यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

डा. रमनसिंह प्रदेश के लिए केंद्रीय मंत्रियों से मिलकर सुविधाएं प्राप्त करने में सफल

डा. रमन सिंह कुंभ स्नान कर लौट आए। अपने साथ विधानसभा अध्यक्ष, सांसद, मंत्री, विधायकों को भी गंगा स्नान का पुण्य लाभ करा दिया। अकेले नहीं सपरिवार। 17 कांग्रेसी विधायक भी पुण्य लाभ कमा लिए लेकिन आलाकमान और शिकायतों के डर से बाकी कांग्रेस के विधायक कन्नी काट गए। गंगा स्नान के बाद तो 17 कांग्रेसी विधायक भी कन्नी काट गए और सांसद चरणदास महंत के साथ जाकर सोनिया गांधी के दरबार में हाजिरी बजा दी। कांग्रेसी विधायक डा. रमन सिंह के साथ राष्टपति, केंद्रीय मंत्रियों से मिलने नहीं गए। वे डर गए थे कि आलाकमान भाजपाइयों के साथ जाने से नाराज हो जाए। प्रदेश के लिए सुख सुविधाएं मांगने से अपने को अलग कर लिया। यह नमूना है आज की राजनीति का। भाजपा के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों को कांग्रेसी मंत्री से राज्य के लिए कुछ मांगने में हिचक नहीं हुई। उन्होंने नहीं सोचा कि कांग्रेस के मंत्रियों से राज्य के लिए कुछ मांगने जाएंगे तो उनका आलाकमान नाराज तो नहीं होगा? साथ में कांग्रेसी विधायकों को ले जाकर गंगा स्नान कराने से भी आलाकमान की नाराजगी का भूत उन पर सवार नहीं था।
मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह तो केंद्र सरकार को यह संदेश देना चाहते थे कि राजनैतिक विचार भले ही भाजपा और कांग्रेस के अलग अलग हों लेकिन राज्य के विधायक राज्य के विकास के मामले में एकजुट हैं। इस एकजुटता के प्रदर्शन से डा. रमनसिंह को अपनी पार्टी के नाराज होने का कोई डर नहीं था लेकिन इससे कांग्रेस की संकीर्णता ही सामने आयी है। कांग्रेसी विधायक नहीं भी गए तब भी मुख्यमंत्री अपने सहयोगियों के साथ मंत्रियों से मिलने गए और शरद पवार से राज्य के हिस्से के एक हजार करोड़ रूपये में से 550 करोड़ रूपये अप्रेल में मिलने का आश्वासन प्राप्त कर लिया। परिवहन मंत्री कमलनाथ से नक्सल प्रभावित इलाकों की सड़कों के लिए एक हजार करोड़ रूपये प्राप्त करने में सफल हो गए। जुलाई से रायपुर बिलासपुर फोरलेन का काम भी प्रारंभ होने का आश्वासन ले लिया। कांग्रेसी विधायक भी साथ में जाते तो केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली योजनाओं की धनराशि के श्रेय के वे भी हकदार होते।

हालांकि स्वयं केंद्र की राशि से फलां काम हो रहा है, इसका ढिंढोरा पीटने में वे चुनाव के समय पीछे नहीं रहते लेकिन इसके लिए प्रयास करने में उनकी क्या भूमिका है, इसका वे विवरण नहीं देते। छत्तीसगढ़ की बिजली ही केंद्र सरकार ने काट दी लेकिन किसी कांग्रेसी ने अपनी सरकार से कहने की हिम्मत नहीं की कि ऐसा मत करें। छत्तीसगढ़ के साथ अन्याय न करें। प्रदेश की जनता भी तो देख रही है कि कांग्रेस के विधायक विधानसभा में सरकार की आलोचना करने के सिवाय क्या कर रहे हैं? केंद्र में जब उनकी सरकार है तो वे केंद सरकार से छत्तीसगढ़ सरकार को कुछ दिलाएं, ऐसा प्रयास नहीं दिखायी देता। जो भी केंद्र से छत्तीसगढ़ को मिलता है, वह या तो मजबूरी के तहत केंद्र सरकार देती है या फिर सारे राज्यों में जो बंटवारा होता है तो छत्तीसगढ़ के हिस्से में भी कुछ लग जाता है। यह कोई केंद्र की कांग्रेस सरकार का उपकार नहीं है, छत्तीसगढ़ पर।

