कांग्रेसी शिकायत कर रहे हैं कि किरणमयी नायक ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवकों पर फूल क्यों बरसाए ? दूधाधारी मठ के महंत और कांग्रेस के विधायक रामसुंदर दास ने मठ के ही सत्संग हाल में संघ प्रमुख मोहन भागवत के सर्व समाजों की बैठक में क्यों हिस्सा लिया ? दिल्ली में आलाकमान तक शिकायत की जा रही है कि यह अनुशासनहीनता है। खबर है कांग्रेस इन्हें नोटिस देकर जवाब तलब करने वाली है कि उन्होंने राष्टरीय स्वयं सेवक संघ के साथ सदाशयता क्यों दिखायी ? जो कांग्रेस पार्टी सबको साथ लेकर चलने का दावा करती है, वह अपने दो नेताओं के सदाशयता के कार्य पर प्रश्नचिन्ह लगाए तो इसे सहिष्णुता नहीं संकीर्णता ही कहा जाएगा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारत में रहने वालो का ही संघ है। कांग्रेस के मतों में और संघ के मतों में यदि विभिन्नता है तो मतभिन्नता की स्वतंत्रता तो हमारा संविधान ही सभी को देता है। फिर एक राजनेता को तो ज्यादा इस बात की जरूरत है कि वह विभिन्न मतों की अच्छी तरह से जानकारी रखे। कम से कम कांग्रेस तो ऐसी पार्टी नहीं मानी जाती जिसने अपने आंख, कान बंद कर रखे हैं.
फिर किरणमयी नायक ने महापौर की हैसियत से नगर निगम के सामने से निकलने वाले संघ के स्वयं सेवकों पर फूल बरसाया तो ऐसी क्या आफत आ गयी? हजारो की संख्या में पथ संचालन करते स्वयं सेवकों पर सद्भावना प्रगट करना कैसे अनुशासहीनता हो गयी ? अनुशासनहीनता मतभिन्नता को दुश्मनी के रूप में लेगी, क्या ? तब तो अटलबिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का फूलों का गुलदस्ता भेजना भी अनुशासनहीनता के दायर में ही आएगा। क्योंकि अटलबिहारी वाजपेयी ने तो हमेशा गर्व से कहा कि वे राष्टरीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक हैं। सोनिया गांधी ने भी अटलबिहारी वाजपेयी को जन्मदिन की बधाई दी है। कांग्रेस के ही पूर्व अध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री दिवंगत नरसिंहराव ने तो बड़े गर्व से कहा था कि अटलबिहारी वाजपेयी को वे अपना गुरू मानते हैं और जब वे बोलते हैं तो लगता है कि वे बोलते ही रहें और वे सुनते ही रहें।
तब कांग्रेसियों ने नरसिंहराव और मनमोहन सिंह पर अनुशासन की कार्यवाही करने के लिए क्यों नहीं आवाज उठायी ? बड़े जो भी करें, वह सही लेकिन छोटों को दायरे के अंदर रहना चाहिए। क्या डर है कि संघ के संपर्क मे आने से कांग्रेसी बहक जाएंगे ? संघ के पथ संचालन में तो कुछ मुस्लिमों ने भी स्वयं सेवकों पर फूल बरसाए। अपने घर कोई आए तो स्वागत सत्कार करना हमारी भारतीय संस्कृति रही है। हम तो पाकिस्तानियों और चीनियों का भी देश में स्वागत सत्कार करते हैं। जबकि वे हमारे प्रति, हमारी मातृभूमि के प्रति अच्छी भावना नहीं रखते। कांग्रेस केरल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाती है तब भी वह धर्मनिरपेक्ष बनी रहती है। सिर्फ राष्टरीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के साथ जाना ही धर्मनिरपेक्षता के विरूद्घ जाना मानने का क्या तुक है ?
