यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 7 मई 2010

कसाब को फांसी की सजा के बाद भी लोग शंकालु कि आखिर कब फांसी होगी ?

जब दुनिया भर में फांसी की सजा के विरुद्ध आवाज उठती हो तब भारत में
करोड़ों लोग इंतजार करते हैं कि एक व्यक्ति को न्यायालय फांसी की सजा
सुनाए। किसी भी कीमत में उसे जिंदा न रखा जाए। न्यायालय में सरकारी वकील
उस व्यक्ति को मौत की मशीन और उसके देश को मौत की मशीन बनाने वाली
फैक्ट्री कहे। उसे शैतान कहने में कोई हिचक महसूस न करे तो आसानी से समझा
जा सकता है कि उस व्यक्ति के प्रति भारतीयों के मानस में कितनी घृणा
होगी। अजमल आमिर कसाब ने निर्दोष नागरिकों को गोलियों से भून दिया था। न
तो मरने वाले कसाब को जानते थे और न मारने वाला कसाब मरने वालों को
पहचानता था। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं जो सामने आया, वही कसाब की गोलियों का
शिकार हो गया। मरने वालों की जाति धर्म से भी कसाब का कोई लेना देना नहीं
था। ऐसे व्यक्ति को जब न्यायालय ने 4 मामलों में मृत्युदंड और 5 मामलों
में उम्र कैद की सजा सुनायी तो रोने वाला अकेला कसाब ही था और खुशियां
मनाने वाले सभी थे। किसी को फांसी की सजा न्यायालय सुनाए और लोग खुशी में
फटाके फोड़ें, मिठाइयां बांटे तो इसी से समझ में आता है कि लोगों की चलती
तो वे कब का कसाब को मार चुके होते।

पुलिस के आला अफसर ने कहा भी है कि कसाब को सुरक्षित रखना कठिन काम था।
जनता के आक्रोश से ही नहीं, पुलिस वालों से भी। गुस्सा इतना ज्यादा था कि
कोई भी उसकी इहलीला समाप्त कर सकता था। अजमल आमिर कसाब की सुरक्षा में ही
सरकार के 35 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और जब तक उसे फांसी के फंदे पर
लटका नहीं दिया जाता तब तक सरकार के खजाने से और कितना धन खर्च होगा,
क्या कहा जा सकता है? क्योंकि कसाब को फांसी कब होगी, यह तो कोई ज्योतिषी
भी नहीं बता सकता। फांसी के पहले लंबी कानूनी प्रक्रिया है। पहले उच्च
न्यायालय फांसी की सजा को निश्चित करेगी। तब कसाब फैसले के विरुद्ध उच्च
न्यायालय में अपील करने का अधिकार भी रखता है। उच्च न्यायालय के बाद
सर्वोच्च न्यायालय और उसके बाद राष्ट्रपति से दया की अपील। राष्ट्रपति के
द्वारा दया की अपील जब खारिज कर दी जाएगी तब कसाब को फांसी देने का दिन
निश्चित होगा। स्पष्ट है कि लंबा रास्ता है और तब तक कसाब को सुरक्षित
रखना भी सरकार की अहम जिम्मेदारी है। सुरक्षा का अर्थ है करोड़ों रुपए
खर्च करना।

सारा देश और हर कोई जानता है कि कसाब अपराधी है। अपराधी भी ऐसा वैसा नहीं
जघन्य अपराधी है। जिसने देश की अस्मिता पर हमला किया। आंखों देखे गवाह
हैं और टीवी पर तो पूरे देश ने ही नहीं, सारी दुनिया ने देखा है। वह
पाकिस्तानी नागरिक है। पाकिस्तान ने तो पहले उसे पाकिस्तानी मानने से
इंकार कर दिया था। फिर पाकिस्तान कहने लगा कि वह घूमने के लिए गया था।
उसे जबरन फंसाया जा रहा है। भारत सरकार ने पाकिस्तान में बैठे कसाब के
आकाओं के विरुद्ध कितने ही प्रमाण पाकिस्तान सरकार को सौंपे लेकिन
पाकिस्तान मानने के लिए तैयार नहीं कि सबूत पर्याप्त है। कहा जा रहा है
कि पाकिस्तान में प्रति वर्ष 11 हजार आतंकवादी प्रशिक्षण प्राप्त करते
हैं। एक कसाब उदाहरण है कि पाकिस्तान में क्या हो रहा है ? सारी दुनिया
अच्छी तरह से जानती है कि पाकिस्तान क्या खेल, खेल रहा है। अमेरिका में
पिछले दिनों टाइम एक्वायर पर कार के द्वारा विस्फोट करने के मामले में एक
पाकिस्तानी अमेरिकी युवक पकड़ा गया। जिसके पिता पाकिस्तान एयर फोर्स के
उपाध्यक्ष रह चुके है। अमेरिका ने पाकिस्तान को करांची में स्थित
आतंकवादियों की सूची दी तो 7 लोगों को पाकिस्तान ने गिरप्तार किया।
त्वरित कार्यवाही की। क्योंकि अमेरिका के धन से ही तो पाकिस्तान की सरकार
चल रही है।

