यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

किरणमयी नायक को कमजोर करने की कोशिश अंतत: भाजपा को ही नुकसान पहुंचाएगी

सभापति, पार्षदों को नगर पालिक निगम एक्ट पढऩे के लिए किरणमयी नायक ने मजबूर कर दिया। सबको समझ में आ गया कि एक वकील जब महापौर की कुर्सी पर बैठता है तो उसका क्या अर्थ होता है? कल ही जिस तरह से सामान्य सभा का संचालन हो रहा था तो सवा चार बजे तक तो यही लग रहा था कि शायद आज भी देर रात तक सामान्य सभा चले लेकिन भाजपा पार्षद दल और निर्दलीय दीनानाथ शर्मा के सदन से बहिर्गमन के बाद बहुमत से प्रस्तावों को पारित कर सामान्य सभा समाप्त हो गयी। हालांकि महापौर ने कहा था कि वे सभापति संजय श्रीवास्तव को सामान्य सभा का संचालन नहीं करने देंगी लेकिन संजय श्रीवास्तव ने संचालन भी किया और महापौर सहित समर्थक कांग्रेसी और निर्दलीय पार्षदों ने सामान्य सभा में भाग भी लिया। भले ही महापौर कहती है कि उन्होंने प्रोटेस्ट के रुप में भाग लिया और वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगी लेकिन अपने प्रस्तावों को सामान्य सभा से पारित करवाकर उन्होंने यह तो बता दिया कि विपक्ष चाहे जो कहे या करे लेकिन सत्ता निगम की उनके पास ही है।

कुल मिलाकर तीन दिनों की कार्यवाही को देखा जाए तो हुआ वही जो महापौर चाहती थी लेकिन कान सीधे न पकड़ कर हाथ घुमा कर पकड़ा गया है। वैसे सबको यह भी समझ में आ गया कि इस बार महापौर भले ही महिला हो लेकिन किसी भी पुरुष महापौर से कमजोर नहीं है, किरणमयी नायक। पूरे विपक्ष का सामना करने की क्षमता उनमें हैं। न जाने कहां से इतनी ऊर्जा वे प्राप्त करती हैं। नगर निगम प्रशासन को भी समझ में आ जाना चाहिए कि उनका साबका महापौर के रुप में किससे पड़ा है। वे अपने अधिकारों को अच्छी तरह से समझती है। उनका उपयोग करना भी जानती हैं। महापौर बनते ही वे समझ गयी थी कि उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्य के लिए लडऩा पड़ेगा। प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार नहीं है और राज्य सरकार में सत्तारुढ़ दल हार को आसानी से हजम नहीं करेगा।

किरणमयी यदि सफल महापौर सिद्ध होती है तो यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी ही साबित होगा। एक समाचार पत्र में छपा है कि सरकार गंभीरतापूर्वक मोहल्ला समितियां बनाने का विचार कर रही है। जिसमें हर मोहल्ले में 10 लोगों की समितियां होगी। जो मोहल्ले की समस्याओं के विषय में सलाह देगी और उसके अनुसार सरकार काम करेगी। यह समितियाँ कलेक्टर बनाएंगे। तब इन समितियों में निश्चित रुप से भाजपा के नेता या कार्यकर्ता लिए जाएंगे। सरकार ने ऐसा किया तो इसका सीधा अर्थ होगा कि सरकार स्थानीय संस्थाओं के चुने हुए लोगों को कमजोर करना चाहती है। यह लागू ही करना था तो 5 वर्ष पहले भी लागू किया जा सकता था लेकिन उस समय भाजपा के लोग उच्च पदों में बैठे हुए थे, इसलिए शायद इसकी जरुरत नहीं समझी गयी।

