यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

आईपीएल सिर्फ क्रिकेट ही नहीं है बल्कि आर्थिक घोटालों का सबसे बड़ा कांड है

शशि थरुर की बलि लेने के बावजूद आईपीएल की प्यास बुझी नहीं है। जिन लोगों ने भी आईपीएल के साथ अनाचार किया है, वह उन सबकी बलि लेकर ही शांत होगा। संदेह की सुई पूरी तरह से कृषि मंत्री शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल पर टिक गयी है। शरद पवार जहां अपने दामाद सदानंद सुले के कारण फंसते दिखायी दे रहे हैं, वहीं प्रफुल्ल पटेल अपनी पुत्री पूर्णा पटेल के कारण विवादों के दायरे में हैं। शरद पवार ने तो ललित मोदी की बलि लेकर पूरा मामला समाप्त करने का प्रयास किया लेकिन ललित मोदी बलि का बकरा बनने के लिए तैयार नहीं हैं। 26 अप्रैल को 25 अप्रैल के फायनल मैच के बाद जो गवर्निंग बाडी की बैठक बुलाने की कोशिश की गई है, उससे ललित मोदी पूरी तरह से असहमत है और उनका कहना है कि ऐसी कोई भी बैठक बुलाने का अधिकार सिर्फ उन्हें ही है। वे 1 मई को बैठक बुलाना चाहते है लेकिन 26 अप्रैल को बैठक कर ललित मोदी को कमिश्रर के पद से बर्खास्त करने का निर्णय अडिग ही दिख रहा है तो ललित मोदी ने मुंबई हाईकोर्र्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्णय ले लिया है।

ललित मोदी और थरुर के विवाद ने आईपीएल की सारी गंदगी को उछालने का काम किया है। आयकर विभाग हर टीम की जांच कर रहा है कि कौन उसके मालिक हैं और करोड़ों रुपए धन कहां से आया? ललित मोदी के ही खाते में अरबों रुपए कहां से आए? उनके साढ़ू चेलाराम जो राजस्थान टीम के मालिक है, क्यों निरंतर बड़ी रकमें ललित मोदी के खाते में जमा कर रहे हैं। केंद्र सरकार की पूरी तरह से दृष्टि इस मामले में है और प्रधानमंत्री स्वयं राजीव शुक्ला को बुलाकर पूरा मामला समझते हैं। संसद के दोनों सदनों में आईपीएल को लेकर हंगामा मचता है। मीडिया में प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा न तो पर्याप्त स्थान प्राप्त करती है और न ही लाखों की भीड़ के साथ भाजपा का दिल्ली में महंगाई के विरुद्ध प्रदर्शन। समस्याओं की देश में कोई कमी नहीं है लेकिन सबसे बड़ी समस्या आईपीएल में धन का खेल बन गयी है।

चूंकि क्रिकेट से जुड़ा मामला है और आईपीएल की टीमों में विदेशी खिलाड़ी भी खेलते हैं इसलिए उन तमाम देशों में जहां क्रिकेट खेला जाता है, आईपीएल का आर्थिक खेल चर्चा का विषय बना हुआ है। बाल और बल्ले का खेल अरबों का वारा न्यारा कर सकता है और कुछ लोगों की भारी भरकम कमायी का जरिया बन सकता है, यह देख तो पूरी दुनिया रही है। अभी वास्तव में क्या खेल हुआ है, इसकी जांच रिपोर्ट आने वाली है लेकिन चर्चा का बाजार तो गर्म हो चुका है। बाहर से जो आम आदमी के लिए सीधा सादा खेल दिखायी पड़ता और अधिक से अधिक सटोरियों की नाजायज कोशिश ही दिखायी पड़ता है। उसके पीछे आर्थिक भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े कारनामे छुपे होंगे, यह किसने सोचा था। केंद्र सरकार और राज्य सरकार खेल के नाम पर टैक्स नहीं लेती और इसलिए इनके आर्थिक खाते बहियों की जांच नहीं होती तो ये मनमाने रुप से कितने ही आर्थिक कानूनों को अंगूठा दिखा रहे हैं। आयकर, विदेशी मुद्रा कानून, कंपनी लॉ सभी की तो आंख में आईपीएल के धुरंधरों ने पर्दा डाला हुआ था।

