यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

भष्टïचार के विरुद्ध जनयुद्ध का अर्थ ही है कि जनता को अब और बरगलाया नहीं जा सकता

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अब आक्रोश प्रगट होने लगा है। यह बात तो लोगों को अच्छी तरह से समझ में आ गयी है कि सरकार भ्रष्टïाचार रोकने के लिए कृतसंकल्पित नहीं है। जहां कोई मामला उजागर होता है तो उसकी भी लीपापोती करने से परहेज नहीं किया जाता। विदेशों में जमा कालाधन हो या महंगाई सबकी जड़ में भ्रष्टï तंत्र ही जिम्मेदार दिखायी देता है। सब कुछ जानकर भी प्रधानमंत्री जब तक हल्ला नहीं मचता तब तक देखकर भी अंजान बने रहते हैं। इंतहा तो यह है कि कैग की रिपोर्ट को ही कपिल सिब्बल जैसा मंत्री खारिज कर देता है। कपिल सिब्बल कहते हैं कि 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। जब भ्रष्टाचार नहीं हुआ है तो जेपीसी से जांच कराने की विपक्ष की मांग से सरकार सहमत क्यों नहीं है? कालेधन के मामले में सरकार नाम उजागर करने के लिए तैयार नहीं है और इसके लिए अंतर्राष्टï्रीय संधियों की आड़ ले रही है। यह सिर्फ कर चोरी का ही मामला नहीं है, उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी भी सरकार को परेशान नहीं करती। सतर्कता आयुक्त थामस के दागी होने से सरकार स्वयं को अंजान बता रही है। अंतत: महाराष्टï्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम आदर्श घोटाले की एफआईआर में आ ही गया।
भ्रष्टïाचार जो सामने आ रहा है, वही हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह है तो जो सामने नहीं आया है, उसकी कल्पना ही घबराहट पैदा करने वाली है। अब तो सीवीसी और सीबीआई को भी भंग करने की मांग उठने लगी। बुद्धिजीवियों के नेतृत्व में 60 शहरों में रैलियां कर लोगों ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनयुद्ध की घोषणा कर दी है। माहौल फिर जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की याद दिला रहा है। योग गुरु स्वामी रामदेव पूरे भारत के दौरे पर हैं और गांव-गांव भ्रष्टïाचार और विदेशों में जमा भारतीय धन के विषय में जनजागृति फैला रहे हैं। जनता भी बड़े उत्साह के साथ स्वामी रामदेव के अंदोलन को गति और शक्ति प्रदान कर रही है। आज कम से कम सरकार के सांसद बल के कारण तानाशाह बनने का खतरा नहीं है। इंदिरा गांधी के पास जैसा दो तिहाई बहुमत था, वैसा बहुमत सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के पास नहीं है और न ही सभी राज्यों में उनकी सत्ता है। इसलिए न तो आपातकाल का खतरा है और न ही सरकार के पास मनमानी करने का अधिकार।
आर्थिक विकास के नाम पर जिस तरह से देश में भ्रष्टïाचार और कालेधन को आश्रय मिला, उसने जनता पर कर का बोझ तो बढ़ाया ही, साथ ही सब्सिडी के लाभ से भी मासूम जनता को महरुम कर दिया। फलस्वरुप   जनता महंगाई की गिरफ्त में इस तरह से जकड़ गयी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। एक, दो, पांच रुपए के नोट हों या सिक्के इनका चलन में कोई बहुत मायने नहीं रह गया। सरकार में बैठे लोग बेशर्मी से कहते हैं कि विकास की कीमत तो चुकानी पड़ेगी। जनता की आय में वृद्धि हुई लेकिन किस जनता की? आज भी देश की आधी आबादी 20 रुपए प्रतिदिन में गुजारा करती है। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूल आवश्यकताएं तो धन की गुलाम बन गयी। अच्छी शिक्षा का अर्थ महंगी शिक्षा। निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें गरीबों को देने की बात भी फाइलों में दर्ज है लेकिन वास्तव में कितने स्कूल हैं देश के जो गरीबों को उनका हक दे रहे हैं। बातें सबके पास बड़ी-बड़ी और लंबी चौड़ी है लेकिन अमलीजामा पहनाने के मामले में सरकार फिसड्डïी ही साबित हो रही है। हजारों करोड़ों की मनरेगा योजना ही भ्रष्टïाचार का शिकार हो गयी है और किसी तरह का नियंत्रण नहीं दिखायी देता।
