यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

अमन सिंह का केद्र की नौकरी छोड़कर राज्य में संविदा नियुक्ति लेना अक्लमंदी है, क्या ?

अमन सिंह डा. रमन सिंह सरकार के शक्तिशाली नौकरशाह हैं। उनकी शक्ति का श्रोत उनके पद ही नही हैं बल्कि डा. रमन सिंह के विश्वसनीय होने के कारण वे शक्तिशाली हैं। फिर ताली एक हाथ से तो बजती नहीं। दोनों ने एक दूसरे को न केवल प्रभावित किया है बल्कि डा. रमन सिंह की उपलब्धियों में अमन सिंह का भी बड़ा हाथ है। डा. रमन सिंह ने जब से मुख्यमंत्री का पद संभाला ऊर्जा विभाग उन्होंने अपने पास रखा। राज्य गठन के  समय विद्युत के मामले में राज्य सरप्लस राज्य था लेकिन विकास की गति ने विद्युत की खपत में जिस तरह से वृद्घि की, उसके बाद बिजली की कमी होने लगी लेकिन बहुत समय तक कमी का सामना छत्तीसगढ़ को नहीं करना पड़ा। डा. रमन सिंह की सोच और दूरदृष्टि ने राज्य की बढ़ती हुई विद्युत आवश्यकता की पूर्ति तो की ही, राज्य को पुन: सरप्लस राज्य बना दिया। आज देश के अधिकांश राज्य विद्युत कमी के शिकार हैं। तब छत्तीसगढ़ के उपभोक्ताओं को 24 घंटे अनवरत बिजली मिलना कम सौभाग्य की बात नहीं है। राज्य को इस स्थिति में लाने के लिए डा. रमन सिंह के प्रमुख सहयोगी के रूप में अमन सिंह का नाम लिया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी अमनसिंह प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आए। मुख्यमंत्री के सचिव के साथ ऊर्जा, सूचना एवं प्रौद्योगिकी के  सचिव वे आज हैं। मुख्यमंत्री और राज्य को उनकी सेवाएं की जरूरत है लेकिन इसी बीच उनकी प्रतिनियुक्ति की अवधि समाप्त हो गयी। डा. रमन सिंह ने कोशिश की कि उनकी प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़ा दी जाए लेकिन नियम कायदे आड़े आ गए। मतलब साफ था कि भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी के रूप में बने रहते हैं तो वापस केंद्र में जाना पड़ेगा। कोई भी अमन सिंह की जगह होता तो नौकरी से इस्तीफा देने के बदले वापस जाना ही पसंद करता लेकिन अमन सिंह ने नौकरी छोडऩा पसंद किया। इसके बदले उन्हें राज्य सरकार ने 3 वर्ष के लिए संविदा नियुक्ति दी। कोई भी अक्लमंद आदमी स्थायी नौकरी छोड़कर संविदा नियुक्ति स्वीकार नहीं करेगा लेकिन अमन सिंह ने स्वीकार किया।


है, तो आश्चर्य की बात। कोई भी इसे सिर्फ मूर्खता के और किसी संज्ञा से नवाजना पसंद नहीं करेगा। सिर्फ डा. रमन सिंह के भरोसे स्थायी नौकरी पर लात मार देना किसी की भी नजर में अक्लमंदी नही हो सकती। क्योंकि डा. रमन सिंह का ही क्या भरोसा? वे आज मुख्यमंत्री हैं। कल भी होंगे, इस बात की गारंटी कौन कर सकता है ? अभी 4 वर्ष तक मुख्यमंत्री वे रहेंगे, इस बात की पूरी संभावना है लेकिन चुनाव के बाद भी वे जनता  के द्वारा पुन: चुने जाएंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं कर सकता? यदि खुदा न खास्ता डा. रमन सिंह पुन: मुख्यमंत्री न बने तब अमनसिंह का क्या होगा? बहुत से ऐसे संभावित प्रश्न है जो किसी के भी मस्तिष्क में जन्म ले सकते हैं। तब परिवार और सर्वदृष्टि से सोचने से यही निष्कर्ष निकलेगा कि केंद्र की नौकरी कदापि नहीं छोडऩा चाहिए। कोई भी अक्लमंद आदमी अपने सगे संबंधी के लिए भी ऐसा निर्णय नहीं लेगा लेकिन अमन सिंह ने नौकरी छोडऩे का निर्णय लिया।


