यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

रविवार, 9 मई 2010

जाति के आधार पर जनगणना स्वीकार कर सरकार ने भविष्य की राजनीति के लिए नया मुद्दा दे दिया है

जात पात पूछे नहीं कोय, हरि को भजै सो हरि का होय। कभी यह बात बहुत अपील
करती थी, राजनीति में लेकिन आज बात पूरी तरह से बदल गयी है। कभी राम
मनोहर लोहिया जनेऊ तोड़ो आंदोलन चलाते थे। रानी के विरुद्ध दलित महिला को
मैदान में उतारते थे। आज उनके ही समर्थक संसद में भाषण दे रहे थे कि जाति
एक हकीकत है। जनगणना में जाति की भी गणना करना चाहिए। शरद यादव तो आंकड़े
देकर बता रहे थे कि दलित, आदिवासियों की तुलना में पिछड़े वर्ग के लोग
बहुत कम संख्या में सरकारी नौकरी में है। जिस वर्ग की जनसंख्या सबसे अधिक
है देश में उसका ही प्रतिनिधित्व शासकीय नौकरी में सबसे कम है। जनगणना
के द्वारा इस बात को सामने लाया जाए कि देश की आबादी में पिछड़े वर्ग की
जनसंख्या कितनी हैं। पिछड़ा वर्ग कोई एक जाति का नहीं है बल्कि सैकड़ों
जातियां है जो इस समूह में आती है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया है कि केबिनेट की
बैठक में इस मुद्दे पर विचार किया जाएगा। सभी पार्टियों ने इसके लिए
लोकसभा में प्रधानमंत्री को धन्यवाद भी दिया। अब यह सरकार के लिए ही सोच
का विषय है कि वह जनगणना में जातियों की जनगणना किस तरह से कराती है।
सारी पिछड़ी जातियों को एक साथ गिनती है या जाति के हिसाब से गिनती है।
सरकार जाति के आधार पर जनगणना के लिए तैयार है तो उसे प्रत्येक जाति की
अलग-अलग जनगणना करना चाहिए। जिससे पता तो चले कि वास्तव में किस जाति के
कितने लोग इस देश में रहते हैं। पिछड़ी जातियों में भी वर्ग विभाजन है।
कई जातियां अति पिछड़ी है। इसलिए यदि सबकी एक साथ गणना की गई तो भविष्य
में सरकारी संरक्षण की वास्तव में जिस जाति को ज्यादा जरुरत है, उसे लाभ
मिलने के बदले, उन लोगों को लाभ मिल सकता है जो पिछड़ों में अगड़े हैं।
यह भी तो पता चले कि पिछड़ों में सबसे ज्यादा किस जाति के लोग हैं और
सबसे कम किस जाति के।

कुल पिछड़े किन्हें अपना नेता मानते हैं। इससे नए नेताओं को भी उभरने का
अवसर मिलेगा। कोई पिछड़ी जाति कहती है कि वह देश में सर्वाधिक है। इसलिए
उसका हिस्सा सबसे ज्यादा बनता है। फिर पिछड़ों की गिनती धर्म से अलग हट
कर किया जाना चाहिए। क्योंकि करीब-करीब हर धर्म में अगड़ी और पिछड़ी
जातियां है। भारतवर्ष में जो जातियों की हकीकत है, उसका मूल कारण
व्यक्तियों के द्वारा किया जाने वाला काम रहा है। पहले ही जाति से ही पता
चल जाता था कि किस जाति के आदमी का व्यवसाय क्या है? हालांकि आज तो काम
के आधार पर जाति रह नहीं गयी। सभी लोग सभी काम करते हैं। कोई शौक से करता
है तो कोई मजबूरी में लेकिन जनगणना में जाति कर्म से नहीं आंकी जाएगी
बल्कि व्यक्ति के पूर्वज किस जाति के थे,उसी से उसकी जाति तय होगी। कर्म
बदलने से जाति नहीं बदलती। ऐसा होता तो जातियां ही समाप्त हो जाती।
जब सबकी गिनती हो रही है तो सवर्णों की भी गिनती होना चाहिए। आखिर पता तो
चले कि इस देश में कितने ब्राम्हण, क्षत्री और वैश्य हैं। इनकी भी
अलग-अलग जनगणना हो। इसके साथ अल्पसंख्यकों की भी जनगणना यदि उनमें जाति
हैं तो उस आधार पर हो। जब जाति की जनगणना कर रहे है तो उपजातियों की भी
जनगणना करें। जिससे एक स्पष्ट चित्र सामने आए कि वास्तव में जाति के
नाम पर जो राजनीति की जा रही है, उसका वास्तविक चेहरा क्या है? ऐसे में
दलितों और आदिवासियों की भी जातियों की गणना करें। साथ ही जाति की जनगणना
के साथ यह भी जानकारी लें कि वर्तमान में वह व्यक्ति क्या काम कर रहा है?
इससे और स्पष्ट होगा कि 63 वर्ष के स्वतंत्रता काल में आज जातिगत क्या
स्थिति है? कितने सवर्ण, पिछड़े, दलित, आदिवासी अपनी जाति के अनुसार
किन-किन क्षेत्रों में सफलतापूर्वक काम कर रहा है। वास्तव में गरीब कौन
हैं? विकास यात्रा में कौन आगे बढ़ा और कौन पिछड़ गया?

