यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 13 मई 2010

गृहमंत्री चिदंबरम जैसे योग्य मंत्री के हाथ में देश की आंतरिक सुरक्षा और पुख्ता ही होगी

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का चीन में गृह मंत्रालय की आलोचना उनके लिए
भारी साबित हो रही है। प्रधानमंत्री ने तो जयराम रमेश को फटकार लगायी ही,
सोनिया गांधी भी उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हैं। फिर उनकी राज्यसभा की
सदस्यता का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है और आंध्रप्रदेश के कांग्रेसी
उन्हें राज्यसभा में भेजने का इरादा नहीं रखते। पर्यावरण मंत्री की
हैसियत से वे भले ही अपनी बुद्धि से सही काम कर रहे हों लेकिन पर्यावरण
की आड़ में जिस तरह से सड़कों, खदानों को मंजूरी नहीं दी जा रही है, उससे
इन विभागों के मंत्रियों सहित राज्य सरकार भी जयराम रमेश से नाराज है।
सड़क और बिजली दोनों आज राष्ट्र की सबसे बड़ी जरुरत है लेकिन इनकी
योजनाओं पर जयराम रमेश का रुख अड़ंगा ही डाल रहा है। चीन में दिए वक्तव्य
से उन्होंने गृह मंत्रालय को ही नहीं अपनी सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर
दिया। पार्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ से उन्हें मंत्री पद से हटाने की
मांग की जा रही है।

पी. चिदंबरम के नेतृत्व में पहली बार गृह मंत्रालय न केवल ठीक ठाक काम कर
रहा है बल्कि शक्तिशाली भी दिखायी दे रहा है। देश की आंतरिक सुरक्षा और
आतंकवाद से निपटने के लिए चिदंबरम ने जिस तरह से गृह मंत्रालय को सक्रिय
किया है, उससे उनकी छवि तो बनी ही, साथ ही केंद्र सरकार की छवि में भी
इजाफा हुआ। चिदंबरम समस्या को समस्या की तरह देखते है और उसका हल निकालने
की कोशिश करते हैं। सदा से उपेक्षित रही नक्सली समस्या के प्रति भी
उन्होंने पर्याप्त ध्यान दिया है। सीमा पार से आने वाला आतकंवाद थमा तो
नहीं है लेकिन जिस तरह से मनमानी होती थी, उस पर विराम तो लगा है।
आतंकवादी कार्यवाही अब पहले की तरह आसान नहीं है, यह बात सीमा पार
आतंकवादियो को भी समझ में तो आ गयी है।

मुंबई हमले के बाद नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी का गठन किया गया और अब
नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड के गठन को मंजूरी मिल गयी है। अब जितनी भी खुफिया
जानकारी रखने वाले संगठन सरकार के पास हैं, सभी की जानकारी ग्रिड के पास
होगी। राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर भी बड़ा काम है। इसके पूर्ण हो जाने के
बाद गृह मंत्रालय के पास हर व्यक्ति के विषय में पूरी जानकारी होगी। तब
किसी भी विकसित देश से कम शक्तिशाली हमारा गृह मंत्रालय नहीं होगा। आज के
युग में सूचना सबसे बड़ी ताकत है और संपूर्ण सूचना जब सरकार के पास होगी
तब अपराधियों, आतंकवादियों का सरकार की पकड़ से बाहर होना सिर्फ वक्त की
बात रह जाएगी। नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड के प्रस्ताव का केंद्रीय
मंत्रिमंडल में विरोध भी हुआ। क्योंकि सबको समझ में आ गया कि ग्रिड के
गठन के बाद गृह मंत्रालय से कुछ भी छुपा नहीं रहेगा। सरकार चाहेगी तो
अपने मंत्रियों के क्रियाकलापों की भी पूरी जानकारी रख सकेगी। हालांकि
इसे व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी माना जा सकता है लेकिन आज जैसी
परिस्थिति देश में है, उस कारण इसी की सबसे ज्यादा जरुरत है।
क्योंकि आज देश को बाहरी ताकतों से कम और अंदरुनी से खतरा बढ़ गया है।
स्वयं पी. चिदंबरम ने माना है कि हिंदू आंतकवादी भी देश की एकता और
सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। पाकिस्तान से आने वाला आतंकवाद
तो गिने चुने लोगों को ही अपने प्रभाव में ले सका लेकिन देश में हिंदू
आतंकवाद ने अपने पैर पसारे तो उनसे निपटना आसान नहीं होगा। नक्सली समस्या
पहले से ही देश के बड़े हिस्से में व्याप्त है। पाकिस्तान से आतंकवाद
आयात होता है लेकिन हिंदू आतंकवाद की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी
लेकिन छुटपुट ही सही उसके प्रमाण तो मिल रहे है। एक बार सुरक्षा को संकट
में डालने वालों को समझ में आ जाए कि वे पुलिस की नजर से बच नहीं सकेंगे
तो बहुतेरे हैं जो इस रास्ते पर चलने की हिम्मत ही नहीं करेंगे। पुलिस
तभी सक्षम कार्यवाही कर सकती है जब खुफिया जानकारी उसे मिलती रहे। यही
सबसे बड़ा काम है और केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम का जोर भी इसी काम
पर है।

