वे कान पकड़कर माफी मांग सकती है। विपक्ष के भूखे धरने में बैठे पार्षदों के लिए गुलाब जामुन लेकर स्वयं आ सकती है। सदव्यवहार की अपनी तरफ से कोई कंजूसी महापौर ने नहीं दिखायी। किरणमयी की सज्जनता और सदव्यवहार के कारण ही कांग्रेस का सदन में बहुमत न होने के बावजूद उनके साथ निर्दलीय सहित 39 पार्षद खड़े हैं। कुछ लोग यह भी सोच रहे हों कि कहां संजय श्रीवास्तव को वोट देकर सभापति चुन लिया तो आश्चर्य की बात नहीं। निर्दलीय पूर्णप्रकाश झा को ही किरणमयी नायक ने प्रोटेम स्पीकर चुनवा दिया। यह उनकी लोकप्रियता और ताकत का ही प्रतीक है। वे बहुमत के आधार पर प्रस्ताव पारित करती हैं तो बहुमत उनके साथ है, यह तो स्पष्ट दिखायी देता है। भाजपा के भी कुछ पार्षदों का समर्थन तो किरणमयी के साथ है। पार्टी अनुशासन के कारण वे विरोध नहीं कर सकते लेकिन भाजपा के बागी निर्दलीय पार्षदों में से पूर्णप्रकाश झा भी एक है जिन्हें प्रोटेम स्पीकर चुना गया।
कहा जा रहा है कि अब सभापति पूर्णप्रकाश झा हो गए और सभापति कक्ष में वे ही बैठेंगे। संजय श्रीवास्तव को बैठने नहीं दिया जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो महापौर को बर्खास्त कर दिया जाएगा। राज्य शासन के पास ऐसी शक्ति हो सकती है कि वह महापौर को बर्खास्त कर दे और तब तक जब तक नया महापौर नहीं चुना जाता तब तक महापौर भी सभापति ही हो जाते हैं। यदि वास्तव में ऐसा भाजपा सरकार ने किया तो किरणमयी की लोकप्रियता में इजाफा ही होगा। छवि खराब होने की बात है तो छवि भाजपा की ही खराब होगी। कुछ समय के लिए सत्ता पर भले ही भाजपा काबिज हो जाए लेकिन लाभ अंतत: किरणमयी और कांग्रेस को ही होगा। इसलिए भाजपा के सलाहकार सोच समझकर ही निर्णय लें। कभी कभी एक गलती बहुत भारी पड़ जाती है।
जुम्मा-जुम्मा अभी तीन माह से कुछ अधिक समय ही हुआ है, नगर निगम के चुनाव को। पहली सामान्य सभा ही बजट के साथ चल रही है। किसी भी मुद्दे को लेकर विरोध करने के बदले अभी कम से कम 1 वर्ष तक तो किरणमयी नायक को शांतिपूर्वक काम करने देना चाहिए। अपने वार्ड मोहल्ले की समस्या के विषय में अवश्य पार्षद कहें लेकिन जोन कैसा हो और किस जोन में कौन सा वार्ड हो यह सब राजनैतिक से बढ़कर प्रशासनिक मुद्दे हैं और इस मामले में महापौर को नवनिर्वाचित सभी पार्षदों का सहयोग ही मिलना चाहिए। जनता ने अपने जनादेश से महापौर को चुना है तो उस जनादेश का सम्मान कम से कम जनादेश से चुनकर आए पार्षदों को तो करना चाहिए। पहली बार नगर निगम की सत्ता महिला के हाथ में आयी है। उसका सम्मान किया जाना चाहिए। बेफिजूल के मुद्दे उठाकर कम से कम अपनी छवि तो खराब नहीं करना चाहिए। बजट फाडऩा, आसंदी के सामने धरने पर बैठ जाना, हमारी बात सुनो, नहीं तो सामान्य सभा की कार्यवाही नहीं चलने देंगे, यह सब प्रथम सामान्य सभा में ही करना जरूरी है, क्या ?
सामान्य सभा में कोई भी निर्णय बहुमत के आधार पर ही लिया जाता है। सभी जगह यही होता है। तब मत विभाजन की सत्तारूढ़ दल की मांग को सभापति खारिज कैसे कर सकते हैं? उन्होंने ऐसा किया और उसके बाद सामान्य सभा स्थगित कर चले गए तो इससे क्या संदेश निकलता है? यही न कि वे सभापति होने के बावजूद भाजपा पार्षद की दृष्टि से ही काम कर रहे हैं। जबकि सभापति चुन लिए जाने के बाद उन्हें दल की मानसिकता से ऊपर उठना चाहिए। फिर सामान्य सभा उन्होंने स्थगित की तो इसका पता ही नहीं चला, कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों को। इसकी जानकारी सचिव से मिली। जो भी हुआ, इससे भाजपा को लाभ नहीं होने वाला है। जनता ने समस्याएं हल करने के लिए जिन्हें चुना है, वे इस तरह से काम करेंगे तो संदेश क्या जाएगा?
कमिश्रर सहित नगर निगम के कर्मचारी, भाजपा पार्षद दल, सभापति, सरकार यदि चुनी हुई महापौर को असहयोग करेंगे तो नुकसान तो रायपुर की जनता को होगा। केंद्र में कांग्रेस की सरकार है प्रदेश में भाजपा की तो केंद्र सरकार तरह तरह से राज्य सरकार को परेशान करती है। अभी पिछले दिनों ही केंद्र सरकार ने विद्युत का कोटा काट लिया। केद्र सरकार की बिजली भी छत्तीसगढ़ में बनती है लेकिन बिजली काटने के लिए, चांवल का कोटा कम करने के लिए छत्तीसगढ़ ही कांग्रेस सरकार को मिलता है। मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों, विधायकों के साथ प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी समस्याएं बताते हैं तो प्रधानमंत्री आश्वासन देते हैं कि विकास के लिए धन की कमी नहीं होगी। यही जरूरत नगर निगम रायपुर को भी है। जब किरणमयी नायक महापौर का चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से मिली थी तो डा. रमन सिंह ने कहा था कि विकास के लिए धन की कोई कमी नहीं होगी लेकिन आज नगर निगम का खजाना खाली है।
महापौर को संपत्ति कर बढ़ाना पड़ रहा है। कर्मचारियों को छठवां वेतन आयोग देना पड़ रहा है। ठेकेदारों और सप्लायरों का करोड़ों का बिल भुगतान का इंतजार कर रहा है। खबर है कि अगले मार्च अप्रेल तक सरकार नया रायपुर में चली जाएगी। तब क्या रायपुर का पुराना शहर और उपेक्षित हो जाएगा ? जिस तरह से नये भोपाल में तो सरकार भरपूर खर्च करती है लेकिन पुराना भोपाल उपेक्षित रह जाता है। उस पर प्रदेश में भाजपा की सरकार और नगर निगम में कांग्रेस। क्या राजनीति के भंवरजाल का शिकार होंगे, रायपुरवासी? क्या किरणमयी नायक के पक्ष में जनादेश देकर रायपुर की जनता ने कोई गलती की है? यदि राजनीति अपने ढंग से जनता से बदला लेगी तो फिर जनता की स्वतंत्र मत अभिव्यक्ति का अर्थ ही क्या रह जाएगा ?
-विष्णु सिन्हा
31.3.2010
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