यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 25 जनवरी 2010

भारतीयों के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन 26 जनवरी


कल 60 वर्ष पूरे कर लेगा, हमारा गणतंत्र। 26 जनवरी, 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ था। 15 अगस्त जिस तरह से स्वतंत्रता दिवस के रुप में अपनी महत्ता रखता है, उससे कम महत्व 26 जनवरी नहीं रखता। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था। देश स्वतंत्र हुआ था लेकिन इसके साथ ही विभाजन के जख्म भी थे। स्वतंत्रता की पूरी कीमत वसूल की गयी थी। हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघर्ष और बलिदान की तो अहम भूमिका स्वतंत्रता संग्राम में थी लेकिन विभाजन के परिणाम स्वरुप जो खून खराबा हुआ और वैमनस्यता पनपी, वह आज भी किसी न किसी रुप में हमें परेशान करने की कोशिश करती रहती है। बंटवारे के बाद जो भाई चारा पनपना चाहिए था, वह तो नहीं पनपा बल्कि उसके बदले बंटवारा प्राप्त कर अलग होने वालों ने किसी न किसी बहाने अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए दुश्मनी की अग्नि को ही प्रज्जवलित किया। 

26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू कर भारत ने अपने नागरिकों को स्वतंत्रता के साथ अधिकार भी प्रदान किए और नागरिकों की खुशहाली के लिए विकास की तरफ कदम बढ़ाए। सबसे बड़ी बात तो संविधान की यही है कि धर्म के आधार पर विभाजित होने के बावजूद भारत ने धर्म निरपेक्षता को स्वीकार किया। बहुसंख्यकों के हाथ में था कि वे किस तरफ देश को ले जाते हैं। बौद्धिक परिपक्वता का परिचय दिया, संविधान निर्माताओं ने और देश की कोटि-कोटि जनता ने उसे स्वीकार किया । तमाम तरह की विभिन्नताओं के बावजूद संविधान ने सबको एक सूत्र में जोडऩे का जो बीड़ा उठाया, उसे छिन्न-भिन्न करने का प्रयास तो छुटभैय्ये नेता अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिए करते रहे लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। आम नागरिकों ने ही उन्हें स्वीकार नहीं किया।


काश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, यह सिर्फ स्लोगन नहीं है बल्कि इसका मर्म हमारे संविधान में ही छिपा है। जो हर भारतीय नागरिक को मूल अधिकार के रुप में एक समान मानता है। प्रजातंत्र की जड़ें इतनी गहरी हो गयी हैं कि आज विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या का प्रजातंत्र भारत में ही है। जो लोग मानते थे कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भारत बिखर जाएगा, उन्हें तो करारा जवाब भारतीय ही दे चुके। आपस में लड़ाने के लिए कम षडय़ंत्र नहीं किए गए लेकिन सफलता किसी को नहीं मिली। इस देश की एकता ने पाकिस्तान के भारत से काश्मीर को अलग करने के षडय़ंत्र को ही न केवल नकार दिया बल्कि हिंदू मुसलमानों को लड़ाने की तमाम कोशिशों को फेल कर दिया।


इसकी जड़ हमारे संविधान में है। संविधान के द्वारा स्थापित कानून के शासन में है। जो राजनैतिक षडय़ंत्रों को भी विफल करने की क्षमता रखता है। कानून से ऊपर कोई नहीं है। यह छोटी बात नहीं है। 115 करोड़ नागरिकों के मुल्क को एक धागे से पिरो कर रखने का काम हमारे संविधान ने ही किया है। विभिन्न रुपों में आतंकवाद ने भारत में सिर उठाने की कोशिश की लेकिन कोई भी भारतीयों को अपने कृत्यों से सहमत नहीं करा सका। न तो पाकिस्तानी आतंकवादी और न ही नक्सली सफल होते दिख रहे हैं बल्कि इनके विरुद्ध कानूनी शिकंजा कस रहा है। 


संविधान ने स्वाभिमान से जीने का अधिकार सभी भारतीयों को दिया। आर्थिक रुप से पिछड़ों को आरक्षण की सौगात दिया। कितने ही तरह की सामाजिक बुराइयों से मुक्त होने के लिए कानूनी अधिकार दिए। इसलिए 15 अगस्त की तरह ही 26 जनवरी हमारा राष्ट्रीय  त्यौहार है। यह गर्व का दिन है। इस दिन ने सिर उठा कर चलने की आजादी हमें प्रदान की।



- विष्णु सिन्हा 

दिनांक 25.01.2010

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रोचक ..गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओ के साथ ...

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  2. ... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति .... गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!!!

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