यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
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गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

विदेश यात्रा पर पाबंदी लगाकर डा. रमनसिंह ने सही काम किया

अब 31 मार्च, 2011 तक छत्तीसगढ़ के मंत्री, संसदीय सचिव, अधिकारी, कर्मचारी छत्तीसगढ़ सरकार के खर्च पर विदेश यात्रा का सुख प्राप्त नहीं कर सकेंगे। देर से ही सही मुख्यमंत्री ने सही निर्णय लिया है। इस दायरे में सरकारी निगम, मंडल के पदाधिकारी और अधिकारी भी आएंगे। प्रश्र तो यही है कि विदेश यात्रा का लाभ प्रदेश को क्या होता है? जमीनी हकीकत छत्तीसगढ़ की जो है, उसमें समस्याओं का निदान विदेश दौरों से कैसे किया जा सकता है? समस्याओं का निदान विदेश दौरे से नहीं छत्तीसगढ़ के दौरे से ढूंढा जा सकता है। ऐसे कितने मंत्री, अधिकारी हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ का चप्पा चप्पा देखा हुआ है। अपने विधानसभा क्षेत्र से परिचित होना तो चुनाव लडऩे कं लिए आवश्यक होता है।

जनता की शिकायतों को अधिकारियों कर्मचारियों की आंखों से ही नहीं देखा जाना चाहिए। क्योंकि जब तक स्वयं की नजरों से हकीकत से परिचित न हो मंत्री तब तक वह असलियत से परिचित नहीं होता। अधिकारी, कर्मचारी अपनी गल्तियों का, कमजोरियों का स्वयं बखान करेंगे, इसकी उम्मीद तो नहीं की जानी चाहिए। आज मुख्यमंत्री ग्राम सुराज योजना में मंत्रियों, विधायकों, अधिकारियों कर्मचारियों सहित जो गांव गांव का दौरा कर रहे हैं, उसका असल उद्देश्य तो यही है कि जनता की समस्याओं से साक्षात्कार किया जाए। जनता के लिए सरकार के द्वारा बनायी योजनाएं कितनी जनता तक पहुंच रही है और उसका क्या परिणाम निकल रहा है, इस हकीकत से परिचित हुआ जाए। खाली परिचित ही नहीं हुआ जाए बल्कि उसका त्वरित हल किया जाए।

कुछ जगह ग्राम सुराज यात्राओं का विरोध भी हो रहा है। इससे हकीकत सामने आ रही है कि उस क्षेत्र के लोग शासकीय कर्मचारियों की अकमण्र्यता से नाराज है। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से आक्रोशित हैं। इनकी नाराजगी और आक्रोश को दूर करने की जिम्मेदारी मंत्रियों की है, अधिकारियों की है। मुख्यमंत्री विभिन्न घोषणाएं भी कर रहे हैं लेकिन पहले की गई घोषणाओं का क्या हश्र हुआ, उस पर भी दृष्टि डालने की जरूरत है। कहीं स्कूल चाहिए, अस्पताल चाहिए, पीने के पानी की व्यवस्था चाहिए। तमाम तरह की ग्रामीण समस्याएं हैं? इनका निपटारा क्या विदेश यात्रा से होगा? जितने दिन मंत्री अधिकारी, कर्मचारी विदेश यात्रा करते हैं, उतने दिन तो वे छत्तीसगढ़ से ही गैर हाजिर रहते है और काम सब ठप्प पड़ जाते हैं। जनता खोजती और चक्कर ही लगाती है।

डा. रमन सिंह ने एक और अच्छा काम किया है। अधिकारियों के छुट्टी पर रहने पर उनका काम कौन से अधिकारी अनुपस्थिति में देखेंगे, यह तय कर दिया है। इसके तहत यह भी देखना जरूरी है कि अधिकारी के छुट्टी पर जाने पर कम से कम स्थानापन्न अधिकारी भी छुट्टी न ले। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि किसी की भी अनुपस्थिति में काम रूके न। हर काम का एक समय तय करना चाहिए। समय पर काम न होने पर जिम्मेदारी और जवाबदेही तय होना चाहिए। यह काम मुख्य सचिव का है। क्योंकि मंत्रालय की व्यवस्था वे सुधार सकें तो पूरे प्रदेश की व्यवस्था सुधार सकते हैं। जो बात स्पष्ट रूप से लोगों को खटकती है, वह काम के होने में विलंब है। अंग्रेजों के जमाने में नौकरशाही का काम अच्छा इसलिए था क्योंकि कोई भी अधिकारी या कर्मचारी काम पेंडिंग छोड़कर घर नहीं जाता था। रोज का काम रोज निपटाया जाता था। अब तो फाइलें धूल खाती पड़ी रहती हैं। जैसे उनका कोई माई बाप न हो। संबंधित व्यक्ति आए और निरंतर फाइल के पीछे पड़े तब कहीं फाइल निर्णय के अंजाम तक पहुंचती है।

