कांग्रेस के कुछ पार्षद महापौर परिषद में न लिए जाने से विचलित हो गए हैं। वे पार्टी छोडऩे तक की धमकी दे रहे हैं। उनका कहना है कि वे वरिष्ठï पार्षद हैं और उनका हक पहले बनता है, महापौर परिषद में सम्मिलित होने का। सबसे ज्यादा आक्रोश तो मनोज कंदोई को महापौर परिषद में लेने से है। दो बार पार्षद का चुनाव हारे और तीसरी बार में जीते पार्षद को एक तो सभापति का उम्मीदवार बनाया गया और सभापति का चुनाव भी वे जीत नही सके तब उन्हें महापौर परिषद में लेना कितना उचित है? आखिर एक व्यक्ति की इतनी तरफदारी क्यों की जा रही है? कांग्रेसी पार्षद तो कह रहे हैं कि जिसने मनोज कंदोई को हराया वही सभापति नगर निगम का बना। पहले सुनील सोनी ने मनोज को हराया तो सभापति बने। फिर रतन डागा ने हराया तो वे भी सभापति बने। अंत में तो सभापति के चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बनाया तो संजय श्रीवास्तव भाजपा के पास बहुमत न होने के बावजूद जीत गए। मतलब साफ है कि कांग्रेस के ही पार्षदों ने मनोज कंदोई को सभापति बनाने के बदले संजय श्रीवास्तव को सभापति बनाना उचित समझा।
इतना सब होने के बाद जब मनोज कंदोई को महापौर परिषद में किरणमयी ने ले लिया तो असंतोष तो भड़कना ही था। यह दूसरी बात है कि कुछ लोग अपने असंतोष को अभिव्यक्त कर रहे हैं तो कुछ लोग असंतुष्ट होने क बावजूद मौन साधे हुए हैं। फिर भी यह बात तो आइने की तरह साफ है कि महापौर परिषद में किसे लिया जाए और किसे कौन सा विभाग सौंपा जाए, यह महापौर का विशेषाधिकार है। क्योंकि जनता से किए वायदे को पूरा करने की जिम्मेदारी है तो किरणमयी नायक पर ही है। वे किस पार्षद से कौन सा काम अच्छी तरह से ले सकती हैं, यह सोचना उन्हीं का काम है। फिर यह कोई ऐसी बात भी नहीं हैं जो पहली बार हो रही है। मनमोहन सिंह को जब नरसिंहराव ने वित्त मंत्री बनाया था तब वे न तो लोकसभा के सदस्य थे और न ही राज्यसभा के लेकिन उनके अर्थशास्त्र के ज्ञान के कारण नरसिंहराव ने देश की आर्थिक गाड़ी को पटरी पर लाने के लिए उन्हें वित्त मंत्री बनाया था। शिवराज पाटिल को तो गृहमंत्री लोकसभा का चुनाव हार जाने के बाद मनमोहन सिंह ने बनाया। यह बात दूसरी है कि वे असफल गृहमंत्री साबित हुए और उन्हें इस्तीफा देने के लिए बाध्य होना पड़ा लेकिन फिर से उनकी सेवा राज्यपाल के रूप में पंजाब में ली जा रही है।
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह आजकल कांग्रेस के महासचिव हैं। उत्तप्रदेश का प्रभार उनके पास है। वे राहुल गांधी के खास सलाहकारों में हैं। मध्यप्रदेश में जिसने कांग्रेस की लुटिया डुबायी, वह उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के उत्थान के लिए प्रयत्नशील हैं। उन्होंने चुनाव लडऩे के पूर्व कहा था कि यदि वे चुनाव हार गए तो 10 वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्हें पहले से पता था कि कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में इतना बड़ा गड्ढा किया है कि वह कम से कम 10 वर्ष तक तो सत्ता पर लौट नहीं सकेगी। इसलिए सत्ता के द्वंद से दूर रहने की उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी। छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री जब अजीत जोगी को बनाया गया था तब कांग्रेस विधायक दल में सिर्फ 2 विधायक उनके समर्थक थे। फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया और कांग्रेस छत्तीसगढ़ में ऐसी डूबी कि 6 वर्ष तो बीत गए और 4 वर्ष तक उसके सत्ता में लौटने के कोई चांस नहीं हैं।
