यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 25 जनवरी 2010

निगम मंडल में नियुक्ति के अवसर पर महिलाओं को आगे लाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए

एक वर्ष से भी अधिक का समय बीत गया। चुनाव, चुनाव, और चुनाव। भाजपा के कार्यकर्ता और नेता जो आजकल इन चुनावों में पार्टी प्रत्याशियों को विजयी बनाने के लिए श्रम करते रहे हैं, वे पंचायत चुनावों के समाप्त होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। क्योंकि अब अवसर आ गया है कि उन्हें सरकारी पदों पर पदारूढ़ कर पुरस्कृत किया जाए। जिन्होंने चुनाव लड़ा और जीते, वे तो पद पा गए लेकिन जिन्होंने चुनाव लडा और हार गए, वे भी उम्मीद करते हैं कि किसी निगम मंडल में उनकी ताजपोशी होगी। खासकर वे लोग जो डा. रमन सिंह के पिछले कार्यकाल में शासकीय पदों पर थे और सत्ता का भरपूर लुत्फ उठाया, वे तो पूरी तरह से अधीर हो गए हैं। डा. रमन सिंह की कृपादृष्टि हो जाए तो लालबत्ती की कार और कार्यालय सहित स्टाफ उन्हें उपलब्ध हो जाए। पिछले सवा साल से जो सुख शासकीय अधिकारी उठा रहे हैं और राजनैतिक व्यक्ति की नियुक्ति न होने से निगम मंडल भी मंत्रियों के अधीन हैं, उनका सुख अब पदाकांक्षियों के द्वारा देखा नहीं जा रहा है।

मन में आक्रोश बहुत है लेकिन अभिव्यक्त करना खतरे से खाली नहीं है। यदि आक्रोश को अभिव्यक्त किया और बात डा. रमन सिंह तक पहुंच गयी तो फिर किसी पद के मिलने की संभावना भी हुई तो वह भी जाती रहेगी लेकिन लोग चिकोटी काटने से भी तो बाज नहीं आते। मिलने पर पूछ ही लेते हैं कि भाई साहब कब लालबत्ती मिल रही है। ऐसे प्रश्न बड़ा धर्मसंकट खड़ा कर देते हैं। जवाब दे भी तो क्या दें ? यह कहें कि हमें लालबत्ती की जरूरत नहीं। हम तो पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता है और पार्टी का हुक्म बजाना ही हमारी कर्तव्यनिष्ठï है तो पूछने वाला मुस्कराए बिना नहीं रह सकता। क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानता है कि भाई साहब को तो रात रात भर नींद नहीं आती। बेचैनी बढ़ गयी है। मन में तरह तरह के नकारात्मक विचार आते रहते हैं कि कहीं किसी पद के योग्य नहीं समझा गया तो फिर सवा साल से जो पार्टी की तन मन धन से सेवा कर रहे हैं, उसका औचित्य ही क्या रह जाएगा ?


जो पिछले कार्यकाल में पदारूढ़ थे, वे ही ज्यादा बेचैन हैं। उन्हें ही सबसे ज्यादा डर भी है। कहीं नए लोगो को अवसर देने का मन संगठन और सत्ता ने बना लिया तो उनकी पत्ती तो कट ही जाएगी। फि र पिछले कार्यकाल में ताकतवर मंत्री रहे लोग जो चुनाव में हार गए, वे भी तो लाईन में लगे हुए हैं। आरक्षण के कारण नगर निगम के महापौर, जिला पंचायत के अध्यक्ष भी तो बेरोजगार हो गए हैं। वे भी पदाकांक्षी हैं। पिछले कार्यकाल में जिन्हे पद मिलना चाहिए था लेकिन नहीं मिला, वे भी पदाकांक्षी हैं। अनार गिने चुने हैं और बीमारों की कमी नहीं है। शायद इसी सोच ने चुनाव के  वर्ष में नियुक्ति को रोके  रखा। क्योंकि नियुक्ति हो जाती तो असंतुष्टों  की कतार भी खड़ी हो जाती। नियुक्ति नहीं हुई तो चुनाव में गंभीरता से कर्तव्य निर्वाह का काम तो अधिकांशों ने किया। जिन्होंने नहीं किया या जिन्होंने भीतरघात किया, उनके चेहरे भी सामने हैं। वे चेहरे भी सामने हैं जिन्होंने पार्टी का भट्ठा बिठाने में अपनी तरफ से कोर कसर नहीं छोड़ी। ईमानदारी से टिकट वितरित किया जाता तो जहां हार हुई है, वहां हार नहीं होती। फिर जिन्हें टिकट मिली उन्हें हरवाने के प्रयास भी किए गए।