जब कहा जाता है कि जनगणना से सरकार को अपनी योजना बनाने में मदद मिलेगी
तो जवाबदारी भी सूक्ष्मतर होना चाहिए। जनगणना से प्राप्त आंकड़े विकास के
पर्यायवाची बनना चाहिए परंतु यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अब अमीरी गरीबी
सिर्फ जाति आधारित नहीं है। हर जाति में लोग अमीर हुए है तो गरीबी भी
बढ़ी है। किसी के साथ न्याय करने का अर्थ दूसरे के साथ अन्याय नहीं होना
चाहिए। आज ब्राम्हण के घर में पैदा हुआ व्यक्ति सिर्फ पुरोहिती ही नहीं
कर रहा है और न क्षत्री के यहां पैदा व्यक्ति फौज में भर्ती हो रहा है।
व्यवसाय पर सिर्फ वैश्य जाति का एकाधिकार नहीं है। विज्ञान ने नए-नए
कार्य क्षेत्र पैदा किए हैं और ये कार्य क्षेत्र किसी जाति के मोहताज
नहीं है। सर्वजाति योग्यता के आधार पर अपना कार्य क्षेत्र चुन रही है और
सफल हो रही है। आरक्षण का संविधान में जो प्रावधान किया गया है, उसका
कारण यही है कि कैसे पिछड़ों को आगे आने का मौका मिले। जिस समय संविधान
बनाया गया, उस समय दलितों और आदिवासियों को ही पिछड़ा समझा गया लेकिन आज
63 वर्ष की स्वतंत्रता के बावजूद पिछड़ी जाति की लंबी श्रृंखला खड़ी है।

कांग्रेस इस पक्ष में नहीं थी कि जनगणना जाति आधारित हो लेकिन सभी दलों
के पिछड़े वर्ग के नेताओं की मांग के आगे झुकते हुए, उसने जाति आधारित
जनगणना पर रजामंदी दी है। बहुत वर्ष पहले जाति आधार पर जनगणना हुई थी।
उसी को आधार बनाकर राजनीति में पिछड़ों के लिए आरक्षण की मांग उठती रही
है। यहां तक कि संवैधानिक संस्थाओं में महिलाओं के आरक्षण में पिछड़े
वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग उठी और सरकार ने उसे नहीं माना।
इसलिए महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पारित होने के बावजूद लोकसभा से
पारित नहीं हो सका। क्योंकि इसके लिए माना गया कि पहले सामान्य सीटों पर
पिछड़ों के आरक्षण की व्यवस्था जब तक नहीं होती तब तक महिला आरक्षण में
पिछड़ों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

जनगणना में जातिगत आधार पर आंकड़े उपलब्ध होने के बाद सामान्य सीटों पर
भी आरक्षण की मांग नहीं उठेगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता। सरकार ने दबाव में
जातिगत जनगणना की मांग स्वीकार करने का जो रुख अपनाया है, इससे भविष्य
में कई राजनैतिक मुद्दों का जन्म होगा। राजनीति अपना खेल खेलने से बाज
नहीं आएगी। क्योंकि पिछड़े वर्ग के जो स्थापित नेता हैं, उन्हें तो
आंकड़ा उपलब्ध होने के बाद निश्चित प्रतीत हो रहा है कि उनका वर्चस्व और
वजन राजनीति में बढ़ेगा। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में ही जब कहा जाता है कि
यह आदिवासी बहुसंख्यक नहीं पिछड़ा वर्ग बहुसंख्यक है तो आंकड़े उपलब्ध
होने के बाद जाति के आधार पर राजनीति का बोलबाला बढ़ेगा। तब बहुतेरे ठगा
सा महसूस करेंगे लेकिन फिर कुछ कर नहीं पाएंगे।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 08.05.2010

2 टिप्‍पणियां:

  1. jald hi sarkar ek naya mudda uthayegi

    ek din insan hone ka mudda uthega
    ki hum insan kyon hain

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  2. jnaab bhaai jaan aadaab jaatigt aahaar hmaare deh men vrtmaan men aavshyk ho gyaa he vese jaati ke alaavaa jngnna men ling ko bhi aadhaar bnaanaa hoga abhi stri purush do hi lingon ki jngnna hoti he lekin ab purling kaa alg kolm bnaa kr jngnna krvaane ki zrurt aan pdi he. akhtar khan akela kota rajasthan

    जवाब देंहटाएं

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