गृहमंत्री जिनकी नाजायज मांगे नहीं मानते वे भले ही नाराज हो लेकिन उनकी नाराजगी का औचित्य क्या है? उनका हित देश हित से तो बड़ा नहीं हो सकता। यही आज का तकाजा भी है कि चिदंबरम के हाथ में देश की आंतरिक सुरक्षा की समस्याओं का हल ढूंढा जा सकता है। थल सेना और वायु सेना का उपयोग नक्सल विरोधी अभियान में किया जाएगा या नहीं, यह निर्णय करने का अधिकार सेनाध्यक्षों को नहीं है और न ही जिस तरह से वे अपने विचार व्यक्त कर रहे है, उसकी जरुरत है। किसका कहां क्या उपयोग किया जाए, यह सोचना और निर्णय करना सरकार का काम है। सेना को इस मामले में अपनी राय व्यक्त नहीं करना चाहिए। कम से कम सार्वजनिक रुप से नहीं करना चाहिए। सीआरपीएफ को नक्सलियों से गोरिल्ला युद्ध करने की ट्र्रेनिंग थी या नहीं, इससे थल सेनाध्यक्ष का क्या लेना-देना? उनके विचार गृह मंत्रालय की आलोचना की तरह हैं। सेनाध्यक्ष का यह काम नहीं कि वह किसी मंत्रालय की आलोचना करे।
यह बात चिदंबरम को बुरी लगी हो तो आश्चर्य की बात नहीं है। जबकि मंत्रालय सेनाध्यक्ष के बयान के बाद बयान देने के लिए बाध्य हुआ कि सीआरपीएफ की बटालियन को नक्सलियों से लडऩे की ट्र्रेनिंग दी गई है। वायु सेनाध्यक्ष का यह कहना कि वायु सेना का उपयोग नागरिकों पर हमला करने के लिए नहीं हैं। यह वक्तव्य भी अनुशासन की सीमा को लांघने वाला है। सेना का कहां क्या उपयोग हो यह सोचना चुनी हुई सरकार का काम है। उसके पदाधिकारियों का यह काम नहीं हैं। सेना का काम, सरकार के आदेश का पालन करना। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जब इस तरह के बयानों की आलोचना करते हैं तब वे उचित बात कहते हैं। नीतिगत मामलों में फैसला करने के लिए ही तो सरकार है और सरकार का काम सरकार को ही करने देना चाहिए। रक्षा मंत्री को सेनाध्यक्षों को बुलाकर निर्देश देना चाहिए कि वे अनुशासन की सीमा का उल्लंघन न करें।
आज जनता, राजनैतिक दलों, प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी का समर्थन चिदंबरम के साथ है। छत्तीसगढ़ के भाजपा के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का भी समर्थन चिदंबरम के साथ है। चिदंबरम ने एक आशा जगाई है कि वे नक्सलियों से क्षेत्र को मुक्त कराने के लिए कुछ भी उठा नहीं रखेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा था कि जरुरत पड़ी तो वायु सेना का भी उपयोग किया जाएगा। यह बात पहले भी उठी थी लेकिन अभी तक जरुरत नहीं पड़ी थी, इसलिए उपयोग नहीं किया गया। जिस समय सीआरपीएफ के जवान नक्सलियों के बीच घिर गए थे, उस समय वायु सेना की भी मदद मिलती तो वे भाग नहीं सकते थे। उन्हें घेरा जा सकता था। उन्हें आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया जा सकता था। ऐसा हो जाता तो नक्सलियों को भी पता चल जाता कि सरकार की वास्तविक ताकत क्या है और उससे मुकाबला करना संभव नहीं है।
दरअसल सरकार कम से कम बल प्रयोग के द्वारा नक्सलियों को समझाना चाहती है कि अभी भी समय है। वे हिंसा का रास्ता छोड़कर आत्मसमर्पण कर दें लेकिन नक्सली इसे सरकार की कमजोरी समझ कर अपनी ताकत दिखा रहे हैं कि उनके सामने सरकार कुछ नहीं है। वे सरकार का मनोबल कमजोर करना चाहते हैं लेकिन कहीं से भी नहीं लगता कि सरकार का मनोबल गिरा हुआ है। 76 जवानों को काल कवलित कर नक्सलियों ने सरकार को यह समझने के लिए बाध्य कर दिया है कि ये मानने वाले नहीं है। इनके प्रति सरकार किसी भी प्रकार के रहम की भावना न रखें। ये सिर्फ गोलियों की ही भाषा समझते हैं। कहा जा रहा है कि राष्टरीय रायफल की तैनाती के विषय में सोचा जा रहा है। मानवरहित टोही विमान से अब नक्सलियों की खोज खबर ली जाएगी। इंटेलिजेंस को और सशक्त किया जाएगा। मतलब अब गल्तियों को किसी भी हाल में दोहराया नहीं जाएगा। सशस्त्र बलों में भी अब अपने 76 साथियों को खोने का आक्रोश कम नहीं है। नक्सली हमले से मनोबल तोड़ नहीं पाए बल्कि मनोबल और बढ़ा गए कि जब शहीद हुए जवान का नाबालिग पुत्र ही कहता है मैं बड़ा होकर सीआरपीएफ में भर्ती हूंगा और नक्सलियों से लड़ूंगा तो इसी से समझ में आता है कि नक्सलियों के प्रति कितनी नाराजगी है।
