कभी गरीबों हटाओ का नारा कांग्रेस का मुख्य आधार था। आज महंगाई उसका नारा दिखायी देता है। देश में गेहूं की बंपर फसल है। गोदामों में रखने की जगह नहीं है। फिर भी विदेशों से मनमाने गेहूं आयात किया जा रहा है। जो कि सस्ता है और गेहूं की पैदावार करने वाले कृषकों के लिए सिवाय नुकसान के और कुछ नहीं है। जिस खाद्यान्न की देश में जरुरत नहीं उसे मंगवाया जाना कौन सा राष्ट्र् हित है? जो सरकार साढ़े बारह रुपए किलो में शक्कर विदेशों में बेचने की अनुमति देती है और 30-35 रु. किलो फिर आयात की स्वीकृति देती है, वह कैसे गरीबों की हितैषी हो सकती है। सरकार ने संख्या बल के आधार पर भले ही महंगाई बढ़ाने वाले प्रस्तावों को स्वीकृत करा लिया है लेकिन गरीबों के हितैषी बनने वाले दल सरकार के पक्ष में संसद में दिखायी देते हैं तो जनता अच्छी तरह से समझती है कि उसे कौन बेवकूफ समझ रहा है?
कल अगर कटौती प्रस्ताव लोकसभा में पारित हो जाता तो सरकार ही गिर जाती। मायावती कांग्रेस को अपना दुश्मन नंबर एक बताते नहीं अघाती। मुलामय सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव को कांग्रेस ने सरकार में न लेकर जैसा झटका दिया है, उसके बावजूद वे कांग्रेस की सरकार को ही बचाते दिखायी देते हैं। वे भाजपा के साथ खड़ा होते नहीं दिखायी देना चाहते। कारण मुसलमान वोट उनसे नाराज न हो जाएं। मुलायम सिंह कल्याण सिंह को साथ लेकर मुसलमान वोटों के नुकसान को झेल चुके हैं। मायावती इसलिए कांग्रेस के साथ कि शायद सरकार सीबीआई से उनकी जान छुड़ाए। फिर मुलायम महंगाई के विरुद्ध आंदोलन में तो मायावती कांग्रेस के साथ। भारतीय राजनीति का यह विरोधाभास सत्ता के अंकगणित को ऐसा प्रभावित करता है कि जनता भले ही दुख भोगे लेकिन होशियार लाभ उठाते रहें।
इस समय देश में वास्तव में विपक्ष के नाम पर भाजपा और वाम दल ही हैं। कभी जिस भाजपा को बनियों की पार्टी कहा जाता था, वही भाजपा आज महंगाई के विरोध में खड़ी है। वह अपना जनता के प्रति दायित्व निभा रही है। दूसरी तरफ वामपंथी हैं जो समझते हैं कि महंगाई का बोझ जनता के बर्दाश्त के बाहर हो रहा है। वे अपनी शक्ति भर लड़ रहे हैं लेकिन असल में जिस कांग्रेस को महंगाई के विरुद्ध जनता को राहत पहुंचाने की सोचना चाहिए, वह नित्य नए आयामों से महंगाई जनता पर लाद रही है। बड़ी ही चालाकी से वह छोटे क्षेत्रीय दलों की कमजोरियों का लाभ उठा रही हैं। क्योंकि ये दल भाजपा के साथ नहीं जा सकते। देश की 120 करोड़ जनता में से 100 करोड़ महंगाई का फल भोग रही है। उत्तरप्रदेश बिहार में बसें जलायी जा रही हैं। मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव के कार्यकर्ता ही जला रहे हैं। महंगाई भले ही रहे लेकिन सरकार नहीं गिरना चाहिए। इसलिए लोकसभा में महंगाई के विरुद्ध मतदान नहीं करते।
