यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 2 मई 2010

राजनीति का चश्मा उतारकर समस्याओं को सुलझाने की जरुरत है

खबर है कि नक्सली असम में उल्फा को बारुद देते हैं और बदले में हथियार
प्राप्त करते हैं। वहां से प्राप्त हथियार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों तक
पहुंचाया जाता है। अब खबर है कि उत्तरप्रदेश के सीआरपीएफ के शस्त्रागारों
से भी कारतूस नक्सलियों तक पहुंचते हैं। कल उत्तरप्रदेश में गिरफ्तार 6
लोग सीआरपीएफ और उत्तरप्रदेश पुलिस के हैं जो कारतूस चोरी कर बेचा करते
थे। यहां तक कहा जा रहा है कि चिंतलनार में मारे गए 75 सीआरपीएफ के
जवानों में से 40 मुरादाबाद कैंप के थे। मतलब निकालें तो अपने ही साथियों
के कृत्यों के कारण जवान अपनी ही गोलियों से मारे गए। इससे यह भी पता
चलता है कि नक्सलियों ने कितना बड़ा नेटवर्र्क फैला रखा है। उत्तरप्रदेश
ऐसा राज्य है जो करीब-करीब नक्सलियों से मुक्त है तो वहां से बारुद आ रहा
है। यह सब कोई दो चार दिन में बन जाने वाला नटेवर्क तो नहीं है।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ही हथियार बनाने का कारखाना पकड़ा गया
था।

अब कोई यह कहे कि डॉ. रमन सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद नक्सलियों की
गतिविधियां बढ़ी हैं और उसके पहले नक्सलियों का क्षेत्र कांग्रेस शासन
काल में सीमित था तो इस पर कौन विश्वास करेगा? दरअसल पहली बार डॉ. रमन
सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद नक्सलियों के विरुद्ध मुहिम चलायी गयी
है तो अपने सुरक्षित ठिकानों से नक्सलियों को बाहर निकलने के लिए मजबूर
होना पड़ा है। नक्सलियों की शांत और छुपी गतिविधियां सामने आने लगी हैं।
कांग्रेसी कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के शहरों तक नेटवर्क फैल गया है। अब
उत्तरप्रदेश से खबर आ रही है कि सीआरपीएफ के जवान ही कारतूस सप्लायी कर
रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में कोबाड़ गांधी पकड़ा गया। इसका तो
सीधा मतलब है कि नक्सलियों का नेटवर्र्क दिल्ली तक है। हथियार प्रदाय
करने वाले भी दिल्ली में पकड़े गए है तो यह सब यदि डॉ. रमन सिंह के कारण
हो रहा है तो यह तो गर्व की बात है।

गृहमंत्री ने पहली बार नक्सली समस्या को गंभीरता से लिया है। पी.चिदंबरम
के गृहमंत्री बनने के बाद ही समझ में आया है, केंद्र सरकार को कि आंतरिक
सुरक्षा के लिए नक्सली खतरनाक हैं। यह बात कई बार प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह ने भी स्वीकार की है लेकिन वे लोग नाराज हैं जिनके शासनकाल में
नक्सलियों ने अपनी पकड़ और पहुंच का क्षेत्र विकसित किया। ये लोग अपने ही
गृहमंत्री पी.चिदंबरम को भी निशाना बनाने में पीछे नहीं है। तरह-तरह के
यत्न किए जा रहे हैं जिससे चिदंबरम का हौसला पस्त किया जाए। अब मुद्दा
उठाया जा रहा है कि देश की करेंसी विदेशों में चिदंबरम के वित्त मंत्री
रहते समय क्यों छपवायी गयी? 10-11 वर्ष पुराने मुद्दे को आज हवा देने का
क्या औचित्य है? उस समय चिदंबरम इंद्र कुमार गुजराल के मंत्रिमंडल में
वित्त मंत्री थे तो वे कांग्रेस गठबंधन की सरकार में भी वर्षों वित्त
मंत्री रहे। तब क्या मुद्दा उठाने वालों को होश नहीं था। फिर गुजराल की
सरकार भी तो कांग्रेस के ही समर्थन से चल रही थी।