इसीलिए पी. चिदंबरम की बढ़ती ताकत कुछ लोगों को रास नहीं आ रही है। भाजपा
तो उनका समर्थन कर रही है लेकिन कांग्रेस के लोग ही उनकी आलोचना कर रहे
हैं। सबसे पहले दिग्विजय सिंह ने चिदंबरम को निशाना बनाया। जब चिदंबरम
ने कहा कि पहले ही इस समस्या पर 10-12 वर्ष पूर्व ही ध्यान दिया गया होता
तो नक्सली इतने बड़े भू-भाग में नहीं फैलते। यह एक तरह से दिग्विजय सिंह
को लगा कि उनकी आलोचना हो रही है। क्योंकि उनके शासनकाल में ही छत्तीसगढ़
में नक्सली फले फूले। चिदंबरम से चलते-चलते बात डॉ. रमन सिंह तक आयी।
दोनों तरफ से ताल ठोंके गए लेकिन फिर मामला शांत हो गया। यहां तक कि गिला
शिकवा दूर करने के लिए दिग्विजय सिंह पी. चिदंबरम से भेंट करने भी पहुंच
गए। जयराम रमेश को फटकार प्रधानमंत्री से ऐसी मिली कि अब वे चीन के विषय
में प्रेस से बात करने को भी तैयार नहीं। स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि
चिदंबरम की बढ़ती ताकत से भले ही कुछ लोग परेशान हों लेकिन मनमोहन सिंह
और सोनिया गांधी उनके कार्य से संतुष्ट हैं।

राज्य पुलिस के जवानों को भी विशेष ट्र्रेनिंग देने में गृह मंत्रालय
रुचि ले रहा है। प्रशिक्षण के अभाव में 16 लाख पुलिस कर्मी कुछ हजार
नक्सलियों से मुकाबला नहीं कर सकते। गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से विशष
ट्रेनिंग स्कूल खोलने के लिए कहा है और कुल पुलिस जवानों में से साढ़े आठ
प्रतिशत के लिए विशेष प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया है। पुलिस प्रशिक्षण
स्कूल खोलने के लिए गृह मंत्रालय हर तरह से सहयोग कर रहा है। राज्य
सरकारें भी इस मामले में पर्याप्त रुचि लें तो प्रशिक्षण शीघ्र हो सकता
है। नव नियुक्त पुलिस जवानों के लिए तो ऐसे प्रशिक्षण अनिवार्य ही होना
चाहिए। आज पुलिस के जवानों की स्थिति ऐसी है कि वे तेजी से दौडऩा तो दूर
की बात है, कितने हैं जो चल नहीं पाते। क्योंकि नियमित रुप से जो शारीरिक
कवायदें होनी चाहिए, वह भी नहीं होती।

जैसे तेज तर्रार पुलिस जवान होने चाहिए, वैसे तो अब कम से कम शहरों में
कम ही दिखायी देते हैं। नहीं तो 16 लाख पुलिस जवानों के सामने मुट्ठी भर
नक्सली ठहरते ही नहीं। इसके विपरीत नक्सली पूरी तरह से जंगलवार,
गोरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित है। स्वाभाविक है कि सामान्य पुलिस उनका
मुकाबला नहीं कर सकती। यह बात तो स्पष्ट दिखायी दे रही है कि चिदंबरम
पूरी पुलिस फोर्स को चुस्त-दुरुस्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे
लेकिन अब यह राज्य सरकार के अधिकारियों पर ही निर्भर करता है कि वे अपनी
फोर्स को चुस्त-दुरुस्त बनाना चाहते हैं या नहीं। क्योंकि पुलिस के जवान
चुस्त-दुरुस्त होंगे, अधिकारी फुर्तीले होंगे तब ही न अपराधियों और
आतंकवादियों को पकड़ सकेंगे। स्वतंत्र भारत में इस तरह की कोशिश कोई गृह
मंत्री पहली बार कर रहा है। इसके लिए उसे साधुवाद तो दिया ही जा सकता है।
नक्सलियों के विरुद्ध गृह मंत्रालय पहली बार मीडिया में प्रदर्शन
विज्ञापन देकर लोगों को जागृत करने का भी प्रयत्न कर रहा है। यह भी
गृहमंत्री की सोच का ही परिणाम है। चिदंबरम को पर्याप्त समय गृह मंत्री
बने रहने का मिला तो वे जड़ से खोदकर समस्या को समाप्त करने में विश्वास
तो रखते ही हैं, साथ ही साथ ऐसी व्यवस्था तैयार करना चाहते है कि भविष्य
में भारतीय पुलिस की एक शानदार छवि बने।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 12.05.2010
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