यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने समाचार पत्र "अग्रदूत" में प्रकाशित कुछ लेखों को प्रकाशित करेगा . जिन्हे मेरे अग्रज, पत्र के प्रधान संपादक श्री विष्णु सिन्हा जी ने लिखा है .
ये लेख "सोच की लकीरें" के नाम से प्रकाशित होते हैं

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

किरणमयी बहुत से कांग्रेसियों से ज्यादा योग्य हैं और उन्हें किसी की सलाह की जरूरत नहीं

किरणमयी नायक को रायपुर नगर की जनता ने अपना महापौर चुना। कांगे्रस की प्रत्याशी के रूप में वे चुनाव मैदान में थी लेकिन कितने दिग्गज कांग्रेसियों ने उनकी जीत का मार्ग प्रशस्त किया ? कांग्रेस के पक्ष में जनादेश होता तो 70 में से कम से कम 36 पार्षद तो कांग्रेस के चुने जाते लेकिन 31 पार्षद ही चुने गए। भाजपा के केवल 29 पार्षद ही चुनाव जीत सके। 10 पार्षद निर्दलीय चुनाव जीतकर आए। इसमें भी अधिकांश भाजपा के ही बागी पार्षद थे। सभापति के चुनाव में कांग्रेस ने मनोज कंदोई को खड़ा किया लेकिन वे जीत नहीं सके और भाजपा के संजय श्रीवास्तव चुनाव जीत गए। कांग्रेस के ही पार्षदों ने भी संजय श्रीवास्तव को वोट दिया। स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस संगठन अपने पार्षदों को भी नहीं संभाल सकता। अब संगठन महापौर को नियंत्रित करना चाहता है। वह एक टीम बना रहा है जो किरणमयी नायक को घोषणा पत्र के अनुरूप कार्य करने के लिए बाध्य करेगा। जहां तक घोषणा पत्र का संबंध है तो वह किरणमयी नायक का बनाया हुआ नहीं है। उसे भी संगठन ने बढ़ चढ़कर जनता को लुभाने के लिए बनाया था।

हकीकत में नगर निगम की स्थिति क्या है और उसके पास आर्थिक संसाधनों की क्या स्थिति है, इसका अनुमान लगाए बिना ही वायदे किए गए हैं। जब किरणमयी नायक ने महापौर का पद संभाला तब उन्हें पता चला कि वायदों को पूरा करने के लिए जितने धन की जरूरत है, उतना धन नगर निगम के खजाने में नहीं है और न ही नगर निगम के आय श्रोत ही इतने हैं कि धन इकट्ठा किया जा सके। तब सबसे पहले उन्होंने धन प्राप्त करने के साधनों पर ही ध्यान देना प्रारंभ किया और इसका उदाहरण है कि शहर के बीचो बीच स्थित एक लाज से ही विगत 20 वर्षों से संपत्ति कर वसूला ही नहीं गया। करीब 20 लाख का संपत्ति कर वसूला जाना है। विज्ञापन की होर्डिंग से ही 40 करोड़ वसूलने की योजना है। नगर निगम की आय कैसे बढ़ायी जाए, इस पर महापौर ने अपना ध्यान केंद्रित किया है.

सफई व्यवस्था के लिए तो महापौर ने स्वयं सफाई कर सफाई विभाग को जागृत करने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस संगठन जागृत नहीं हुआ। महापौर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कांग्रेस संगठन ने भी शहर की सफाई व्यवस्था का बीड़ा उठाया होता तो आज शहर में कांग्रेस की स्थिति ही दूसरी होती। मोहल्ले मोहल्ले में कांग्रेस के पदाधिकारी, कार्यकर्ता, युवक कांग्रेस, सेवा दल, महिला कांग्रेस, छात्र संगठन के सदस्य झाड़ू उठाकर निकल जाते तो रायपुर शहर की जनता का विश्वास प्राप्त कर सकते थे। कांग्रेसी देखते रहें और महापौर अपने कुछ पार्षदों के साथ सफाई अभियान में लगी रही। सफेद क्लफ वाली खादी पहनने वाले कांग्रेसी भूल गए कि महात्मा गांधी तो अपना पाखाना तक साफ करने के लिए कांग्रेसियों को प्रेरित करते रहे हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में सफाई, स्वयं सेवा कांग्रेस के कार्यक्रमों का प्रमुख अंग रहा है। जनता का सेवक कहने में जिन्हें गर्व का भान होता था, वे सेवा धर्म से अपने को अलग कर चुके हैं। सफाई करना अब सफाई कर्मचारियों का काम रह गया है।