दरअसल कहीं पर निगाहें हैं और निशाना कहीं पर है। चिदंबरम जैसा योग्य
व्यक्ति कई लोगों की आंख की किरकिरी बन गया है। फोन टेपिंग का भी आरोप
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से उन्हीं पर है। फोन टेपिंग यदि हुई है तो
कितने राज गृह मंत्रालय के पास उपलब्ध हो गए हैं, यह किसी को पता नहीं।
भले ही आडवाणी फोन टेपिंग को आपातकाल से जोड़कर देखें। अन्य लोग
व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात समझें लेकिन किसी ने फोन पर ऐसी कोई बात ही
नहीं की हो जो गलत हो तो उसका फोन टेपिंग बिगाड़ क्या सकती है? डर तो
उन्हीं को होगा जिन्हें लगता है कि उनका राज फास हो गया तो वे जेल की
सलाखों के पीछे न नजर आएं। पति पत्नी संबंधों के सिवाय व्यक्तिगत जीवन
में गोपनीयता का क्या अर्थ है? स्वतंत्र देश में स्वतंत्र लोग रहते है और
वे कानून का पालन करते हैं तो उनके पास छुपाने के लिए क्या है? जहां तक
धन संपदा की बात है तो कानूनन सबकी जानकारी आयकर विभाग के पास होती है और
सूचना के अधिकार के तहत कोई भी यह जानकारी प्राप्त कर सकता है।
ऐसी कौन सी बात है जिसे गोपनीय व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में रखा
जाना चाहिए। एक जिम्मेदार सरकार को तो सबके विषय में सब कुछ पता होना
चाहिए। इसलिए जनगणना के माध्यम से सरकार जनसंख्या रजिस्टर बना रही है।
सभी की ऊंगलियों के निशान लेने वाली है। परिचय पत्र देने वाली है जिसमें
व्यक्ति की सारी जानकारी होगी और सरकार के पास भी सारी जानकारी होगी। जब
कहीं कोई अपराध होगा तो उंगलियों के निशान से पता लगाया जा सकेगा कि
किसने अपराध किया। जहां तक फोन टेपिंग का संबंध है तो कौन कहां कब फोन कर
रहा है, यह जानकारी तो आज उपलब्ध ही है। जहां तक बातों का पता लगाना है
तो वह भी लगाया जा सकता है। आज ऐसे यंत्र उपलब्ध हो गए हैं। आम आदमी जो
कानून के अनुसार अपने जीवन का निर्वाह करता है, उसे क्या परेशानी हो सकती
है? परेशान वे ही लोग हो सकते हैं जो अपराधी हैं, षडय़ंत्रकारी है। जब
सुरक्षा और जानकारी की पुख्ता व्यवस्था होगी तो आम आदमी को नहीं, उन्हें
ही तकलीफ होगी जो खास है।

आज गृह मंत्रालय को जो सूचनाएं अपने जासूसों के माध्यम से मिलती है,
उसमें भी काम तो यंत्र करते हैं। लोग चाहते हैं कि व्यक्ति हर जानकारी
गोपनीय रखे और उसे इसकी स्वतंत्रता हो तो फिर चिल्लाते क्यों है कि पुलिस
निकम्मी हैं। इंटेलिजेंस फेल है। पुलिस के पास इसके सिवाय चारा क्या है
कि वह उपलब्ध संसाधनों का खुलकर उपयोग करे और जानकारी प्राप्त करे। तभी
वह अपराधियों को पकड़ सकती है बल्कि उसे पूरी छूट मिले तो वह अपराध होने
के पहले अपराध को रोक भी सकती है। आज जो जगह-जगह से जानकारी उपलब्ध हो
रही है नक्सलियों के विषय में, उनके नेटवर्क के विषय में, यह सब खुफिया
विभाग की सक्रियता के कारण हो रहा है। और कसावट की जरुरत है। समस्या से
मुक्त होना है तो राजनीति को परे रखते हुए काम करने की जरुरत है।
लेकिन जिन लोगों के लिए राजनीति ही सब कुछ है, वे काम में अड़ंगा लगाने
का बहाना ढूंढते रहते है। वे अच्छे आदमी को बदनाम करने के लिए राजनीति का
फच्चर फंसाते रहते हैं। ईमानदारी हो। समस्या से मुक्त होने की अभिलाषा हो
तो राजनीति समस्या के हल में बीच में नहीं आएगी लेकिन वास्तव में ऐसा है,
नहीं। सबको सत्ता चाहिए और सत्ता में बैठा अच्छा काम करने वाला आंखों
में गड़ता है। पी.चिदंबरम कांग्रेसियों की आंख में गड़ रहे हैं। भाजपा का
चिदंबरम को समर्थन राजनीति में नई बात अवश्य है लेकिन यह भी चंद
कांग्रेसियों को हजम नहीं हो रहा है। चरित्र का पतन इतना हो गया है कि
फोर्स का सिपाही ही कारतूस उन लोगों को बेचता है जो इन्हीं कारतूसों से
अपने ही जवानों को मारेंगे। महिला अधिकारी देश के राज दुश्मन देश के हाथ
में ऐसे सौंपती हैं कि जैसे वह कोई अच्छा काम कर रही है। उसे पकड़े जाने
पर भी कोई पछतावा नहीं है। इस बात पर चिंतन करने की जरुरत है कि इतनी
गिरावट क्यों चरित्र में आ रही है?

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 01.05.2010
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