यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

नक्सली क्षेत्रों में डा. रमन सिंह का ग्राम सुराज और राजधानी मे कांग्रेस का धरना

प्रदेश कांग्रेस ने तय किया था कि विधायकों का दल 76 जवानों की हत्या के क्षेत्र में जाकर जांच करेगा कि किसकी गलती से यह घटना हुई। कांग्रेसी विधायक तो अभी तक जा नहीं सके लेकिन मुख्यमंत्री जाकर आ भी गए और अब दूसरी बार ग्राम सुराज अभियान का प्रारंभ भी वहीं से किया। कोई अनुमान लगा रहा था कि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ग्राम सुराज अभियान का प्रारंभ राजनांदगांव से करेंगे लेकिन मुख्यमंत्री ने ग्राम सुराज अभियान के लिए सुरक्षित ठिकाना नहीं चुना बल्कि वहीं से प्रारंभ किया। वहां सबसे ज्यादा खतरा मुख्यमंत्री के लिए स्वयं है। क्योंकि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का नाम नक्सलियों की हिट लिस्ट में सबसे ऊपर है। कोई भी अक्लमंद आदमी मुख्यमंत्री को यही सलाह देता कि वे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में न जाएं लेकिन मुख्यमंत्री ऐसी अक्लमंदी पसंद नहीं करते और अपने नागरिकों के साथ हर मौके पर खड़े होने का जज्बा उनमें है। मौत तो कब कहां से किसकी आएगी कोई नहीं जानता। सब तरह से सुरक्षित लोग भी अपने ही किलों में मारे गए हैं। प्रजातंत्र में जननेता यदि किसी की धमकियों से डरने लगे तब तो अधीनस्थ कर्मचारियों से कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती। अपने नागरिकों को, सिपाहियों को, कर्मचारियों को हिम्मत देना आखिर काम तो मुख्यमंत्री का ही है और मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह इस मामले में सबसे आगे ही हैं, पीछे नहीं।

छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी उनसे इस्तीफा मांग रहे हैं। इसके लिए वे नक्सली हिंसा के क्षेत्र में जाकर धरना नहीं दे रहे हैं बल्कि राजधानी रायपुर में धरना दे रहे हैं। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह प्रश्र पूछते हैं कि नक्सली हिंसा में मारे गए जवानों में से दो दर्जन से अधिक जवान रायबरेली अमेठी के ही हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने उनके शोक में दो शब्द कहना भी जरूरी नहीं समझा और न ही नक्सलियों की निंदा की। मुख्यमंत्री सही बात कह रहे हैं। मुंबई हमले के समय तो सोनिया गांधी मुंबई भी गयी थी लेकिन नक्सली हिंसा के समय बस्तर आना उन्होंने जरूरी नहीं समझा। क्यों? 76 जवानों की हत्या कोई छोटा मामला तो नहीं था। ये 76 जवान भारत के ही विभिन्न हिस्सों से आये थे। इनके प्रति सत्तारूढ़ पार्टी की अध्यक्ष और युवराज का भी तो कोई न कोई कर्तव्य था। फिर जब वे उनके ही लोकसभा क्षेत्र के हों तो जिम्मेदारी कम नहीं होती, बढ़ जाती है। हर दल के नेता ने नक्सली हिंसा की निंदा की लेकिन कांग्रेस के सर्वोच्च नेता ने नहीं की।

मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों से कहते हैं कि पूछें अपने नेता से। डा. रमन सिंह जानते हैं कि ये कांग्रेसी अपनी नेता से इस तरह का प्रश्न पूछने की हिम्मत नहीं रखते। इन्होंने ऐसा करने की हिम्मत की तो इनका राजनैतिक कैरियर ही समाप्त हो जाएगा। कांग्रेस में एक ही तो पद है राष्टरीय अध्यक्ष का जिससे कोई प्रश्न नहीं पूछ सकता। किसी ने कभी हिम्मत की पूछने की तो उसका क्या हश्र हुआ, यह सभी को अच्छी तरह से पता है। एक टीवी शो में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी से पूछा गया कि एक महाराष्ट्र के नेता को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है, वह कैसे पूरे देश का नेतृत्व करेगा? तब उन्होंने जवाब दिया कि यही तो कांग्रेस और भाजपा में अंतर है। कांग्रेस एक परिवार की पार्टी है और उस पर उस परिवार के सिवाय किसी और को अध्यक्ष बनने का अधिकार नहीं है लेकिन भाजपा में एक पोस्टर चिपकाने वाला भी राष्टरीय अध्यक्ष बन सकता है। भाजपा जड़ों से नेताओं की तलाश करती है। किसी परिवार का भाजपा पर एकाधिकार नहीं है। इसलिए भाजपा अध्यक्ष से भी पार्टी का कार्यकर्ता जवाब तलब कर सकता है लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं है।