मुसलमान, ईसाई, सिख सभी अपना संगठन बनाते हैं तो हिंदुओं का संगठन बनाने वाली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही सांप्रदायिक क्यों ? क्या इस देश में हिंन्दुओं का संगठन बनाना ही धर्मनिरपेक्षता के विरूद्घ है ? जबकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत तो कहते हैं कि हिंदुत्व की उनकी परिभाषा में सभी भारतीय सम्मिलित हैं। वे तो स्पष्ट कहते हैं कि जहां पर हिंदू कमजोर पड़ा वहीं विभाजन की बात सर उठाने लगती है। आम हिंदू सहिष्णु और शांतिप्रिय है। वह धर्मनिरपेक्ष है। इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि देश धर्मनिरपेक्ष है। बहुसंख्यक हिंदू सांप्रदायिक होता और पाकिस्तान के बंटवारे क समय ऐसी स्थिति थी कि हिंदू सांप्रदायिक हो सकता था लेकिन उस समय हिंदू सांप्रदायिक नहीं हुआ। हिंदू सांप्रदायिक हो जाता तो देश धर्मनिरेपक्ष नहीं होता। हिंदुओं की ताकत वोट के रूप में एकमुश्त एकतरफा हो जाती तो देश कब का हिंदू राष्ट्र हो जाता। इस देश के अल्पसंख्यकों को भी पता है कि हिंदू सांप्रदायिक नहीं है। कभी कभार सांप्रदायिकता की भावना उभरती भी है तो उसका कारण प्रति संप्रदायिकता होती है।
इस देश की संस्कृति का जो असली तत्व है, वह सहिष्णुता है। हिंदू मन इतना विशाल है कि वह सबको अपने में समाहित करने की क्षमता रखता है। यह कारण था जो करोड़ों मुसलमानों ने धर्म के आधार पर पाकिस्तान की मांग के बावजूद पाकिस्तान जाने के बदले भारत में ही रहना पसंद किया। इस देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब कहते हैं कि देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है तब बहुसंख्यक जनता भड़कती नहीं। वह दोबारा उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाने के लिए पहले से ज्यादा समर्थन देती है और जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले लालकृष्ण आडवाणी को खारिज कर देती है।
विभिन्नता में एकता इस देश का मूलमंत्र है। इस देश की यही तो खूबी है कि सब तरह के विचार यहं पुष्पित पल्लवित होते हैं लेकिन जनता के द्वारा स्वीकार अस्वीकार पर ही उनका भविष्य निर्भर करता है। जब पंडित जवाहर लाल नेहरू राष्टरीय स्वयं सेवक संघ को दिल्ली की परेड में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। जब महात्मा गांधी की हत्या के बाद लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल गृहमंत्री भारत सरकार संघ के कार्यक्रम में सम्मिलित हो सकते हैं। तब किरणमयी नायक का शहर की प्रथम नागरिक के रूप में स्वयं सेवकों पर फूल बरसाना गलत कैसे हो सकता है?ï हो सकता है कांग्रेसी महापौर से प्रभावित होकर स्वयं सेवक कांग्रेस के ही पक्ष में हो जाएं। जब भाजपा के विधायकों, पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं के कांग्रेस प्रवेश पर कोई रोक नहीं है तब कौन किसे प्रभावित कब कर सकता है, क्या कहा जा सकता है?
जब अपने ही मठ के सत्संग हाल में संघ के सरसंघचालक सभी समाजों से खुली चर्चा के लिए आएं तो महंत रामसुंदरदास उस चर्चा में भाग लेने से मना करें तो वे कैसे हिंदू धर्म गुरू? वे तो मुसलमानों के बुलाए जाने पर उनके कार्यक्रमों में भी सम्मिलित होते हैं। कांग्रेस अपने नेताओं को इतना कमजोर क्यों समझती है कि वे किसी के बहकावे में आ जाएंगे बल्कि कांग्रेसियों को तो उम्मीद करना चाहिए कि वे अपने व्यवहार, विचारों से दूसरो को ही अपने पक्ष में करने में सफल होंगे। यदि किरणमयी या रामसुंदरदास संघ में जाना चाहेंगे तो उन्हे कौन रोक सकता हैै? वे कांग्रेस मे हैं तो सोच समझकर ही हैं। वे कांग्रेस की नीतियों सिद्घांतों से सहमत नहीं होते तो कांग्रेस में क्यों होते ? अनुशासन की कार्यवाही की मांग करने वाले ही कमजोर दिखायी पड़ते हैं। यह तो ऐसी बात ही नहीं है कि इस पर चर्चा या विचार होना चाहिए। हर तरफ किरणमयी की सद्भावना की तारीफ ही हो रही है।
-विष्णु सिन्हा
23-1-2010
शनिवार, 23 जनवरी 2010
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दरअसल कांग्रेस में लोकतंत्र की परंपरा कभी रही ही नहीं इसलिए जो राजवंश की इच्छा के विपरीत अन्य मतों से सद्भावना प्रकट करेगा उसे बर्दाश्त किया ही नहीं जायेगा, रही-सही कसर चाटुकार मंडली पूरी कर देती है.
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