकते। तब सतर्कता आयुक्त वे क्या अपनी मर्जी से बनाएंगे?
सीबीआई ने न्यायालय में अर्जी दी है कि बोफोर्स का मामला वह वापस लेना चाहती है। उसी समय आयकर ट्रिब्यूनल बोफोर्स की दलाली पर टैक्स लेने का फैसला सुनाता है। वह बताता है कि बोफोर्स में कितनी दलाली ली गई। सीबीआई हो या आयकर विभाग दोनों केंद्र सरकार के ही विभाग है। जब सीबीआई के अनुसार बोफोर्स दलाली में केस चलाने लायक नहीं है तो आयकर ट्रिब्यूनल बोफोर्स दलाली पर टैक्स क्यों मांग रहा है? ईमानदार नौकरशाह चाहिए या बेईमान। क्योंकि ईमानदार नौकरशाह तो गलत काम करने के लिए तैयार होगा नहीं। तब बेइमानों को ईमानदार नौकरशाह पसंद कैसे आएगा? वह सतर्कता आयुक्त की कुर्सी पर बैठ गया तो सरकार में जो गलत काम होगा, उसे बचाने की कोशिश तो नहीं करेगा। जब केंद्रीय मंत्री कैग की रिपोर्ट को ही पूरी बेशर्मी से खारिज कर देता है तो इसी से समझ में आता है कि स्थिति कैसी विचित्र है? कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए के सरकारी खजाने को नुकसान की बात नहीं उठायी होती तो राजा संचार मंत्री बने रहते।
जबकि राडिया का टेप सरकार के पास मौजूद था। सरकार के ही एक विभाग ने राडिया की फोन टैपिंग की थी। कैसे लाबिंग कर केंद्र में मंत्री बनाए जाते हैं, इसका कच्चा चिट्ठïा टेप में मौजूद था। फिर भी ईमानदार प्रधानमंत्री को जैसे कोई लेना देना नहीं था। यह तो वे मामले हैं जो सबके सामने आया हैं। न जाने कितने मामले हैं जो अभी दफन है और जिनकी किसी को कोई खबर नहीं है। राडिया टेप से ही यह बात सामने आयी कि एक कांग्रेसी केंद्रीय मंत्री हर ठेके पर 15 प्रतिशत कमीशन लेता है। फेरबदल में उसका विभाग तो बदल दिया गया लेकिन वह शान से अभी भी मंत्री पद पर शोभायमान है। गृहमंत्री पी.चिदंबरम की तो तारीफ ही की जा सकती है कि सत्य को स्वीकार करने का उनमें माद्दा तो है। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे को झूठा साबित करना एक मंत्री को भारी पड़ सकता है। वे चाहते हैं तो चतुर सुजान की तरह चुप्पी साध सकते थे। पानी में रहकर मगर से दुश्मनी का माद्दा कितनों में होता है। चिदंबरम की स्वीकारोक्ति के बाद मनमोहन सिंह तो सीधे-सीधे कठघरे में खड़े हो गए हैं।
यदि आप सिर्फ ईमानदार व्यक्ति दिखना चाहते हैं तो वह समय समाप्त हो रहा है। वास्तव में आप ईमानदार व्यक्ति हैं तो अपनी ईमानदारी का प्रमाण भी देना पड़ेगा। मनमोहन सिंह को देश को बताना चाहिए कि किस दबाव में उन्होंने सतर्कता आुयक्त के रुप में थामस की नियुक्ति सब कुछ जानते समझते हुए की और क्यों झूठा हलफनामा सरकार के द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किया गया? क्योंकि संदेश तो जनता को मिल गया है कि सरकार ने झूठ बोलने के सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। ऐसी स्थिति सरकार की लोकप्रियता को ही नहीं उम्र को भी कम कर देगी। फिर दोबारा लौटने का अवसर जनता देगी इसकी उम्मीद भी नहीं करना चाहिए ।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 01.02.2011
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लेकिन ऐसा कोई इरादा अभी तक तो मनमोहन सिंह ने व्यक्त नहीं किया है। इसके बदले वे चाहते हैं कि थामस इस्तीफा दे दें और मामला समाप्त हो जाए लेकिन थामस इस्तीफा देने के मूड में दिखायी नहीं देते। उन्होंने तो स्पष्ट रुप से कह भी दिया है कि वे इस्तीफा देने वाले नहीं है। जिस पद की उपयोगिता ही तमाम तरह के असंवैधानिक, अवैध कार्यों को पकडऩे और सजा दिलाने की है। जो सीबीआई जैसी संस्थाओंं में सर्वोच्च पद पर नियुक्ति का अधिकार रखता है। जब वही पाक साफ नहीं होगा तो कैसे उम्मीद की जाए कि वह ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करेगा। सीबीआई पर यदा कदा राजनैतिक दबाव में काम करने के आरोप लगते रहते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में ही सरकार जेपीसी की नियुक्ति के बदले उच्चतम न्यायालय के मार्गदर्शन में सीबीआई से जांच कराने की बात कहती रही है। इससे आम आदमी यही निष्कर्ष निकाल सकता है कि सीबीआई की जांच सरकार के लिए रक्षा कवच का काम करेगा। शायद इसी उद्देश्य से एक दागी व्यक्ति को सतर्कता आयुक्त बनाया गया।
