यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

नितिन गडकरी को राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करना है तो अपनी शारीरिक क्षमता पर ध्यान देना होगा

नितिन गडकरी की दिल्ली में आयोजित महंगाई विरोधी महारैली भीड़ के मान से तो सफलतम रैली कही जा सकती है। क्योंकि देश भर से 3 लाख से अधिक भाजपा के कार्यकर्ता दिल्ली के रामलीला मैदान में इकट्ठा हुए। भीषण गर्मी में दोपहर में इतने लोगों का लंबी यात्रा कर इकट्ठा होना, इस बात की निशानी तो है कि भाजपा के कार्यकर्ता अपनी पार्टी, अपने नेता के प्रति कितनी निष्ठा रखते हैं। देश का नेता कैसा हो, नितिन गडकरी जैसा हो के नारे लगाते कार्यकर्ता इस बात का आभास दे रहे थे कि वे किसी व्यक्ति से नहीं पार्टी से जुड़े हुए हैं। बहुत पुरानी बात नहीं है जब महाराष्ट के बाहर नितिन गडकरी को कोई जानता नहीं था। आम जनता तो दूर की बात है, पार्टी के चंद नेताओं के सिवाय कार्यकर्ता भी नहीं जानते थे कि नितिन गडकरी नामक कोई पार्टी का नागपुर में कार्यकर्ता है जो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन सकता है। नितिन गडकरी भले ही कहें कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनाया लेकिन कार्यकर्ता अच्छी तरह से जानते हैं कि नितिन गडकरी की ताजपोशी संघ ने की है।

पार्टी कार्यकर्ताओं को कोई लेना देना नहीं है कि पार्टी का अध्यक्ष कौन है? जो भी है, वही ठीक है। कल तक अटल आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान का नारा लगाने वाले दिल्ली की सड़कों पर नितिन गडकरी के नाम का नारा लगा रहे थे। भाजपा सत्ता से अभी केंद्र की भले ही दूर हो लेकिन छोटे छोटे कार्यकर्ताओं ने ही नहीं, बड़े बड़े नेताओं ने भी नितिन गडकरी को अध्यक्ष स्वीकार कर लिया है। दिल्ली की रैली दरअसल महंगाई के बहाने नितिन गडकरी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का प्रयास ज्यादा दिखायी दे रहा था। मंच पर भी नितिन गडकरी का ही चित्र लगाया गया था। अटलबिहारी वाजपेयी की तरह तो भाषण कोई नहीं दे सकता। जनता को अपने भाषण से सम्मोहित करने की कला जो अटलबिहारी वाजपेयी को आती है, वह तो लालकृष्ण आडवाणी या भाजपा के किसी अन्य नेता को नहीं आती। इसलिए नितिन गडकरी की तुलना अटलबिहारी वाजपेयी से नहीं की जा सकती लेकिन फिर भी यह तो कहा जा सकता है कि वे ठीक ठाक भाषण दे लेते हैं।

बोलते समय एक क्षेत्रीय नेता होने के कारण आत्मविश्वास का अभाव उनमें नहीं दिखायी देता। आत्मविश्वास से भरपूर अपनी बात वे स्पष्ट लहजे में कहने में समर्थ हैं। बड़े बड़े पत्रकारों ने उनसे साक्षात्कार लिया और अपने वाकजाल में फंसाने का प्रयास किया लेकिन नितिन गडकरी को वे उलझा नहीं सके बल्कि सभी का जवाब उन्होंने मुस्कराते हुए दिया और अपनी परिपक्वता का परिचय दिया। नितिन गडकरी अपना स्थान धीरे धीरे राष्ट्रीय राजनीति में बना रहे हैं। कल दिल्ली में महंगाई के विरोध में निकली महारैली मील का पत्थर साबित हो सकती थी। हो भी रही थी लेकिन जब रैली रामलीला मैदान से निकलकर जंतर मंतर की तरफ बढ़ी तब रास्ते में गर्मी बर्दाश्त न करने के कारण नितिन गडकरी बेहोश होकर गिर पड़े। यह किसीके भी साथ हो सकता है। गर्मी ही ऐसी पड़ रही है लेकिन अध्यक्ष के साथ होना अच्छा संदेश नहीं देता। बुजुर्गों की पार्टी भाजपा कही जा रही थी। लालकृष्ण आडवाणी जैसे बुजुर्ग नेता के नेतृत्व के कारण। इसीलिए नितिन गडकरी के रूप में युवा नेतृत्व लाया गया। अभी उम्र उनकी मात्र 52 वर्ष ही है। इसलिए उम्मीद तो यह की जाती थी कि वे शारीरिक रूप से भी सशक्त नेता होंगे।

