यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 31 जनवरी 2010

मुंबई और महाराष्ट्र समस्त भारतवासियों का है कहने वाले मोहन भागवत को साधुवाद

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गौहाटी में स्पष्ट कर दिया है कि वे शिवसेना और राज ठाकरे के विचार से सहमत नहीं है कि मुंबई मराठियों की है। उन्होंने स्पष्ट घोषणा की कि मुंबई और महाराष्ट्र सारे भारतवासियों का है और पूरे भारत में कहीं भी कोई भी भारतीय अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए जा सकता है और वहां बस सकता है। उन्होंने वोट बैंक की इस मामले में निंदा की। शिवसेना और भाजपा के गठबंधन के कारण जो गलतफहमी पैदा हो रही थी, वह भी मोहन भागवत के वक्तव्य से एकदम स्पष्ट हो गयी हैं। मोहन भागवत ने तो यहां तक कहा कि मुंबई और महाराष्ट्र  में उत्तर भारतीयों पर यदि हमले हुए, उन्हें बचाने के लिए संघ के स्वयं सेवक आगे आएंगे। स्थानीयता के नाम पर लोगों को भड़का कर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वालों के विरुद्ध मोहन भागवत का वक्तव्य वास्तव में राष्ट्र की एकता के लिए आवश्यक था। जिस संघ के नाम में राष्ट्रीय जुड़ा हुआ है, उसकी चिंतना भी राष्ट्रीय होना चाहिए, यह मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य से सिद्ध कर दिया है।

संघ प्रमुख की हैसियत से मोहन भागवत ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा को भी स्पष्ट कर दिया है। देश की एकता के लिए आज ऐसे ही स्पष्ट चिंतन वाले संगठनों की आवश्यकता है। जिनकी सोच में संकीर्णता न हो कर सहिष्णुता हो। अभी तक संघ को मात्र सांप्रदायिक कहकर बदनाम करने की कोशिश की जाती रही, वह वास्तव में सांप्रदायिक न होकर राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत है और हिंदुओं की जब वह बात करता है तब अपने हिन्दुत्व में वह सबको समाहित कर लेता है। मोहन भागवत जानते हैं कि जब वे ऐसा वक्तव्य देंगे तब भाजपा शिवसेना गठबंधन को चोट लगेगी और हो सकता है कि गठबंधन टूट भी जाए लेकिन गठबंधन सत्ता के लिए बनाए रखने की कीमत पर वे राष्ट्र की एकता को टूटता देखना पसंद नहीं कर सकते। फिर कीमत कुछ भी चुकाना पड़े। 


संघ ने अपनी विचारधारा को लेकर पूर्व में भी कम कीमत नहीं चुकायी है। उसे बदनाम करने के लिए महात्मा गांधी की हत्या को भी हथियार के रुप में प्रयुक्त किया गया लेकिन राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ अपनी विचारधारा पर अडिग रहा। हिन्दुओं को संगठित करने के काम पर वह अनवरत लगा रहा। सबसे बड़ी बात तो यही है कि संघ जात-पांत को नहीं मानता। पिछले दिनों ही मोहन भागवत ने हिन्दुओं को जात-पांत से मुक्त होने का आव्हान किया। यह कटु सत्य है कि हिन्दुओं की जाति व्यवस्था का राजनीति में कम शोषण नहीं हुआ। आज भी राजनैतिक पार्र्टियां जाति आधार पर प्रत्याशी का चयन करते हैं। एक तरह से जाति व्यवस्था को पोषित करती हैं। जिससे हिन्दू कभी भी एक न हो सकें। अल्पसंख्यकों को हिन्दुओं का डर दिखाओ और हिन्दुओं को एक न होने दो तो इससे सत्ता चमत्कारिक रुप से हाथ आ जाती हैं। 1952 से लेकर आज तक यह रटंत चालू है। 


मोहन भागवत के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने अन्य संगठनों के साथ इतना काम समाज में कर रहा है कि आने वाले कल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ संपूर्ण राष्ट्र की धुरी बन जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। मोहन भागवत जब कहते हैं कि भाजपा राख से उठ खड़ी हो सकती है तो यह बड़बोलापन नहीं हैं बल्कि वे जानते हैं कि उनके निष्ठावान स्वयं सेवकों की ताकत इतनी बड़ी है कि वे हर असंभव काम को भी संभव कर सकते हैं। जब 2 लोकसभा सदस्यों वाली भाजपा 182 सदस्यों की पार्टी बन सकती है तो वह 282 सदस्यों की पार्टी भी बन सकती है। इसके लिए चाहिए जनता का विश्वास। वायदों पर खरा उतरने की क्षमता। भाजपा का पतन सत्ता सिंहासन से इसलिए हुआ क्योंकि उसने भारतीय जनता से जो वायदे किए थे, वह गठबंधन के कारण निभा नहीं पायी तो जनता की नजरों से उसकी अहमियत केंद्र की सत्ता के मामले में समाप्त हो गयी लेकिन राज्यों में उसने अपना परचम लहराया। वह एक बार नहीं दो बार, तीन बार चुन कर आयी तो कारण जनता में उसकी विश्वसनीयता का बना रहना था। 


