जब सब कुछ आयुक्त को ही करना है तो फिर महापौर की क्या उपयोगिता है? वैसे भी जहां-जहां कांग्रेस का महापौर जनता ने चुना है, वहां-वहां राजनीति सरगर्म है। नौकरशाह नगर निगम के कर्मचारी की तरह काम करने के बदले सरकार के प्रतिनिधि के रुप में काम कर रहे है। स्थिति तो यहां तक है कि महापौर और आयुक्त में कई जगह सीधे बोलचाल भी नहीं है और कागजी घोड़े दौड़ते हैं। कागजी घोड़ों से सरकार में बैठा व्यक्ति कैसे काम करता है, इसका अनुभव तो इस देश के नागरिकों को अच्छा खासा है। पहले महापौर के मुह जुबानी आदेशों का भी पालन आयुक्त सहित नगर निगम के कर्मचारी करते थे लेकिन आज स्थिति एकदम विपरीत है। कर्मचारी आयुक्त के अधीन है तो महापौर सिर्फ नोटशीट ही लिखकर आयुक्त को भेज सकती है। अब उसका निपटारा कब हो, यह देखना आयुक्त का ही काम है।
जिस पार्टी की सरकार हो उसका स्थानीय संस्थाओं पर भी कब्जा न हो तो कैसी स्थिति निर्मित होती है, यह सबको दिखायी दे रहा है। रायपुर के नागरिकों ने जिस तरह से कांग्रेस के प्रत्याशी को महापौर चुना, उसका फल तो रायपुर की जनता को भोगना ही पड़ेगा। जहां जनता से बड़ी राजनीति हो, वहां यह सब ही होना है। अभी तो प्रारंभ है। सत्ता की राजनीति का खुला अखाड़ा रायपुर नगर निगम बना हुआ है। एक तरफ महापौर है जिनकी कोई सुनता नहीं तो दूसरी तरफ सभापति हैं जिनके इशारे पर समस्त काम चुटकी बजाते हो जाते हैं। यहां तक कि प्रतिपक्ष के नेता भी जो चाहें करवाने में सक्षम हैं लेकिन महापौर और उनके समर्थक 35 पार्षदों की सुनने वाला तो है लेकिन उनके इच्छानुसार काम करने वाला कोई नहीं है। महापौर के बाद शक्ति के मामले में महापौर परिषद के सदस्य ही आते है लेकिन जब महापौर परिषद के सदस्य ही महापौर के समक्ष नहीं आयुक्त के समक्ष काम न होने का रोना रोएं तो इसे बुरी स्थिति ही कहा जाएगा।
भीषण गर्मी और चिलचिलाती धूप में पानी की क्या महत्ता है, यह बात सबको अच्छी तरह से पता है। इस समय समस्त राजनीति को भूल कर रायपुर शहर की जनता तक पानी आसानी से पहुचें यह कर्तव्य किसी पार्टी विशेष का ही नहीं बल्कि सबका है। यह नहीं होना चाहिए कि जिस वार्ड के लोगों ने भाजपा के पार्षदों को चुना, वहां तो पानी की सुख-सुविधाएं और जहां कांग्रेसी और निर्दलीय पार्षदों को जनता ने चुना है, उनके साथ सौतेला व्यवहार हो। यह आरोप गंभीर है कि फायर बिग्रेड की गाडिय़ों से महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बंगले तक पानी पहुंचाया जाए और आम आदमी को पर्याप्त पानी के लिए टैंकरों की पर्याप्त सुविधा न मिले। टूल्लू पंप से आखिर लोगों को क्यों पानी खींचना पड़ता है? सीधा और साफ जवाब है कि नलों से इतनी पतली धार आती है कि नहाने धोने की बात तो जाने दीजिए पीने और भोजन पकाने के लिए ही पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता। यदि पर्याप्त मात्रा में पानी मिले निर्धारित समय में भी तो किसी का दिमाग खराब नहीं है कि वह टूल्लू पंप का उपयोग करें।