कांग्रेस में यह देखा जाता है कि आलाकमान क्या चाहता है? आलाकमान जो कहे या करे, वही सही। छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों से आलाकमान इत्तफाक नहीं रखता और न ही उनकी बातों को कोई विशेष तव्वजो देता है। ये दूसरे नेताओं की शिकायत आलाकमान से करते हैं तो उसे गंभीरता से लेने की भी जरूरत आलाकमान नहीं समझता। 76 जवानों की हत्या के बाद छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों ने मांग की कि मुंबई की घटना के बाद जिस तरह से मुख्यमंत्री को हटाया गया था और केंद्रीय गृहमंत्री से इस्तीफा लिया गया था, उसी तरह से कांग्रेस का मुख्यमंत्री तो छत्तीसगढ़ में है, नहीं इसलिए राष्टपति शासन लगाया जाए और गृहमंत्री से इस्तीफा लिया जाए। इसके बाद गृहमंत्री ने इस्तीफे की पेशकश भी की लेकिन प्रधानमंत्री और आलाकमान इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसी से समझ में आ जाता है कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों की आलाकमान कितना सुनता है। फिर भी कुछ करता हुआ तो दिखना चाहिए। इसलिए धरना दिया जा रहा है।
इसके पहले भी जब राजनांदगांव जिले में नक्सली हिंसा हुई थी तब कांग्रेसी विधायकों ने मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगा था। कुछ दिनों तक विधानसभा नहीं चलने दी थी लेकिन फिर सब शांत हो गया। इस बार भी कितनी देर तक यह धरना चलेगा। मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी ग्राम सुराज योजना में लगे हैं। नक्सली क्षेत्रों में ग्रामीणों की विकास की मांग मंजूर कर रहे हैं। एसपीओ का मानदेय बढ़ा रहे हैं। कालेज खोलने की मांग पर ध्यान दिया जा रहा है। जो बात स्पष्ट हो रही है, वह यह है कि लोग समस्याओं का हल चाहते हैं। विकास चाहते हैं। उन्हेंगेहूं नहीं चाहिए। चांवल चाहिए तो मुख्यमंत्री चांवल देने का निर्देश दे रहे हैं। मतलब यही वह समय है कि जो मांगोगे मिलेगा। बहुतेरे लोग मना रहे है कि काश मुख्यमंत्री का आगमन उनके गांवों में भी हो।

दोरनापाल, गंगालूर और बिंजली से लौटकर मुख्यमंत्री तो कह रहे हैं कि वे समझते थे कि अभी वहां दहशत का माहौल होगा लेकिन जनजीवन पटरी पर लौट रहा है। ग्रामीण तेंदूपत्ता और महुंआ संग्रहण में लग गए हैं। मुख्यमंत्री ने इस बात का खंडन किया कि नक्सलियों के विरूद्घ अभियान रोक दिया गया है। अभियान बदस्तूर चालू रहेगा। दरअसल ग्राम सुराज अभियान का प्रारंभ नक्सलियों के प्रभाव वाले क्षेत्र से प्रारंभ कर मुख्यमंत्री ने यही संदेश देने का काम किया है कि नक्सलियों से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। एसपीओ ने ही अलग बटालियन बनाने की मांग की है। मुख्यमंत्री ने विचार करने का आश्वासन भी दिया है। एसपीओ के मानदेय में वृद्घि भी इसी तरफ इशारा करता है कि मुख्यमंत्री ने उनका मनोबल बढ़ाने का काम किया है। एसपीओ सशस्त्र बल और पुलिस के लिए हर तरह से उपयोगी है। क्योंकि वे भी क्षेत्र से उसी तरह से परिचित है जिस तरह से नक्सली।

मुख्यमंत्री से मिलते समय ग्रामीणों के मुख पर जो प्रसन्नता के भाव दिखायी दे रहे हैं, वे भी अपनी कहानी स्वयं कह रहे हैं। मुख्यमंत्री के प्रति ग्रामीणों का विश्वास ही तो मुख्यमंत्री की असली ताकत है। कांग्रेसियों की मानकर यदि केंद्र सरकार डा. रमन सिंह की सरकार को बर्खास्त कर भी देती है तो जब भी चुनाव होंगे तब ग्रामीण पुन: गद्दी किसी को सौंपने के विषय में विचार करेगे तो वह डा. रमन सिंह ही होंगे। आलाकमान इस बात को अच्छी तरह से समझता है कि सरकार को बर्खास्त करना अपने लिए हमेशा का रास्ता बंद कर देना है। वह छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों के जीत के आश्वासन को भी कई बार परख चुका है। इसलिए समय काटने के लिए धरना प्रदर्शन तो ठीक है लेकिन जनता में इसके प्रति कोई रूचि तो नहीं दिखायी देती।

- विष्णु सिन्हा
13-04-2010

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर लेख, आपने डॉक्टर रमन सिंह के द्वारा किये जा रहे श्रेष्ठ कार्यों का विवरण देकर देशवासियों का आत्मविश्वास बढाया है. नहीं तो लोग यहाँ यही कहते हैं कि शासन द्वारा विकास न किये जाने के कारण लोग हिंसा के रास्ते पर जा रहे हैं.

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  2. विरोधी तो विरोध करेंगे ही. अगले कुछ सालों में रमन सिंह प्रदेश का कितना विकास कर पाते हैं ये महत्वपूर्ण होगा।

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  3. ये कांग्रेसी अपनी नेता से इस तरह का प्रश्न पूछने की हिम्मत नहीं रखते। इन्होंने ऐसा करने की हिम्मत की तो इनका राजनैतिक कैरियर ही समाप्त हो जाएगा। कांग्रेस में एक ही तो पद है राष्टरीय अध्यक्ष का जिससे कोई प्रश्न नहीं पूछ सकता। किसी ने कभी हिम्मत की पूछने की तो उसका क्या हश्र हुआ, यह सभी को अच्छी तरह से पता है।

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