सरकार छोटी से छोटी नौकरी भी देती है तो नियुक्ति के पूर्व पुलिस वेरिफिकेशन कराती है। थामस पर तो पहले से ही मुकदमा न्यायालय में विचाराधीन है। तब प्रथम दृष्टि में तो उनका नाम नियुक्ति के लिए बनाए पैनल में नहीं होना चाहिए था। इससे मनमोहन सिंह की नीयत की चुगली होती है। वे भले ही ईमानदार हों लेकिन जब वे इस बात का ध्यान नहीं रखते कि सतर्कता आयुक्त की कुर्सी पर एक ईमानदार व्यक्ति को ही बिठाना चाहिए तब वे स्वयं इस बात की चुगली करते हैं कि ईमानदार व्यक्ति उनकी पसंद का व्यक्ति नहीं है। यदि ऐसा वे किसी के दबाव में करते हैं तो भी वे स्वयं दोषमुक्त कैसे कहे जा सकते हैं? प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह भी ईमानदारी से न कर दबाव में करता है तो सबसे पहले तो यह उसी के सोच का विषय है कि प्रधानमंत्री पद के शपथ में उन्होंने जो बात कही, उसका पालन ही वे नहीं कर रहे हैं तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
संवैधानिक रुप से राज्यसभा के सदस्य के रुप में वे सोनिया गांधी की इच्छा से देश के प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन वास्तव में क्या वे देश की जनता के द्वारा चुने हुए व्यक्ति हैं? उन्हें लोकसभा की कार्यवाही में प्रधानमंत्री के रुप में भाग लेने का तो हक है लेकिन किसी लोकसभा के मतदान में मत देने का अधिकार नहीं हैं। लोकसभा में संसदीय दल के नेता प्रणव मुखर्जी हैं। सोनिया और राहुल गांधी लोकसभा के सदस्य हैं। मतलब ये जनता के प्रतिनिधि है लेकिन मनमोहन सिंह तो असम से राज्यसभा के सदस्य हैं। साफ है कि राज्यसभा की सदस्यता भी उन्हें सोनिया गांधी की कृपा से ही मिली है। प्रधानमंत्री का पद भी उन्हें सोनिया गांधी की दया से मिला है। इसीलिए तो वे मंत्रिमंडल में भी फेरबदल अपनी इच्छा से नहीं कर सकते। तब सतर्कता आयुक्त वे क्या अपनी मर्जी से बनाएंगे?
सीबीआई ने न्यायालय में अर्जी दी है कि बोफोर्स का मामला वह वापस लेना चाहती है। उसी समय आयकर ट्रिब्यूनल बोफोर्स की दलाली पर टैक्स लेने का फैसला सुनाता है। वह बताता है कि बोफोर्स में कितनी दलाली ली गई। सीबीआई हो या आयकर विभाग दोनों केंद्र सरकार के ही विभाग है। जब सीबीआई के अनुसार बोफोर्स दलाली में केस चलाने लायक नहीं है तो आयकर ट्रिब्यूनल बोफोर्स दलाली पर टैक्स क्यों मांग रहा है? ईमानदार नौकरशाह चाहिए या बेईमान। क्योंकि ईमानदार नौकरशाह तो गलत काम करने के लिए तैयार होगा नहीं। तब बेइमानों को ईमानदार नौकरशाह पसंद कैसे आएगा? वह सतर्कता आयुक्त की कुर्सी पर बैठ गया तो सरकार में जो गलत काम होगा, उसे बचाने की कोशिश तो नहीं करेगा। जब केंद्रीय मंत्री कैग की रिपोर्ट को ही पूरी बेशर्मी से खारिज कर देता है तो इसी से समझ में आता है कि स्थिति कैसी विचित्र है? कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए के सरकारी खजाने को नुकसान की बात नहीं उठायी होती तो राजा संचार मंत्री बने रहते।
जबकि राडिया का टेप सरकार के पास मौजूद था। सरकार के ही एक विभाग ने राडिया की फोन टैपिंग की थी। कैसे लाबिंग कर केंद्र में मंत्री बनाए जाते हैं, इसका कच्चा चिट्ठïा टेप में मौजूद था। फिर भी ईमानदार प्रधानमंत्री को जैसे कोई लेना देना नहीं था। यह तो वे मामले हैं जो सबके सामने आया हैं। न जाने कितने मामले हैं जो अभी दफन है और जिनकी किसी को कोई खबर नहीं है। राडिया टेप से ही यह बात सामने आयी कि एक कांग्रेसी केंद्रीय मंत्री हर ठेके पर 15 प्रतिशत कमीशन लेता है। फेरबदल में उसका विभाग तो बदल दिया गया लेकिन वह शान से अभी भी मंत्री पद पर शोभायमान है। गृहमंत्री पी.चिदंबरम की तो तारीफ ही की जा सकती है कि सत्य को स्वीकार करने का उनमें माद्दा तो है। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे को झूठा साबित करना एक मंत्री को भारी पड़ सकता है। वे चाहते हैं तो चतुर सुजान की तरह चुप्पी साध सकते थे। पानी में रहकर मगर से दुश्मनी का माद्दा कितनों में होता है। चिदंबरम की स्वीकारोक्ति के बाद मनमोहन सिंह तो सीधे-सीधे कठघरे में खड़े हो गए हैं।
यदि आप सिर्फ ईमानदार व्यक्ति दिखना चाहते हैं तो वह समय समाप्त हो रहा है। वास्तव में आप ईमानदार व्यक्ति हैं तो अपनी ईमानदारी का प्रमाण भी देना पड़ेगा। मनमोहन सिंह को देश को बताना चाहिए कि किस दबाव में उन्होंने सतर्कता आुयक्त के रुप में थामस की नियुक्ति सब कुछ जानते समझते हुए की और क्यों झूठा हलफनामा सरकार के द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किया गया? क्योंकि संदेश तो जनता को मिल गया है कि सरकार ने झूठ बोलने के सभी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। ऐसी स्थिति सरकार की लोकप्रियता को ही नहीं उम्र को भी कम कर देगी। फिर दोबारा लौटने का अवसर जनता देगी इसकी उम्मीद भी नहीं करना चाहिए ।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 01.02.2011
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