अब कह रहे हैं कि नलों में मीटर लगाया जाएगा। मतलब अब बूंद-बूंद पानी का भी पैसा जनता को देना होगा। संपत्ति कर बढ़ाओ, पानी का पैसा वसूल करो लेकिन सुविधा के नाम पर नगर निगम में बैठ कर राजनीति करो। कांग्रेस संगठन भी महापौर को आंखें दिखा रहा है कि संगठन के कहे अनुसार चलो, नहीं तो ठीक नहीं होगा। एक तरफ आयुक्त सुनता नहीं दूसरी तरफ संगठन हुक्म चलाना चाहता है तो महापौर करे तो क्या करे? जिस महापौर पद की ऐसी गरिमा मानी जाती है कि उसे शहर का प्रथम नागरिक कहा जाता है। जहां शहर के प्रतिनिधित्व का मामला हो वहां सबसे पहले उसी की पूछ होती है। उसकी स्थिति राजनीति ने ऐसी बना दी है कि वह नाम का महापौर रह गया है। संवैधानिक पद की गरिमा का तो कम से कम सबको ध्यान रखना चाहिए।
जब सुनील सोनी महापौर थे तो उन्होंने मांग की थी कि आयुक्त की सीआर लिखने का अधिकार महापौर को दिया जाना चाहिए। आज रायपुर के लोगों को महापौर के रुप में सुनील सोनी की ज्यादा याद आती है। उनके कार्यकाल में जनता की समस्याओं का निपटारा आसानी से हो जाता था। सरकार ने महापौर को आयुक्त की सीआर लिखने का अधिकार दे दिया होता तो आज जो स्थिति खड़ी है, वह खड़ी नहीं होती। किसी भी जनप्रतिनिधि से यदि नौकरशाह के पास ज्यादा ताकत हो तो यह प्रजातंत्र के लिए अच्छी स्थिति नहीं है। हर 5 वर्ष में जनता नौकरशाह के कार्यों का फैसला नहीं सुनाती बल्कि जनता की अग्रि परीक्षा जनप्रतिनिधियों को देनी पड़ती है।
यह जनता है। इसका मिजाज कब बदल जाए, कौन कह सकता है? रायपुर शहर के ही चार विधानसभा क्षेत्रों में से 3 पर भाजपा के विधायक जनता ने चुने। सांसद भी भाजपा का चुना लेकिन महापौर चुनते समय उसने भाजपा को झटका दिया कि मनमानी करेंगे तो विकल्प उसके पास है। जिसे चाहो उसे टिकट दोगे तो यह अन्याय जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। जरा इस पर भी तो गौर करना चाहिए कि आखिर जनता ने 10 निर्दलीय पार्षद क्यों चुने? क्योंकि जनता ने कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की तुलना में निर्दलियों को ज्यादा योग्य पाया। जनता के इस अधिकार पर कोई प्रश्र चिह नहीं लगा सकता। जनता अपनी समस्याओं का ईमानदारी से हल चाहती है। यदि दलों की राजनीति जनता के लिए समस्या बनी तो ऐसा सोचने की गफलत नहीं करना चाहिए कि भाजपा और कांग्रेस के सिवाय जनता के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।
जनता भले ही मौन है लेकिन वह शांति से बाबा रामदेव की गतिविधियों की तरफ भी देख रही है। जब जनता को राजनीति का शिकार ही होना है और राजनीतिक संकीर्णता जनता की राह का रोड़ा बनने लगे तब विकल्प बाबा रामदेव भी हो सकते हैं। एक बार इन्हें भी वोट देकर देख लेने में कोई हर्ज नहीं जनता ने सोचा तो जनता में वह ताकत है कि वह पूरी फिजां बदल कर रख दे। अरे जहां सत्यानाश वहां सवा सत्यानाश। इससे ज्यादा क्या होगा लेकिन यह भी तो हो सकता है कि बाबा रामदेव की सरकार वास्तव में जनहितैषी साबित हो। राजनीति संभावनाओं का खेल है और जनता की निराशा इस संभावनाओं के खेल के परिणाम को बदल भी सकती है। आज सरकार के विषय में लोगों के विचार अच्छे हैं लेकिन जैसी गतिविधियां चल रही है, उससे खेल बिगड़ भी सकता है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 30.04.2010
इस समय समस्त राजनीति को भूल कर रायपुर शहर की जनता तक पानी आसानी से पहुचें यह कर्तव्य किसी पार्टी विशेष का ही नहीं बल्कि सबका है।
जवाब देंहटाएंयह सही कहा आपने!