जब सरकार सीवीसी जैसे पद पर दागी व्यक्ति को बिठाने में हिचक महसूस नहीं करती और प्रतिपक्ष की नेता की बात सुनने के लिए तैयार नहीं तो इसी से सरकार की नीयत की चुगली होती है। फिर इस मामले में तो सीधे-सीधे हमारे प्रधानंमत्री ही सम्मिलित रहे। अब सरकार सतर्कता आयुक्त से कह रही है कि इस्तीफा दे दो तो खबर है कि वह इस्तीफा देने  से इंकार कर रहे हैं। पूर्व संचार मंत्री राजा से ही इस्तीफा लेने में सरकार को पसीना छूट गया था। पहले तो राजा ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था। राजा ने तो स्पष्ट कहा था कि सब कुछ प्रधानमंत्री की जानकारी में किया गया। मंत्रिमंडल के फेरबदल में उम्मीद की जा रही थी कि मंत्रिमंडल के कुछ बदनाम चेहरों को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा लेकिन विभागों में बदलाव के सिवाय कुछ नहीं किया गया। पूरा का पूरा लोकसभा का एकसत्र जेपीसी की मांग सरकार के न मानने के कारण बिना काम-काज के ही समाप्त हो गया।
सत्तारुढ़ दल की ही ऐसी स्थिति है, ऐसी बात नहीं है। भाजपा जिसे वर्तमान राजनैतिक परिस्थिति का सबसे ज्यादा लाभ मिलता, वह भी सत्ता के मोह में कर्नाटक के येदुरप्पा को बचाने के कारण अपनी छबि पर बट्टïा लगा बैठी। कभी शंकर सिंह वाघेला के बगावत के कारण सत्ता गंवाने वाली भाजपा में अब वह बात दिखती नहीं। अब राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के विरुद्ध मामला चलाने की इजाजत दे दी है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार और महंगाई के विरुद्ध भाजपा के आंदोलन को कार्यकर्ताओं का समर्थन भले ही मिले लेकिन जनता का समर्थन तो नहीं मिल रहा है। यह तो कोई भी नहीं कह सकता कि सिर्फ कांग्रेस की सरकारों में ही भ्रष्टïाचार है। भाजपा की राज्य सरकारें भी पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त मुक्त तो नहीं है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भ्रष्टïाचार के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की बात करते हैं। 20 वर्ष में नहीं 6 माह में फैसले की बात करते हैं। सोनिया गांधी के भी बयान भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं लेकिन बयान और वास्तविक स्थिति का भेद किसी से छुपा नहीं है।
इसीलिए देश में स्थिति ऐसी उत्पन्न हो रही है कि अब कोई भी व्यक्ति सिर्फ कसमसाकर नहीं रह सकता। उसे विरोध के लिए सड़क पर उतरना पड़े तो वह उतरेगा। बाबा रामदेव ने अलख सबसे पहले जगाया है और उनका संगठन भी देश में तैयार हो रहा है। स्थापित राजनेताओं और राजनैतिक पार्टियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि जब जनता ही उठ खड़ी होती है तो वह फिर किसी को बख्शती नहीं। इंदिरा गांधी ने तो जेल में बंद कर रखा था राजनेताओं को लेकिन जनता ने जब इंदिरा गांधी से मुक्ति का संकल्प ले लिया तो सत्ता से बेदखल कर ही दिया था। स्वयं इंदिरा गांधी तक को चुनाव में पराजित कर दिया था। जनता की सहनशक्ति की एक सीमा है और वह समाप्त हो रही है। नेतृत्व की कमी थी। लगता था कि एक तरफ कुंआ है तो दूसरी तरफ खाई। किधर भी जाओ मरना अपने को ही है लेकिन अब बाबा रामदेव के रुप में सशक्त नेतृत्व मिल गया है। जनता में यह विश्वास तो पैठ रहा है कि यह बाबा उन्हें धोखा नहीं देगा और जनता का विश्वास से बड़ी ताकत प्रजातंत्र में और कुछ नहीं होती। अब भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनयुद्ध की घोषणा ही इस बात की निशानी है कि पानी नाक के ऊपर आ गया है। जनता को और बरगलाया नहीं जा सकता।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 31.01.2011