यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

कांग्रेस का एक मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मित्र बता रहा है, हटा कर दिखाइए

महंगाई के लिए हुई प्रधानमंत्री की बैठक में नरेंद्र मोदी को एक समिति का अध्यक्ष बना दिया गया। अमिताभ बच्चन का गुजरात का पर्यटन के लिए ब्रांड अम्बेसडर बनना कांग्रेसियों के लिए आपत्तिजनक है तो मनमोहन सिंह का नरेंद्र मोदी को किसी समिति का अध्यक्ष बनाना क्यों कांग्रेसियों के लिए आपत्तिजनक नहीं है? फिर गोवा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कहते हैं कि नरेंद्र मोदी उनके अच्छे मित्र हैं। इसका भी तो कांग्रेसियों को विरोध करना चाहिए। सिर्फ महाराष्ट के मुख्यमंत्री का एक कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन के साथ उपस्थित होना क्यों आपत्तिजनक हो गया? महाराष्ट में तो लोग मजाक उड़ा रहे हैं कि भाग चव्हाण, बच्चन आया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी कहा है कि जिस दिन अशोक चव्हाण को विधानसभा से भगाना हो, उस दिन अमिताभ बच्चन को गैलरी में खड़ा करना ही काफी होगा।

जब महाराष्ट के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और अमिताभ के एक कार्यक्रम में उपस्थित रहने को विवाद का विषय कांग्रेसी बना रहे थे तब कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष तिवारी ने प्रश्र किया था कि अमिताभ बच्चन बताएं कि उनकी नरेंद्र मोदी के विषय में क्या राय है? किसी राजनीतिज्ञ से यह पूछना तो ठीक भी है लेकिन एक अभिनेता से इस तरह का प्रश्र पूछना क्या मायने रखता है? जब अमिताभ बच्चन दो बूंद पोलियो की दवा पिलाने का विज्ञापन करते हैं तब उनसे नहीं पूछा जाता कि वे नरेंद्र मोदी के विषय में क्या राय रखते हैं? अब मनमोहन सिंह से पूछें कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को महंगाई की बैठक में क्यों बुलाया और बुलाया भी तो समिति का अध्यक्ष क्यों बनाया? अशोक चव्हाण ने तो डर कर कह दिया था कि उन्हें मालूम होता कि अमिताभ बच्चन उस कार्यक्रम में आ रहे हैं तो वे आते नहीं। मराठी साहित्य सम्मेलन में उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ आमंत्रित होने के बावजूद एक साथ शिरकत करने से इंकार कर दिया।

महाराष्ट तो एक बड़ा राज्य है। वहां का मुख्यमंत्री गठबंधन की सरकार चला रहा है। वह डर सकता है कि कहीं उसका राजपाठ न चला जाए लेकिन अब गोवा के मुख्यमंत्री का क्या करेंगे? हटाएं उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी से। क्योंकि अमिताभ बच्चन ने तो नरेन्द्र मोदी से किसी भी तरह की मित्रता का दावा नहीं किया। उन्होंने तो सिर्फ गुजरात के ऐतिहासिक स्थलों के प्रति पर्यटकों को आकर्षित करने में ही रुचि दिखायीं। तब इतना विरोध। एक मुख्यमंत्री तो नरेन्द्र मोदी से दोस्ती का दावा कर रहा है। अब मनीष तिवारी पूछे उससे कि मोदी के विषय में क्या राय है, उनकी? अशोक चव्हाण के कांड से तो दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ऐसी बिदकी कि उन्होंने अर्थ ऑवर कार्यक्रम से अमिताभ बच्चन के पुत्र अभिषेक बच्चन के पोस्टर ही हटवा दिए। उन्हें शायद यही समझ में आया कि जब आलाकमान अमिताभ बच्चन के नाम से इतना खफा हो सकता है, तब वह अभिषेक बच्चन को भी बर्दाश्त नहीं करेगा।