कसाब को सजा देकर हम खुश हो सकते हैं और हमें खुश भी होना चाहिए लेकिन यह
नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान तो कसाब बनाने की फैक्ट्री है। हम न्याय
पूर्ण समाज में रहते हैं। यही सभ्य समाज की भी निशानी है लेकिन इसकी कीमत
हमें भारी चुकानी पड़ती है। एक अपराधी को फांसी तक पहुंचाने में ही हमारे
करोड़ों रुपए खर्च होते है। ऐसे अपराधियों के लिए विशेष तरह की कानूनी
व्यवस्था होना चाहिए। क्योंकि जिस धन से लाखों लोगों का भला किया जा सकता
है और जो वास्तव में जनता की मेहनत की कमायी से पैदा हुआ धन है, उसे इस
तरह जघन्य अपराधी के पीछे व्यय करना कितना उचित है? ये तो हमारे ऊपर
दोतरफा मार है। नुकसान जान और माल दोनों का हम ही उठा रहे हैं। आदर्श की
दृष्टि से भले ही यह ठीक लगे लेकिन व्यवहारिक दृष्टि से यह उचित तो नहीं
लगता। फिर जिस व्यक्ति को अंतत: फांसी पर ही चढ़ाना है तो इतनी लंबी
कानूनी प्रक्रिया के बदले फास्ट ट्रैक से क्यों नहीं निपटाया जाता ?

कसाब के मामले से सरकार को सबक लेना चाहिए। आतंकवादी, जघन्य अपराधी
जानते है कि कानून की लंबी प्रक्रिया उनका हित संवर्धन करते है। वे मारे
गए तो अलग बात है लेकिन पकड़े गए तो कानूनी संरक्षण ही उनकी ढाल बन जाता
है। कितने ही फांसी की सजा पाए व्यक्ति राष्ट्रपति से दया की अपील का
निपटारा न होने के कारण आज जिंदा है। बार-बार भाजपा, शिवसेना मांग करती
है कि अफजल गुरु को फांसी दी जाए लेकिन दया अपील का निर्णय न होने के
कारण वह भले ही जेल की सलाखों के पीछे हैं लेकिन जिंदा तो है। ऐसे में
किसी अति महत्वपूर्ण व्यक्ति का अपहरण करने में आतंकवादी सफल हो गए तो
कसाब और अफजल गुरु जैसे लोगों की रिहाई की मांग भी कर सकते हैं। दुर्दांत
आतंकवादियों को हमें छोडऩा भी पड़ा है, यह नहीं भूलना चाहिए। किसी
निर्दोष के अपहरण पर हमारी मजबूरी हो जाती है कि निर्दोष को बचाया जाए या
अपराधी को सजा दी जाए।

सामान्य अपराधी और विशेष तरह के अपराधी जो देश की शांति और सुरक्षा के
लिए खतरा है, उनमे भेद तो करना पड़ेगा। जब तक कानून की सख्ती का भय
अपराधियों में पैदा नहीं होगा तब तक सजा का कोई विशेष अर्थ नहीं रहता। जो
अपनी जान हथेली पर लेकर देश के नागरिकों का कत्ले आम करने निकला था, वह
कसाब आज भले ही फांसी की सजा सुनाए जाने पर रो रहा हो लेकिन यह उसका रोना
किसी के दिल को पसीजने वाला नहीं है। क्योंकि उसने कृत्य ऐसा किया है कि
जो अक्षम्य है। उसे किसी तरह से क्षमा नहीं किया जा सकता। मानवतावादी भी
यह अपील नहीं कर सकते कि कसाब को क्षमा किया जाए। जब कसाब की गोली से बच
गए लोग न्यायालय में कहते हैं कि कसाब को फांसी की सजा दी जाए। 8-10 वर्ष
की लड़की कहती है। मृतकों के बच्चे कहते हैं तो सरकार को सोचना चाहिए कि
कैसे इस नर पिशाच को जल्दी से जल्दी फांसी के फंदे पर लटकाया जाए। जिससे
इसके हाथ मारे गए लोगों की आत्मा को शांति मिले। पाकिस्तान तो पूरी
बेशर्मी से कहता है कि कसाब को उन्हे सौंप दिया जाए और वे उसे सजा देंगे।
हमारे विदेश मंत्री कहते है कि इस पर विचार किया जाएगा। क्या यह संभव है?
ऐसा करने की भी कोशिश की गयी तो जनता बागी हो जाएगी। कानून पर से उसका
विश्वास उठ जाएगा। लोग तो मांग कर रहे है कि भिंडी बाजार में, होटल ताज
के सामने उसे खुले आम फांसी पर लटकाया जाए। कोई कहता है कि सरकार ने
शीघ्रता भी की तो 17 माह लगेंगे। कोई कहता है कि कम से कम 5 वर्ष फांसी
देने में लग जाएंगे। सरकार चाहे और वह सक्षम है तो शीघ्र कसाब को फांसी
दी जा सकती है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 07.05.2010

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