यह व्यवस्था यदि लागू हुई तो निश्चित रुप से भाजपाई कार्यकर्ताओं को सरकार संतुष्ट करेगी और मतदाताओं से भी सीधे जुड़ाव का उसे अवसर मिलेगा। पूरा खेल राजनैतिक है। महापौर और नगर निगम को कमजोर करने का प्रयास ही दिखायी देता है। अच्छे इरादे से यह काम किया जाए तो किसी को भी आपत्ति नहीं होगी लेकिन सिर्फ इसलिए कि जनता ने सत्ता कांग्रेस को सौंपी है और उसे यशस्वी नहीं बनने देना है तो इससे तो नीयत में ही खोट दिखाई देता हैं। जनादेश को उलटने का इरादा दिखायी देता है लेकिन यह नहीं सोचना चाहिए कि कांग्रेस इसे आसानी से स्वीकार कर लेगी। आंदोलन के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से उसे रोका तो नहीं जा सकता। जब हर मोहल्ले में मोहल्ला समिति ही सब कुछ कर लेगी तो फिर नगर निगम, नगरपालिकाओं की जरुरत ही क्या है? सरकार इस व्यवस्था को समाप्त कर दे। मोहल्ला समिति ही टैक्स वसूले और अपने वार्ड की देख रेख करें।

रायपुर नगर निगम के समानांतर रायपुर विकास प्राधिकरण हैं, ही। अब मोहल्ला समिति। चुनाव सिर्फ नगर निगम के होते हैं। रायपुर विकास प्राधिकरण में तो नियुक्ति सरकार करती है और वह भी अपने पसंदीदा व्यक्तियों की। उपलब्धियों के नाम पर देखा जाए तो किसी भू-माफिया से कम शोषक नहीं है, प्राधिकरण। विकास के नाम पर लोगों की जमीन लेकर लोगों को भूमिहीन बनआने और कौडिय़ों की जमीन को करोड़ों में बेचने के सिवाय प्राधिकरण की उपलब्धि क्या है? मोहल्ला समिति भी भ्रष्टïचार की नई दुकान न बन जाएं। सोच समझकर सरकार को कदम उठाना चाहिए। भाजपा कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने का नाम ही जनसेवा नहीं हैं। जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए। इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर क्यों जनता ने नगरनिगमों में भाजपा के बदले क्रांग्रेस को चुनना पसंद किया? क्यों,जनता ने भाजपा को झटका दिया? इस पर तो सोच विचार करना कोई चाहता नहीं। इसके बदले जनादेश से चुन कर आए व्यक्ति को कैसे असफल किया जाए, इसकी राजनीति पर दिमाग लगाया जा रहा है।

कांग्रेस के इसी तरह के खेल से तंग आकर जनता ने भाजपा के हाथ में सत्ता सौंपी। भाजपा ने भी एक अच्छे, सज्जन व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया। उनके 5 वर्ष के कार्यकाल में किए गए काम को देख कर जनता ने फिर से उन्हें और 5 वर्ष तक शासन चलाने का आदेश दिया। कांग्रेस ने तरह-तरह के आरोप लगाए। यहां तक कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को लबरा मुख्यमंत्री भी कहा लेकिन जनता ने कांग्रेस का विश्वास नहीं किया। विश्वास डॉ. रमन सिंह पर व्यक्त किया। छत्तीसगढ़ की जनता सदगुणों पर विश्वास करती है। उस पर खरा साबित होकर दिखाना भाजपा का कर्तव्य है। टिकट वितरण में जब अच्छे जनता के पसंद के उम्मीदवारों की भाजपा ने पूरी दादागिरी से अवहेलना की तब भाजपा प्रत्याशियों के बदले जनता ने भाजपा के बागी निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव में जितवा दिया। जनता को जो संदेश गया, वह यही था कि भाजपा के टिकट वितरणकर्ताओं का अहंकार सातवें आसमान पर है। वे समझते है कि वे जिसे टिकट देंगे, जनता उसे ही जितवाएगी। जनता ने इसे स्वीकार नहीं किया।

अक्लमंद को इशारा काफी होता है। शासन की ताकत दिखाकर यदि कांग्रेसी महापौर को काम करने नहीं दिया गया और उनकी ताकत को कम करने की कोशिश मोहल्ला समितियों के द्वारा की गयी तो जनता सब समझती है। पार्टी और सरकार की कोई अच्छी छबि नहीं बन रही है। जिस रायपुर राजधानी पर वर्षों से भाजपा का कब्जा था, उसमें दरार दिखायी पड़ रही है। दरार को पाटना है या चौड़ा करना है। लड़ते हुए कांग्रेसी जब जनता को पसंद नहीं आए तो लड़ते हुए भाजपाई जनता को पसंद आएंगे, यह सोचना फिजूल है। कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन भाजपा ने खोया तो मिल कांग्रेस को जाएगा।

विष्णु सिन्हा
03-040-2010

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