आज तक आलाकमान याने सोनिया गांधी ने इस संबंध में कोई विचार अभिव्यक्त नहीं किया है। न ही अमिताभ बच्चन के विषय में कोई दिशा निर्देश ही पार्टी को दिया है लेकिन भय का भूत है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री हलाकान हैं। क्या यह बात गोवा के मुख्यमंत्री को समझ में नहीं आती? निश्चित ही आती होगी लेकिन वे इस तरह के विचारों से सहमत नहीं हैं। सहमत होते तो नरेंद्र मोदी के मित्र होने के बावजूद मित्रता का ढिंढोरा नहीं पीटते। नरेंद्र मोदी पर सांप्रदायिकता के आरोप हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उनसे पूछताछ भी की गई। ठीक उसी तरह से जिस तरह से बोफोर्स की दलाली में राजीव गांधी पर आरोप लगे लेकिन सिद्ध कभी नहीं हुआ कि राजीव गांधी ने बोफोर्स में दलाली ली थी।

बोफोर्स की दलाली के आरोप के बाद राजीव की कांग्रेस को सत्ता में रहने का जनादेश भी नहीं मिला। उन्हें सत्ता से हटना पड़ा। जीते जी वे सत्ता में वापस नहीं आ सके। यहां तक कि उसके बाद कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार भी कभी नहीं बनी। नरसिंहराव की सरकार अल्पमत की थी और पिछले कार्यकाल और वर्तमान कार्यकाल में कांग्रेस की सरकार गठबंधन की है। यह सही है कि पहले की तुलना में वर्तमान में लोकसभा में कांग्रेस की सदस्य संख्या अधिक हैं लेकिन फिर भी बिना अन्य दलों के सहयोग के उसकी सरकार नहीं चल सकती। इसके विपरीत नरेंद्र मोदी की गुजरात में दो तिहाई बहुमत की सरकार है। नरेंद्र मोदी पर तमाम तरह के सांप्रदायिक आरोपों के बावजूद दो-दो बार गुजरात के मतदाताओं ने कांग्रेस को सरकार बनाने और चलाने का आदेश नहीं दिया। जनादेश दिया तो उस नरेंद्र मोदी को जिस पर सोनिया गांधी ने मौत का सौदागर होने का आरोप लगाया। प्रजातंत्र में तो जनादेश को ही सर्वोपरि माना जाता है। जब गुजरात की जनता मानती हैं कि गुजरात नरेंद्र मोदी के हाथ में सुरक्षित है तब दूसरों के आरोपों का क्या औचित्य रह जाता है?

कितने ही लोग है, इस देश में जो सोचते है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के योग्य है। बड़े-बड़े उद्योगपति, गुजरात की जनता, भाजपा समझती है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश का भला होगा। विकास के मामले में गुजरात में नरेंद्र मोदी ने वह कर दिखाया है जो दूसरे राज्यों के लिए एक सपना है। नैनों को टाटा पश्चिम बंगाल से स्थानांतरित करते हैं तब कितने ही राज्य उन्हें आमंत्रित करते है कि टाटा कारखाना उनके राज्य में लगाएं लेकिन टाटा गुजरात में लगाना पसंद करते हैं। नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हैं तो गुजरात इतना शांत क्यों है? क्यों सांप्रदायिक ताकतें सिर नहीं उठाती? इसका तो यही अर्थ होता है कि सांप्रदायिक ताकतों को पता है कि वे कानून के दायरे से बाहर गए तो कानून उन्हें बख्शने वाला नहीं है।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन पर भ्रष्टाचार का किसी तरह का आरोप नहीं है। भ्रष्टाचार को किसी तरह का आश्रय या प्रश्रय वहां सरकार नहीं देती। 5 करोड़ गुजरातियों का भला कैसे हो, यही मुख्य सोच है, सरकार की। गुजरात आज देश के राज्यों के लिए मॉडल है। दृढ़निष्ठï हो और जनकल्याण की भावना है तो जनता के दिल पर शासन किया जा सकता है। कितने ही नरेंद्र मोदी के विरुद्ध किए सर्वेक्षणों को नरेंद्र मोदी के प्रति जनता के विश्वास ने गलत साबित किया है। कब तक सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्ष के बीच जनता को उलझा कर शासन किया जा सकता है। नरेंद्र मोदी से प्रतियोगिता करना है तो सुशासन पर प्रतियोगिता कीजिए। उनसे अच्छा भी शासन किया जा सकता है, यह कर के दिखलाइए। अमिताभ बच्चन को नरेंद्र मोदी से उलझा कर राजनैतिक मुद्दा बना कर जनता को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।

- विष्णु सिन्हा
दिनांक 11.04.2010

1 टिप्पणी:

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.