दिल्ली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह डॉ. रमन सिंह से कहते है कि हिम्मत से आगे बढ़ो तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी आलाकमान से मांग करने की योजना में लगे हैं कि छत्तीसगढ़ में राष्टपति शासन लगा दिया जाए। गृहमंत्री पी.चिदंबरम कहते हैं कि सारी जिम्मेदारी मेरी है तो छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी डॉ. रमन सिंह को दोषी ठहरा रहे हैं। गृहमंत्री ने विशेष जांच अधिकारी चूक की खोज के लिए लगाया है तो कांग्रेसी विधायकों की टीम जांच करने जाने वाली है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह गृहमंत्री पी. चिदंबरम से कह रहे है कि वे इस्तीफा न दें तो कांग्रेसी मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। सोच का दायरा इससे स्पष्ट होता है कि नक्सली समस्या को हल करने में किसी भी तरह की राजनैतिक रोटियां सेंकने का प्रयास कोई भी दल नहीं कर रहा है लेकिन छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी।
पिछले 6 वर्ष में केंद्र से जो भी मंत्री आया, उसने डॉ. रमन सिंह की सरकार की तारीफ की। यह बात छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों को हमेशा अखरती रही। इन लोगों ने बार-बार आलाकमान से शिकायत की लेकिन हर बार इनकी शिकायत अनसुनी ही की गई। इन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि इनकी बात दिल्ली में कोई सुनने वाला नहीं है। वैसे भी जीत के मामले में आलाकमान को दिए हर आश्वासन पर ये खरे साबित नहीं हुए। केंद्र सरकार जानती है कि नक्सली समस्या से मुक्त करा कर वह कई प्रदेशों में अपने लिए स्थान बना लेगी। डॉ. रमन सिंह भी कह रहे हैं कि नक्सली मामले में राजनीति न की जाए। राजनीति करने के लिए और भी मुद्दे हैं लेकिन समझने को कोई तैयार हो, तब न। अपनी दुर्गति का कारण भी कोई न समझे तो कोई कुछ नहीं कर सकता ।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक 10.04.2010
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विष्णु जी,
जवाब देंहटाएंयह समय पूरी तरह से सरकार के साथ खडे होने का है। साथ ही वैचारिक लडाई जिसे परोक्ष युद्ध कहा जा सकता है अरुन्धति, हिमांशु जैसे लोग जिसमें सक्रिय है के खिलाफ भी उन पत्रकारों और लेखकों को आगे आने की आवश्यकता है जो सच लिखने का माद्दा रखते हैं। इस आतंकवाद की कमर टूट कर रहेगी।
विष्णु जी सेना को बहुत सतर्क और सक्रिय रहने की जरूर है सेनाअध्यक्ष जी ने कुछ गलत कहा है न किया है जो चिडमवरम जी ने कहा था उन्होंने उसको सिर्प तर्कपूर्म तरीके से जनता के सामने रखा है । वेहतर होता आप अपने विषय को सेना और सराकर के वीच संघर्ष के रूप में पेश न करते दोनों युद्ध की इस घड़ी में एक हैं। सरकार द्वारा की गई गलतियों का खामियाजा सैनिक सारे देश में भुक्त रहे हैं।खैर इस दुद्ध के वाद इन सब बातों पर चर्चा कर लेंगे आज की सच्चाई यही है कि सेना और सरकार आतंकवादियों के विरूद्ध निर्णायक लड़ाई का मन बना चुके हैं।हम सब ुनके साथ हैं जो नहीं और देशभक्त हैं उन्हें भी इनके साथ खड़ा होना चाहिए ।आपका शीर्ष विलकुल सही था।
जवाब देंहटाएंSIR JI,
जवाब देंहटाएंaap ko dhanyvad ! LEKH PASAND AAYA>
LEKIN____!?
YAH DHARATI KUB AATANK & APARADH SE MUKT HUYI HAI?
CHALO KOYI BAAT NAHI ! KUL MILA KAR LEKH ACHHA HAI!
VICHAR KRANTI ME YOGADAN KE LIYE DHANYAVAD!
SHESH FIR___
यह व्यक्तिगत और दलगत हित से ऊपर का मामला है। अब साथ नहीं तो फिर कब?
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