यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

नक्सल विरोधी अभियान को त्वरा प्रदान करने के लिए चिदंबरम छत्तीसगढ़ में

केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम का स्वागत नक्सलियों ने दो छात्रों की गला रेत कर और डंडे से पीट कर हत्या कर किया है। कसूर क्या था, इन छात्रों का। 15 दिन पहले अपहरण कर छात्रों को यातनाएं दी गयी और पुलिस का मुखबिर बता कर हत्या कर लाश फेंक दी गयी। लगता नहीं कि मानवता नाम की कोई भावना नक्सलियों के हृदय में धड़कती है। एक आदमी तो कुत्ते तक को पत्थर मारने की भावना मन में नहीं पालता। किसी भी प्राणी को किसी भी तरह का कष्ट देने की कल्पना मात्र से हृदय में टीस उठती है। फिर एक मनुष्य तनधारी प्राणी निहत्थे छात्र को पीट-पीट कर मारे और अंत में उसका गला ही काट दे तो वह इंसान कहलाने की योग्यता भी खो देता है। यदि कभी भगवान न करे इनका शासन आ गया तो इंसान की जान की कीमत ही क्या रह जाएगी? जो लोग जनता में भय पैदा कर स्वयं को सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें कोई भी सही कैसे मान सकता है? इसीलिए वे गला काट कर हत्या करने के बावजूद भय पैदा नहीं कर पा रहे हैं बल्कि लोगों में क्रोध उबल रहा है। इसलिए छात्रों, नागरिकों ने रैली निकाल कर प्रदर्शन किया और नारे लगाए, जीने दो। 

अब इन नक्सलियों के विरुद्ध सशस्त्र बल कार्यवाही न करें तो क्या करें?  सरकार क्या अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुरा ले। अतिबुद्धिजीवी पुलिस और सशस्त्र बलों पर दोषारोपण करते हैं कि ये निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं। ये अपनी लफ्फाजी से नक्सलियों का मनोबल बढ़ाने और सशस्त्र बलों का मनोबल गिराने का काम करते हैं। बेशर्मी तो पत्रकार जगत में भी आ गयी है। दिल्ली में बैठे बड़े-बड़े तथाकथित पत्रकार और न्यूज चैनल स्थानीय पत्रकारों पर आरोप लगाते हैं कि ये बिके हुए लोग हैं। जब जनता अंडे और टमाटर फेंक कर इनका मान मर्दन करती हैं तो ये भागते ही नजर आते हैं। किस परिस्थिति में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के निवासी अपना जीवन यापन करते हैं, यह दिल्ली में बैठे लोगों की कल्पना से भी परे हैं। इन्हें तो सनसनी चाहिए और नक्सलियों के कारनामे इन्हें सनसनी प्रदान करते हैं।


यह तो गनीमत है कि भारत सरकार के गृहमंत्री स्थिति को अच्छी तरह से समझते हैं और यही कारण है कि पहली बार चिदंबरम ने इस समस्या की गंभीरता को समझा है। राज्यों को पर्याप्त सशस्त्र बल के साथ हर तरह की सुविधाएं नक्सलियों से लडऩे के लिए मुहैय्या कराया है। इसी कारण पहली बार छत्तीसगढ़ में तो नक्सली बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। नित्य नक्सलियों के मारे जाने या पकड़े जाने के समाचार मिल रहे हैं। आज पी. चिदंबरम स्वयं छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में उड़ीसा के मुख्यमंत्री, महाराष्ट के गृहमंत्री और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं। लगता है निर्णायक लड़ाई के लिए फैसले लिए जाएंगे। नक्सली क्षेत्रों में सशस्त्र बलों की उपस्थिति से आम जनता का भी नक्सलियों के विरुद्ध मनोबल बढ़ा हुआ है। जनता भी यह बात अच्छी तरह से समझ रही है कि यही अवसर है जब वे सशस्त्र बलों को सहयोग कर नक्सलियों से मुक्त हो सकते हैं। 