देश की एक महिला राजनयिक पाकिस्तान में देश के गोपनीय दस्तावेज आई एस आई को बेचती है। पैसों के लिए। मतलब देश से बड़ा धन है, उसके लिए। देश भर में अपराध बढ़ रहे हैं। आर्थिक भेदभाव इसी तरह से बढ़ता रहा और महंगाई पर लगाम नहीं कसी गयी तो धन के लिए लोग सब कुछ करेंगे । सिर्फ पुलिस और कानून का डंडा इसे रोक नहीं सकता। ऐसी ही परिस्थितियां तो आतंकवाद और नक्सलवाद को भी सहयोग करती हैं। बुद्धिजीवी कहते भी हैं कि विकास के अभाव के कारण नक्सलवाद को प्रोत्साहन मिला। तथाकथित विकास हो भी गया और पेट की भूख मिटाना आसान न रहा तो क्या यह भी एक कारण नहीं बनेगा, लोगों के क्रोध को हिंसा की तरफ मुडऩे में। फिर अपराध स्वच्छंदता तो देता ही है, आसान कमायी भी देता है। मरता क्या न करता की तर्ज पर कानून का नियंत्रण कमजोर पड़ा तो यह महंगाई देश के लिए विकास के नाम पर घातक ही सिद्ध होगी।
खाद्यान्न की महंगाई के साथ पानी की किल्लत भी भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं दे रही है। अटल बिहारी की सरकार ने नदियों को जोड़कर पानी की स्थायी व्यवस्था करने की जो योजना बनायी थी, उसे तो कांग्रेस गठबंधन सरकार ने छोड़ दिया। खाद्यान्न महंगा ही सही विदेशों से मंगवाएंगे लेकिन पानी भी विदेशों से मंगवाएंगे क्या? विकास दर साढ़े आठ चाहिए। इससे क्या सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा? जनसंख्या नियंत्रण कभी कांग्रेस के मुख्य कार्यक्रमों में से एक था लेकिन अब उस पर भी सरकार ने चुप्पी साध रखी है। जब मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था तब सोच एक आयाम में केंद्रित हो गयी। निश्चित रुप से कुछ लोग बहुत फल-फूल रहे हैं। दुनिया के गिने-चुने अमीरों की सूची में भी चंद भारतीयों का नाम आ गया है। आईपीएल जैसे क्रिकेट के तमाशे भी अरबों के हो गए हैं तो अरबों के घोटाले भी हो रहे हैं। मेडिकल कॉलेजों को मान्यता देने वाले अधिकारी की ही तिजोरी से डेढ़ टन सोना निकल रहा है। 5 करोड़ की रिश्वत लेते पकड़े गए। आईएएस के घर की तलाशी में ही करोड़ों रुपये निकलते है। यही है, आर्थिक विकास या सत्ता कानून का दुरुपयोग।
कमा सकते हो, कमा लो। खाद्यान्न का सट्टा बंद करो। विपक्ष मांग करता है लेकिन सरकार सुनती नहीं। खाद्यान्न ही क्यों हर वस्तु पर सट्टï हो रहा है। आखिर एम सी एक्स में कमा कौन रहा है? न तो कुछ वास्तव में खरीदा जाता और न ही बेचा जाता लेकिन अरबों का वारा-न्यारा प्रतिदिन होता है। नंबर एक में भी और नंबर दो में भी। क्रिकेट में ही सट्टा नहीं होता। हर उसमें सट्टा होता है जिसमें उतार चढ़ाव का खेल है। आयकर अधिकारियों के यहां से भी करोड़ों रुपए पकड़े जातें हैं। सरकार पेट्र्रोल डीजल की कीमतें बढ़ा कर ही मस्त है। क्योंकि अभी चुनाव दूर है। अभी जनता को सहलाने की जरुरत नहीं हैं। सरकार चलती रहना चाहिए। चुनाव मजबूरी है। लडऩा कौन चाहता है? जनता ने सत्ता से उतार दिया तो? महंगाई संसद में खिलखिला कर हंसती है तो सत्ता पक्ष के भी चेहरे खिल जाते हैं। यही आम आदमी का भाग्य है।
- विष्णु सिन्हा
दिनांक : 28.04.2010
बंटाधार करने मे कोई कसर बाकी नही छोड़ी जा रही...जनता जाए भाड़ मे....जनता तो बेवकूफ है ही...कुछ दिनों बाद सब भूल जाएगी....चिंता किस बात कि करें.....
जवाब देंहटाएंjnaab yeh desh he ver no jvaanon kaa albelon mstaanon kaa is desh men inke so jaane se bs aese hi bhrsht netaaon kaa jnm hogaa jo desh men shaasn krengen akhtar khan akela kota rajasthan
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