यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 10 मई 2010

ननकी राम कंवर नक्सलियों से लडऩे के लिए फौज को लगाने की बात करते हैं तो गलत क्या कहते हैं?

नक्सलियों से मुकाबला कौन करेगा, यह तय करने का अधिकार सरकार के पास है।
सरकार सुरक्षा बलों को नक्सली समस्या से निपटने के लिए सक्षम समझती है या
फौज को, यह भी सोचने और निर्णय करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है।
पुलिस के आला अफसर का यह काम नहीं है। पुलिस को तो सरकारी नीति के
अनुसार अपनी रणनीति बना कर काम करने का अधिकार है और उसे यही काम करना
चाहिए। मीडिया से भी उसे उतनी ही बात करना चाहिए जितना जरुरी हो। यदि
गृहमंत्री ननकीराम कंवर कहते हैं कि फौज को जिम्मेदारी सौंप दी जानी
चाहिए तो इस पर निर्णय करने का अधिकार मुख्यमंत्री का है। न कि डीजीपी
का। गृहमंत्री के विचारों के विरुद्ध यदि डीजीपी ही विचार व्यक्त करेंगे
तो इससे जनता में कोई अच्छा संदेश नहीं जाता। नक्सलियों को तो स्पष्ट
संदेश मिलता है कि इनके आपसी विचार एक नहीं है। मतलब जब विचारों में ही
विभिन्नता हैतो फिर एकमत होकर किस तरह से मुकाबला करेंगे। अच्छा तो यही
है कि नीतिगत मामले में विचार मुख्यमंत्री के सिवाय अन्य कोई व्यक्त न
करें। जिससे लगे सरकार और पुलिस में एका है।

मीडिया का तो काम है कि वह किसी से पूछे लेकिन जवाब देने वाले को छपास
रोग हो तो बात विवाद बन जाती है। इससे विपक्ष को आलोचना का अवसर मिलता है
और कांग्रेसी सांसद चरणदास महंत यही कर रहे हैं। वे राज्यपाल को पत्र
लिख रहे हैं। मीडिया छाप रहा है कि गृहमंत्री और डीजीपी में खुली जंग। यह
सब अच्छे संकेत नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय चेतावनी दे रहा है कि 600
नक्सली बीजापुर के आसपास डेरा डाले हुए हैं और वे किसी बड़ी वारदात को
अंजाम देने की कोशिश में हैं। वे सुरक्षा बलों की कमजोरी ढूंढ रहे है।
जिससे फिर घात लगाकर जवानों के जीवन का हरण कर सकें। कहा जा रहा है कि 24
हजार वर्ग किलोमीटर में जगह-जगह नक्सलियों ने बारुदी सुरंग बिछा रखी है।
ढाई फुट से अधिक जमीन के नीचे इन सुरंगों के होने के कारण सुरक्षा बलों
के पास साधन नहीं हैं कि वे पता लगा सकें कि कहां बारुदी सुरंग लगायी गयी
है। ऐसी स्थिति में सुरक्षा बलों को काम करना पड़ रहा है।
इस स्थिति में भी केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय पुलिस को सूचित कर रहा है
कि 600 नक्सली बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए इकट्ठा हो गए हैं। जबकि यह
खबर राज्य पुलिस के पास पहले से होना चाहिए था। केंद्रीय गृह मंत्रालय
बार-बार कह रहा है कि नक्सलियों से निपटने का काम राज्य सरकार का है और
वह राज्य सरकार की मदद कर रहा है। सीधा और साफ है कि केंद्रीय सुरक्षा बल
लड़ रहा है और अपने जान न्यौछावर कर रहा है। राज्य पुलिस क्या कर रही है?
असल में नक्सलियों से लडऩे का दायित्व जिसका है। केंद्रीय सुरक्षा बलों
के जवान मारे जा रहे है तो उसकी जिम्मेदारी राज्य पुलिस की भी तो है। कोई
आपकी मदद करने आए और मारा जाए तो आप अपनी जिम्मेदारी से कैसे इंकार कर
सकते हैं? गृह मंत्री ननकी राम कंवर को भी लगा होगा कि नक्सलियों से
लडऩे में राज्य पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बल सक्षम नहीं हैं। इसलिए
उन्होंने कहा होगा कि फौज को जिम्मेदारी सौंप दी जानी चाहिए। अब फौज को
जिम्मेदारी दी जाए या न दी जाए, यह सोचने का काम राज्य पुलिस के आला अफसर
का नहीं हैं बल्कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के सामूहिक सोच का विषय
है।