कल ही राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस को कांग्रेसी ही हराते हैं। वे कोई नई बात नही कह रहे हैं। कांग्रेसियों से ज्यादा अच्छी तरह से यह बात कौन जानता है? यह बात दूसरी है कि यह बात जनता भी अच्छी तरह से समझती है। रायपुर नगर निगम के चुनाव में किरणमयी नायक की जीत को भाजपा न पचा सके, यह बात तो समझ में भी आती है लेकिन कांग्रेसी नहीं पचा पा रहे हैं, यह बात जनता को असमंजस में डाल रही है। कल तक जो कांग्रेस की एक टिकट के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे, वे आज जीतकर महापौर परिषद पर दावा कर रहे हैं। यह महापौर का तो विशेषाधिकार है कि वह किसे अपनी परिषद में ले लेकिन यह पार्षद का कैसे अधिकार हो गया कि उसे महापौर, महापौर परिषद में ले? वह तो गनीमत है कि महापौर का चयन पार्षदों ने नहीं किया है, बल्कि रायपुर शहर की जनता ने किया है। यह कहना फिजूल है कि उनके वार्ड से महापौर को इतने मत की लीड मिली। कांग्रेस के तो 31 पार्षद ही जीतकर आए हैं जबकि किरणमयी को 34 वार्डों में लीड मिली है। भाजपा और निर्दलीय पार्षदों के वार्ड में भी अच्छी खासी लीड मिली है।
फिर अपने वार्ड का विकास करना है या महापौर परिषद में रहकर कोई विशेष उपलब्धि करना है। आज जो असंतोष की राजनीति कर रहे हैं उन्हें किस नेता की सिफरिश पर टिकट दी गई। इसकी तलाश करना चाहिए। क्योंकि जिसने अड़कर टिकट दिलायी, उसकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने पार्षद को अनुशासन में रखें। क्योंकि ये पार्षद छवि तो कांग्रेस की खराब कर रहे हैं। जिन्होंने सभापति चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के विरूद्घ मत दिया, उन्होंने गुपचुप रास्ता अपनाया लेकिन जो खुलेआम बयानबाजी कर रहे हैं, वे तो कांग्रेस को जनता की अदालत में कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। मतदाता को अफसोस न हो कि कांग्रेस को जितवाकर उसने कोई गलत निर्णय तो नहीं ले लिया। किरणमयी की साफ सुथरी छवि को देखकर लोगों ने उसे महापौर चुना। कोई और प्रत्याशी होता तो कांग्रेस नहीं भाजपा जीत जाती और आज महापौर परिषद में आने का स्वप्न भी कांग्रेसी पार्षद नहीं देखते।
किरणमयी नायक को महापौर चुनकर जनता ने कांग्रेस को मौका दिया है। जनता देखना चाहती है कि कांग्रेस के चाल चरित्र में अंतर आया है या नहीं। बार-बार नकारे जाने के बाद भी कांग्रेसी यदि अपनी आदतों से बाज नहीं आते तो कांग्रेस को भी भविष्य में जनता से किसी तरह के समर्थन की उम्मीद नहीं करना चाहिए। किरणमयी अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रही है कि वे जन आकांक्षा पर खरी साबित होकर दिखाएं। भाजपा तो ऐसा चाहेगी, नहीं। आखिर वह क्यों चाहेगी कि किरणमयी सफल हो? किरणमयी की सफलता का तो अर्थ होगा कि जनता का समर्थन कांग्रेस की तरफ बढ़े । इससे भाजपा को सिवाय नुकसान के और क्या प्राप्त होगा? लेकिन भाजपा को ऐसी जरूरत नहीं पड़ेगी। संजय श्रीवास्तव बेकार ही उछलकूद कर रहे हैं। अच्छा हो वे सभापति के दायरे में रहकर अपना दायत्वि निभायें। इससे सभापति की गरिमा बढ़ेगी।
किरणमयी नायक को असफल करने के लिए कांग्रेसी हैं, न। वर्षों से सत्ता से दूरी उन्हें चैन से नहीं रहने देगी। जब वे अपने सभापति प्रत्याशी को हरा सकते हैं तो किरणमयी नायक को भी सफल नहीं होने देंगे। वे कालिदास की तरह हैं। जिस डाल पर बैठते हैं, उसे ही काटने में उन्हें ज्यादा सोच विचार नहीं करना पड़ता। आज वे महापौर परिषद में सम्मिलित न होने पर त्याग पत्र की धमकी दे रहे हैं। कल वे अविश्वास प्रस्ताव आने पर समर्थन भी करेंगे। गनीमत है तुरत फुरत अविश्वास प्रस्ताव लाया नहीं जा सकता। इसलिए किरणमयी को अपनी योग्यता प्रदर्शित करने से रोकने का अभी तो अवसर नहीं है और वे सफल हो गयी तो यही असंतुष्टï कल उनके चरणों में दिखायी पड़ें तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।
- विष्णु सिन्हा
20.1.2010
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बहुत शानदार पौलिटिकल अनालिसिस किया आपने....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख....
बेहतरीन आलेख. उम्दा विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंबढ़िया विश्लेषण इस यथार्थ का!!
जवाब देंहटाएंvishnu bhaiyaa kaa kyaa kahana.likhte hai to sach aur sirf sach
जवाब देंहटाएंaadqarniy, mujhe pata nahi ki itna tahtyaparak vishleshan aur samiksha maine kahi aur padhi ho haal ke dino me.
जवाब देंहटाएंekdam satik