कल ही एक कटु टिप्पणी राजधानी रायपुर के विषय में समाचार पत्रों में छपी है कि रायपुर धारावी की तरह लगता है। मुंबई की झुग्गी झोपडिय़ों की बड़ी बस्ती धारावी। इससे बड़ा तमाचा शहर के गाल पर क्या हो सकता है लेकिन इसके बावजूद यह विचारणीय तो है कि वास्तव में रायपुर एक राजधानी शहर की तरह विकसित क्यों नहीं हो पा रहा है? यह ठीक है कि पुराना शहर है लेकिन फिर भी मास्टर प्लान तो रहा है। बढ़ते शहर की आवश्यकता के अनुसार कांग्रेस के ही सबसे बड़े नेता स्व. श्यामाचरण शुक्ल चिल्लाते रहे कि पूरे शहर को कांक्रीट का शहर मत बनाओ लेकिन कांग्रेसी शासन के बावजूद सुनवायी नहीं हुई। तालाबों का शहर पटता रहा और आज स्थिति यह है कि गर्मी के दिनों में ट्यूबवेल से पानी नहीं निकलता। जहां निकलता भी है तो दूषित पानी की शिकायतें भी आती है।

जिधर देखो उधर समस्याएं ही समस्याएं हैं। समस्याओं से ग्रस्त राजधानी को रातोंरात सुधारना किसी के बस की बात नहीं है। सड़कें बनती हैं लेकिन उन्हें उखडऩे में भी समय नहीं लगता। निरंतर काम की जरूरत है और उसके लिए 70 वार्डों के शहर को काफी मात्रा में धन चाहिए। महापौर 10 प्रतिशत संपत्ति कर बढ़ाना चाहती है तो उसका भी विरोध होता है। आखिर बिना धन के रायपुर की जनता की आकांक्षाओं को कैसे पूरा किया जा सकता है? फिर भी किरणमयी नायक की तारीफ ही की जाएगी। वे न तो स्थिति से हताश निराश हैं और न ही समस्याओं से मुंह चुराने वाली हैं। मात्र दो माह हुए हैं उन्हें पद संभालें और सब कुछ उनकी समझ में आता जा रहा है। कांग्रेसी नेता सलाह के चक्कर में न पड़ें और न ही महापौर को नियंत्रित करने का उद्यम करें। उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक काम करने दें तो यही उनका बड़ा सहयोग होगा। वे रचनात्मक काम सफाई मे सहयोग कर सकते हैं लेकिन इसके लिए सफाई कर्मचारियों पर आश्रित होने के बदले वे स्वयं सफाई में हाथ बढ़ाएं और रायपुर शहर की जनता को सफाई के विषय में जागरूक करने का काम करें तो उनकी छवि भी बनेगी और जनता का कांग्रेस पर विश्वास भी बढ़ेगा। ऐसा कुछ करने में वे असमर्थ हैं तो अनावश्यक नगर निगम में हस्तक्षेप न करें। इससे लाभ तो होगा नहीं, नुकसान हो जाए तो आश्चर्य की बात नहीं। निगरानी करने का काम अपने हाथ में लेकर वे क्या रायपुर की जनता को संदेश देना चाहते है कि महापौर अक्षम हैं और उन्हें समझ नहीं है तो वे यह खामख्याली छोड़ दें। बहुतों से बहुत योग्य हैं किरणमयी और उनके प्रकाश से नगर की जनता स्वयं प्रकाशित अनुभव करेंगी।

विष्णु सिन्हा

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