कांग्रेस धर्म निरपेक्षता, संपूर्ण भारत एक की बात अवश्य करती है लेकिन महाराष्ट्र  में उसकी सरकार होने के बावजूद जिस तरह से उत्तर भारतीयों के साथ राज ठाकरे ने मार पिटायी की और वह मूक दर्शक बनी रही, उससे जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं गया। सबको समझ में आ गया कि शिवसेना के वोट राज ठाकरे के द्वारा विभाजित करवा कर वह सिर्फ सत्ता का खेल, खेल रही है। वह उस खेल में सफल भी हो गयी लेकिन फूट डालो और राज करो की उसकी नीति भी स्पष्ट हो गयी। ऐसे में उत्तर भारतीयों के लिए  महाराष्ट्र  में असुरक्षा और बढ़ी ही। सचिन तेंदुलकर का पहले भारतीय फिर मराठी होने का वक्तव्य जिन्हें अप्रिय लगा, और उन्होंने अपने विचारों की अभिव्यक्ति में कंजूसी नहीं की। फिर मुकेश अंबानी के यह कहने पर कि मुंबई, दिल्ली, चेन्नई सभी भारतीयों के हैं, शिवसेना को नागवार गुजरा। फिल्मी सितारों को धमकाया और दबाव में अपने अनुसार चलाना तो इन शक्तियों का पुराना खेल है। अभी भी विलासराव देशमुख केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि यह सब पब्लिसिटी स्टंट है, क्या मायने रखता है? महाराष्ट्र सरकार कांग्रेसी सरकार टैक्सी चालकों के लिए मराठी बोलना, लिखना, पढऩा अनिवार्य करने की बात कहती है तो यह कांग्रेसी मुख्यमंत्री की सोच है।


कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भी आदिवासी मुख्यमंत्री की बात करती रही। आदिवासी मुख्यमंत्री भी बनाया लेकिन आज आदिवासी ही एक गैर आदिवासी भाजपाई मुख्यमंत्री के पक्ष में खड़े है। चाहे भाषाई पृथकता की राजनीति हो या आतंकवाद की, देन किसकी है? किसकी राजनीति भारतीयों को एक होने से रोकती है। जनता सब देखती समझती हैं। तथाकथित अपने आपको बुद्धिजीवी समझने वाले तक विभिन्न गुटों में बंट कर अपनी रोटियां सेंकते हैं। यथार्थ से मुंह फेरने के सौ तरीके है। बाहर से आए आतंकवादी और बाहरी विचारधारा से भी ज्यादा वे लोग खतरनाक हैं जो राष्ट्र  की एकता पर प्रश्र चिन्ह लगाने का काम करते हैं। ये जिस वर्ग विशेष के हितैषी बनने का मुखौटा लगा कर घूमते हैं, उस वर्ग से भी इनका बहुत कुछ लेना देना नहीं है। मतलब तो अपना उल्लू सीधा करना है।


काश्मीर के लाल चौक पर गणतंत्र दिवस पर तिरंगा नहीं फहराया गया। वहां चुनी हुई कांग्रेस गठबंधन की सरकार हैं। काश्मीर की सरकार स्वायत्तता की मांग कर रही है। मतलब साफ है। कदम पृथकतावादी ही है। उनका ही एक नुमाइंदा केंद्रीय मंत्रिमंडल में है। उनका ही एक नुमाइंदा राजग मंत्रिमंडल में भी था। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय झंडा न फहराना क्या राष्ट्र की अस्मिता को चोट नहीं पहुंचाता? पहुचाता है लेकिन फिक्र कौन करेगा? भाजपा के जब मुरली मनोहर जोशी राष्ट्रीय  अध्यक्ष थे तब उन्होंने झंडा फहराया था। तब से अब तक फहराया गया लेकिन इस वर्ष नहीं। कौन है इस तरह की मानसिकता के लिए दोषी? दोष स्वीकार करने की परंपरा तो नहीं है। तब कोई क्यों दोष स्वीकार करे? फिर भी एक मर्द मराठा मोहन भागवत पूरे भारत को समस्त भारतवासियों के लिए एक बताता है तो स्वागत योग्य है, वक्तव्य। वे साधुवाद के पात्र हैं।


विष्णु सिन्हा


दिनांक 31.01.2010

3 टिप्‍पणियां:

  1. पूरा भारत हर कोने मैं हर भारतीय का है ...श्री मोहन भागवत का ये वक्तव्य निश्चत ही स्वागत योग्य है......

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  2. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे महान भारतप्रेमी संगठन से इससे कम की आशा भी नहीं थी। संघ सदा भारत के हित के पक्ष में ही खड़ा होगा, यही हमारा विश्वास है।

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