जरूर डा. रमन सिंह कोई सम्मोहन विद्या जानते हैं। ईमानदारी और निस्वार्थ प्रेम से बड़ा कोई सम्मोहन नहीं होता। जब एक पढा़ लिखा समझदार आदमी एक व्यक्ति से इतना प्रभावित होता है कि वह निश्चित भविष्य से मुंह मोड़कर अनिश्चित भविष्य को स्वीकार कर लेता है तब इसे और क्या कहेंगे? अब अमन सिंह की पूरी जिम्मेदारी डा. रमन सिंह की है। अमन सिंह की भी कम जिम्मेदारी नही है। उन्होंने केंद्र सरकार की नौकरी छोड़कर डा. रमन सिंह के साथ रहने का जो निश्चय किया है, उस कसौटी पर उन्हें खरा साबित होकर दिखाना है। अब एक तरह से डा. रमन सिंह और अमन सिंह के भाग्य की डोर एक साथ बंध गयी है। जीना साथ मरना साथ, छोड़कर जाना कहां। पहले भी अमन सिंह खास अधिकारी  डा. रमन सिंह के माने जाते थे। जिन्हें उम्मीद थी कि प्रतिनियुक्ति की अवधि समाप्त होने के बाद अमन सिंह केंद्र में लौट जाएंगे और उन्हें अमन सिंह की कुर्सी नसीब होगी, उनके सपने तिरोहित हो गए। अब यह निश्चित हो गया कि अमन सिंह डा. रमन सिंह को छोड़कर कहीं जाने वाले नहीं है। जिन्हें ये प्रेम, ईमानदारी फूटी आंख नहीं सुहायेगी, वे पूरी सतर्कता से अपनी चालें चलेंगे। कैसे डा. रमन सिंह के  मन में अमन सिंह के लिए दुर्भावना पैदा हो, इसका पूरा प्रयास किया जाएगा। यह कोई नई बात नहीं है। यह सत्ता के  गलियारे में सदा से होता आया है। सावधान दोनों को रहना चाहिए।


अमन सिंह सूचना प्रौद्योगिकी के  सचिव हैं। वे ऐसा तंत्र रचने में सक्षम हैं, जिससे पूरा प्रशासन तंत्र एक कम्प्यूटर में आ सकता है। तकनीक के विकास के साथ अब नौकरशाहों के कार्यों की भी निगरानी रखी जा सकती है। बिना कागज के भी मंत्रालय में सचिव काम कर सकते हैं। लाल फीताशाही के तंत्र को तोड़ा जा सकता है। सारी जानकारी गांव से लेकर राजधानी तक अपडेट मुख्यमंत्री को तुरंत उपलब्ध करायी जा सकती है और यह निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है कि कौन सा नौकरशाह कितना योग्य है और जनता के कामों को पूरी तरजीह देता है। पारदर्शी प्रशासन की अब बात ही नहीं की जाएगी बल्कि उसे अमलीजामा भी पहनाया जा सकता है। मुख्यमंत्री की शह पर अमनसिंह यह सब करने में सक्षम हैं।


वे तो छत्तीसगढ़ को इस मामले में उदाहरण के रूप में पूरे देश के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। अभी ही डा. रमन सिंह का नाम देश में एक सफल मुख्यमंत्री के रूप में कम नहीं हैं। फिर भी नौकरशाहों की ताकत के  सामने शासन अभी भी अपने को कमजोर ही पाता है। क्योंकि सरकार नीतियां बनाता है। उसे लागू करने का आदेश भी देता है लेकिन लाल फीताशाही के भंवर में फंसकर अच्छी अच्छी जनकल्याणकारी योजनाएं धराशायी हो जाती है। जमीन की नकल ही प्राप्त करना आज भी एक कठिन काम है। बिना जेब ढीला किए, काम होता नहीं। इस व्यवस्था को तोडऩे के लिए कम्प्यूटरीकरण किया गया लेकिन सफल तो नहीं हुआ। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मामले में अवश्य सरकार को सफलता मिली है। गरीबों को 1 रूपये और 2 रूपये किलो चांवल के मामले में अभी भी छुटपुट शिकायतें तो मिलती है।


अमन सिंह ने केंद्र की नौकरी छोड़कर राज्य सरकार की संविदा नौकरी स्वीकार की है तो यह उनके लिए एक चुनौती की तरह है। स्वाभाविक है कि उन्हे छत्तीसगढ़ में काम के अच्छे अवसर भी दिखायी दिए। डा. रमन सिंह का वरदहस्त उन्हें अब निश्चिंतता से अपने काम को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा। उन्हें ऐसे परिणाम देने होंगे जिससे डा. रमन सिंह की लोकप्रियता दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़े। उनके असुरक्षा में खड़े होने के निर्णय के लिए शुभकामनाएं।


- विष्णु सिन्हा


29-1-2010

1 टिप्पणी:

  1. chhattisgarh me to abhi sabhi akhbaro ke liye to aisa hai ki raman, aman aur brujmohan. in tino ko naman. jisne nahi kiya naman uska ho gaya avmaan

    ab hakikat kya hai ye to bade sampadak log hi janein....

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