यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 9 मई 2010

और कब तक हमारे जवान इसी तरह से शहीद होते रहेंगे?

शांति न्याय यात्रा और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के 22 अरब रुपए बस्तर
में खर्च करने का जवाब नक्सलियों ने सीआरपीएफ के बख्तरबंद वाहन को बारुदी
सुरंग से उड़ा कर दिया है। 8 जवान फिर शहीद हो गए जो छुट्टी मनाने के लिए
जाने की तैयारी में थे। 76 जवानों की जान लेने के बाद भी नक्सलियों की
खूनी प्यास बुझी नहीं हैं। 1 माह भी नहीं हुए और दूसरी घटना को अंजाम
देकर नक्सलियों ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे सिर्फ गोलियों की ही
भाषा में बात करना जानते हैं। फिर भी सभ्य, अहिंसक बुद्धिजीवी अभी भी
उम्मीद रखते हैं कि नक्सली हिंसा छोड़ सकते हैं। शांति न्याय यात्रा के
लिए निकले बुद्धिजीवियों को रायपुर से लेकर जगदलपुर तक जन आक्रोश का
सामना करना पड़ा। फिर वे दंतेवाड़ा भी पुलिस संरक्षण में गए लेकिन अब
उनका पता नहीं है कि वे शांति न्याय यात्रा छोड़ कर कहां गए। एक समाचार
पत्र में खबर छपी है कि वे गुपचुप दिल्ली कूच कर गए।

अभी तक बुद्धिजीवी सलाह देते थे कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का समुचित
विकास नहीं हुआ, इसलिए नक्सलियों को फलने फूलने का मौका मिला। नक्सली
समस्या से मुक्ति तभी मिलेगी जब इन क्षेत्रों का विकास किया जाएगा। विकास
कैसे किया जाए? नक्सली विकास की ही राह में तो रोड़े अटकाते हैं। क्योंकि
वे अच्छी तरह से जानते हैं कि विकास हो गया तो उनकी दुकान बंद हो जाएगी।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तो बस्तरवासियों को 50 हजार नौकरी का तोहफा दे
रहे है। बस्तर के युवक सरकारी नौकरी में आ गए तो नक्सलियों की फौज में
भर्ती होने के लिए युवक ही नहीं मिलेंगे। 22 अरब रुपए कम नहीं होते। इतना
धन जब बस्तर में खर्च होगा तो बहुत कुछ बदल जाएगा। लेकिन सरकार खर्च कर
सके ऐसा माहौल निर्मित न हो इसके लिए नक्सली हर तरह का हथियार उपयोग
करेंगे। राष्ट्रीय राजमार्ग 16 पर जब नक्सली बारुदी सुरंग लगाकर बख्तरबंद
गाड़ी को उड़ा सकते हैं तो इससे तो यही लगता है कि वे सब कुछ करने में
सक्षम हैं। विस्फोट से बुलेट प्रूफ बख्तरबंद गाड़ी के जब परखच्चे उड़
जाएं और उसमें बैठे जवानों के शरीर 100 मीटर दूर जाकर गिरें तो इसी से
समझ में आ जाता है कि नक्सली पुलिस के सुरक्षा तंत्र को तोडऩे में कितने
सक्षम हैं।