व्यवस्था को आमूल चूल बदलने की जरूरत है और इसके लिए विदेश जाकर कुछ सीखने की जरूरत नहीं है। जो काम को लटकाने में ही अपनी महारत समझते हैं, वे विदेश यात्रा कर भी क्या सुधर जाएंगे? इतनी तो विदेश यात्राएं कितनों ने कर ली लेकिन काम के प्रति समर्पण का जो भाव होना चाहिए, वह क्या सीख पाए? सीख जाते तो आज प्रदेश की स्थिति दूसरी ही होती। मंदी की स्थिति में भी एक योग्य अधिकारी गणेश शंकर मिश्रा राज्य के राजस्व में 5 सौ करोड़ से अधिक की वृद्घि करता है। काम करने की मंशा हो तो सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, यह गणेश शंकर मिश्रा ने करके दिखा दिया है। बस्तर के कलेकटर के रूप में पीडीएस की ऐसी व्यवस्था करके दिखाया कि आदिवासी सरकार के समर्थक हो गए। करना चाहें तो सभी अधिकारी कर सकते हैं लेकिन उनमें अपने कार्य के प्रति जज्बा तो हो। ईमानदारी तो हो। लगे भी तो नौकरी में आने के समय उन्होंने जो शपथ लिया था, उस पर वे कितने खरे साबित हो रहे हैं। अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर धन कमाना ही यदि उद्देश्य है तब परिणाम कहां से दिखेगा?

डा. रमन सिंह ने जितनी छूट और स्वतंत्रता अपने अधिकारियों कर्मचारियों को दी है, उन्हें उस छूट और स्वतंत्रता का सुपात्र तो सिद्घ करना चाहिए। डा. रमन सिंह ने विदेश यात्रा की भी छूट दी कि शायद मंत्री, अधिकारी, कर्मचारी विदेश जाकर कुछ सीखेंगे लेकिन दिखायी तो नहीं देता कि इन लोगों ने कुछ सीखा। सीखा होता तो शासन प्रशासन में आमूल चूल परिवर्तन आ जाता। आज डा. रमन सिंह ने 31 मार्च 2011 तक विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगाया है। हो सकता है, कल यह मियाद और आगे बढ़ा दी जाए। केंद्र सरकार ने भी मितव्ययिता के नाम पर अपने मंत्रियों को इकानामी क्लास में सफर करने का निर्देश दिया था तो एक पश्चिमी संस्कृति में ढले मंत्री शशि थरूर ने इकानामी क्लास को कैटल क्लास बताया था। आज उनकी क्या दुर्गति हुई? मंत्री पद तो गंवाना ही पड़ा। साथ ही साथ मान सम्मान भी गया।

उन्हें कठघरे में खड़ा करने वाले आईपीएल के कमिश्रर ललित मोदी पर भी तलवार लटक रही है। उनकी भी जांच केंद्र सरकार कर रहा है और खबर है कि वे भी जाने वाले हैं। देर है अंधेर नहीं। मुख्यमंत्री ने एक समय काल के लिए मितव्ययिता के नाम पर प्रतिबंध लगाया है। भविष्य में अनुमति दें विदेश यात्रा की तो अधिकारी कर्मचारी के परफर्मेंस को भी दृष्टि में रखा जाए। जो अच्छा काम करे। जनता जिसके काम से सबसे ज्यादा संतुष्ट हो, उसे ही विदेश यात्रा की पात्रता मिलनी चाहिए। क्योंकि जो जनता को संतुष्ट करें उसे ही जनता के धन पर विदेश में कुछ सीखने का अवसर मिले। वह अवश्य कुछ न कुछ अच्छी बात सीखेगा और अपने काम में सुधार लाने का प्रयास करेगा। नहीं तो बेकार अधिकारी के पीछे विदेश यात्रा का व्यय जनता के धन का अपव्यय ही है।

-विष्णु सिन्हा
20.04.2010

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