वायु सेना के उपयोग की बात यदा कदा उठती तो है। जब जमीन पर बारुदी सुरंग
बिछी हो तो फिर आसमान से मुकाबले के विषय में सोचा ही जाना चाहिए या फिर
ऐसे उपकरण सुरक्षा बलों को मुहैया कराना चाहिए जो ढाई फुट से नीचे गड़े
बारुदी सुरंगों का भी पता लगा सके। आधुनिक हथियारों से लैस नक्सलियों को
युद्ध की आधुनिक तकनीक का न केवल ज्ञान है बल्कि नक्सली युद्ध के मामले
में पर्याप्त प्रशिक्षित भी दिखायी दे रहे हैं। वे अपनी पोशाक उतार कर आम
आदमी के कपड़ों में आम आदमियों के बीच ऐसे घुल मिल भी जाते हैं कि उनको
पहचानना आसान नहीं है। वाकी टाकी तक का तो प्रयोग वे करते हैं। वे पूरी
जानकारी प्राप्त कर रणनीतिक हमला करते है। उनका टारगेट निश्चित है। वे
600 भारी पड़ते हैं, 6 हजार पर। इधर हमारे नेता और अधिकारी छपास रोग से
ग्रस्त हैं। वे यह नहीं समझते कि वे जो भी बोलते हैं, उसे मीडिया
प्रचारित करता है और सब कुछ नक्सलियों को पता चल जाता है।

कल उड़ीसा में सुरक्षा बलों और ग्रेहाऊंड ने 10 नक्सलियों को एक मुठभेड़
में मारा। कहा जा रहा है कि आंध्र में पुलिस का दबाव नक्सलियों पर बढ़
गया है। इसलिए वे सुरक्षित ठिकाने छत्तीसगढ़ में घुस आए हैं। उड़ीसा के
रास्ते महासमुंद में भी प्रवेश के समाचार हैं। मतलब युद्ध का क्षेत्र
छत्तीसगढ़ बन रहा है। छत्तीसगढ़ पर जिम्मेदारी बढ़ रही है कि वह
नक्सलियों पर दबाव डाले कि वे भागने की जगह तलाश करें तो उन्हें पड़ोसी
राज्यों में जगह न मिले। गृह मंत्रालय की सूचना के अनुसार नक्सलियों की
नजर कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर भी हैं। इसका अर्थ होता है कि पुलिस
को अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए। क्योंकि सुरक्षा की आखिर जिम्मेदारी तो उसी
की है। जब पुलिस का आला अधिकारी कहता है कि फौज की जरुरत नहीं है। पुलिस
सक्षम है तो कल कोई ऐसी वैसी घटना घटित होती है तो जिम्मेदार पुलिस ही
होगी।

कहा जा रहा है कि नेपाली माओवादी भी बस्तर पहुंच गए है। यदि यह समाचार
सही है तो बस्तर नक्सली और सुरक्षा बलों की जंग का मैदान बन जाएगा। पता
नहीं कितना खून खराबा होगा। अभी ही इतना खून बह चुका है कि बहता खून
लोगों को विचलित कर रहा है। जवानों के मारे जाने से शांतिप्रिय आम
नागरिकों की संवेदनाशीलता पर चोट लगती है। जवानों के रोते बिलखते परिवार
नक्सलियों के विरुद्ध भाव पैदा करते हैं लेकिन मन में यह प्रश्र कौंधता
है कि आखिर कब तक? कब बंद होगा, यह खून खराबा। यह स्थिति चिंता पैदा करती
है। कल जब तिल्दा में सीआरपीएफ के उपनिरीक्षक टेक राम वर्मा की अंतिम
यात्रा में सम्मिलित होने के लिए गृह मंत्री ननकी राम कंवर गए तो वे भी
अपने आंसू रोक नहीं पाए। टेकराम वर्मा की पत्नी, मां, पिता का रुदन सभी
को आंखों से झरझर आंसू बहाने के लिए बाध्य कर रहा था। ऐसे में किसी को भी
लग सकता है कि नक्सलियों को मारने के लिए फौज भी बुलाना पड़े तो बुलाओ।
यह सिर्फ ननकी राम कंवर की ही सोच नहीं है। ऐसे दुर्दांत लोगों से निपटने
के लिए सुरक्षा बल सक्षम नहीं है तो फौज को बुलाने में क्या आपत्ति हो
सकती है? सभी चाहते हैं कि नक्सली समस्या से मुक्ति मिले। जब लड़े बिना
कोई चारा ही दिखायी न दे और निरंतर सुरक्षा बल के जवान काल कलवित हों तो
हर स्थिति से लडऩे में सक्षम लोगों को लाया जाए और फौज के सिवाय तो और
कोई दिखायी नहीं देता। जब काश्मीर में आतंकवादियों से लडऩे के लिए फौज को
बुलाया जा सकता है तो बस्तर में क्यों नहीं? आखिर उद्देश्य तो शांतिप्रिय
नागरिकों को शांति से रहने के अधिकार की रक्षा करने का है। इसलिए केंद्र
सरकार फौज भेजने के निर्णय से भले ही सहमत न हो लेकिन ननकी राम कंवर को
इसके लिए गलत नहीं ठहराया जा सकता।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 10.05.2010
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