यह नक्सलियों की तारीफ नहीं है लेकिन हकीकत अवश्य है। इसीलिए गृहमंत्री
ननकीराम कंवर यह कहने में नहीं हिचक रहे हैं कि सेना अब कमान संभाले।
शायद उन्हें लगता हो कि सीआरपीएफ के बस की बात नहीं है, नक्सली। यह बात
दूसरी है कि डीजीपी कह रहे है कि हमारे जवान नक्सलियों से लडऩे में सक्षम
हैं। मुख्यमंत्री भी कह रहे है कि केंद्रीय सुरक्षा बल के सहयोग से
नक्सलियों के आतंक को समाप्त कर दिया जाएगा। प्रारंभ में जरुर लगा था कि
केंद्रीय सुरक्षा बल के आने से नक्सली बैक फुट में चले गए है लेकिन इस
छवि को तोडऩे के लिए ही नक्सली निरंतर सुरक्षा बलों के जवानों की हत्या
कर रहे हैं। हम कितना भी कहें कि यह नक्सलियों की कायराना हरकत है लेकिन
नक्सली वीरोचित लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। वे तो छुप कर लड़ रहे है।
गोरिल्ला लड़ाई लड़ रहे हैं। वे आमने सामने की लड़ाई लड़ भी नहीं सकते।
क्योंकि ऐसी लड़ाई हो तो उनका नामोनिशान शेष नहीं होगा। वे आतंक फैलाने
की लड़ाई लड़ रहे हैं। आतंक से भय पैदा होता है। लोगों में भय व्याप्त
हो, यही तो असली ताकत है नक्सलियों की और इस मामले में वे सफल है।
वे भय पैदा कर रहे हैं और हमारा सशस्त्र बल नक्सलियों में वैसा भय पैदा
नहीं कर पा रहा है। गृहमंत्री ननकी राम कंवर की बात में दम है। कब तक
नक्सलियों के हाथ जवान मारे जाते रहेंगे। इसलिए फौज का उपयोग करना चाहिए।
फौज हर तरह के युद्ध में सक्षम है लेकिन यह भी कटु सत्य है कि फौज हमारा
आखिरी हथियार है। जंगल की लड़ाई में वर्षों लग सकते हैं। क्योंकि दबाव
बढ़ा तो एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करने की नक्सलियों को सुविधा
है। श्रीलंका की लड़ाई लिट्टे से तो छोटे से क्षेत्र में थी तब भी
श्रीलंकाई फौज को वर्षों लगे। नक्सलियों का प्रभाव तो बहुत बड़े क्षेत्र
में है। यह लड़ाई बिना सशक्त खुफिया जानकारों के नहीं लड़ी जा सकती।
क्योंकि नक्सलियों को हमारी फोर्स की गतिविधियों की जानकारी तो आसानी से
मिल जाती है लेकिन नक्सलियों की जानकारी प्राप्त करना आसान काम नहीं है।
आज जिन कठिनाइयों का सामना केंद्रीय सुरक्षा बलों को करना पड़ रहा है वही
कठिनाई तो फौज को भी होगी। रणनीतिक चूक तो हर हमले में दिखायी देती है।
नक्सलियों की सही ताकत का तो अंदाज भी नहीं है। इतने दिनों से चलने वाली
लड़ाई के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि फलां स्थान नक्सलियों के प्रभाव
से पूर्णत: मुक्त हो चुका है। फिर सभ्य समाज में भी नक्सलियों के
शुभचिंतक है। प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी कहती है कि सरकार में
दम है तो उन्हें गिरफ्तार कर दिखाए। जेएनयू में गृहमंत्री चिदंबरम भाषण
देते हैं तो बाहर छात्र उन्हें काला झंडा दिखाते है। गृह मंत्रालय को
सूचना जारी करना पड़ता है कि नक्सलियों का समर्थन करने वालों को 10 वर्ष
तक जेल में कैद किया जा सकता है। इसी के परिप्रेक्ष्य में तो महाश्वेता
देवी सरकार को गिरफ्तार करने की चुनौती देती है। कुछ दिनों पहले एक
समाचार पत्र में खबर छपी थी कि केंद्रीय सुरक्षा बल के हजारों जवान नौकरी
छोडऩा चाहते हैं। कल ही जो 8 जवान मारे गए, वे अपने घर छुट्टी मनाने जाने
वाले थे। अब उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा। अपने शहीद हुए साथियों
को देखने के बावजूद आत्मबल बनाए रखना कड़ी परीक्षा है। यह ठीक है कि
हमारे जवान कड़ी परीक्षा से नहीं घबराते। उनके मन में भी नक्सलियों के
कृत्य क्रोध ही पैदा करते होंगे लेकिन सत्य यह भी है कि जो हाल बिना
लड़े, उनके साथियों का हुआ वह उनका भी हो सकता है। लड़ाई आमने सामने की
हो तो मरने की परवाह जवान नहीं करते। क्योंकि मरेंगे, तो मार कर मरेंगे।
यह तो स्पष्ट दिखायी देता है कि 2-4 दिन में समस्या का हल नहीं हो सकता।
लंबी लड़ाई लडऩी पड़ेगी। गृहमंत्री चिदंबरम ने भी इस सत्य को स्वीकार
किया है कि लंबी और निरंतर लड़ाई है। इसलिए हड़बड़ी में कोई भी नीति उचित
नहीं है। अभी तक की लड़ाई में ऐसी कोई घटना नही घटित हुई जिसमें 100-50
नक्सली एक साथ सुरक्षा बलों के द्वारा मारे गए हों। जबकि नक्सली ऐसा करने
में सफल रहे हैं। इसके साथ यह भी सत्य है कि सुरक्षा बलों का दबाव
नक्सलियों पर है। जितनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों का इस समय
नक्सलियों के विरुद्ध उपयोग किया जा रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
नक्सली मारे जा रहे हैं, गिरफ्तार किए जा रहे है, आत्म समर्पण भी कर रहे
हैं। यह भी सुरक्षा बलों के दबाव के कारण हो रहा है। लेकिन ऐसी जानकारी
जब तक हाथ नहीं लगती तब तक संपूर्ण सफलता मिल नहीं सकती। नक्सली
नेटवर्र्क की पूरी जानकारी और एक साथ उस पर हमला। यह काम खुफिया विभाग का
है। खुफिया विभाग जानकारी पूरी तरह से देने में सक्षम हो तो नक्सलियों से
निपट लेना सुरक्षा बलों के लिए कोई बड़ा काम नहीं है। देखें कब ऐसी सफलता
मिलती है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 09.05.2010
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