उनके बेहोश होने के बाद जंतर मंतर में लगाया गया मंच हटा दिया गया और रैली की समाप्ति की भी घोषणा कर दी गई। सड़क पर पैदल नारे लगाते हुए चलते कार्यकर्ता जिस व्यक्ति के नाम पर नारे लगा रहे थे, वह बेहोश होकर गिर जाए तो इससे अच्छा संदेश तो आम जनता को नहीं मिलता और न ही कार्यकर्ताओं को। यह तो प्रारंभ है। अभी देश भर में राष्ट्रीय अध्यक्ष को न जाने कितना पसीना बहाना पड़ेगा। पूरे देश में पार्टी को जनता की नजरों में चढ़ाने के लिए कितनी ही यात्राएं करना पड़ेगा। शरीर से कमजोर अध्यक्ष यह सब सफलतापूर्वक कर सकेगा या नहीं। एक दो बार ऐसी घटना फिर घटित हुई तो अभी तो लोगों ने कोई टिप्पणी नितिन गडकरी के गश खाकर गिरने पर नहीं की लेकिन आगे भी नहीं करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। फिर ऐसी घटनाओं से कार्यकर्ताओं का भी मनोबल कमजोर पड़ता है।

नितिन गडकरी जब अध्यक्ष बने थे तब उनके शरीर को देखकर ही लगता था कि इतना मोटा आदमी कहीं शारीरिक क्षमता के कारण कमजोर साबित न हो। फिर भी सौम्यता के कारण इस मामले में किसी ने ऊंगली उठाना उचित नहीं समझा। यह ठीक है कि कई बड़े बड़े काम नितिन गडकरी ने महाराष्ट्र में किए लेकिन पसीना बहाने वाला काम उन्होंने कम ही किया होगा। क्योंकि जिस क्षेत्र नागपुर के वे रहने वाले हैं वह क्षेत्र तो गर्मी के मामले में दिल्ली से भी ज्यादा गर्म रहने वाला क्षेत्र है। सभी बड़े नेता वातानुकूलित कक्षों में अपना समय व्यतीत करते हैं लेकिन कल की रैली में सभी धूप में ही खड़े थे। यहां तक लालकृष्ण आडवाणी भी कुछ देर तक धूप में 82 वर्ष की उम्र में खड़े दिखायी दिए। अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी भी धूप में थे और ये सभी बड़े नेता उम्र में भी नितिन गडकरी से बड़े हैं। इनमें से कोई भी तो धूप के कारण गश खाकर नहीं गिरा। सफेद दाढ़ी बाल वाले अहलूवालिया अपने से कम उम्र के नितिन को गश खाने पर संभाल रहे थे। अब यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और नितिन गडकरी के लिए ही सोच का विषय है कि कम उम्र के युवा को अध्यक्ष बनाने के पीछे जो सोच काम कर रही थी, वह सोच कितनी उचित दिखायी पड़ रही है।

नितिन गडकरी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके पास जेब में दस रूपये हों तो वे एक हजार रूपये करोड़ की कंपनी खड़ा कर सकते हैं। यदि यह गुण उनमें है तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक व्यवसायिक कंपनी को चलाना अलग बात है और एक राष्ट्रीय पार्टी को चलाना अलग बात। एक कितनी भी बड़ी कंपनी हो, उसकी क्षमता और उद्देश्य सीमित होता है और एक राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी को तो जनता को तैयार करना पड़ता है कि वह उसे वोट दे और वह जनता की समस्या हल करके दिखाएगी। हजार, दो हजार शेयर होल्डरों का ध्यान रखना और 120 करोड़ लोगों के ध्यान रखने में जमीन आसमान का अंतर है। जिस व्यक्ति को भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी से मुकाबला करना चाहती है, वह यदि रैलियों में बेहोश होने लगा तो जनता को क्या संदेश जाएगा?

राहुल गांधी शारीरिक रूप से संतुलित हैं। एक चार्मिंग व्यक्तित्व हं उनका। उनका पेट अंदर है और नितिन गडकरी का बाहर। युवाओं को आकर्षित करने का जो ग्लैमर राहुल गांधी के पास है, वह नितिन गडकरी के पास तो दिखायी नहीं देता। नितिन गडकरी वास्तव में भाजपा को सत्ता की आसंदी तक पहुंचाना चाहते हैं तो उन्हें अपना शारीरिक नाप जोख ठीक करना होगा। यह बात उन्हें अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। क्योंकि इस धूप से तो उनको बार बार साक्षात्कार करना होगा। इसके बिना वे आम आदमी को प्रभावित नहीं कर सकते। एक बार की बेहोशी एक बार चलती है लेकिन दोबारा ऐसा हुआ तो ?

-विष्णु सिन्हा
22-04-2010

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