फिर शरद पवार जैसे दिग्गज नेता का नेतृत्व जिस क्रिकेट के पास हो, उस पर हाथ डालने की हिम्मत कौन करे? शरद पवार की सरपरस्ती में क्रिकेट का यह धंधा कुछ लोगों के लिए तो कल्प वृक्ष से कम नहीं था। ललित मोदी जैसे शातिर व्यक्ति को कमिश्रर बना कर तो गलत ढंग से धन कमाने वालों को मुंहमांगी मुराद ही मिल गयी थी। आईपीएल-1 और 2 तक 8 टीमें थी तो किसी तरह का विवाद सामने नहीं आ रहा था। लालच ने दो और टीमों के लिए रास्ता खोला तो शशि थरुर का भी प्रवेश हो गया। सीधे न सही अपनी महिला मित्र के द्वारा ही। नाम टीम कोच्चि लेकिन अधिकांश मालिक केरल के बाहर के। शशि थरुर इसी पर गर्व कर रहे थे कि केरल के नाम पर टीम बनी। किसी केरल वासी के लिए शशि थरुर की रुचि नहीं थी। रुचि थी तो अपनी महिला मित्र सुनंदा पुष्कर के लिए और बिना एक बूंद पसीना बहाए ही पसीना बहाने की कीमत के रुप में उन्हें 70 करोड़ रुपए के शेयर मिल गए। इस मामले में शशि थरुर और ललित मोदी का अंहकार नहीं टकराता तो सब कुछ ऊपर-ऊपर ठीक ही दिखायी दे रहा था।

लेकिन यहीं से बाजी पलट गयी। शशि थरुर के बहाने केंद्र सरकार को विवाद में घसीटा गया। वह भी ललित मोदी जैसे व्यक्ति के द्वारा। जिसका संबंध राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ था। मतलब निकाला गया कि भाजपा के इशारे पर कांग्रेसी मंत्री को फंसा कर कांग्रेस को बदनाम किया जा रहा है। फिर कहा गया कि ललित मोदी कोच्चि टीम के बदले गुजरात की टीम को प्रश्रय देना चाहते हैं। पर्दे के पीछे नरेन्द्र मोदी है। जब नरेन्द्र मोदी फंसते नहीं दिखायी दिए तो आयकर विभाग को आईपीएल के पीछे लगा दिया गया। फिर तो जानकारियों का ऐसा राज खुलने लगा कि केंद्र सरकार की आंख भी चकाचौंध हो गयी। प्रणव मुखर्जी ने शरद पवार को बता दिया कि मामला गंभीर है और ललित मोदी को चलता करो। शरद पवार भी समझ तो गए कि कांग्रेस के पास ऐसा हथियार हाथ लग गया है कि वे ललित मोदी को कमिश्रर के पद से हटा नहीं पाए तो, उनकी गर्दन भी शिकंजे में कस सकती है लेकिन ललित मोदी भी समझ गए कि खीर खाने के समय तो सब साथ थे लेकिन फंसने का मौका आया है तो उन्हें अलग थलग किया जा रहा है। वे शांति से अलग हो गए तो भी बच नहीं पाएंगे। शशि थरुर की बलि का बदला उनसे अवश्य लिया जाएगा और हो सकता है कि उनका जीवन जेल की सलाखों के पीछे कटे।

ललित मोदी तो समझ चुके हैं कि उनके दिन लद गए। अब उनके सामने लडऩे और संघर्ष करने के सिवाय कोई चारा नहीं है। गवर्निंग बाडी के लोग अपना हित साधने में लगे हैं और उनकी बलि देने में उन्हें कोई हिचक नहीं है। फिर भी यह प्रश्र तो खड़ा होता ही है कि आईपीएल में जो कुछ हुआ, उसके लिए ललित मोदी ही अकेले जिम्मेदार क्यों हैं? शशि थरुर का ही मंत्री पद से इस्तीफा पर्याप्त क्यों हैं? इस्तीफा तो अब मनमोहन सिंह को शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल से भी मांग लेना चाहिए। शरद पवार के दामाद आईपीएल के प्रसारण से जुड़े हुए हैं तो प्रफुल्ल पटेल की सुपुत्री पूर्णा पटेल ने आईपीएल की नौकरी के साथ जानकारी अपने पिता को ई-मेल की। उसने एक पैसेंजर एयर इंडिया के विमान को चार्टर्ड विमान में तब्दील करवा दिया और यात्रियों को कष्ट उठाना ही नहीं पड़ा बल्कि यह कायदे कानून के भी विरुद्ध है। इतने आरोप कम नहीं हैं। पर्याप्त हैं मंत्रिमंडल से हटाने के लिए लेकिन गठबंधन की केंद्र सरकार और महाराष्ट की सरकार क्या इसकी इजाजत मनमोहन सिंह को देता है। तब शशि थरुर के इस्तीफे का भी कांग्रेस को क्या लाभ मिलेगा? आईपीएल बहुत बड़ा आर्थिक घोटाला है और इसकी जांच संसदीय समिति करे तब और दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ सकता है। नहीं तो जांच रिपोर्ट का सरकार अपने हित में उपयोग कर सकती है लेकिन जनता को तो पता चल गया है कि यह सिर्फ क्रिकेट नहीं है।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 23.04.2010

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