एनएमडीसी की खदानें मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में है लेकिन इसका मुख्यालय हैदराबाद में है। दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेसी क्यों नहीं मांग करते कि मुख्यालय छत्तीसगढ़ में लाया जाए। जिससे एनएसडीसी को होने वाले लाभ का हिस्सा आंध्रप्रदेश के बदले छत्तीसगढ़ को मिले। रेलवे का ही मामला लें। सबसे ज्यादा कमायी देने वाला जोन बिलासपुर है लेकिन क्या वाजिब हक उसे रेल मंत्रालय से मिलता है? जोन कार्यालय भी कांग्रेस की सरकार रहती तो बिलासपुर में नहीं बनता। बनाया अटलबिहारी वाजपेयी ने। छत्तीसगढ़ भी उन्हीं का बनाया हुआ है। आज जो छत्तीसगढ़ में राजनैतिक जागृति और आर्थिक विकास दिखता है, उसका कारण भी तो भाजपा ही है। डा. रमनसिंह के रूप में योग्य नेतृत्व के कारण छत्तीसगढ़ का चहुंमुखी विकास हो रहा है।

गर्मी के दिनों में केंद्र सरकार द्वारा बिजली कोटे में पूरी तरह से कटौती के बावजूद छत्तीसगढ़ के लोगों को जिस तरह से बिजली मिल रही है, ऐसी स्थिति पूरे देश में नहीं है। जब कोई सुविधा उपलब्ध होती है तब उसके अभाव का पता नहीं चलता। दूसरे प्रदेशों से लोग छत्तीसगढ़ में आते हैं तो कहते हैं कि आप लोग तो स्वर्ग में रहते हो। बड़े बडे शहरों में दूसरे प्रांतों में दो चार घंटे बिजली कटौती आम बात है। छोटे शहरों और गांव देहात की तो बात छोड़ दीजिए। प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या नक्सल समस्या को भी जड़ मूल से समाप्त करने का अथक प्रयास सरकार कर रही है। जबकि यह देन कांग्रेस सरकारों की है। जब प्रदेश की समस्याओं को हल करने के लिए कांग्रेसी भाजपा सरकार के साथ केंद्र सरकार से गुहार लगाने से परहेज करते हैं तब प्रदेश की जनता उनसे उम्मीद क्या कर सकती है? ऐसा नहीं है कि विधायक कांग्रेसी अपने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री और मंत्रियों से नहीं मिलते। उस समय यह बात आड़े नहीं आती कि भाजपा के मंत्रियों से कैसे मिले? कांग्रेस का विधायक भाजपा के मंत्री के घर पर दिखायी दे तो लोग क्या कहेंगे? जब इस मामले में हिचक नहीं है तो अपने प्रदेश की समस्याओं के लिए केंद्र सरकार के मंत्रियों से मिलने में क्यों हिचक होना चाहिए? यदि कांग्रेसी विधायक मिलते केंद्रीय मंत्रियों से तो जनता के बीच अच्छा संदेश ही जाता कि प्रदेश की चिंता भाजपा से कम नहीं है, कांग्रेसियों को।

राजनीति को जनसेवा का माध्यम माना जाता है। जनता जिसे उचित समझती है, उसे अपना प्रतिनिधि चुनती है। निश्चित रूप से प्रतिपक्ष का काम है कि वह सरकार के काम की निगरानी करे। सरकार के कदम इधर उधर बहकें तो सीधे कदम उठाने के लिए सचेत करें लेकिन साथ ही साथ सरकार के काम जनहित के सराहनीय हों तो विरोध के नाम पर विरोध करना ही प्रतिपक्ष की राजनीति नहीं है। सरकार का भी दायित्व है कि वह प्रतिपक्ष को विश्वास में लेकर चले। प्रतिपक्ष को संतुष्ट करे कि वह सही काम कर रही है। प्रतिपक्ष इशारा करे कि गलत काम हो रहा है तो सरकार को चाहिए कि वह गलत कामों को रोके? आलोचना को आलोचना ही न समझे बल्कि सचेतक समझे। जब जनसेवा उद्देश्य है, ईमानदारी से तो सत्ता के बिना भी जनसेवा की जा सकती है। सैकड़ों लोग हैं जो बिना किसी सत्ता के ही जनसेवा करते हैं। जनसेवा की आड़ में सत्ता सुख ही उद्देश्य हो और पक्ष विपक्ष दुश्मनी की सोच की तरह काम करे तो स्वस्थ प्रजातंत्र नहीं चल सकता।

डा. रमन सिंह की तो तारीफ ही की जाएगी कि उन्होंने नक्सल समस्या के हल में पक्ष और प्रतिपक्ष दोनो के सहयोग की विधानसभा में तारीफ की। वे कुंभ स्नान के लिए सबको लेकर जाने के लिए तैयार दिखे तो केंद्र सरकार से राज्य की समस्याओं पर चर्चा के लिए पक्ष के साथ विपक्ष को भी आमंत्रित किया। रचनात्मक राजनीति इसी को कहते हैं। डा. रमन सिंह की राजनीति किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं है। वे सबका सम्मान समान रूप से करते हैं और मुख्य सोच ही उनकी प्रदेश का विकास है। गरीब की भूख है। तब जनता उनके पक्ष में हो तो कोई भी क्या कर सकता है?

- विष्णु सिन्हा
1.4.2010

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