अब सारी बातें साफ साफ हैं और किन्हें पदारूढ़ किया जाना चाहिए, यह भी स्पष्ट है। जिनकी नियुक्ति से पार्टी को लाभ होता हो, उन्हें ही पदारूढ़ किया जाना चाहिए। किसी नेता की सिफारिश के बदले इस बात पर दृष्टि होनी चाहिए कि किसे कहां बिठाया जाए, जिससे भविष्य में पार्टी की छवि उज्जवल हो। काम करने वाले और ईमानदार छवि के व्यक्ति को यदि पार्टी आगे बढ़ाती है तो उसका फल भी पार्टी को मिलेगा। चापलुसों एवं बेईमानो को पार्टी तवज्जो देगी तो नुकसान भी पार्टी को उठाना पड़ेगा। जैसे राïष्टरीय अध्यक्ष युवा व्यक्ति को बनाया गया है, उसी तरह से नियुक्ति में भी युवाओं को महत्व दिया जाना चाहिए। क्योंकि वक्त के साथ पार्टी में युवा नेतृत्व उभरता है तो युवा पीढ़ी का जुड़ाव पार्टी से होगा। जिनके  कारण पार्टी की छवि खराब होती है, उनसे पार्टी पूरी तरह से परहेज करे तो यह पार्टी के हित में ही होगा।
आने वाला कल महिलाओं का है। ग्राम पंचायत में 50 प्रतिशत पद उनके लिए आरक्षित किया गया है तो नगरीय निकाय में 33 प्रतिशत पद उनके लिए आरक्षित है। वह दिन दूर नहीं जब लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण मिलेगा। पार्टी का काम एक सरोज पांडेय से नहीं चलने वाला है। भविष्य की दृष्टि से महिलाओं को सामने लाने का काम अभी से प्रारंभ कर देना चाहिए। कांग्रेस के पास प्रखर महिला नेत्री थी, इसलिए रायपुर और बिलासपुर में महापौर का चुनाव कांग्रेस ने जीता। चुनाव परिणाम का तो स्पष्ट निष्कर्ष हैं कि बिलासपुर में भाजपा के 55 में से 30 पार्षद जीते लेकिन 18 पार्षद जीतने के बावजूद महापौर का पद कांग्रेस की झोली में चला गया। यह सिर्फ कांग्रेस के कारण नहीं हुआ। यह वाणीराव के व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण हुआ। रायपुर में भी किरणमयी नायक प्रभा दुबे पर अपने व्यक्तित्व के कारण भारी पड़ी। इसलिए भाजपा को अभी से महिला नेतृत्व उभारने की फिक्र करना चाहिए और निगम मंडलो में नियुक्ति के द्वारा इस तरफ  कदम बढ़ाया जा सकता है।


अब कोई ऐसा क्षेत्र नहीं रह गया है जहां महिलाएं अपनी योग्यता नही दिखा रही हैं। यहां तक कि फौज से लेकर हवाई जहाज उड़ाने में वे अपनी योग्यता साबित कर रही हैं। प्रतिपक्ष की नेता के  रूप में लोकसभा में सुषमा स्वराज ही उचित चयन है और वे कांग्रेस को बराबर की टक्कर दे रही हैं। सरोज पांडेय ने महापौर का चुनाव दो बार, विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जीतकर अपनी योग्यता साबित की है। अक्लमंद वह नहीं होता जो आग लगने पर कुआं खोदता है बल्कि अक्लमंद वह होता है जो कुआं पहले ही खोद लेता है। यह उचित समय है जब निगम मंडलों में नियुक्ति के समय भाजपा अपनी महिला नेत्रियों पर ध्यान केंद्रित करे और उन्हें आगे बढऩे का अवसर दे।


आजकल तनाव एक महामारी की तरह फैल रहा है। राजनैतिक कार्यकर्ता का भी अधिक समय तक तनाव में रहना उचित नहीं है। धैर्य की भी एक सीमा होती है और देर अबेर धैर्य चूकने लगता है तब अधैर्य का जन्म होता है। सवा साल से इंतजार कर रहे कार्यकर्ताओं को अवसर देने के लिए यह उचित समय है। डा. रमन सिंह और संगठन को इस पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। नगरीय निकाय के चुनाव ने दो महिला नेत्रियों को आगे बढ़ाया है। इन्होंने अपने काम से अपनी छवि बनायी तो भविष्य में मुकाबला तगड़ा होगा। कांग्रेस में नया नेतृत्व उभर रहा है। नया नेतृत्व नई छवि का निर्माण करेगा। अक्लमंद है तो भविष्य को अभी से आंक लेना चाहिए।


- विष्णु सिन्हा


24-1-2010
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