निश्चित रुप से आज जो नक्सलियों के विरुद्ध जनता का मनोबल ऊंचा है, उसका कारण छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हैं। रमन सिंह पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने आम जनता के दर्द को पहचाना और उन्हें नक्सलियों के चंगुल से छुड़ाने का निश्चय किया। सलवा जुड़ूम जैसे अहिंसक आदिवासियों के नक्सलियों के विरुद्ध आंदोलन को नैतिक समर्थन दिया। डॉ. रमन सिंह ने अपनी सरकार के सीमित साधनों के बावजूद नक्सलियों से लडऩे की इच्छाशक्ति का जो परिचय दिया, वह निश्चित ही सराहनीय है। उन्होंने निरंतर केंद्र सरकार के दरवाजे साधनों के लिए, सशस्त्र बल के लिए खटखटाए। आखिर पी. चिदंबरम के गृहमंत्री बनने के बाद डॉ. रमन सिंह की बात को अच्छी तरह से समझा गया। डॉ. रमन सिंह यह समझाने में सफल हो गए कि नक्सली समस्या कोई छत्तीसगढ़ की ही समस्या नहीं है बल्कि कई प्रांतों में यह समस्या है लेकिन उचित ध्यान न दिये जाने के कारण इन्होंने अपनी जड़ें गहरी जमा ली है। अब यह कोई राजनैतिक आंदोलन नहीं है बल्कि अरबों का व्यवसाय बन गया है। नक्सलियों का एकमात्र उद्देश्य है कि उनके प्रभाव वाले इलाकों में सरकार विकास के काम न कर पाए और उनका कब्जा अपने इलाके पर बना रहे। सशस्त्र बलों के सिपाही, अधिकारियों की निरंतर हत्या से भी एक संदेश निकालने की कोशिश की गयी कि सरकार गलत है और वह निर्दोषों की हत्या करवा रही है। नक्सलियों ने कोशिश पूरी की डॉ. रमन सिंह की सरकार अपने कदम पीछे हटा ले लेकिन डॉ. रमन सिंह के प्रति चुनावों में इस क्षेत्र की जनता ने जो एकतरफा समर्थन दिया, उससे सिद्ध हो गया कि डॉ. रमन सिंह से जनता खुश है और उसका विश्वास है कि नक्सली समस्या से उन्हें कोई निजात दिला सकता है तो वह डॉ. रमन सिंह ही है। 


पिछले चुनाव के दौरान डॉ. रमन सिंह ने बार-बार कहा कि नक्सल समस्या से मुक्त न करा पाने का दुख उन्हें है। आज जब उन्हें पुन: अवसर जनता ने दिया है तब डॉ. रमन सिंह की प्राथमिकताओं में नक्सल समस्या है। नक्सल प्रभावित राज्यों के मंत्रियों एवं अधिकारियों की बैठक का चिदंबरम की अध्यक्षता में रायपुर में होना ही इस बात की निशानी है कि जब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर कार्यवाही हो तब पड़ोसी राज्यों में इस बात के लिए पूरा इंतजाम हो कि नक्सली वहां पनाह न प्राप्त कर सके। झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को इस बैठक के लिए न बुलाने के पीछे यह कहा जा रहा है कि सोरेन नक्सलियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और बैठक की बातें नक्सलियों तक न पहुंचे, इसलिए उन्हें बैठक से दूर रखा गया है। यह बात कितनी सच है, यह तो गृहमंत्री चिदंबरम ही जानें लेकिन यदि यह सच है तो यह भाजपा के लिए भी सोच का विषय है। क्योंकि शिबू सोरेन की सरकार में झारखंड में भाजपा भी सम्मिलित है। 


खबर तो यह भी है कि झारखंड में पुलिस और सशस्त्र बलों के अभियान को बंद कर दिया गया है और सशस्त्र बल को उड़ीसा शिफ्ट कर दिया गया है। यह तो केंद्र सरकार की ही सोच का विषय है कि ऐसी सरकार को कायम रहने दिया जाए या नहीं। वैसे तो खबर यह भी है कि भाजपा आलाकमान स्वयं सोच विचार कर रहा है कि वह सरकार में सम्मिलित रहे या बाहर आ जाए। शायद सोच के इसी विचार के कारण कांग्रस ने शिबू सोरेने को मुख्यमंत्री बनने से इंकार कर दिया था। भाजपा समझ नहीं पायी और उसने समर्थन देकर सरकार में सम्मिलित होने को अपनी उपलब्धि समझा। नितिन गडकरी तो नए-नए अध्यक्ष बने थे लेकिन बाकी लोगों को तो मालूम था कि झारखंड में स्थिति क्या है? अभी भी वक्त है और भाजपा आलाकमान चाहे तो गलती को सुधार सकता है। यह तो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा नक्सलियों से लड़े और झारखंड में नक्सलियों से सहानुभूति रखने वालों की सरकार में सम्मिलित रहे।  


-विष्णु सिन्हा


दिनांक 22.01.2010
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2 टिप्‍पणियां:

  1. दु:खद है। मानवाधिकार वादी इस पर चुप ही रहेंगे मैं जानता हूँ। साँप का फन कुचला जाना चाहिये अब नक्सल आतंक का अंत हो ही जाना चाहिये।

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  2. ... नक्सली समस्या .... समाधान की ओर प्रयास क्या सार्थक हैं!!!!

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